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ग्रिर्यसन महोदय ने अपने भाषा सर्वे में पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फर्रूखाबाद, हरदोई, इटावा तथा कानपुर की बोली को कन्नौजी नाम दिया है, किन्तु वास्तव में यहां की बोली मैनपुरी, एटा बरेली और बदायूं की बोली से भिन्न नहीं हैं । अधिक से अधिक हम इन सब जिलों की बोली को 'पूर्वी ब्रज' कह सकते हैं । सच तो यह है कि बुन्देलखंड की बुन्देली बोली भी ब्रजभाषा का ही रुपान्तरण है । बुन्देली 'दक्षिणी ब्रज' कहला सकती है । <ref>( ब्रजभाषा व्याकरण, (प्रथम संस्करण 1937 ई.) पृ. 13) </ref>
 
ग्रिर्यसन महोदय ने अपने भाषा सर्वे में पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फर्रूखाबाद, हरदोई, इटावा तथा कानपुर की बोली को कन्नौजी नाम दिया है, किन्तु वास्तव में यहां की बोली मैनपुरी, एटा बरेली और बदायूं की बोली से भिन्न नहीं हैं । अधिक से अधिक हम इन सब जिलों की बोली को 'पूर्वी ब्रज' कह सकते हैं । सच तो यह है कि बुन्देलखंड की बुन्देली बोली भी ब्रजभाषा का ही रुपान्तरण है । बुन्देली 'दक्षिणी ब्रज' कहला सकती है । <ref>( ब्रजभाषा व्याकरण, (प्रथम संस्करण 1937 ई.) पृ. 13) </ref>
 
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डॉ. गुलाबराय के अनुसार ब्रजभाषा का क्षेत्र निम्न प्रकार है - '' मथुरा, आगरा, अलीगढ़ जिलों को केन्द्र मान कर उत्तर में यह अलमोड़ा, नैनीताल और बिजनौर जिलों तक फैली है । दक्षिण में धौलपुर, [[ग्वालियर]] तक, पूर्व में [[कन्नौज]] और कानपुर जिलों तक, पश्चिम में भरतपुर और गुडगाँव जिलों तक इसकी सीमा है ।''
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डॉ. गुलाबराय के अनुसार ब्रजभाषा का क्षेत्र निम्न प्रकार है - मथुरा, आगरा, अलीगढ़ जिलों को केन्द्र मान कर उत्तर में यह अलमोड़ा, नैनीताल और बिजनौर जिलों तक फैली है । दक्षिण में धौलपुर, [[ग्वालियर]] तक, पूर्व में [[कन्नौज]] और कानपुर जिलों तक, पश्चिम में भरतपुर और गुडगाँव जिलों तक इसकी सीमा है ।
 
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भाषायी सर्वेक्षण तथा अन्य अनुवेषणों के आधार पर श्रीकृष्णदत्त वाजपेयी ने ब्रजभाषा-भाषी क्षेत्र निम्नलिखित है -''मथुरा जिला, राजस्थान का भरतपुर जिला तथा करौली का उत्तरी अंश जो भरतपुर एंव धौलपुर की सीमाओं से मिला-जुला है । सम्पूर्ण धौलपुर जिला, मध्य भारत में मुरैना से भिण्ड जिले और गिर्द ग्वालियर का लगभग २६ अक्षांश से ऊपर का उत्तरी भाग ( यहां की ब्रजबोली में बुंदेली की झलक है ), सम्पूर्ण आगरा जिला, इटावा जिले का पश्चिमी भाग ( लगभग इटावा शहर की सीध देशान्तर ७९ तक ), मैनपुरी जिला तथा एटा जिला ( पूर्व के कुछ अंशों को छोड़कर, जो फर्रूखाबाद जिले की सीमा से मिले-जुले है ), अलीगढ़ जिला ( उत्तर पूर्व में गंगा नदी की सीमा तक ), बुलंदशहर का दक्षिणी आधा भाग ( पूर्व में अनूप शहर की सीध से लेकर ), गुड़गाँव जिले का दक्षिणी अंश, ( पलवल की सीध से ) तथा अलवर जिले का पूर्वी भाग जो गुडगाँव जिले की दक्षिणी तथा भरतपुर की पश्चिमी सीमा से मिला-जुला है । <ref>( वाजपेयी, के. डी., ब्रज का इतिहास प्रथम खंड, प्रथम संस्करण, 1955 ई., पृ. 3-4)</ref>  
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भाषायी सर्वेक्षण तथा अन्य अनुवेषणों के आधार पर श्रीकृष्णदत्त वाजपेयी ने ब्रजभाषा-भाषी क्षेत्र निम्नलिखित है - मथुरा जिला, राजस्थान का भरतपुर जिला तथा करौली का उत्तरी अंश जो भरतपुर एंव धौलपुर की सीमाओं से मिला-जुला है । सम्पूर्ण धौलपुर जिला, मध्य भारत में मुरैना से भिण्ड जिले और गिर्द ग्वालियर का लगभग 26 अक्षांश से ऊपर का उत्तरी भाग ( यहां की ब्रजबोली में बुंदेली की झलक है ), सम्पूर्ण आगरा जिला, इटावा जिले का पश्चिमी भाग ( लगभग इटावा शहर की सीध देशान्तर 79 तक ), मैनपुरी जिला तथा एटा जिला ( पूर्व के कुछ अंशों को छोड़कर, जो फर्रूखाबाद जिले की सीमा से मिले-जुले है ), अलीगढ़ जिला ( उत्तर पूर्व में [[गंगा]] नदी की सीमा तक ), बुलंदशहर का दक्षिणी आधा भाग ( पूर्व में अनूप शहर की सीध से लेकर ), गुड़गाँव जिले का दक्षिणी अंश, ( पलवल की सीध से ) तथा अलवर जिले का पूर्वी भाग जो गुडगाँव जिले की दक्षिणी तथा भरतपुर की पश्चिमी सीमा से मिला-जुला है । <ref>( वाजपेयी, के. डी., ब्रज का इतिहास प्रथम खंड, प्रथम संस्करण, 1955 ई., पृ. 3-4)</ref>  
 
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भाषायी ब्रज के सम्बंध में भाषाविद् डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है -'' अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी आगरा, धौलपुर, मथुरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है । इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" के नाम से भी पुकार सकते हैं । केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर जिले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है । उत्तरी-पूर्वी जिलों अर्थात् बदायूँ और एटा जिलों में इस पर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है "। डा. धीरेंद्र वर्मा, "कन्नौजी" को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं । दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है । पश्चिम की ओर गुड़गाँवा तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है ।"
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भाषायी ब्रज के सम्बंध में भाषाविद् डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है - अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी आगरा, धौलपुर, मथुरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है । इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा के नाम से भी पुकार सकते हैं । केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर जिले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है । उत्तरी-पूर्वी जिलों अर्थात् बदायूँ और एटा जिलों में इस पर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है । डा. धीरेंद्र वर्मा, कन्नौजी को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं । दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है । पश्चिम की ओर गुड़गाँवा तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है ।
 
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वर्तमान समय में ब्रज भाषा एक ग्रामीण भाषा है, जो मथुरा-आगरा केन्द्रित ब्रजक्षेत्र में बोली जाती है । यह निम्न जिलों की प्रधान भाषा है :
 
वर्तमान समय में ब्रज भाषा एक ग्रामीण भाषा है, जो मथुरा-आगरा केन्द्रित ब्रजक्षेत्र में बोली जाती है । यह निम्न जिलों की प्रधान भाषा है :
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ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यतकाल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है । इसके अतिरिक्त कन्नौजी में अवधी की भाँति विवृति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में सर्वथा अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधि रहित मिलते हैं, किंतु ब्रजभाषा में वे ही पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :
 
ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यतकाल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है । इसके अतिरिक्त कन्नौजी में अवधी की भाँति विवृति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में सर्वथा अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधि रहित मिलते हैं, किंतु ब्रजभाषा में वे ही पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :
(1) कन्नौजी -""बउ गओ"" (उ वह गया)।
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*कन्नौजी -""बउ गओ"" (उ वह गया)।
(2) ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (उ वह गया)।
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*ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (उ वह गया)।
 
