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भरत कुल / Bharat Kul

अभिजात क्षत्रिय वर्ग का एक वेदकालीन कबीला। ऋग्वेद तथा अन्य परवर्ती वैदिक साहित्य में भरत एक महत्त्वपूर्ण कुल का नाम है। ऋग्वेद के तीसरे और सातवें मण्डल में ये सुदास एवं त्रित्सु के साथ तथा छठे मण्डल में दिवोदास के साथ उल्लिखित हैं। इससे लगता है कि ये तीनों राजा भरतवंशी थे। परवर्ती साहित्य में भरत लोग और प्रसिद्ध हैं। शतपथ ब्राह्मण<balloon title="शतपथ ब्राह्मण (13.5.4)" style=color:blue>*</balloon> अश्वमेध यज्ञकर्त्ता के रूप में भरत दौष्यन्ति का वर्णन करता है। एक अन्य भरत शतानीक सामाजित का उल्लेख मिलता है, जिसने अश्वमेध यज्ञ किया। ऐतरेय ब्राह्मण<balloon title="ऐतरेय ब्राह्मण(8.23,21)" style=color:blue>*</balloon> भरत दौष्यन्ति को दीर्घतमा मामतेय एवं शतानीक को सोमशुष्मा वाजप्यायन द्वारा अभिषिक्त किया गया वर्णन करता है। भरतों की भौगोलिक सीमा का पता उनकी काशीविजय तथा यमुना और गंगा तट पर यज्ञ करने से चलता है। महाभारत में कुरूओं को भरतकुल का कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मणकाल में भरत लोग कुरू-पांचाल जाति में मिल गये थे।

भरतों की याज्ञिक क्रियाओं का पंचविंश ब्राह्मण<balloon title="पंचविंश ब्रा0(14.3,12;15.5,24)" style=color:blue>*</balloon> में बार-बार उल्लेख आता है। ऋग्वेद<balloon title="(2.7.1,5; 4.25.4;5.16,19; तै0 सं0 2,5,9,1; शतपथ ब्राह्मण 1.4,2,2)" style=color:blue>*</balloon> में भारत अग्नि का उल्लेख आया है। राँथ महाशय इस अग्नि से भरतों के योद्धा रूप की अभिव्यक्ति मानते हैं, जो सम्भव नहीं। ऋचाओं<balloon title="(ऋ0 1.22,10; 1.42,9; 1.88,8; 2.1,11; 3,8;3.4,8 आदि)" style=color:blue>*</balloon> में भारती देवी का उल्लेख है जो भरतों की दैवी रक्षिका शक्ति है। उसका सरस्वती से सम्बन्ध भरतों को सरस्वती से सम्बन्धित करता है। इस महाद्वीप का भरतखण्ड तथा देश का भारतवर्ष नामकरण भरत जाति के नाम पर ही हुआ है। ऋषभदेव के पुत्र भरत अथवा दौष्यन्ति भरत के नाम पर देश का नाम भारत होने की परम्परा परवर्ती है।