ब्रह्मा

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.

ब्रह्मा / Brahma

ब्रह्मा जी, ब्रह्म कुण्ड, वृन्दावन
Brahma Kund, Vrindavan
  • सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।
  • पुराणों में जो ब्रह्मा का रूप वर्णित मिलता है वह वैदिक प्रजापति के रूप का विकास है। प्रजापति की समस्त वैदिक गाथाएँ ब्रह्मा पर आरोपित कर ली गयी हैं। प्रजापति और उनकी दुहिता की कथा पुराणों में ब्रह्मा और सरस्वती के रूप में वर्णित हुई है।
  • पुराणों के अनुसार क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा की स्वयं उत्पत्ति हुई, इसलिए ये स्वयंभू कहलाते हैं।
  • घोर तपस्या के पश्चात इन्होंने ब्रह्माण्ड की सृष्टि की थी। वास्तव में सृष्टि ही ब्रह्मा का मुख्य कार्य है।
  • सावित्री इनकी पत्नी, सरस्वती पुत्री और हंस वाहन है।
  • ब्राह्म पुराणों में ब्रह्मा का स्वरूप विष्णु के सदृश ही निरूपित किया गया है। ये ज्ञानस्वरूप, परमेश्वर, अज, महान तथा सम्पूर्ण प्राणियों के जन्मदाता और अन्तरात्मा बतलाये गये हैं। कार्य, कारण और चल, अचल सभी इनके अन्तर्गत हैं। समस्त कला और विद्या इन्होंने ही प्रकट की हैं। ये त्रिगुणात्मिका माया से अतीत ब्रह्म हैं। ये हिरण्यगर्भ हैं और सारा ब्रह्माण्ड इन्हीं से निकला है।
  • यद्यपि ब्राह्म पुराणों में त्रिमूर्ति के अन्तर्गत ये अग्रगण्य और प्रथम बने रहे, किन्तु धार्मिक सम्प्रदायों की दृष्टि से इनका स्थान विष्णु , शिव, शक्ति , गणेश, सूर्य आदि से गौण हो गया, इनका कोई पृथक् सम्प्रदाय नहीं बन पाया।
  • ब्रह्मा के मन्दिर भी थोड़े ही हैं। सबसे प्रसिद्ध ब्रह्मा का तीर्थ अजमेर के पास पुष्कर है। वृद्ध पिता की तरह देव परिवार में इनका स्थान उपेक्षित होता गया।
  • मार्कण्डेय पुराण के मधु-कैटभवध प्रसंग में विष्णु का उत्कर्ष और ब्रह्मा की विपन्नता दिखायी गयी है। ब्रह्मा की पूजामूर्ति के निर्माण का वर्णन मत्स्य पुराण<balloon title="मत्स्य पुराण(249.40-44)" style="color:blue">*</balloon> में पाया जाता है।
  • महाप्रलय के बाद भगवान नारायण दीर्घ काल तक योगनिद्रा में निमग्न रहे। योगनिद्रा से जगने के बाद उनकी नाभि से एक दिव्य कमल प्रकट हुआ। जिसकी कर्णिकाओं पर स्वयम्भू ब्रह्मा प्रकट हुए। उन्होंने अपने नेत्रों को चारों ओर घुमाकर शून्य में देखा। इस चेष्टा से चारों दिशाओं में उनके चार मुख प्रकट हो गये। जब चारों ओर देखने से उन्हें कुछ भी दिखलायी नहीं पड़ा, तब उन्होंने सोचा कि इस कमल पर बैठा हुआ मैं कौन हूँ? मैं कहाँ से आया हूँ तथा यह कमल कहाँ से निकला है?
