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बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और [[दर्शन शास्त्र|दर्शन]] है। इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा [[शुद्धोदन]] के पुत्र थे और इनका जन्म [[लुंबिनी]] नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है।
बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है । इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे । बुद्ध राजा शुद्धोधन के पुत्र थे और इनका जन्म लुंबिनी नामक ग्राम ( नेपाल) में हुआ था । वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे । उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया । आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान । बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है ।
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बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं:
बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं :
 
  
 
'''थेरवाद'''
 
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थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है ।
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थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।
  
 
'''महायान'''
 
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महायान बुद्ध की पूजा करता है । ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी ) कहते हैं । बौद्ध धर्म एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आसपास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा।  देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया।  भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में अश्वघोष, नागार्जुन और असंग के नाम प्रमुख हैं।  
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महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा।  देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया।  भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] और [[असंग बौद्धाचार्य|असंग]] के नाम प्रमुख हैं।
==ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म :==
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[[मथुरा]] और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था । जो [[बुद्ध]] के जीवन-काल से [[शक-कुषाण काल|कुषाण-काल]] तक अक्षु्ण रहा । '[[अंगुत्तरनिकाय]]' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार [[मथुरा]] आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था । <ref>अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257</ref> 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है । <ref>भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109</ref> पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी । <ref>[[दिव्यावदान]], पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही [[मथुरा]] की यात्रा की थी । भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:।'' [[पालि भाषा|पालि]] परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।</ref> मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की । <ref>उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।</ref> भगवान बुद्ध के शिष्य [[महाकाच्यायन]] मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे । इस नगर में [[अशोक]] के गुरु [[उपगुप्त]] <ref>वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199</ref>, [[ध्रुव]] ([[स्कंद पुराण]], काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका [[वासवदत्ता]] <ref>`मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352</ref> भी निवास करती थी । [[मथुरा]] राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था । मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था । <ref>आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ   5</ref> राजगृह से [[तक्षशिला]] जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था । <ref>भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440</ref>
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==ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म==
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[[मथुरा]] और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था। जो [[बुद्ध]] के जीवन-काल से [[शक-कुषाण काल|कुषाण-काल]] तक अक्षु्ण रहा। '[[अंगुत्तरनिकाय]]' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था।<balloon title="अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257" style="color:blue">*</balloon> 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है।<balloon title="भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109" style="color:blue">*</balloon> पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। <ref>[[दिव्यावदान]], पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी। भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:।'' [[पालि भाषा|पालि]] परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।</ref> मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की। <ref>उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।</ref> भगवान बुद्ध के शिष्य [[महाकाच्यायन]] मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। इस नगर में [[अशोक]] के गुरु [[उपगुप्त]]<balloon title="वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199" style="color:blue">*</balloon>, [[ध्रुव]] ([[स्कंद पुराण]], काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका [[वासवदत्ता]]<balloon title="मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352" style="color:blue">*</balloon> भी निवास करती थी। मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था। मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था।<balloon title="आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5" style="color:blue">*</balloon> राजगृह से [[तक्षशिला]] जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था।<balloon title="भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440" style="color:blue">*</balloon>
  
