"मांधाता" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पंक्ति ८: पंक्ति ८:
  
 
[[श्रेणी:कोश]] [[श्रेणी:पौराणिक इतिहास]]
 
[[श्रेणी:कोश]] [[श्रेणी:पौराणिक इतिहास]]
 +
__INDEX__

११:४३, १२ नवम्बर २००९ का अवतरण



Logo.jpg पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार कर सकते हैं। हिंदी (देवनागरी) टाइप की सुविधा संपादन पन्ने पर ही उसके नीचे उपलब्ध है।

मान्धाता / Mandhata

रात्रि होने पर शत्रुघ्न ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्‍त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं । च्यवन ऋषि बोले, " हे रघुनन्दन! शिवजी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं । तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे ।" शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, " हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्‍व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज इन्द्र को युदध के लिये ललकारा । तब इन्द्र ने उन से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो ? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो । यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा । परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया । जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी । उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला । इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है । हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये । परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे