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रात्रि होने पर [[शत्रुघ्न]] ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं । च्यवन ऋषि बोले, " हे रघुनन्दन! [[शिव]]जी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं । तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे ।" | रात्रि होने पर [[शत्रुघ्न]] ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं । च्यवन ऋषि बोले, " हे रघुनन्दन! [[शिव]]जी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं । तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे ।" | ||
शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, " हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज [[इन्द्र]] को युदध के लिये ललकारा । तब इन्द्र ने उन से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो ? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो । यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा । परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया । जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी । | शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, " हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज [[इन्द्र]] को युदध के लिये ललकारा । तब इन्द्र ने उन से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो ? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो । यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा । परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया । जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी । | ||
उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला । इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है । हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये । परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे | उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला । इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है । हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये । परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे | ||
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+ | [[श्रेणी:कोश]] [[श्रेणी:पौराणिक इतिहास]] |
०७:१८, २४ जुलाई २००९ का अवतरण
मान्धाता / Mandhata
रात्रि होने पर शत्रुघ्न ने महर्षि च्यवन से लवणासुर के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त की तथा पूछा कि उस शूल से कौन-कौन शूरवीर मारे गये हैं । च्यवन ऋषि बोले, " हे रघुनन्दन! शिवजी के इस त्रिशूल से अब तक असंख्य योद्धा मारे जा चुके हैं । तुम्हारे कुल में तुम्हारे पूर्वज राजा मान्धाता भी इसी के द्वारा मारे गये थे ।" शत्रुघ्न द्वारा पूरा विवरण पूछे जाने पर महर्षि ने बताया, " हे राज्! पूर्वकाल में महाराजा युवनाश्व के पुत्र महाबली मान्धाता ने स्वर्ग विजय की इच्छा से देवराज इन्द्र को युदध के लिये ललकारा । तब इन्द्र ने उन से कहा कि राजा! अभी तो तुम समस्त पृथ्वी को ही वश में नहीं कर सके हो, फिर देवलोक पर आक्रमण की इच्छा क्यों करते हो ? तुम पहले मधुवन निवासी लवणासुर पर विजय प्राप्त करो । यह सुनकर राजा पृथ्वी पर लौट आये और लवणासुर से युद्ध करने के लिये उसके पास अपना दूत भेजा । परन्तु उस नरभक्षी लवण ने उस दूत का ही भक्षण कर लिया । जब राजा को इसका पता चला तो उन्होंने क्रोधित होकर उस पर बाणों की प्रचण्ड वर्षा प्रारम्भ कर दी । उन बाणों की असह्य पीड़ा से पीड़ित हो उस राक्षस ने शंकर से प्राप्त उस शूल को उठाकर राजा का वध कर डाला । इस प्रकार उस शूल में बड़ा बल है । हे रघुकुलश्रेष्ठ! मान्धाता को इस शूल के विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतः वे धोखे में मारे गये । परन्तु तुम निःसन्देह ही उस राक्षस को मारने में सफल होगे