उपर्युक्त वाक्यों के सर्वनाम पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।
 
उपर्युक्त वाक्यों के सर्वनाम पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।
ब्रजभाषा का क्षेत्र विभाजन
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==ब्रजभाषा का क्षेत्र विभाजन==
 
ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं :
 
ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं :
(1) आदर्श ब्रजभाषा - अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरा की ब्रजभाषा को " आदर्श ब्रजभाषा " कहा जा सकता है ।
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*आदर्श ब्रजभाषा - अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरा की ब्रजभाषा को " आदर्श ब्रजभाषा " कहा जा सकता है ।
(2) बुंदेली ब्रजभाषा - ग्वालियर के उत्तर पश्चिम में बोली जाने वाली भाषा को कहा जा सकता है ।
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*बुंदेली ब्रजभाषा - ग्वालियर के उत्तर पश्चिम में बोली जाने वाली भाषा को कहा जा सकता है ।
(3) राजस्थानी से प्रभावित ब्रजभाषा - यह भरतपुर और उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है ।
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*राजस्थानी से प्रभावित ब्रजभाषा - यह भरतपुर और उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है ।
(4) सिकरवारी ब्रजभाषा - यह  ग्वालियर के उत्तर पूर्व में जहाँ सिकरवार राजपूत हैं, पाई जाती है ।
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*सिकरवारी ब्रजभाषा - यह  ग्वालियर के उत्तर पूर्व में जहाँ सिकरवार राजपूत हैं, पाई जाती है ।
(5) जादौबारी ब्रजभाषा - करौली और चंबल के मैदान में बोली जाने वाली भाषा को " जादौबारी ब्रजभाषा " नाम कहा जाता है । जादौ ( यादव ) राजपूतों की बस्तियाँ हैं ।
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*जादौबारी ब्रजभाषा - करौली और चंबल के मैदान में बोली जाने वाली भाषा को " जादौबारी ब्रजभाषा " नाम कहा जाता है । जादौ ( यादव ) राजपूतों की बस्तियाँ हैं ।
(6) कन्नौजी ब्रजभाषा -  एटा, अनूपशहर, औरअतरौली की भाषा कन्नौजी भाषा से प्रभावित है ।
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*कन्नौजी ब्रजभाषा -  एटा, अनूपशहर, औरअतरौली की भाषा कन्नौजी भाषा से प्रभावित है ।
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==टीका-टिप्पणी==
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०६:३४, ४ जून २००९ का अवतरण

==ब्रजभाषा /brajbhasha==  ब्रजभाषा मूलत: ब्रजक्षेत्र की बोली है । विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत में साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने विकास के साथ " भाषा " नाम प्राप्त किया और " ब्रजभाषा " नाम से जानी जाने लगी । शुद्ध रूप में यह आज भी मथुरा, आगरा, धौलपुर और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है । इसे हम " केंद्रीय ब्रजभाषा " भी कह सकते हैं । प्रारम्भ में ब्रजभाषा में ही काव्य रचना हुई । भक्तिकाल के कवियों ने अपनी रचनाएं ब्रजभाषा में ही लिखी हैं जिनमें सूरदास, रहीम, रसखान, बिहारी, केशव, घनानंद आदि कवि प्रमुख हैं । हिन्दी फिल्मों और फिल्मी गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का बहुत प्रयोग होता है ।

ब्रजभाषा का विस्तार

शुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी मथुरा, अलीगढ़, आगरा, भरतपुर और धौलपुर जिलों में बोली जाती है । ब्रजभाषा का कुछ मिश्रित रुप जयपुर राज्य के पूर्वी भाग तथा बुलंदशहर, मैनपुरी, एटा, बरेली और बदायूं जिलों तक बोला जाता है ।


