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इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है।मालवा ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है । मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा [[राजस्थान]] के दछिणी-पश्चिमी भाग से गठित यह श्रेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है । मालवा का अधिकांश भाग [[चंबल]] नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है । यद्धपि इसकी राजऩीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कॄति एंव भाषा का विकास हुआ है । मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है । समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मी. है। मालवा का उक्त नाम " मालव' नामक जाति के आधार पर पड़ा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना ने सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी । ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये । उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा [[अवन्ति]] को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया । दशार्ण की राजधानी [[विदिशा]] थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी । कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये । इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रुप में " मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है। भारत के अन्य राज्यों की भांति मालवा की भी राजनीतिक सीमाएं राजनीतिक गतिविधियों व प्रशासनिक कारणों से परिवर्तित होती रही है । अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर प्राचीन मालवा के भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं । व्यापक अर्थ में यह उत्तर में [[ग्वालियर]] की दक्षिणी सीमा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा]] घाटी के उत्तरी तट से संलग्न महान विंध्य क्षेत्रों तक तथा पूर्व में विदिशा से लेकर राजपूताना की सीमा के मध्य फैले हुए भू- भाग का प्रतिनिधित्व करता है ।
 
इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है।मालवा ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है । मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा [[राजस्थान]] के दछिणी-पश्चिमी भाग से गठित यह श्रेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है । मालवा का अधिकांश भाग [[चंबल]] नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है । यद्धपि इसकी राजऩीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कॄति एंव भाषा का विकास हुआ है । मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है । समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मी. है। मालवा का उक्त नाम " मालव' नामक जाति के आधार पर पड़ा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना ने सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी । ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये । उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा [[अवन्ति]] को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया । दशार्ण की राजधानी [[विदिशा]] थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी । कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये । इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रुप में " मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है। भारत के अन्य राज्यों की भांति मालवा की भी राजनीतिक सीमाएं राजनीतिक गतिविधियों व प्रशासनिक कारणों से परिवर्तित होती रही है । अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर प्राचीन मालवा के भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं । व्यापक अर्थ में यह उत्तर में [[ग्वालियर]] की दक्षिणी सीमा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा]] घाटी के उत्तरी तट से संलग्न महान विंध्य क्षेत्रों तक तथा पूर्व में विदिशा से लेकर राजपूताना की सीमा के मध्य फैले हुए भू- भाग का प्रतिनिधित्व करता है ।

१०:४४, ५ जनवरी २०१० का अवतरण

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मालवा / मालव / Malava / Malav

इसे प्राचीनकाल में मालवा या मालव के नाम से जाना जाता था, वर्तमान में मध्यप्रदेश प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित है।मालवा ज्वालामुखी के उद्गार से बना पश्चिमी भारत का एक अंचल है । मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग तथा राजस्थान के दछिणी-पश्चिमी भाग से गठित यह श्रेत्र आर्यों के समय से ही एक स्वतंत्र राजनीतिक इकाई रहा है । मालवा का अधिकांश भाग चंबल नदी तथा इसकी शाखाओं द्वारा संचित है, पश्चिमी भाग माही नदी द्वारा संचित है । यद्धपि इसकी राजऩीतिक सीमायें समय समय पर थोड़ी परिवर्तित होती रही तथापि इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कॄति एंव भाषा का विकास हुआ है । मालवा के अधिकांश भाग का गठन जिस पठार द्वारा हुआ है उसका नाम भी इसी अंचल के नाम से मालवा का पठार है । समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 496 मी. है। मालवा का उक्त नाम " मालव' नामक जाति के आधार पर पड़ा इस जाति का उल्लेख सर्वप्रथम ई. पू. चौथी सदी में मिलता है, जब इस जाति की सेना ने सिकंदर से युद्ध में पराजित हुई थी । ये मालव प्रारंभ में पंजाब तथा राजपूताना क्षेत्रों के निवासी थी, लेकिन सिकंदर से पराजित होकर वे अवन्ति व उसके आस-पास के क्षेत्रों में बस गये । उन्होंने आकर (दशार्ण) तथा अवन्ति को अपनी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनाया । दशार्ण की राजधानी विदिशा थी तथा अवन्ति की राजधानी उज्जयिनी थी । कालांतर में यही दोनों प्रदेश मिलकर मालवा कहलाये । इस प्रकार एक भौगोलिक घटक के रुप में " मालवा' का नाम लगभग प्रथम ईस्वी सदी में मिलता है। भारत के अन्य राज्यों की भांति मालवा की भी राजनीतिक सीमाएं राजनीतिक गतिविधियों व प्रशासनिक कारणों से परिवर्तित होती रही है । अनेक ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं भौगोलिक स्थिति के आधार पर प्राचीन मालवा के भौगोलिक विस्तार के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं । व्यापक अर्थ में यह उत्तर में ग्वालियर की दक्षिणी सीमा से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी के उत्तरी तट से संलग्न महान विंध्य क्षेत्रों तक तथा पूर्व में विदिशा से लेकर राजपूताना की सीमा के मध्य फैले हुए भू- भाग का प्रतिनिधित्व करता है ।