मथुरा

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मथुरा का सामान्य परिचय

मथुरा, भगवान कृष्ण की जन्मस्थली और भारत की परम प्राचीन तथा जगद्-विख्यात नगरी है । शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी । पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि । भारतवर्ष का वह भाग जो हिमालय और विंध्याचल के बीच में पड़ता है, प्राचीनकाल में आर्यावर्त कहलाता था । यहां पर पनपी हुई भारतीय संस्कृति को जिन धाराओं ने सींचा वे गंगा और यमुना की धाराएं थीं । इन्हीं दोनों नदियों के किनारे भारतीय संस्कृति के कई केन्द्र बने और विकसित हुए । वाराणसी, प्रयाग, कौशाम्बी, हस्तिनापुर, कन्नौज आदि कितने ही ऐसे स्थान हैं, परन्तु यह तालिका तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक इसमें मथुरा का समावेश न किया जाय । यह आगरा और दिल्ली से क्रमश: 58 कि.मी उत्तर-पश्चिम एवं 145 कि मी दक्षिण-पश्चिम में यमुना के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर स्थित है । वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर या मधुदानव का नगर कहा गया है तथा यहाँ लवणासुर की राजधानी बताई गई है- [संदर्भ] इस नगरी को इस प्रसंग में मधुदैत्य द्वारा बसाई, बताया गया है । लवणासुर, जिसको शत्रुध्न ने युद्ध में हराकर मारा था इसी मधुदानव का पुत्र था । [संदर्भ देखें] इससे मधुपुरी या मथुरा का रामायण-काल में बसाया जाना सूचित होता है । रामायण में इस नगरी की समृद्धि का वर्णन है । [संदर्भ देखें] इस नगरी को लवणासुर ने भी सजाया संवारा था । [संदर्भ] ( दानव, दैत्य, राक्षस आदि जैसे संबोधन विभिन्न काल में अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुए हैं, कभी जाति या क़बीले के लिए, कभी आर्य अनार्य संदर्भ में तो कभी दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों के लिए । ) । प्राचीनकाल से अब तक इस नगर का अस्तित्व अखण्डित रूप से चला आ रहा है । शूरसेन जनपद के नामकरण के संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं किन्तु कोई भी सर्वमान्य नहीं है । शत्रुघ्न के पुत्र का नाम शूरसेन था । जब सीताहरण के बाद सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज में उत्तर दिशा में भेजा तो शतबलि और वानरों से कहा- 'उत्तर में म्लेच्छ' पुलिन्द, शूरसेन, प्रस्थल , भरत ( इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर के आसपास के प्रान्त ), कुरु ( दक्षिण कुरु- कुरुक्षेत्र के आसपास की भूमि ), मद्र, काम्बोज, यवन, शकों के देशों एवं नगरों में भली भाँति अनुसन्धान करके दरद देश में और हिमालय पर्वत पर ढूँढ़ो । [संदर्भ] इससे स्पष्ट है कि शत्रुघ्न के पुत्र से पहले ही 'शूरसेन' जनपद नाम अस्तित्व में था । हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन के सौ पुत्रों में से एक का नाम शूरसेन था और उस के नाम पर यह शूरसेन राज्य का नामकरण होने की संम्भावना भी है, किन्तु हैहयवंशी कार्तवीर्य अर्जुन का मथुरा से कोई सीधा संबंध होना स्पष्ट नहीं है ।