ग्रिर्यसन महोदय ने अपने भाषा सर्वे में पीलीभीत, शाहजहाँपुर, फर्रूखाबाद, हरदोई, इटावा तथा कानपुर की बोली को कन्नौजी नाम दिया है, किन्तु वास्तव में यहां की बोली मैनपुरी, एटा बरेली और बदायूं की बोली से भिन्न नहीं हैं । अधिक से अधिक हम इन सब जिलों की बोली को 'पूर्वी ब्रज' कह सकते हैं । सच तो यह है कि बुन्देलखंड की बुन्देली बोली भी ब्रजभाषा का ही रुपान्तरण है । बुन्देली 'दक्षिणी ब्रज' कहला सकती है । [१]


डॉ. गुलाबराय के अनुसार ब्रजभाषा का क्षेत्र निम्न प्रकार है - मथुरा, आगरा, अलीगढ़ जिलों को केन्द्र मान कर उत्तर में यह अलमोड़ा, नैनीताल और बिजनौर जिलों तक फैली है । दक्षिण में धौलपुर, ग्वालियर तक, पूर्व में कन्नौज और कानपुर जिलों तक, पश्चिम में भरतपुर और गुडगाँव जिलों तक इसकी सीमा है ।


भाषायी सर्वेक्षण तथा अन्य अनुवेषणों के आधार पर श्रीकृष्णदत्त वाजपेयी ने ब्रजभाषा-भाषी क्षेत्र निम्नलिखित है - मथुरा जिला, राजस्थान का भरतपुर जिला तथा करौली का उत्तरी अंश जो भरतपुर एंव धौलपुर की सीमाओं से मिला-जुला है । सम्पूर्ण धौलपुर जिला, मध्य भारत में मुरैना से भिण्ड जिले और गिर्द ग्वालियर का लगभग 26 अक्षांश से ऊपर का उत्तरी भाग ( यहां की ब्रजबोली में बुंदेली की झलक है ), सम्पूर्ण आगरा जिला, इटावा जिले का पश्चिमी भाग ( लगभग इटावा शहर की सीध देशान्तर 79 तक ), मैनपुरी जिला तथा एटा जिला ( पूर्व के कुछ अंशों को छोड़कर, जो फर्रूखाबाद जिले की सीमा से मिले-जुले है ), अलीगढ़ जिला ( उत्तर पूर्व में गंगा नदी की सीमा तक ), बुलंदशहर का दक्षिणी आधा भाग ( पूर्व में अनूप शहर की सीध से लेकर ), गुड़गाँव जिले का दक्षिणी अंश, ( पलवल की सीध से ) तथा अलवर जिले का पूर्वी भाग जो गुडगाँव जिले की दक्षिणी तथा भरतपुर की पश्चिमी सीमा से मिला-जुला है । [२]


भाषायी ब्रज के सम्बंध में भाषाविद् डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने लिखा है - अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी आगरा, धौलपुर, मथुरा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है । इसे हम केंद्रीय ब्रजभाषा के नाम से भी पुकार सकते हैं । केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर जिले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है । उत्तरी-पूर्वी जिलों अर्थात् बदायूँ और एटा जिलों में इस पर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है । डा. धीरेंद्र वर्मा, कन्नौजी को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं । दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है । पश्चिम की ओर गुड़गाँवा तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है ।


वर्तमान समय में ब्रज भाषा एक ग्रामीण भाषा है, जो मथुरा-आगरा केन्द्रित ब्रजक्षेत्र में बोली जाती है । यह निम्न जिलों की प्रधान भाषा है :

  • मथुरा
  • आगरा
  • एटा
  • हाथरस
  • बुलंदशहर
  • अलीगढ़

गंगा पार बदायूं, बरेली, नैनीताल की तराई से होते हुए उत्तराखंड़ में उधमसिंह नगर और राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, करौली और पश्चिमी राजस्थान, हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गाँव, दिल्ली के कुछ भाग और मेवात जिलों के पूर्वी भाग में ब्रजभाषा का प्रभाव है ।