 
==बौद्ध मूर्तियाँ==
 
==बौद्ध मूर्तियाँ==
[[मथुरा]] के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे । यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था । विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहां विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था । इस काल के पहले [[बुद्ध]] की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है । बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक चिन्हों के रूप में मिलता है । परन्तु कुषाण काल के प्रारम्भ से महायान भक्ति, पंथ भक्ति उत्पत्ति के साथ नागरिकों में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियों का निर्माण होने लगा । बुद्ध के पूर्व जन्म की [[जातक कथा|जातक कथायें]] भी पत्थरों पर उत्कीर्ण होने लगी । मथुरा से बौद्ध धर्म सम्बन्धी जो अवशेष मिले हैं, उनमें प्राचीन धार्मिक एवं लौकिक जीवन के अध्ययन की अपार सामग्री है । मथुरा कला के विकास के साथ–साथ बुद्ध एवं बौधित्सव की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ । गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाओं में अंग प्रत्यंग के कला पूर्ण विन्यास के साथ एक दिव्य सौन्दर्य एवं आध्यात्मिक गांभीर्य का समन्वय मिलता है ।
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मथुरा के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे। यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था। [[चित्र:Buddha1.jpg|200px|left|thumb|[[बुद्ध]] प्रतिमा<br /> Buddha Image<br /> [[संग्रहालय मथुरा|राजकीय संग्रहालय]], [[मथुरा]]]] विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहाँ विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था। इस काल के पहले बुद्ध की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है। बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक चिन्हों के रूप में मिलता है। परन्तु कुषाण काल के प्रारम्भ से महायान भक्ति, पंथ भक्ति उत्पत्ति के साथ नागरिकों में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियों का निर्माण होने लगा। बुद्ध के पूर्व जन्म की [[जातक कथा|जातक कथायें]] भी पत्थरों पर उत्कीर्ण होने लगी। मथुरा से बौद्ध धर्म सम्बन्धी जो अवशेष मिले हैं, उनमें प्राचीन धार्मिक एवं लौकिक जीवन के अध्ययन की अपार सामग्री है।  मथुरा कला के विकास के साथ–साथ बुद्ध एवं बौधित्सव की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाओं में अंग प्रत्यंग के कला पूर्ण विन्यास के साथ एक दिव्य सौन्दर्य एवं आध्यात्मिक गांभीर्य का समन्वय मिलता है।
 
