"ब्रज" के अवतरणों में अंतर

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चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|[[यमुना]] स्नान, [[विश्राम घाट]], मथुरा<br /> Yamuna Snan, Vishram Ghat, Mathura
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चित्र:Banke-Bihari-Temple.jpg|[[बांके बिहारी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]<br />Banke Bihari Temple, Vrindavan
 
चित्र:Banke-Bihari-Temple.jpg|[[बांके बिहारी मन्दिर]], [[वृन्दावन]]<br />Banke Bihari Temple, Vrindavan
चित्र:Mathura-Museum-1.jpg|राजकीय संग्रहालय, मथुरा<br />Govt. Museum, Mathura
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चित्र:Jain-Museum-Mathura-2.jpg|[[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], मथुरा<br />Govt. Jain Museum, Mathura
 
चित्र:Jain-Museum-Mathura-2.jpg|[[जैन संग्रहालय मथुरा|राजकीय जैन संग्रहालय]], मथुरा<br />Govt. Jain Museum, Mathura
 
चित्र:Vima Taktu.jpg|[[विम तक्षम]]<br />Vima Taktu
 
चित्र:Vima Taktu.jpg|[[विम तक्षम]]<br />Vima Taktu
चित्र:Ghats-of-Yamuna-4.jpg|[[यमुना के घाट]], मथुरा<br />Ghats of Yamuna, Mathura
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चित्र:Ghats-of-Yamuna-4.jpg|[[यमुना के घाट]], [[मथुरा]]<br />Ghats of Yamuna, Mathura
 
चित्र:Baldev-Temple-3.jpg|[[होली]], दाऊजी मन्दिर, [[बलदेव मन्दिर|बलदेव]]<br />Holi, Dauji Temple, Baldev
 
चित्र:Baldev-Temple-3.jpg|[[होली]], दाऊजी मन्दिर, [[बलदेव मन्दिर|बलदेव]]<br />Holi, Dauji Temple, Baldev
 
चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|[[दानघाटी]] मंदिर, [[गोवर्धन]]<br /> Danghati Temple, Govardhan
 
चित्र:Danghati Temple Govardhan Mathura 2.jpg|[[दानघाटी]] मंदिर, [[गोवर्धन]]<br /> Danghati Temple, Govardhan
 
चित्र:barsana-temple-3.jpg|[[राधा]] रानी मंदिर, [[बरसाना]]<br /> Radha Rani Temple, Barsana
 
चित्र:barsana-temple-3.jpg|[[राधा]] रानी मंदिर, [[बरसाना]]<br /> Radha Rani Temple, Barsana
 
चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-9.jpg|[[सूरदास]], सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]]<br /> Surdas, Sur Kuti, Sur Sarovar, Agra
 
चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-9.jpg|[[सूरदास]], सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]]<br /> Surdas, Sur Kuti, Sur Sarovar, Agra
चित्र:Surkuti Sur Sarovar
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चित्र:Nand-Ji-Temple-1.jpg|नन्द जी मंदिर, [[नन्दगाँव]]<br /> Nand Ji Temple, Nandganv
 
चित्र:Nand-Ji-Temple-1.jpg|नन्द जी मंदिर, [[नन्दगाँव]]<br /> Nand Ji Temple, Nandganv
 
चित्र:Brhamand-Ghat-1.jpg|[[ब्रह्माण्ड घाट]], [[महावन]]<br /> Brhamand-Ghat, Mahavan
 
चित्र:Brhamand-Ghat-1.jpg|[[ब्रह्माण्ड घाट]], [[महावन]]<br /> Brhamand-Ghat, Mahavan

१४:१९, ४ मार्च २०१० का अवतरण

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परिचय


ब्रज


मथुरा एक झलक

पौराणिक मथुरा

मौर्य-गुप्त मथुरा

गुप्त-मुग़ल मथुरा


वृन्दावन


ब्रज का परिचय / Introduction of Braj

ब्रजमंडल

ब्रज शब्द का काल-क्रमानुसार अर्थ विकास हुआ है। वेदों और रामायण-महाभारत के काल में जहाँ इसका प्रयोग ‘गोष्ठ’-'गो-स्थान’ जैसे लघु स्थल के लिये होता था। वहां पौराणिक काल में ‘गोप-बस्ती’ जैसे कुछ बड़े स्थान के लिये किया जाने लगा। उस समय तक यह शब्द प्रदेशवायी न होकर क्षेत्रवायी ही था।

