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बाबर

मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक जहीरूद्दीन बाबर का जन्म मध्य एशिया के फरगाना राज्य में हुआ था । उसका पिता वहाँ का शासक था, जिसकी मृत्यु के बाद बाबर राज्याधिकारी बना । पारिवारिक कठिनाईयों के कारण वह मध्य एशिया के अपने पैत्रिक राज्य पर शासन नहीं कर सका । उसने केवल 22 वर्ष की आयु में सं. 1561 में काबुल पर अधिकार कर अफगानिस्तान में राज्य कायम किया था । वह 22 वर्ष तक काबुल का शासक रहा । उस काल में उसने अपने पूर्वजों के राज्य को वापिस पाने की कई बार कोशिश की; पर सफल नहीं हो सका ।

पानीपत युद्ध और इब्राहीम लोदी की पराजय

इस समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान था और द़ौलतखाँ लोदी पंजाब का राज्यपाल था । दौलतखाँ इब्राहीम से नाराज़ था ; उसने दिल्ली सल्तनत से विद्रोह कर बाबर को अपनी मदद के लिये काबुल से बुलाया । बाबर खुद भी भारत पर हमला करना चाह रहा था । उसने दौलतखाँ लोदी के निमंत्रण पर तैयारी करने लगा । उस समय तुर्क अफग़ान भारत पर आक्रमण लूट से मालामाल होने के लिये आतुर रहते थे । बाबर एक बहुत बड़ी सेना लेकर पंजाब की ओर चल दिया ।


जब इब्राहीम लोदी को दौलत खाँ की बग़ावत और बाबर के आक्रमण का पता चला वह भी अपनी विशाल सेना के साथ आगे बढ़ा । दोनों ओर की सेनाएँ पानीपत के मैदान में एक दूसरे से भिड़ गईं । इब्राहीम की सेना बाबर की सेना से अधिक थी, किन्तु उत्साहहीन और अव्यवस्थित थी । बाबर की सेना उत्साह और जोश से भरपूर थी । इब्राहीम की सेना में बंदूक−तोपधारी सैनिकों की संख्या बहुत कम थी । बाबर की सेना में बंदूकचियों और तोपचियों की संख्या काफी थी, जो गोला−बारूद की युद्ध कला बड़े निपुण थे । इन सब कारणों से सुल्तानी सेना हार गई और इब्राहीम लोदी अपने सहायकों के साथ युद्ध में मारा गया । इसी युद्ध में ग्वालियर के तोमर राजा विक्रमाजीत की भी मृत्यु हुई । 21 अप्रैल, सन् 1526 ई. में पानीपत के युद्ध में जीतने से बाबर की इच्छा पूरी हुई । उसने दौलतखाँ लोदी को पंजाब का शासक बना दिया और खुद दिल्ली−आगरा पर अधिकार कर मुग़ल राज्य की स्थापना का प्रयास करने लगा । उसका ध्यान राजपूत राजा राणासांगा पर गया, जिसे हराये बिना वह सफल नहीं हो सकता था ।

राणासांगा और बाबर का युद्ध

उत्तरी भारत में दिल्ली के सुल्तान के बाद सबसे अधिक शक्तिशाली शासक चित्तौड़ का राजपूत नरेश राणा सांगा ( संग्राम सिंह ) था । उसने दो मुसलमानों, इब्राहीम और बाबर के युद्ध में तटस्थता की नीति अपनायी । वह सोचता था कि बाबर लूटमार कर वापिस चला जायेगा, तब लोदी शासन को हटा दिल्ली में हिंदू राज्य का उसे सुयोग प्राप्त होगा । जब उसने देखा कि बाबर मुग़ल राज्य की स्थापना का आयोजन कर रहा है, तब वह उससे युध्द करने के लिए तैयार हुआ । राणा सांगा वीर और कुशल सेनानी था । वह अनेक युद्ध कर चुका था, उसे सदैव विजय प्राप्त हुई थी । उधर बाबर ने भी समझ लिया था कि राणा सांगा के रहते हुए भारत में मुग़ल राज्य की स्थापना करना संभव नहीं हैं ; अत: उसने भी अपनी सेना के साथ राणा से युद्ध करने का निश्चय किया । अफगान सैनिक राजपूतों से यु्द्ध करने की अपेक्षा अपने घरों को वापिस जाना चाहते थे, बाबर ने बड़े आग्रह पूर्वक उन्हें रोका । उसने उन्हें उत्साहित किया । मुसलमान सैनिक मरने−मारने के लिए तैयार हो गये । दोनों ओर की सेनाओं में बड़ा भयंकर युद्ध हुआ ।


