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#[[पार्वती]] उसे पुत्र-रूप में ग्रहण करें, वह स्कंद का छोटा भाई माना जाने लगा।  
 
#[[पार्वती]] उसे पुत्र-रूप में ग्रहण करें, वह स्कंद का छोटा भाई माना जाने लगा।  
 
#वह शिव से आरक्षित रहेगा  
 
#वह शिव से आरक्षित रहेगा  
#उसे अपने समान वीर से युद्ध करने का अवसर मिले। शिव ने कहा-'अपने स्थान पर स्थापित तुम्हारा ध्वज जब खंडित होकर गिर जायेगा तभी तुम्हें युद्ध का अवसर मिलेगा।' बाणासुर की एक सहस्त्र भुजाएं थीं। उसने अपने मंत्री कुंभांड को समस्त घटनाओं के विषय में बताया तो वह चिंतित हो उठा। तभी [[इंद्र]] के वज्र से उसकी ध्वजा टूटकर नीचे गिर गयी। बाणासुर की कन्या [[उषा]] ने वन में [[शिव]]-[[पार्वती]] को रमण करते देखा तो वह भी कामविमोहित होकर प्रिय-मिलन की इच्छा करने लगी। पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने प्रिय के साथ पार्वती की भांति ही रमण कर पायेगी। स्वप्नदर्शन से वह अनिरूद्ध पर आसक्त हो गयी। चित्रलेखा ने अनिरूद्ध का अपहरण किया तथा उसी की सहायता से उषा का अनिरूद्ध से गांधर्व विवाह हो गया। बाणासुर को ज्ञात हुआ तो उसने अनिरूद्ध को नागपाश से आबद्ध कर लिया। आर्या देवी की आराधना से अनिरूद्ध उन पाशों से मुक्त हो गया। इधर [[नारद]] से समस्त समाचार जानकर श्री[[कृष्ण]] यादववंशियों सहित बाणासुर के नगर की ओर बढ़े। नगर को चारों ओर से [[अग्नि]] ने घेर रखा था। [[अंगिरा]] उसकी सुरक्षा में थें [[गरूड़]] ने हजारों मुख धारण करके [[गंगा]] से पानी लिया तथा अग्नि पर छिड़ककर उसे बुझा दिया। कृष्ण ने शिव पर जृंभास्त्र का प्रयोग किया। शिव की जृंभा से ज्वाला निकलकर दिशाओं को दग्ध करने लगी। पृथ्वी भयभीत होकर [[ब्रह्मा]] की शरण में गयी। ब्रह्मा ने शिव से कहा-'[[विष्णु]] और तुम अभिन्न हो। एक ही के दो रूप हो। तुम्हारी सलाह से ही असुरों का नाश आरंभ किया गया था। अब तुम असुरों को प्रश्रय क्यों दे रहे हो?' शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना, अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया। बाणासुर तथा कृष्ण का युद्ध हुआ। बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं। वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं। कृष्ण ने आंखे मूंद ली। देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्त्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले। शिव ने बीच-बचाव किया। पुत्रवत बाणासुर को शिव ने चार वर प्रदान किये-
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#उसे अपने समान वीर से युद्ध करने का अवसर मिले। शिव ने कहा-'अपने स्थान पर स्थापित तुम्हारा ध्वज जब खंडित होकर गिर जायेगा तभी तुम्हें युद्ध का अवसर मिलेगा।' बाणासुर की एक सहस्त्र भुजाएं थीं। उसने अपने मंत्री कुंभांड को समस्त घटनाओं के विषय में बताया तो वह चिंतित हो उठा। तभी [[इंद्र]] के वज्र से उसकी ध्वजा टूटकर नीचे गिर गयी। बाणासुर की कन्या [[उषा]] ने वन में [[शिव]]-[[पार्वती]] को रमण करते देखा तो वह भी कामविमोहित होकर प्रिय-मिलन की इच्छा करने लगी। पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने प्रिय के साथ पार्वती की भांति ही रमण कर पायेगी। स्वप्नदर्शन से वह अनिरूद्ध पर आसक्त हो गयी। चित्रलेखा ने अनिरूद्ध का अपहरण किया तथा उसी की सहायता से उषा का अनिरूद्ध से गांधर्व विवाह हो गया। बाणासुर को ज्ञात हुआ तो उसने अनिरूद्ध को नागपाश से आबद्ध कर लिया। आर्या देवी की आराधना से अनिरूद्ध उन पाशों से मुक्त हो गया। इधर [[नारद]] से समस्त समाचार जानकर श्री[[कृष्ण]] यादववंशियों सहित बाणासुर के नगर की ओर बढ़े। नगर को चारों ओर से [[अग्नि]] ने घेर रखा था। [[अंगिरा]] उसकी सुरक्षा में थें [[गरुड़]] ने हजारों मुख धारण करके [[गंगा]] से पानी लिया तथा अग्नि पर छिड़ककर उसे बुझा दिया। कृष्ण ने शिव पर जृंभास्त्र का प्रयोग किया। शिव की जृंभा से ज्वाला निकलकर दिशाओं को दग्ध करने लगी। पृथ्वी भयभीत होकर [[ब्रह्मा]] की शरण में गयी। ब्रह्मा ने शिव से कहा-'[[विष्णु]] और तुम अभिन्न हो। एक ही के दो रूप हो। तुम्हारी सलाह से ही असुरों का नाश आरंभ किया गया था। अब तुम असुरों को प्रश्रय क्यों दे रहे हो?' शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना, अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया। बाणासुर तथा कृष्ण का युद्ध हुआ। बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं। वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं। कृष्ण ने आंखे मूंद ली। देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्त्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले। शिव ने बीच-बचाव किया। पुत्रवत बाणासुर को शिव ने चार वर प्रदान किये-
 
