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- उत्तर- 27֯,29',34"
 
- पूर्व - 77֯,41',1.4''
 
मार्ग स्थिति - राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -2
 
दिल्ली-आगरा मार्ग पर दिल्ली से 146 किलो मीटर
 
  
मथुरा उत्तरप्रदेश प्रान्त का एक ज़िला है । मथुरा एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है । यह श्री कृष्ण भगवान की जन्म स्थली है हरिवंश पुराण में उल्लेख है कि राम के भाई शत्रुघ्न ने मधु के पुत्र लवण का वध करके मथुरा को पुन: बसाया एक लंबे समय से मथुरा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का केंद्र रहा है । पौराणिक काल में इसे शूरसेन नगरी कहते थे । आज मथुरा को ब्रज का केन्द्र माना जाता है । भारतीय धर्म,दर्शन कला एवं साहित्य के निर्माण तथा विकास में मथुरा का महत्त्वपूर्ण योगदान सदा से रहा है । यहाँ बौद्घ धर्म और जैन धर्म का प्रमुख केन्द्र होने के प्रमाण मिलते हैं । मथुरा का पुरातत्व राजकीय संग्रहालय विश्व प्रसिद्ध है । आज भी महाकवि सूरदास,संगीत के आचार्य स्वामी हरिदास,स्वामी दयानंद के गुरु स्वामी विरजानंद, कवि रसखान आदि महान आत्माओं से इस नगरी का नाम जुड़ा हुआ है ।
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==मथुरा का सामान्य परिचय==
भगवान श्रीकृष्ण के जन्म स्थान पर यहाँ भव्य मन्दिर है । नगर के बीच द्वारिकाधीश जी के मन्दिर की भी बड़ी मान्यता हैं दाऊजी, मदन मोहन जी, दीर्घ विष्णुजी भूतेश्वर महादेव, रंगेश्वर महादेव, गोकर्णेश्वर महादेव, महाविद्या मन्दिर, चामुण्डा देवी, गणेश घाट, दशाश्वमेघ, कृष्णगंगा घाट, असकुण्डा आदि यहां के प्राचीन स्थल हैं । अनेक सुन्दर घाटों पर बुर्जियाँ बनी हैं, जिनमें 25 घाट प्रमुख माने जाते हैं । सबसे प्रमुख विश्राम घाट है, जहां कंस को मारकर श्रीकृष्ण ने विश्राम किया था । सायं काल यहां यमुना जी की आरती होती है । ध्रुव टीला, अम्बरीष टीला, सप्तर्षि टीला, नाग टीला, गायत्री टीला, कंकाली टीला आदि पुराने टीले हैं, जो पौराणिक अनुस्मृतियों से जुड़े हैं ।
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इनके अलावा राजस्थान राज्य में पड़ने वाले समीपवर्ती डीग एवं कामवन भी ब्रज में आते हैं और यात्रा में इन स्थानों  का महत्व है । डीग के दुर्ग एवं भवन जाट राजाओं की कलात्मक उपलब्धियों के प्रतीक हैं यहाँ साक्षी गोपाल, लक्ष्मणजी एवं दाऊजी का प्रसिद्ध मन्दिर है और रंगीन फुब्बारों को मेला भी प्रसिद्ध है । कामवन वर्तमान में कामां के नाम से जाना जाता है यहां कृष्णलीला स्थल में खिसलनी शिला और भोजन थाली स्थल देखने योग्य हैं । चौरासीखम्भा नाम का प्राचीन मन्दिर है । व्योमासुर गुफा, पंच पाण्डव तथा कामेश्वर मन्दिर भी प्रसिद्ध है । वाराह भगवान वृन्दावन भी के मन्दिर है । बल्लभ संप्रदाय के गोकुल चन्द्रमा जी एवं मदन मोहन जी के प्रसिद्ध मन्दिर है । विमल कुण्ड, धर्म कुण्ड चरणपहाड़ी भी देखने योग्य स्थल है ।
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मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है । शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी । पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि । भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था यहां पर पनपी हुई भारतीय संस्कृति को जिन धाराओं ने सींचा वे गंगा और यमुना की धाराएं थीं इन्हीं दोनों नदियों के किनारे भारतीय संस्कृति के कई केन्द्र बने और विकसित हुए ।
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वाराणसी, प्रयाग, कौशाम्बी, हस्तिनापुर, कन्नौज आदि कितने ही ऐसे स्थान हैं, परन्तु यह तालिका तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक इसमें मथुरा का समावेश न किया जाय । यह आगरा और दिल्ली से क्रमश: 58 कि.मी उत्तर-पश्चिम एवं 145 कि मी दक्षिण-पश्चिम में यमुना के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है ।
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वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहाँ लवणासुर की राजधानी बताई गई है- [संदर्भ] इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाई, बताया गया है । लवणासुर, जिसको शत्रुध्न ने युद्ध में हराकर मारा था इसी मधुदानव का पुत्र था । [संदर्भ देखें] इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है । रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन है । [संदर्भ देखें] इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था । [संदर्भ] ( दानव, दैत्य, राक्षस आदि जैसे संबोधन विभिन्न काल में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं, कभी जाति या क़बीले के लिए, कभी आर्य अनार्य संदर्भ में तो कभी दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों के लिए । ) । प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व अखण्डित रूप से चला आ रहा है ।
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शूरसेन जनपद के नामकरण के संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं किन्तु कोई भी सर्वमान्य नहीं है । शत्रुघ्न के पुत्र का नाम शूरसेन था । जब सीताहरण के बाद सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज में उत्तर दिशा में भेजा तो शतबलि और वानरों से कहा- 'उत्तर में म्लेच्छ' पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल , भरत ( इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास के प्रान्त ), कुरु ( दक्षिण कुरु- कुरुक्षेत्र के आसपास की भूमि ), मद्र, काम्बोज, यवन, शकों के देशों एवं नगरों में भली भाँति अनुसन्धान करके दरद देश में और हिमालय पर्वत पर ढूँढ़ो [संदर्भ] इससे स्पष्ट है कि शत्रुघ्न के पुत्र से पहले ही 'शूरसेन' जनपद नाम अस्तित्व में था हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन के सौ पुत्रों में से एक का नाम शूरसेन था और उस के नाम पर यह शूरसेन राज्य का नामकरण होने की संम्भावना भी है, किन्तु हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन का मथुरा से कोई सीधा संबंध होना स्पष्ट नहीं है ।
 