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पाँचवी शताब्दी ई. में [[फ़ाह्यान]] भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे । सातवीं शताब्दी में [[हुएन-सांग]] ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा । इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है । "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फाह्यान 80 योजन चलकर मताउला <ref>`मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह [[कृष्ण]] की जन्मस्थली थी जिसका राजचिन्ह मोर था।</ref> (मथुरा) जनपद पहुँचा था । इस समय यहाँ बौद्ध धर्म अपने विकास की चरम सीमा पर था । उसने लिखा है कि यहाँ 20 से भी अधिक [[संघाराम]] थे, जिनमें लगभग तीन सहस्र से अधिक भिक्षु रहा करते थे । <ref>जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फाह्यान , पृ   42</ref> यहाँ के निवासी अत्यंत श्रद्धालु और साधुओं का आदर करने वाले थे । राजा भिक्षा (भेंट) देते समय अपने मुकुट उतार लिया करते थे और अपने परिजन तथा अमात्यों के साथ अपने हाथों से दान करते (देते) थे । यहाँ अपने आपसी झगड़ों को स्वयं तय किया जाता था; किसी न्यायाधीश या कानून की शरण नहीं लेनी पड़ती थीं । नागरिक राजा की भूमि को जोतते थे तथा उपज का कुछ भाग राजकोष में देते थे । मथुरा की जलवायु शीतोष्ण थी । नागरिक सुखी थे । राजा प्राणदंड नहीं देता था, शारीरिक दंड भी नहीं दिया जाता था । अपराधी को अवस्थानुसार उत्तर या मध्यम अर्थदंड दिया जाता था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फाह्यान, पृ 43) । अपराधों की पुनरावृत्ति होने पर दाहिना हाथ काट दिया जाता था । [[फाह्यान]] लिखता हैं कि पूरे राज्य में चांडालों को छोड़कर कोई निवासी जीव-हिंसा नहीं करता था । मद्यपान नहीं किया जाता था और न ही लहसुन-प्याज का सेवन किया जाता था । चांडाल (दस्यु) नगर के बाहर निवास करते थे । क्रय-विक्रय में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था ( जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फाह्यान, पृ 43) ।
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पाँचवी शताब्दी ई. में [[फ़ाह्यान]] भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में [[हुएन-सांग]] ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फ़ाह्यान 80 [[योजन]] चलकर मताउला <ref>`मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह [[कृष्ण]] की जन्मस्थली थी जिसका राजचिन्ह मोर था।</ref> (मथुरा) जनपद पहुँचा था। इस समय यहाँ बौद्ध धर्म अपने विकास की चरम सीमा पर था। उसने लिखा है कि यहाँ 20 से भी अधिक [[संघाराम]] थे, जिनमें लगभग तीन सहस्र से अधिक भिक्षु रहा करते थे।<balloon title="जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान , पृ 42" style="color:blue">*</balloon> यहाँ के निवासी अत्यंत श्रद्धालु और साधुओं का आदर करने वाले थे। राजा भिक्षा (भेंट) देते समय अपने मुकुट उतार लिया करते थे और अपने परिजन तथा अमात्यों के साथ अपने हाथों से दान करते (देते) थे। यहाँ अपने-आपसी झगड़ों को स्वयं तय किया जाता था; किसी न्यायाधीश या क़ानून की शरण नहीं लेनी पड़ती थीं। नागरिक राजा की भूमि को जोतते थे तथा उपज का कुछ भाग राजकोष में देते थे। मथुरा की जलवायु शीतोष्ण थी। नागरिक सुखी थे। राजा प्राणदंड नहीं देता था, शारीरिक दंड भी नहीं दिया जाता था। अपराधी को अवस्थानुसार उत्तर या मध्यम अर्थदंड दिया जाता था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। अपराधों की पुनरावृत्ति होने पर दाहिना हाथ काट दिया जाता था। फ़ाह्यान लिखता हैं कि पूरे राज्य में चांडालों को छोड़कर कोई निवासी जीव-हिंसा नहीं करता था। मद्यपान नहीं किया जाता था और न ही लहसुन-प्याज का सेवन किया जाता था। चांडाल (दस्यु) नगर के बाहर निवास करते थे। क्रय-विक्रय में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)।
बौद्ध ग्रंथों में [[शूरसेन]] के शासक अवंतिपुत्र की चर्चा है, जो [[उज्जयिनी]] के राजवंश से संबंधित था । इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था ।<ref>मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ्‌ पालि प्रापर नेम्स,   भाग 2, पृ 438</ref> भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार [[मथुरा]] गए थे, जहाँ [[आनंद]] ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था <ref>(दिव्यावदान, पृ 348-349)</ref> [[मिलिंदपन्हों]]<ref> (मिलिंदपन्हो (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331)</ref> में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है । इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुरका (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है,<ref> (मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324)</ref> जिससे ज्ञात होता है कि राजा [[मिलिंद (मिनांडर)|मिलिंद]] (मिनांडर) के समय (150 ई0 पू0) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था ।
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बौद्ध ग्रंथों में [[शूरसेन]] के शासक अवंति पुत्र की चर्चा है, जो [[उज्जयिनी]] के राजवंश से संबंधित था। इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था।<balloon title="मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ्‌ पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 438" style="color:blue">*</balloon> भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार [[मथुरा]] गए थे, जहाँ [[आनंद]] ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था।<balloon title="(दिव्यावदान, पृ 348-349)" style="color:blue">*</balloon> [[मिलिंदपन्हों]]<balloon title=" (मिलिंदपन्हो (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331)" style="color:blue">*</balloon> में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है। इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुर का (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है<balloon title=" (मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324)" style="color:blue">*</balloon> जिससे ज्ञात होता है कि राजा [[मिलिंद (मिनांडर)|मिलिंद]] (मिनांडर) के समय (150 ई॰ पू॰) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था।
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चित्र:Standing-Buddha-in-Abhaya-Mathura-Museum-6.jpg|अभय मुद्रा में खड़े भगवान [[बुद्ध]]<br /> Standing Buddha in Abhayamudra
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चित्र:Headless-Image-of-Buddha-Mathura-Museum-22.jpg|सिर विहीन [[बुद्ध]] प्रतिमा<br /> Headless Image of Buddha
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चित्र:Torso-Of-Buddha-Image-Mathura-Museum-27.jpg|[[बुद्ध]] मुर्ति का धड़<br /> Torso Of Buddha Image
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चित्र:Relief-Showing-Buddha's-Descent-From-Trayastrimsa-Heaven-Mathura-Museum-47.jpg|[[बुद्ध]]<br /> Buddha
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चित्र:First-Bath-Of-Baby-Buddha-Mathura-Museum-4.jpg|शिशु [[बुद्ध]] का प्रथम स्नान<br /> First Bath Of Baby Buddha
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चित्र:Buddha-Mathura-Museum-46.jpg|[[बुद्ध]]<br /> Buddha
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चित्र:Buddha-Image-Installed-by-Kayastha-Bhatti-Priya-Mathura-Museum-3.jpg|[[बुद्ध]] प्रतिमा <br /> Buddha Image
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==टीका-टिप्पणी==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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०७:३२, २९ अगस्त २०१० के समय का अवतरण

