मनुस्मृति

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मनुस्मृति / Manusmriti

भारत में वेदों के उपरान्त सर्वाधिक मान्यता और प्रचलन ‘मनुस्मृति’ का ही है । इसमें चारों वर्णों, चारों आश्रमों, सोलह संस्कारों तथा सृष्टि उत्पत्ति के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, राजा के कर्तव्य, भांति-भांति के विवादों, सेना का प्रबन्ध आदि उन सभी विषयों पर परामर्श दिया गया है जो कि मानव मात्र के जीवन में घटित होने सम्भव हैं यह सब धर्म-व्यवस्था वेद पर आधारित है ।


  • यह हिंदू धर्म का सबसे प्रधान आचार-ग्रंथ है। इसके रचयिता के विषय में मतभेद है। कुछ का मत है कि पहले एक 'मानव धर्मशास्त्र' था जो अब उपलब्ध नहीं है। अत: वर्तमान 'मनुस्मृति' को मनु के नाम से प्रचारित करके उसे प्रामाणिकता प्रदान की गई है। परंतु बहुमत इसे स्वीकार नहीं करता।
  • महाभारत, रामायण, तैत्तिरीय-संहिता, ऐतरेय ब्राह्मण तथा शतपथ ब्राह्मण तथा नारद-संहिता में मनु और 'मनुस्मृति' का उल्लेख इसकी प्राचीनता का पुष्ट प्रमाण है। भारतीय वांडमय में 14 मनु वर्णित हैं। सर्वप्रथम मनु 'स्वयंभुव' मनु थे। वर्तमान मन्वंतर (मनुओ के अनुसार काल विभाजन) जिस मनु के नाम से है वे वैवस्वत मनु।
  • मनुस्मृति का रचनाकाल ई0पू0 एक हजार वर्ष से लेकर ई0पू0 दूसरी शताब्दी तक माना जाता है। इसकी रचना के संबंध में कहा गया है कि धर्म, वर्ण और आश्रमों के विषय में ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से ऋषिगण स्वायंभुव मनु के समक्ष उपस्थित हुए। मनु ने उनको कुछ ज्ञान देने के बाद कहा कि मैंने यह ज्ञान ब्रह्मा से प्राप्त किया था और मारीचि आदि मुनियों को पढ़ा दिया। ये भृगु (जो वहां उपस्थित थे) मुझसे सब विषयों को अच्छी तरह पढ़ चुके हैं और अब ये आप लोगों को बताएंगे। इस पर भृगु ने मनु की उपस्थिति में, उनका बताया ज्ञान, उन्हीं की शब्दावली में अन्यों को दिया। यही ज्ञान गुरू-शिष्य परंपरा में 'मनुस्मृति' या 'मनु-संहिता' के नाम से प्रचलित हुआ।
  • भारत में मनुस्मृति का सर्वप्रथम मुद्रण 1813 ई0 में कलकत्ता में हुआ था। 2694 श्लोकों का यह ग्रंथ 12 अध्यायों में विभक्त है। विभिन्न अध्यायों के वर्ण्य-विषय इस प्रकार हैं-
  1. वर्णाश्रम धर्म की शिक्षा,
  2. धर्म की परिभाषा,
  3. ब्रह्मचर्य, विवाह के प्रकार आदि,
  4. गृहस्थ जीवन,
  5. खाद्य-अखाद्य विचार तथा जन्म-मरण, अशौच और शुद्धि,
  6. वानप्रस्थ जीवन,
  7. राजधर्म और दंड,
  8. न्याय शासन,
  9. पति-पत्नी के कर्त्तव्य,
  10. चारों वर्णों के अधिकार और कर्त्तव्य,
  11. दान-स्तुति,प्रायश्चित आदि तथा
  12. कर्म पर विवेचन और ब्रह्म की प्राप्ति।

आस्तिक हिंदुओं के कार्य-व्यवहार का आधार दीर्घकाल तक मनुस्मृति रही हैं। इसका प्रभाव न्याय प्रणाली पर भी पड़ा है। मनु ने जन्म से लेकर मृत्यु तक का मनुष्य का पूरा कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चार पुरूषार्थ; देव, ऋषि और पितृ ये तीन ऋण; सोलह संस्कार, पांच महायज्ञ; चार आश्रम और चार वर्ण सभी का इसमें विवेचन है।