  • दीर्घ काल तक तप करने के बाद ब्रह्मा जी को शेषशय्या पर सोये हुए भगवान विष्णु के दर्शन हुए। अपने एवं विश्व के कारण परम पुरुष का दर्शन करके उन्हें विशेष प्रसन्नता हुई और उन्होंने भगवान विष्णु की स्तुति की। भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से कहा कि अब आप तप:शक्ति से सम्पन्न हो गये हैं और आपको मेरा अनुग्रह भी प्राप्त हो गया है। अत: अब आप सृष्टि करने का प्रयत्न कीजिये।
  • भगवान विष्णु की प्रेरणा से सरस्वती देवी ने ब्रह्मा जी को सम्पूर्ण वेदों का ज्ञान कराया।
  • सभी पुराणों तथा स्मृतियों में सृष्टि-प्रक्रिया में सर्वप्रथम ब्रह्मा जी के प्रकट होने का वर्णन मिलता है। वे मानसिक संकल्प से प्रजापतियों को उत्पन्न कर उनके द्वारा सम्पूर्ण प्रजा की सृष्टि करते हैं। इसलिये वे प्रजापतियों के भी पति कहे जाते हैं।
  • मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष तथा कर्दम- ये दस मुख्य प्रजापति हैं।
  • भागवतादि पुराणों के अनुसार भगवान रुद्र भी ब्रह्मा जी के ललाट से उत्पन्न हुए। मानव-सृष्टि के मूल महाराज मनु उनके दक्षिण भाग से उत्पन्न हुए और वाम भाग से शतरूपा की उत्पत्ति हुई। स्वायम्भुव मनु और महारानी शतरूपा से मैथुरी-सृष्टि प्रारम्भ हुई।
  • सभी देवता ब्रह्मा जी के पौत्र माने गये हैं, अत: वे पितामह के नाम से प्रसिद्ध हैं। यों तो ब्रह्मा जी देवता, दानव तथा सभी जीवों के पितामह हैं, फिर भी वे विशेष रूप से धर्म के पक्षपाती हैं। इसलिये जब देवासुरादि संग्रामों में पराजित होकर देवता ब्रह्मा के पास जाते हैं, तब ब्रह्मा जी धर्म की स्थापना के लिये भगवान विष्णु को अवतार लेने के लिये प्रेरित करते हैं। अत: भगवान विष्णु के प्राय: चौबीस अवतारों में ये ही निमित्त बनते हैं।
  • शैव और शाक्त आगमों की भाँति ब्रह्मा जी की उपासना का भी एक विशिष्ट सम्प्रदाय है, जो वैखानस सम्प्रदाय के नाम से प्रसिद्ध है। इस वैखानस सम्प्रदाय की सभी सम्प्रदायों में मान्यता है। पुराणादि सभी शास्त्रों के ये ही आदि वक्ता माने गये हैं।
  • ब्रह्माजी की प्राय: अमूर्त अपासना ही होती है। सर्वतोभद्र, लिंगतोभद्र आदि चक्रों में उनकी पूजा मुख्य रूप से होती है, किन्तु मूर्तरूप में मन्दिरों में इनकी पूजा पुष्कर-क्षेत्र तथा ब्रह्मार्वत-क्षेत्र (विठुर) में देखी जाती है।
  • माध्व सम्प्रदाय के आदि आचार्य भगवान ब्रह्मा ही माने जाते हैं। इसलिये उडुपी आदि मुख्य मध्वपीठों में इनकी पूजा-आराधना की विशेष परम्परा है। देवताओं तथा असुरों की तपस्या में प्राय: सबसे अधिक आराधना इन्हीं की होती है। विप्रचित्ति, तारक, हिरण्यकशिपु, रावण, गजासुर तथा त्रिपुर आदि असुरों को इन्होंने ही वरदान देकर अवध्य कर डाला था। देवता, ऋषि-मुनि, गन्धर्व, किन्नर तथा विद्याधर गण इनकी आराधना में निरंतर तत्पर रहते हैं।
  • मत्स्य पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी के चार मुख हैं। वे अपने चार हाथों में क्रमश: वरमुद्रा, अक्षरसूत्र, वेद तथा कमण्डलु धारण किये हैं। उनका वाहन हंस है।