बौद्ध धर्म / Buddhism

बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और दर्शन है। इसके संस्थापक महात्मा बुद्ध, शाक्यमुनि (गौतम बुद्ध) थे। बुद्ध राजा शुद्धोदन के पुत्र थे और इनका जन्म लुंबिनी नामक ग्राम (नेपाल) में हुआ था। वे छठवीं से पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व तक जीवित थे। उनके गुज़रने के बाद अगली पाँच शताब्दियों में, बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फ़ैला, और अगले दो हज़ार सालों में मध्य, पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी जम्बू महाद्वीप में भी फ़ैल गया। आज, बौद्ध धर्म में तीन मुख्य सम्प्रदाय हैं: थेरवाद, महायान और वज्रयान। बौद्ध धर्म को पैंतीस करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। बौद्ध धर्म में दो मुख्य सम्प्रदाय हैं:

थेरवाद

थेरवाद या हीनयान बुद्ध के मौलिक उपदेश ही मानता है।

महायान

महायान बुद्ध की पूजा करता है। ये थेरावादियों को "हीनयान" (छोटी गाड़ी) कहते हैं। बौद्ध धर्म की एक प्रमुख शाखा है जिसका आरंभ पहली शताब्दी के आस-पास माना जाता है। ईसा पूर्व पहली शताब्दी में वैशाली में बौद्ध-संगीति हुई जिसमें पश्चिमी और पूर्वी बौद्ध पृथक् हो गए। पूर्वी शाखा का ही आगे चलकर महायान नाम पड़ा। देश के दक्षिणी भाग में इस मत का प्रसार देखकर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इस विचारधारा का आरंभ उसी अंचल से हुआ। महायान भक्ति प्रधान मत है। इसी मत के प्रभाव से बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण आंरभ हुआ। इसी ने बौद्ध धर्म में बोधिसत्व की भावना का समावेश किया। यह भावना सदाचार, परोपकार, उदारता आदि से सम्पन्न थी। इस मत के अनुसार बुद्धत्व की प्राप्ति सर्वोपरि लक्ष्य है। महायान संप्रदाय ने गृहस्थों के लिए भी सामाजिक उन्नति का मार्ग निर्दिष्ट किया। भक्ति और पूजा की भावना के कारण इसकी ओर लोग सरलता से आकृष्ट हुए। महायान मत के प्रमुख विचारकों में अश्वघोष, नागार्जुन और असंग के नाम प्रमुख हैं।