भागवत में ‘ब्रज’ क्षेत्रवायी अर्थ में ही प्रयुक्त हुआ है। वहां इसे एक छोटे ग्राम की संज्ञा दी गई है। उसमें ‘पुर’ से छोटा ‘ग्राम’ और उससे भी छोटी बस्ती को ‘ब्रज’ कहा गया है। 16वीं शताब्दी में ‘ब्रज’ प्रदेशवायी होकर ‘ब्रजमंडल’ हो गया और तव उसका आकार 84 कोस का माना जाने लगा था। उस समय मथुरा नगर ‘ब्रज’ में सम्मिलित नहीं माना जाता था। सूरदास तथा अन्य ब्रज-भाषा कवियों ने ‘ब्रज’ और मथुरा का पृथक् रुप में ही कथन किया है, जैसे पहिले अंकित किया जा चुका है। कृष्ण उपासक सम्प्रदायों और ब्रजभाषा कवियों के कारण जब ब्रज संस्कृति और ब्रजभाषा का क्षेत्र विस्तृत हुआ तब ब्रज का आकार भी सुविस्तृत हो गया था। उस समय मथुरा नगर ही नहीं, बल्कि उससे दूर-दूर के भू-भाग, जो ब्रज संस्कृति और ब्रज-भाषा से प्रभावित थे, व्रज अन्तर्गत मान लिये गये थे। वर्तमान काल में मथुरा नगर सहित मथुरा ज़िले का अधिकांश भाग तथा राजस्थान के डीग और कामवन का कुछ भाग, जहाँ से ब्रजयात्रा गुजरती है, ब्रज कहा जाता है। ब्रज संस्कृति और ब्रज भाषा का क्षेत्र और भी विस्तृत है।

उक्त समस्त भू-भाग के प्राचीन नाम, मधुबन, शूरसेन, मधुरा, मधुपुरी, मथुरा और मथुरा मंडल थे तथा आधुनिक नाम ब्रज या ब्रजमंडल हैं। यद्यपि इनके अर्थ-बोध और आकार-प्रकार में समय-समय पर अन्तर होता रहा है। इस भू-भाग की धार्मिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक और संस्कृतिक परंपरा अत्यन्त गौरवपूर्ण रही है।

'व्रज' शब्द की परिभाषा

मथुरा का नक्शा
Map Of Mathura

श्री शिवराम आप्टे के संस्कृत हिन्दी कोश में 'व्रज' शब्द की परिभाषा-

व्रज्- (भ्वादिगण परस्मैपद व्रजति)

  • 1.जाना, चलना, प्रगति करना-नाविनीतर्व्रजद् धुर्यैः<balloon title="(मनुस्मृति 4 ।67)" style="color:blue">*</balloon>
  • 2.पधारना, पहुँचना, दर्शन करना-मामेकं शरणं ब्रज-भगवद्गीता<balloon title=" (भगवद्गीता 18 ।66)" style="color:blue">*</balloon>
  • 3.विदा होना, सेवा से निवृत्त होना, पीछे हटना
  • 4.(समय का) बीतना-इयं व्रजति यामिनी त्यज नरेन्द्र निद्रारसम् विक्रमांकदेवचरित ।<balloon title="11 ।74, (यह धातु प्रायः गम् या धातु की भाँति प्रयुक्त होती है)" style="color:blue">*</balloon>
  • अनु-
    • 1.बाद में जाना, अनुगमन करना<balloon title="मनुस्मृति 11 ।111 कु.7 ।38" style="color:blue">*</balloon>
    • 2.अभ्यास करना, सम्पन्न करना
    • 3.सहारा लेना,
  • आ-आना, पहुँचना,
  • परि-भिक्षु या साधु के रुप में इधर उधर घूमना, संन्यासी या परिव्राजक हो जाना,
  • प्र-
    • 1.निर्वासित होना,
    • 2.संसारिक वासनाओं को छोड़ देना, चौथे आश्रम में प्रविष्ट होना, अर्थात् संन्यासी हो जाना<balloon title="मनु.6 ।38,8 ।363" style="color:blue">*</balloon>

व्रजः-(व्रज्+क)

  • 1.समुच्चय, संग्रह, रेवड़, समूह, नेत्रव्रजाःपौरजनस्य तस्मिन् विहाय सर्वान्नृपतीन्निपेतुः<balloon title="रघुवंश 6 ।7, 7 ।67, शिशुपालवध 6 ।6,14 ।33" style="color:blue">*</balloon>
  • 2.ग्वालों के रहने का स्थान
  • 3.गोष्ठ, गौशाला-शिशुपालवध 2 ।64
  • 4.आवास, विश्रामस्थल
  • 5.सड़क, मार्ग
  • 6.बादल,
  • 7.मथुरा के निकट एक ज़िला।
    • सम॰-अग्ङना,
    • युवति:-(स्त्री॰) व्रज में रहने वाली स्त्री, ग्वालन-भामी॰ 2|165,
    • अजिरम-गोशाला,
    • किशोर:-नाथ:, मोहन:, वर:, वल्ल्भ: कृष्ण के विशेषण।

