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शकों की संयुक्त शासन- प्रणाली में वरिष्ठ शासक को “महाक्षत्रप’ की उपाधि मिलती थी तथा अन्य कनिष्ठ शासक 'क्षत्रप’ कहे जाते थे । पश्चिमी क्षत्रपों के मिले सिक्कों से पता चलता है कि “महाक्षत्रप- उपाधि’ सबको नहीं मिलती है । | शकों की संयुक्त शासन- प्रणाली में वरिष्ठ शासक को “महाक्षत्रप’ की उपाधि मिलती थी तथा अन्य कनिष्ठ शासक 'क्षत्रप’ कहे जाते थे । पश्चिमी क्षत्रपों के मिले सिक्कों से पता चलता है कि “महाक्षत्रप- उपाधि’ सबको नहीं मिलती है । | ||
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+ | इनकी दो शाखाएं थीं और दोनों का आरंभ शक आक्रमणकारियों के सरदारों ने किया। | ||
+ | *एक शाखा थी पश्चिमी क्षत्रपों की। ये महाराष्ट्र में थे और कदाचित् इनकी राजधानी नासिक थी। इसका सबसे प्रतापी राजा नैहपान था। [[सातवाहन]] शासक गौतमी पुत्र सातकर्णी ने इसे परास्त किया। | ||
+ | *दूसरी शाखा उज्जैयनी के महाक्षत्रपों की थी। इस शाखा ने 130 ई0 से 388 ई0 तक राज्य किया। यह राजवंश शीघ्र ही अपना विदेशीपन छोड़कर भारतीय बन गया। इन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण किया और [[संस्कृत]] को अपनी राजभाषा बनाया। |
०८:२४, २४ जून २००९ का अवतरण
महाक्षत्रप, क्षत्रप
'क्षत्रप' शब्द का प्रयोग ईरान से शु्रू हुआ । यह राज्यों के मुखिया के लिए प्रयुक्त होता था । दारा (डेरियस या दरियुव्ह) के समय में राज्यपालों के लिए यह उपाधि प्रयुक्त होती थी । यही बाद में महाक्षत्रप कही जाने लगी । भारत में क्षत्रप शब्द आज भी राजनीति में प्रयोग किया जाता है ।
शकों की संयुक्त शासन- प्रणाली में वरिष्ठ शासक को “महाक्षत्रप’ की उपाधि मिलती थी तथा अन्य कनिष्ठ शासक 'क्षत्रप’ कहे जाते थे । पश्चिमी क्षत्रपों के मिले सिक्कों से पता चलता है कि “महाक्षत्रप- उपाधि’ सबको नहीं मिलती है ।
इनकी दो शाखाएं थीं और दोनों का आरंभ शक आक्रमणकारियों के सरदारों ने किया।
- एक शाखा थी पश्चिमी क्षत्रपों की। ये महाराष्ट्र में थे और कदाचित् इनकी राजधानी नासिक थी। इसका सबसे प्रतापी राजा नैहपान था। सातवाहन शासक गौतमी पुत्र सातकर्णी ने इसे परास्त किया।
- दूसरी शाखा उज्जैयनी के महाक्षत्रपों की थी। इस शाखा ने 130 ई0 से 388 ई0 तक राज्य किया। यह राजवंश शीघ्र ही अपना विदेशीपन छोड़कर भारतीय बन गया। इन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण किया और संस्कृत को अपनी राजभाषा बनाया।