सम्बंधित कथाएं

  • सावित्री, गायत्री, श्रद्धा, मेधा और सरस्वती ब्रह्मा की कन्याएं हैं। इनमें से एक कन्या त्रिभुवन सुंदरी थी। ब्रह्मा स्वयं ही निर्माण करके उस पर आसक्त हो गये। वह मृगी के रूप में भाग गयी। ब्रह्मा ने मृग का रूप धारण करके उसका पीछा किया। शिव ने धर्मसंकट में देख मृगवधिक का रूप धारण करके ब्रह्मा को रोका। ब्रह्मा ने वह कन्या विवस्वत मनु को दे दी। पांचों कन्याएं डरकर महानदी गंगा में जा मिलीं।<balloon title="ब्रह्म पुराण, 102।–" style="color:blue">*</balloon>

  • एक बार ब्रह्मा और विष्णु में विवाद छिड़ गया कि दोनों में से कौन बड़ा है। महादेव की ज्योतिर्मयी मूर्ति दोनों मध्य प्रकट हुई, साथ ही आकाशवाणी हुई कि जो उस मूर्ति का अंत देखेगा, वही श्रेष्ठ माना जायेगा। विष्णु नीचे की चरम सीमा तथा ब्रह्मा ऊपर की अंतिम सीमा देखने के लिए बढ़े। विष्णु तो शीघ्र लौट आये। ब्रह्मा बहुत दूर तक शिव की मूर्ति का अंत देखने गये। उन्होंने लौटते समय सोचा कि अपने मुंह से झूठ नहीं बोलना चाहिए, अत: गधे का एक मुंह (जो कि ब्रह्मा का पांचवां मुंह कहलाता है) बनाकर उससे बोले- 'हे विष्णु! मैं तो शिव की सीमा देख आया।' तत्काल शिव और विष्णु के ज्योतिर्मय स्वरूप एक रूप हो गये। ब्रह्मा की झूठी वाणी, वाणी नामक नदी के रूप में प्रकट हुई। उन दोनों को आराधना से प्रसन्न करके वह नदी सरस्वती नदी के नाम से गंगा से जा मिली और तब वह शापमुक्त हुई।<balloon title="ब्रह्म पुराण, 135।–" style="color:blue">*</balloon>
  • सृष्टि के पूर्व में संपूर्ण विश्व जलप्लावित था। श्री नारायण शेषशैय्या पर निद्रालीन थे। उनके शरीर में संपूर्ण प्राणी सूक्ष्म रूप से विद्यमान थे। केवल कालशक्ति ही जागृत थी क्योंकि उसका कार्य जगाना था। कालशक्ति ने जब जीवों के कर्मों के लिए उन्हें प्रेरित किया तब उनका ध्यान लिंग शरीर आदि सूक्ष्म तत्व पर गया- वही कमल के रूप में उनकी नाभि से निकला। उस पर ब्रह्मा स्वयं प्रकट हुए। अत: स्वयंभू कहलाये। ब्रह्मा विचारमग्न हो गये कि वे कौन हैं, कहां से आये, कहां हैं, अत: कमल की नाल से होकर विष्णु की नाभि के निकट तक चक्कर लगाकर भी वे विष्णु को नहीं देख पाये। योगाभ्यास से ज्ञान प्राप्त होने पर उन्होंने शेषशायी विष्णु के दर्शन किये। विष्णु की प्रेरणा से उन्होंने तप करके, भगवत ज्ञान अनुष्ठान करके, सब लोकों को अपने अंत:करण में स्पष्ट रूप से देखा। तदनंतर विष्णु अंतर्धान हो गये और ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की। सरस्वती उनके मुंह से उत्पन्न पुत्री थी, उसके प्रति काम-विमोहित हो, वे समागम के इच्छुक थे। प्रजापतियों की रोक-टोक से लज्जित होकर उन्होंने उस शरीर का त्याग कर दूसरा शरीर धारण किया। त्यक्त शरीर अंधकार अथवा कुहरे के रूप में दिशाओं में व्याप्त हो गया। उन्होंने अपने चार मुंह से चार वेदों को प्रकट किया। ब्रह्मा को 'क' कहते हैं- उन्हीं से विभक्त होने के कारण शरीर को काम कहते हैं। उन दोनों विभागों से स्त्री-पुरुष एक-एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष मनु तथा स्त्री शतरूपा कहलायी। उन दोनों की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि प्रजापतियों की सृष्टि का सुचारू विस्तार नहीं हो रहा था।<balloon title="श्रीमद् भागवत, तृतीय स्कंध, 8-10,12" style="color:blue">*</balloon>
  • भगवान बुद्ध बोधिसत्त्व प्राप्त करके भी चिंताग्रस्त थे। वे सोचते थे कि उनके धर्मोपदेश को कोई मानेगा कि नहीं। प्रजापति ब्रह्मा ने यह ताड़ लिया। अत: वे 'ब्रह्मलोक' से अंतर्धान होकर भगवान के सामने प्रकट हुए तथा उन्हें धर्मोपदेश के लिए प्रेरित किया।<balloon title="बुद्ध चरित, 1।4।-" style="color:blue">*</balloon>

सम्बंधित लिंक