व्रजनम् (व्रज+ल्युट्)

  • 1.घूमना, फिरना, यात्रा करना
  • 2.निर्वासन, देश निकाला

व्रज्या (व्रज्+क्यप्+टाप्)

  • 1.साधु या भिक्षु के रुप में इधर उधर घूमना,
  • 2.आक्रमण, हमला, प्रस्थान,
  • 3.खेड़, समुदाय, जनजाति या कबीला, संम्प्रदाय,
  • 4.रंगभूमि, नाट्यशाला।

प्रस्तुति- डा.चन्द्रकान्ता चौधरी

ब्रज क्षेत्र

विस्तार से पढें ब्रज का पौराणिक इतिहास

ब्रज को यदि ब्रज-भाषा बोलने वाले क्षेत्र से परिभाषित करें तो यह बहुत विस्तृत क्षेत्र हो जाता है। इसमें पंजाब से महाराष्ट्र तक और राजस्थान से बिहार तक के लोग भी ब्रज भाषा के शब्दों का प्रयोग बोलचाल में प्रतिदिन करते हैं। कृष्ण से तो पूरा विश्व परिचित है। ऐसा लगता है कि ब्रज की सीमाऐं निर्धारित करने का कार्य आसान नहीं है, फिर भी ब्रज की सीमाऐं तो हैं ही और उनका निर्धारण भी किया गया है। पहले यह पता लगाऐं कि ब्रज शब्द आया कहाँ से और कितना पुराना है?

वर्तमान मथुरा तथा उसके आस-पास का प्रदेश, जिसे ब्रज कहा जाता है; प्राचीन काल में शूरसेन जनपद के नाम से प्रसिद्ध था। ई॰ सातवीं शती में जब चीनी यात्री हुएन-सांग यहाँ आया तब उसने लिखा कि मथुरा राज्य का विस्तार 5,000 ली (लगभग 833 मील) था। दक्षिण-पूर्व में मथुरा राज्य की सीमा जेजाकभुक्ति (जिझौती) की पश्चिमी सीमा से तथा दक्षिण-पश्चिम में मालव राज्य की उत्तरी सीमा से मिलती रही होगी। वर्तमान समय में ब्रज शब्द से साधारणतया मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का भू भाग समझा जाता है। प्रदेश या जनपद के रूप में ब्रज या बृज शब्द अधिक प्राचीन नहीं है। शूरसेन जनपद की सीमाएं समय-समय पर बदलती रहीं। इसकी राजधानी मधुरा या मथुरा नगरी थी। कालांतर में मथुरा नाम से ही यह जनपद विख्यात हुआ।

वैदिक साहित्य में इसका प्रयोग प्राय: पशुओं के समूह, उनके चरने के स्थान (गोचर भूमि) या उनके बाड़े के अर्थ में मिलता है। रामायण, महाभारत तथा परवर्ती संस्कृत साहित्य में भी प्राय: इन्ही अर्थों में ब्रज का शब्द मिलता है। पुराणों में कहीं-कहीं स्थान के अर्थ में ब्रज का प्रयोग आया है, और वह भी संभवत: गोकुल के लिये। ऐसा प्रतीत होता है कि जनपद या प्रदेश के अर्थ में ब्रज का व्यापक प्रयोग ईस्वी चौदहवीं शती के बाद से प्रारम्भ हुआ। उस समय मथुरा प्रदेश में कृष्ण-भक्ति की एक नई लहर उठी, जिसे जनसाधारण तक पहुँचाने के लिये यहाँ की शौरसेनी प्राकृत से एक कोमल-कांत भाषा का आविर्भाव हुआ। इसी समय के लगभग मथुरा जनपद की, जिसमें अनेक वन उपवन एवं पशुओं के लिये बड़े ब्रज या चरागाह थे, ब्रज (भाषा में ब्रज) संज्ञा प्रचलित हुई होगी।