ब्रजभाषा का विकास

इसका विकास मुख्यत: पश्चिमी उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश में हुआ । मथुरा, अलीगढ़, आगरा, भरतपुर और धौलपुर जिलों में आज भी यह संवाद की भाषा है । पूरे क्षेत्र में ब्रजभाषा हल्के से परिवर्तन के साथ विद्यमान है । इसीलिये इस क्षेत्र के एक बड़े भाग को ब्रजांचल या ब्रजभूमि भी कहा जाता है । भारतीय आर्यभाषाओं की परंपरा में विकसित होनेवाली "ब्रजभाषा" शौरसेनी भाषा की कोख से जन्मी है । गोकुल के वल्लभ सम्प्रदाय का केन्द्र बनने के बाद से ब्रजभाषा में कृष्ण साहित्य लिखा जाने लगा और इसी के प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई । भक्तिकाल के प्रसिद्ध महाकवि सूरदास से आधुनिक काल के श्री वियोगी हरि तक ब्रजभाषा में प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्यों की रचना होती रही ।

ब्रजभाषा का स्वरूप

ब्रजभाषा में अपना रूपगत प्रकृति औकारांत है यानि कि इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञा और विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं ; जैसे खुरपौ, यामरौ, माँझौ आदि संज्ञा शब्द औकारांत हैं । इसी प्रकार कारौ, गोरौ, साँवरौ आदि विशेषण पद औकारांत है । क्रिया का सामान्य भूतकाल का एकवचन पुंलिंग रूप भी ब्रजभाषा में प्रमुख रूप से औकारांत ही रहता है । कुछ क्षेत्रों में "य्" श्रुति का आगम भी मिलता है । अलीगढ़ की तहसील कोल की बोली में सामान्य भूतकालीन रूप "य्" श्रुति से रहित मिलता है, लेकिन जिला मथुरा तथा दक्षिणी बुलंदशहर की तहसीलों में "य्" श्रुति अवश्य पाई जाती है । कन्नौजी की अपनी प्रकृति ओकारांत है । संज्ञा, विशेषण तथा क्रिया के रूपों में ब्रजभाषा जहाँ औकारांतता लेकर चलती है वहाँ कन्नौजी ओकारांत है । भविष्यत्कालीन क्रिया ब्रजभाषा में कृदंत पाई जाती है । यदि हम " लड़का जाएगा " और " लड़की जाएगी " वाक्यों को कन्नौजी तथा ब्रजभाषा में रूपांतरित करके बोलें तो यह इस प्रकार रहेगी :

  • कन्नौजी में - (1) लरिका जइहै । (2) बिटिया जइहै ।
  • ब्रजभाषा में - (1) छोरा जाइगौ । (2) छोरी जाइगी ।

ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यतकाल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है । इसके अतिरिक्त कन्नौजी में अवधी की भाँति विवृति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में सर्वथा अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधि रहित मिलते हैं, किंतु ब्रजभाषा में वे ही पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :

  • कन्नौजी -""बउ गओ"" (उ वह गया)।
  • ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (उ वह गया)।

उपर्युक्त वाक्यों के सर्वनाम पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।

ब्रजभाषा का क्षेत्र विभाजन

ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं :

  • आदर्श ब्रजभाषा - अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरा की ब्रजभाषा को " आदर्श ब्रजभाषा " कहा जा सकता है ।
  • बुंदेली ब्रजभाषा - ग्वालियर के उत्तर पश्चिम में बोली जाने वाली भाषा को कहा जा सकता है ।
  • राजस्थानी से प्रभावित ब्रजभाषा - यह भरतपुर और उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है ।
  • सिकरवारी ब्रजभाषा - यह ग्वालियर के उत्तर पूर्व में जहाँ सिकरवार राजपूत हैं, पाई जाती है ।
  • जादौबारी ब्रजभाषा - करौली और चंबल के मैदान में बोली जाने वाली भाषा को " जादौबारी ब्रजभाषा " नाम कहा जाता है । जादौ ( यादव ) राजपूतों की बस्तियाँ हैं ।
  • कन्नौजी ब्रजभाषा - एटा, अनूपशहर, औरअतरौली की भाषा कन्नौजी भाषा से प्रभावित है ।

टीका-टिप्पणी

  1. ( ब्रजभाषा व्याकरण, (प्रथम संस्करण 1937 ई.) पृ. 13)
  2. ( वाजपेयी, के. डी., ब्रज का इतिहास प्रथम खंड, प्रथम संस्करण, 1955 ई., पृ. 3-4)