ब्रज (मथुरा) में बौद्ध धर्म

मथुरा और बौद्ध धर्म का घनिष्ठ संबंध था। जो बुद्ध के जीवन-काल से कुषाण-काल तक अक्षु्ण रहा। 'अंगुत्तरनिकाय' के अनुसार भगवान बुद्ध एक बार मथुरा आये थे और यहाँ उपदेश भी दिया था।<balloon title="अंगुत्तनिकाय, भाग 2, पृ 57; तत्रैव, भाग 3,पृ 257" style="color:blue">*</balloon> 'वेरंजक-ब्राह्मण-सुत्त' में भगवान् बुद्ध के द्वारा मथुरा से वेरंजा तक यात्रा किए जाने का वर्णन मिलता है।<balloon title="भरत सिंह उपापध्याय, बुद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ 109" style="color:blue">*</balloon> पालि विवरण से यह ज्ञात होता है कि बुद्धत्व प्राप्ति के बारहवें वर्ष में ही बुद्ध ने मथुरा नगर की यात्रा की थी। [१] मथुरा से लौटकर बुद्ध वेरंजा आये फिर उन्होंने श्रावस्ती की यात्रा की। [२] भगवान बुद्ध के शिष्य महाकाच्यायन मथुरा में बौद्ध धर्म का प्रचार करने आए थे। इस नगर में अशोक के गुरु उपगुप्त<balloon title="वी ए स्मिथ, अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया (चतुर्थ संस्करण), पृ 199" style="color:blue">*</balloon>, ध्रुव (स्कंद पुराण, काशी खंड, अध्याय 20), एवं प्रख्यात गणिका वासवदत्ता<balloon title="मथुरायां वासवदत्ता नाम गणिकां।' दिव्यावदान (कावेल एवं नीलवाला संस्करण), पृ 352" style="color:blue">*</balloon> भी निवास करती थी। मथुरा राज्य का देश के दूसरे भागों से व्यापारिक संबंध था। मथुरा उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों भागों से जुड़ा हुआ था।<balloon title="आर सी शर्मा, बुद्धिस्ट् आर्ट आफ मथुरा, पृ 5" style="color:blue">*</balloon> राजगृह से तक्षशिला जाने वाले उस समय के व्यापारिक मार्ग में यह नगर स्थित था।<balloon title="भरत सिंह उपाध्याय, बुद्धिकालीन भारतीय भूगोल, पृ 440" style="color:blue">*</balloon>

बौद्ध मूर्तियाँ

मथुरा के कुषाण शासक जिनमें से अधिकांश ने बौद्ध धर्म को प्रोत्साहित किया मूर्ति निर्माण के पक्षपाती थे। यद्यपि कुषाणों के पूर्व भी मथुरा में बौद्ध धर्म एवं अन्य धर्म से सम्बन्धित प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था।

विदित हुआ है कि कुषाण काल में मथुरा उत्तर भारत में सबसे बड़ा मूर्ति निर्माण का केन्द्र था और यहाँ विभिन्न धर्मों सम्बन्धित मूर्तियों का अच्छा भण्डार था। इस काल के पहले बुद्ध की स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिलती है। बुद्ध का पूजन इस काल से पूर्व विविध प्रतीक चिन्हों के रूप में मिलता है। परन्तु कुषाण काल के प्रारम्भ से महायान भक्ति, पंथ भक्ति उत्पत्ति के साथ नागरिकों में बुद्ध की सैकड़ों मूर्तियों का निर्माण होने लगा। बुद्ध के पूर्व जन्म की जातक कथायें भी पत्थरों पर उत्कीर्ण होने लगी। मथुरा से बौद्ध धर्म सम्बन्धी जो अवशेष मिले हैं, उनमें प्राचीन धार्मिक एवं लौकिक जीवन के अध्ययन की अपार सामग्री है। मथुरा कला के विकास के साथ–साथ बुद्ध एवं बौधित्सव की सुन्दर मूर्तियों का निर्माण हुआ। गुप्तकालीन बुद्ध प्रतिमाओं में अंग प्रत्यंग के कला पूर्ण विन्यास के साथ एक दिव्य सौन्दर्य एवं आध्यात्मिक गांभीर्य का समन्वय मिलता है।