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०९:४९, ९ मई २००९ का अवतरण

मथुरा का सामान्य परिचय

मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है । शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी । पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि । भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था । यहां पर पनपी हुई भारतीय संस्कृति को जिन धाराओं ने सींचा वे गंगा और यमुना की धाराएं थीं । इन्हीं दोनों नदियों के किनारे भारतीय संस्कृति के कई केन्द्र बने और विकसित हुए । वाराणसी, प्रयाग, कौशाम्बी, हस्तिनापुर, कन्नौज आदि कितने ही ऐसे स्थान हैं, परन्तु यह तालिका तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक इसमें मथुरा का समावेश न किया जाय । यह आगरा और दिल्ली से क्रमश: 58 कि.मी उत्तर-पश्चिम एवं 145 कि मी दक्षिण-पश्चिम में यमुना के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है । वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहाँ लवणासुर की राजधानी बताई गई है- [संदर्भ] इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाई, बताया गया है । लवणासुर, जिसको शत्रुध्न ने युद्ध में हराकर मारा था इसी मधुदानव का पुत्र था । [संदर्भ देखें] इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है । रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन है । [संदर्भ देखें] इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था । [संदर्भ] ( दानव, दैत्य, राक्षस आदि जैसे संबोधन विभिन्न काल में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं, कभी जाति या क़बीले के लिए, कभी आर्य अनार्य संदर्भ में तो कभी दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों के लिए । ) । प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व अखण्डित रूप से चला आ रहा है । शूरसेन जनपद के नामकरण के संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं किन्तु कोई भी सर्वमान्य नहीं है । शत्रुघ्न के पुत्र का नाम शूरसेन था । जब सीताहरण के बाद सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज में उत्तर दिशा में भेजा तो शतबलि और वानरों से कहा- 'उत्तर में म्लेच्छ' पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल , भरत ( इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास के प्रान्त ), कुरु ( दक्षिण कुरु- कुरुक्षेत्र के आसपास की भूमि ), मद्र, काम्बोज, यवन, शकों के देशों एवं नगरों में भली भाँति अनुसन्धान करके दरद देश में और हिमालय पर्वत पर ढूँढ़ो । [संदर्भ] इससे स्पष्ट है कि शत्रुघ्न के पुत्र से पहले ही 'शूरसेन' जनपद नाम अस्तित्व में था । हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन के सौ पुत्रों में से एक का नाम शूरसेन था और उस के नाम पर यह शूरसेन राज्य का नामकरण होने की संम्भावना भी है, किन्तु हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन का मथुरा से कोई सीधा संबंध होना स्पष्ट नहीं है ।