राजस्थान के ऐतिहासिक काव्य 'वीर विनोद' में सांगा और बाबर के उस युद्ध का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है कि बाबर बीस हजार मुग़ल सैनिकों को लेकर सांगा से युद्ध करने आया था । उसने सांगा की सेना के लोदी सेनापति को प्रलोभन दिया जिससे वह सांगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला । बाबर को सांगा से युद्ध हारने की शंका थी । उसके काबुली ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की कि यदि वह शराब ना पीने का अहद करे, तो खुदा उसे कामयाबी दे देगा । बाबर ने उसी समय शराब छोड़ने का अहद किया और जीवन भर उसे नहीं छुआ । इसी याद में वहाँ एक मस्जिद बनाई, जिसके खंडहर आज भी हैं । बाबर और सांगा की पहली मुठभेड़ बयाना में और दूसरी उसके पास खनुवाँ नामक स्थान पर हुई थी । राजपूतों ने वीरतापूर्वक युद्ध किया; अंत में सांगा की हार हुई और बाबर की विजय । उसका कारण बाबर के सैनिकों की वीरता नहीं बल्कि उनका आधुनिक तोपखाना था । राजपूतों से युद्ध करते हुए तुर्कों के पैर उखड़ गये, जिससे राजपूतों की विजय और तुकों की पराजय दिखाई देने लगी, किंतु जब बाबर के तोपखाने ने आग बरसायी, तब सांगा की जीती बाजी हार में बदल गई । फिर भी सांगा और उसके वीर मरते दम तक लड़ते रहे । बाबर ने राजपूतों के बारे में लिखा है,−'वे मरना−मारना तो जानते है ; किंतु युद्ध करना नहीं जानते ।' सांगा और बाबर का यह निर्णायक युद्ध सीकरी के पास खनुवाँ नामक स्थान में 16 अप्रैल, सन् 1527 में हुआ था । इस तरह उस समय के ब्रजमंडल में जयचंद्र के बाद सांगा की भी हार हुई ।

मुग़ल राज्य की स्थापना और बाबर की मृत्यु

इब्राहीम लोदी और राणा सांगा की हार के बाद बाबर ने भारत में मुग़ल राज्य की स्थापना की और आगरा को अपनी राजधानी बनाया । उससे पहले सुल्तानों की राजधानी दिल्ली थी ; किंतु बाबर ने उसे राजधानी नहीं बनाया क्योंकि वहाँ पठानों थे, जो तुर्कों की शासन−सत्ता पंसद नहीं करते थे । प्रशासन और रक्षा दोनों नज़रियों से बाबर को दिल्ली के मुकाबले आगरा सही लगा । मुग़लराज्य की राजधानी आगरा होने से शुरू से ही ब्रज से घनिष्ट संबंध रहा । मध्य एशिया में शासकों का सबसे बड़ा पद 'खान' था, जो मंगोलवंशियों को ही दिया जाता था । दूसरे बड़े शासक 'अमीर' कहलाते थे । बाबर का पूर्वज तैमूर भी 'अमीर' ही कहलाता था । भारत में दिल्ली के मुस्लिम शासक 'सुल्तान' कहलाते थे । बाबर ने अपना पद 'बादशाह' घोषित किया था । बाबर के बाद सभी मुग़ल सम्राट 'बादशाह' कहलाये गये । बाबर केवल 4 वर्ष तक भारत पर राज्य कर सका । उसकी मृत्यु 26 दिसम्बर सन् 1530 को आगरा में हुई । उस समय उसकी आयु केवल 48 वर्ष की थी । बाबर की अंतिम इच्छानुसार उसका शव काबुल ले जाकर दफनाया गया, जहाँ उसका मकबरा बना हुआ है । उसके बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र हुमायूँ मुग़ल बादशाह बना

बाबर के निर्माणकार्य

बाबर में बेटों में हुमायुँ सबसे बड़ा था । वह वीर, उदार और भला था ; लेकिन बाबर की तरह कुशल सेनानी और निपुण शासक नहीं था । वह सन् 1530 में अपने पिता की मृत्यु होने के बाद बादशाह बना और 10 वर्ष तक राज्य को दृढ़ करने के लिए शत्रुओं और अपने भाइयों से लड़ता रहा । उसे शेरखाँ नाम के पठान सरदार ने शाहबाद ज़िले के चौसा नामक जगह पर सन् 1539 में हरा दिया था । पराजित हो कर हुमायूँ ने दोबारा अपनी शक्ति को बढ़ा कन्नौज नाम की जगह पर शेरखाँ की सेना से 17 मई, सन् 1540 में युध्द किया लेकिन उसकी फिर हार हुई और वह इस देश से भाग गया । इस समय शेर खाँ सूर(शेरशाह सूरी ) और उसके वंशजों ने भारत पर शासन किया ।