पाँचवी शताब्दी ई. में फ़ाह्यान भारत आया तो उसने भिक्षुओं से भरे हुए अनेक विहार देखे। सातवीं शताब्दी में हुएन-सांग ने भी यहाँ अनेक विहारों को देखा। इन दोनों चीनी यात्रियों ने अपनी यात्रा में यहाँ का वर्णन किया है। "पीतू" देश से होता हुआ चीनी यात्री फ़ाह्यान 80 योजन चलकर मताउला [३] (मथुरा) जनपद पहुँचा था। इस समय यहाँ बौद्ध धर्म अपने विकास की चरम सीमा पर था। उसने लिखा है कि यहाँ 20 से भी अधिक संघाराम थे, जिनमें लगभग तीन सहस्र से अधिक भिक्षु रहा करते थे।<balloon title="जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान , पृ 42" style="color:blue">*</balloon> यहाँ के निवासी अत्यंत श्रद्धालु और साधुओं का आदर करने वाले थे। राजा भिक्षा (भेंट) देते समय अपने मुकुट उतार लिया करते थे और अपने परिजन तथा अमात्यों के साथ अपने हाथों से दान करते (देते) थे। यहाँ अपने-आपसी झगड़ों को स्वयं तय किया जाता था; किसी न्यायाधीश या क़ानून की शरण नहीं लेनी पड़ती थीं। नागरिक राजा की भूमि को जोतते थे तथा उपज का कुछ भाग राजकोष में देते थे। मथुरा की जलवायु शीतोष्ण थी। नागरिक सुखी थे। राजा प्राणदंड नहीं देता था, शारीरिक दंड भी नहीं दिया जाता था। अपराधी को अवस्थानुसार उत्तर या मध्यम अर्थदंड दिया जाता था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। अपराधों की पुनरावृत्ति होने पर दाहिना हाथ काट दिया जाता था। फ़ाह्यान लिखता हैं कि पूरे राज्य में चांडालों को छोड़कर कोई निवासी जीव-हिंसा नहीं करता था। मद्यपान नहीं किया जाता था और न ही लहसुन-प्याज का सेवन किया जाता था। चांडाल (दस्यु) नगर के बाहर निवास करते थे। क्रय-विक्रय में सिक्कों एवं कौड़ियों का प्रचलन था (जेम्स लेग्गे, दि टे्रवेल्स ऑफ फ़ाह्यान, पृ 43)। बौद्ध ग्रंथों में शूरसेन के शासक अवंति पुत्र की चर्चा है, जो उज्जयिनी के राजवंश से संबंधित था। इस शासक ने बुद्ध के एक शिष्य महाकाच्यायन से ब्राह्मण धर्म पर वाद-विवाद भी किया था।<balloon title="मज्झिमनिकाय, भाग दो, पृ 83 और आगे; मललसेकर, डिक्शनरी आँफ्‌ पालि प्रापर नेम्स, भाग 2, पृ 438" style="color:blue">*</balloon> भगवान् बुद्ध शूरसेन जनपद में एक बार मथुरा गए थे, जहाँ आनंद ने उन्हें उरुमुंड पर्वत पर स्थित गहरे नीले रंग का एक हरा-भरा वन दिखलाया था।<balloon title="(दिव्यावदान, पृ 348-349)" style="color:blue">*</balloon> मिलिंदपन्हों<balloon title=" (मिलिंदपन्हो (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 331)" style="color:blue">*</balloon> में इसका वर्णन भारत के प्रसिद्ध स्थानों में हुआ है। इसी ग्रंथ में प्रसिद्ध नगरों एवम् उनके निवासियों के नाम के एक प्रसंग में माधुर का (मथुरा के निवासी का भी उल्लेख मिलता है<balloon title=" (मिलिंदपन्हों (ट्रेंकनर संस्करण), पृ 324)" style="color:blue">*</balloon> जिससे ज्ञात होता है कि राजा मिलिंद (मिनांडर) के समय (150 ई॰ पू॰) मथुरा नगर पालि परंपरा में एक प्रतिष्ठित नगर के रूप में विख्यात हो चुका था।

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दिव्यावदान, पृ 348 में उल्लिखित है कि भगवान बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण काल से कुछ पहले ही मथुरा की यात्रा की थी। भगवान्......परिनिर्वाणकालसमये..........मथुरामनुप्राप्त:। पालि परंपरा से इसका मेल बैठाना कठिन है।
  2. उल्लेखनीय है कि वेरंजा उत्तरापथ मार्ग पर पड़ने वाला बुद्धकाल में एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था, जो मथुरा और सोरेय्य के मध्य स्थित था।
  3. `मूचा' (मोर का शहर) का विस्तार 27° 30' उत्तरी आक्षांश से 77° 43' पूर्वी देशांतर तक था। यह कृष्ण की जन्मस्थली थी जिसका राजचिन्ह मोर था।

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