गोकुल घाट, गोकुल
Gokul Ghat, Gokul

ब्रज प्रदेश में आविर्भूत नई भाषा का नाम भी स्वभावत: ब्रजभाषा रखा गया। इस कोमल भाषा के माध्यम द्वारा ब्रज ने उस साहित्य की सृष्टि की जिसने अपने माधुर्य-रस से भारत के एक बड़े भाग को आप्लावित कर दिया। इस वर्णन से पता चलता है कि सातवीं शती में मथुरा राज्य के अन्तर्गत वर्तमान मथुरा-आगरा जिलों के अतिरिक्त आधुनिक भरतपुर तथा धौलपुर ज़िले और ऊपर मध्यभारत का उत्तरी लगभग आधा भाग रहा होगा। प्राचीन शूरसेन या मथुरा जनपद का प्रारम्भ में जितना विस्तार था उसमें हुएन-सांग के समय तक क्या हेर-फेर होते गये, इसके संबंध में हम निश्चित रूप से नहीं कह सकते, क्योंकि हमें प्राचीन साहित्य आदि में ऐसे प्रमाण नहीं मिलते जिनके आधार पर विभिन्न कालों में इस जनपद की लम्बाई-चौड़ाई का ठीक पता लग सके।

आधुनिक सीमाएं

सातवीं शती के बाद से मथुरा राज्य की सीमाएं घटती गईं। इसका प्रधान कारण समीप के कन्नौज राज्य की उन्नति थी, जिसमें मथुरा तथा अन्य पड़ोसी राज्यों के बढ़े भू-भाग सम्मिलित हो गये। प्राचीन साहित्यिक उल्लेखों से जो कुछ पता चलता है वह यह कि शूरसेन या मथुरा प्रदेश के उत्तर में कुरुदेश (आधुनिक दिल्ली और उसके आस-पास का प्रदेश) था, जिसकी राजधानी इन्द्रप्रस्थ तथा हस्तिनापुर थी। दक्षिण में चेदि राज्य (आधुनिक बुंदेलखंड तथा उसके समीप का कुछ भाग) था, जिसकी राजधानी का नाम था सूक्तिमती नगर। पूर्व में पंचाल राज्य (आधुनिक रुहेलखंड) था, जो दो भागों में बँटा हुआ था - उत्तर पंचाल तथा दक्षिण पंचाल। उत्तर वाले राज्य की राजधानी अहिच्छत्रा (बरेली ज़िले में वर्तमान रामनगर) और दक्षिण वाले की कांपिल्य (आधुनिक कंपिल, ज़िला फर्रूख़ाबाद) थी। शूरसेन के पश्चिम वाला जनपद मत्स्य (आधुनिक अलवर रियासत तथा जयपुर का पूर्वी भाग) था। इसकी राजधानी विराट नगर (आधुनिक वैराट, जयपुर में) थी।

ब्रज नामकरण और उसका अभिप्राय

कोशकारों ने ब्रज के तीन अर्थ बतलाये हैं - (गायों का खिरक), मार्ग और वृंद (झुंड) - गोष्ठाध्वनिवहा व्रज:<balloon title="(अमर कोश) 3-3-30" style="color:blue">*</balloon> इससे भी गायों से संबंधित स्थान का ही बोध होता है। सायण ने सामान्यत: 'व्रज' का अर्थ गोष्ठ किया है। गोष्ठ के दो प्रकार हैं :- 'खिरक`- वह स्थान जहाँ गायें, बैल, बछड़े आदि को बाँधा जाता है। गोचर भूमि- जहाँ गायें चरती हैं। इन सब से भी गायों के स्थान का ही बोध होता है। इस संस्कृत शब्द `व्रज` से ब्रज भाषा का शब्द `ब्रज' बना है।


