मदनमोहन मालवीय

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मदनमोहन मालवीय / Madanmohan Malviya

भारतीय संस्कृति के प्रबल समर्थक पंडित मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 ई0 को प्रयाग में हुआ था। शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ दिन तक आपने अध्यापन कार्य किया, फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। पर उनकी क्षमता और प्रतिभा के लिए यह क्षेत्र बहुत सीमित था। मालवीयजी ने सार्वजनिक जीवन में भी प्रमुख रूप से भाग लेना आरंभ किया। वे 1886 ई0 में ही कांग्रेस में सम्मिलित हुए। 1885 और 1907 ई0 के बीच तीन पत्रों का संपादन किया और हिंदी के प्रसार में ऐतिहासिक महत्व का योग दिया। आपके ही प्रयत्न से उत्तर प्रदेश की कचहरियों में देवनागरी लिपि को प्रवेश मिला। इसके लिए मानवीय जी ने 1890 ई0 में ही आंदोलन आरंभ कर दिया था और 1900 ई0 में सफलता प्राप्त हुई। मानवीय जी दो बार (1909 और 1918 ई0 में) अखिल भारतीय कांग्रेस के और तीन बार हिंदू महासभा के अध्यक्ष चुने गए।


आपकी सबसे बड़ी देन काशी हिंदू विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना भारतीय संस्कृति के परिवेश में विविध विषयों की उच्चतम शिक्षा की सुविधाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से आपने 1915 ई0 में की थी। अपने जीवन के अंत तक मालवीयजी पूरी शक्ति के साथ इस विश्वविद्यालय को विकसित करने में लगे रहे।


आपके कर्मठ जीवन का अंत 12 नवम्बर 1946 ई0 को वाराणसी में हुआ।