#अजर-अमरत्व,  
 
#अजर-अमरत्व,  
 
#शिव-भक्ति में विभोर नाचने वालों को पुत्र-प्राप्ति,  
 
#शिव-भक्ति में विभोर नाचने वालों को पुत्र-प्राप्ति,  

१६:४६, २७ दिसम्बर २००९ का अवतरण


बाणासुर / Banasur

  • बलि के ज्येष्ठ पुत्र का नाम बाण था। बाण ने घोर तपस्या के फलस्वरूप शिव से अनेक दुर्लभ वर प्राप्त किये थे। अत: वह गर्वोन्मत्त हो उठा था। उसके एक सहस्त्र बांहें थीं। वह शोणितपुर पर राज्य करता था। उसकी एक सुंदरी कन्या थी, जिसका नाम उषा था। प्रद्युम्न का पुत्र अनिरूद्ध उस कन्या पर आसक्त हो गया तथा गुप्त रूप से उससे मिलता रहा। बाणसुर को विदित हुआ तो उसने दोनों को कारागार में डाल दिया। नारद ने श्रीकृष्ण से जाकर कहा-'आपके पौत्र अनिरूद्ध को बाणासुर विशेष कष्ट दे रहा है।' श्रीकृष्ण ने बलराम तथा प्रद्युम्न के साथ बाणासुर पर आक्रमण किया। महादेव बाणासुर की रक्षा के निमित्त वहां पहुंचे किंतु सबको परास्त कर तथा बाणासुर की समस्त बांहें काटकर और उसे मारकर श्रीकृष्ण, उषा और अनिरूद्ध को धन-धान्य सहित लेकर द्वारका पहुंचे। [१]
  • बाणासुर बलि के सौ पुत्रों में से ज्येष्ठ था। वह स्कंद को खेलता देख शिव की ओर आकृष्ट हुआ। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। शिव ने वर मांगने को कहा तो उसने ये वर मांगे-
  1. पार्वती उसे पुत्र-रूप में ग्रहण करें, वह स्कंद का छोटा भाई माना जाने लगा।
  2. वह शिव से आरक्षित रहेगा
  3. उसे अपने समान वीर से युद्ध करने का अवसर मिले। शिव ने कहा-'अपने स्थान पर स्थापित तुम्हारा ध्वज जब खंडित होकर गिर जायेगा तभी तुम्हें युद्ध का अवसर मिलेगा।' बाणासुर की एक सहस्त्र भुजाएं थीं। उसने अपने मंत्री कुंभांड को समस्त घटनाओं के विषय में बताया तो वह चिंतित हो उठा। तभी इंद्र के वज्र से उसकी ध्वजा टूटकर नीचे गिर गयी। बाणासुर की कन्या उषा ने वन में शिव-पार्वती को रमण करते देखा तो वह भी कामविमोहित होकर प्रिय-मिलन की इच्छा करने लगी। पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया कि वह अपने प्रिय के साथ पार्वती की भांति ही रमण कर पायेगी। स्वप्नदर्शन से वह अनिरूद्ध पर आसक्त हो गयी। चित्रलेखा ने अनिरूद्ध का अपहरण किया तथा उसी की सहायता से उषा का अनिरूद्ध से गांधर्व विवाह हो गया। बाणासुर को ज्ञात हुआ तो उसने अनिरूद्ध को नागपाश से आबद्ध कर लिया। आर्या देवी की आराधना से अनिरूद्ध उन पाशों से मुक्त हो गया। इधर नारद से समस्त समाचार जानकर श्रीकृष्ण यादववंशियों सहित बाणासुर के नगर की ओर बढ़े। नगर को चारों ओर से अग्नि ने घेर रखा था। अंगिरा उसकी सुरक्षा में थें गरुड़ ने हजारों मुख धारण करके गंगा से पानी लिया तथा अग्नि पर छिड़ककर उसे बुझा दिया। कृष्ण ने शिव पर जृंभास्त्र का प्रयोग किया। शिव की जृंभा से ज्वाला निकलकर दिशाओं को दग्ध करने लगी। पृथ्वी भयभीत होकर ब्रह्मा की शरण में गयी। ब्रह्मा ने शिव से कहा-'विष्णु और तुम अभिन्न हो। एक ही के दो रूप हो। तुम्हारी सलाह से ही असुरों का नाश आरंभ किया गया था। अब तुम असुरों को प्रश्रय क्यों दे रहे हो?' शिव ने योग बल से अपना और विष्णु का एकत्व जाना, अत: पृथ्वी पर विष्णु से युद्ध करने का निश्चय कर लिया। बाणासुर तथा कृष्ण का युद्ध हुआ। बाणासुर को बचाने के लिए पार्वती दोनों के मध्य जा खड़ी हुईं। वे मात्र कृष्ण को नग्न रूप में दीख पड़ रही थीं, शेष सबके लिए अदृश्य थीं। कृष्ण ने आंखे मूंद ली। देवी की प्रार्थना पर कृष्ण ने बाणासुर को जीवित रहने दिया किंतु उसके मद को नष्ट करने के लिए एक सहस्त्र हाथों में से दो को छोड़कर शेष काट डाले। शिव ने बीच-बचाव किया। पुत्रवत बाणासुर को शिव ने चार वर प्रदान किये-
  4. अजर-अमरत्व,
  5. शिव-भक्ति में विभोर नाचने वालों को पुत्र-प्राप्ति,
  6. बांहे कटने के कष्ट से मुक्ति तथा
  7. महाकाल नाम की ख्याति।
  • अत: बाणासुर महाकाल कहलाने लगा। [२]

टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत, सभापर्व, 38 ।
  2. ब्रह्म पुराण,206 । हरिवंश पुराण, विष्णुपर्व, 116-126