पौराणिक साहित्य में ब्रज (व्रज) शब्द गोशाला, गो-स्थान, गोचर- भूमि के अर्थों में प्रयुक्त हुआ, अथवा गायों के खिरक (बाड़ा) के अर्थ में आया है। `यं त्वां जनासो भूमि अथसंचरन्ति गाव उष्णमिव व्रजं यविष्ठ।' (10 - 4 - 2) अर्थात - शीत से पीड़ित गायें उष्णता प्राप्ति के लिए इन गोष्ठों में प्रवेश करती हैं।`व्यू व्रजस्य तमसो द्वारोच्छन्तीरव्रञ्छुचय: पावका ।(4 - 51 - 2) अर्थात - प्रज्वलित अग्नि 'व्रज' के द्वारों को खोलती है। यजुर्वेद में गायों के चरने के स्थान को `व्रज' और गोशाला को गोष्ठ कहा गया है - `व्रजं गच्छ गोष्ठान्`<balloon title="(यजुर्वेद 1 - 25)" style="color:blue">*</balloon> शुक्ल यजुर्वेद में सुन्दर सींगो वाली गायों के विचरण-स्थान से `व्रज' का संकेत मिलता है । अथर्ववेद' में एक स्थान पर `व्रज' स्पष्टत: गोष्ठ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। `अयं घासों अयं व्रज इह वत्सा निवध्नीय:'<balloon title="अथर्ववेद (4 - 38 - 7)" style="color:blue">*</balloon> अर्थात यह घास है और यह व्रज है जहाँ हम बछडी को बाँधते हैं। उसी वेद में एक संपूर्ण सूक्त<balloon title="अथर्ववेद(2 - 26 - 1)" style="color:blue">*</balloon> ही गोशालाओं से संबंधित है। श्रीमद् भागवत और हरिवंश पुराण में `व्रज' शब्द का प्रयोग गोप-बस्ती के अर्थ में ही हुआ है, - `व्रजे वसन् किमकसेन् मधुपर्या च केशव:'<balloon title="(भागवत् 10 -1-10)" style="color:blue">*</balloon> तद व्रजस्थानमधिकम् शुभे काननावृतम्<balloon title="(हरिवंश, विष्णु पर्व 6 - 30)" style="color:blue">*</balloon> स्कंद पुराण में महर्षि शांडिल्य ने `व्रज' शब्द का अर्थ `व्याप्ति' करते हुए उसे व्यापक ब्रह्म का रूप कहा है,<balloon title="(वैष्णव खंड भागवत माहात्म्य, 1 -16 - 20)" style="color:blue">*</balloon> किंतु यह, अर्थ व्रज की आध्यात्मिकता से संबंधित है। कुछ विद्वानों ने निम्न संभावनाएं भी प्रकट की हैं -

बौद्ध काल में मथुरा के निकट `वेरंज' नामक एक स्थान था। कुछ विद्वानों की प्रार्थना पर गौतम बुद्ध वहां पधारे थे। वह स्थान वेरंज ही कदाचित कालांतर में `विरज' या `व्रज' के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यमुना को `विरजा' भी कहते हैं। विरजा का क्षेत्र होने से मथुरा मंडल `विरज' या `व्रज` कहा जाने लगा। मथुरा के युद्धोपरांत जब द्वारिका नष्ट हो गई, तब श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्र(वज्रनाभ) मथुरा के राजा हुए थे। उनके नाम पर मथुरा मंडल भी 'वज्र प्रदेश` या `व्रज प्रदेश' कहा जाने लगा।


नामकरण से संबंधित उक्त संभावनाओं का भाषा विज्ञान आदि की दृष्टि से कोई प्रमाणिक आधार नहीं है, अत: उनमें से किसी को भी स्वीकार करना संभव नहीं है। वेदों से लेकर पुराणों तक ब्रज का संबंध गायों से रहा है; चाहे वह गायों के बाँधने का बाड़ा हो, चाहे गोशाला हो, चाहे गोचर - भूमि हो और चाहे गोप - बस्ती हो। भागवत कार की दृष्टि में गोष्ठ, गोकुल और ब्रज समानार्थक शब्द हैं।

भागवत के आधार पर सूरदास आदि कवियों की रचनाओं में भी ब्रज इसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है; इसलिए `वेरज', `विरजा' और `वज्र` से ब्रज का संबंध जोड़ना समीचीन नहीं है। मथुरा और उसका निकटवर्ती भू-भाग प्रागैतिहासिक काल से ही अपने सघन वनों, विस्तृत चरागाहों, सुंदर गोष्ठों ओर दुधारू गायों के लिए प्रसिद्ध रहा है। भगवान् श्री कृष्ण का जन्म यद्यपि मथुरा में हुआ था, तथापि राजनैतिक कारणों से उन्हें गुप्त रीति से यमुना पार की गोप-बस्ती (गोकुल) में भेज दिया गया था। उनका शैशव एवं बाल्यकाल गोपराज नंद और उनकी पत्नी यशोदा के लालन-पालन में बीता था। उनका सान्निध्य गोपों, गोपियों एवं गो-धन के साथ रहा था। वस्तुत: वेदों से लेकर पुराणों तक ब्रज का संबंध अधिकतर गायों से रहा है; चाहे वह गायों के चरने की `गोचर भूमि' हो चाहे उन्हें बाँधने का खिरक (बाड़ा) हो, चाहे गोशाला हो, और चाहे गोप-बस्ती हो। भागवत्कार की दृष्टि में व्रज, गोष्ठ ओर गोकुल समानार्थक शब्द हैं।

वीथिका

साँचा:दर्शनीय-स्थल