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| style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #D0D09D;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#FFD9B3;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''सूक्ति और विचार'''</span></div>  
 
| style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #D0D09D;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#FFD9B3;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''सूक्ति और विचार'''</span></div>  
 
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[[चित्र:Gita-Krishna-1.jpg|right|80px|कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हुए]]
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* यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- श्रीमद्भागवत गीता'''
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[[Image:Gita-Krishna-1.jpg|right|80px|कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हुए]]  
* इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। '''-विनोबा भावे'''
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* संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया -'''डा॰ राम मनोहर लोहिया'''
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*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- श्रीमद्भागवत गीता'''  
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*इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। '''-विनोबा भावे'''  
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*संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया -'''डा॰ राम मनोहर लोहिया'''
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| style="background-color:#FFFFFF;border:1px solid #B6DADA;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#C4E1E1;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''ब्रज शब्द से अभिप्राय'''</span></div>  
 
| style="background-color:#FFFFFF;border:1px solid #B6DADA;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#C4E1E1;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''ब्रज शब्द से अभिप्राय'''</span></div>  
 
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ब्रज शब्द से अभिप्राय सामान्यत: मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का क्षेत्र समझा जाता है। [[वेद|वैदिक साहित्य]] में ब्रज शब्द का प्रयोग प्राय: पशुओं के समूह, उनके चारागाह (चरने के स्थान) या
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उनके बाडे़ के अर्थ में है। [[रामायण]], [[महाभारत]] और समकालीन संस्कृत साहित्य में सामान्यत: यही अर्थ '[[ब्रज]]' का संदर्भ है। 'स्थान' के अर्थ में ब्रज शब्द का उपयोग [[पुराणों]] में गाहे-बगाहे आया है, विद्वान मानते हैं कि यह [[गोकुल]] के लिये प्रयुक्त है। 'ब्रज' शब्द का चलन भक्ति आंदोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया । [[सूर]], [[मीरां]] (मीरा), [[तुलसीदास]], [[रसखान]] के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं।  
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ब्रज शब्द से अभिप्राय सामान्यत: मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का क्षेत्र समझा जाता है। [[वेद|वैदिक साहित्य]] में ब्रज शब्द का प्रयोग प्राय: पशुओं के समूह, उनके चारागाह (चरने के स्थान) या उनके बाडे़ के अर्थ में है। [[रामायण]], [[महाभारत]] और समकालीन संस्कृत साहित्य में सामान्यत: यही अर्थ '[[ब्रज]]' का संदर्भ है। 'स्थान' के अर्थ में ब्रज शब्द का उपयोग [[पुराणों]] में गाहे-बगाहे आया है, विद्वान मानते हैं कि यह [[गोकुल]] के लिये प्रयुक्त है। 'ब्रज' शब्द का चलन भक्ति आंदोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया । [[सूर]], [[मीरां]] (मीरा), [[तुलसीदास]], [[रसखान]] के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं।  
  
 
कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां (मीरा) से राज-पाट छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनिंयों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है । ब्रज में ही [[स्वामी हरिदास]] का जीवन, 'एक ही वस्त्र और एक मिट्टी का करवा' नियम पालन में बीता और इनका गायन सुनने के लिए राजा महाराजा भी कुटिया के द्वार पर आसन जमाए घन्टों बैठे रहते थे। [[बैजूबावरा]], [[तानसेन]], [[नायक बख़्शू]] ([[ध्रुपद]]-[[धमार]]) जैसे अमर संगीतकारों ने संगीत की सेवा ब्रज में रहकर ही की थी। [[अष्टछाप]] कवियों के अलावा [[बिहारी]], [[अमीर ख़ुसरो]], [[भूषण]], [[घनानन्द]] आदि ब्रज भाषा के कवि, साहित्य में अमर हैं। ब्रज भाषा के साहित्यिक प्रयोग के उदाहरण महाराष्ट्र में तेरहवीं शती में मिलते हैं। बाद में उन्नीसवीं शती तक गुजरात, असम, मणिपुर, केरल तक भी साहित्यिक [[ब्रजभाषा]] का प्रयोग हुआ। ब्रज भाषा के प्रयोग के बिना शास्त्रीय गायन की कल्पना करना भी असंभव है। आज भी फ़िल्मों के गीतों में मधुरता लाने के लिए ब्रज भाषा का ही प्रयोग होता है।  
 
कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां (मीरा) से राज-पाट छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनिंयों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है । ब्रज में ही [[स्वामी हरिदास]] का जीवन, 'एक ही वस्त्र और एक मिट्टी का करवा' नियम पालन में बीता और इनका गायन सुनने के लिए राजा महाराजा भी कुटिया के द्वार पर आसन जमाए घन्टों बैठे रहते थे। [[बैजूबावरा]], [[तानसेन]], [[नायक बख़्शू]] ([[ध्रुपद]]-[[धमार]]) जैसे अमर संगीतकारों ने संगीत की सेवा ब्रज में रहकर ही की थी। [[अष्टछाप]] कवियों के अलावा [[बिहारी]], [[अमीर ख़ुसरो]], [[भूषण]], [[घनानन्द]] आदि ब्रज भाषा के कवि, साहित्य में अमर हैं। ब्रज भाषा के साहित्यिक प्रयोग के उदाहरण महाराष्ट्र में तेरहवीं शती में मिलते हैं। बाद में उन्नीसवीं शती तक गुजरात, असम, मणिपुर, केरल तक भी साहित्यिक [[ब्रजभाषा]] का प्रयोग हुआ। ब्रज भाषा के प्रयोग के बिना शास्त्रीय गायन की कल्पना करना भी असंभव है। आज भी फ़िल्मों के गीतों में मधुरता लाने के लिए ब्रज भाषा का ही प्रयोग होता है।  
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| style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #D0D09D;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#DEDEBC;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''ब्रज की मान्यता'''</span></div>  
 
| style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #D0D09D;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#DEDEBC;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''ब्रज की मान्यता'''</span></div>  
 
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'''मथुरा की बेटी गोकुल की गाय। करम फूटै तौ अनत जाय।''' मथुरा (ब्रज-क्षेत्र) की बेटियों का विवाह ब्रज में ही होने की परम्परा थी और [[गोकुल]] की गायों गोकुल से बाहर भेजने की परम्परा नहीं थी । चूँकि कि पुत्री को 'दुहिता' कहा गया है अर्थात गाय दुहने और गऊ सेवा करने वाली। इसलिए बेटी गऊ की सेवा से वंचित हो जाती है और गायों की सेवा ब्रज जैसी होना बाहर कठिन है। वृद्ध होने पर गायों को कटवा भी दिया जाता था, जो ब्रज में संभव नहीं था। '''ब्रजहिं छोड़ बैकुंठउ न जइहों'''। ब्रज को छोड़ कर स्वर्ग के आनंद भोगने का मन भी नहीं होता। '''मानुस हों तो वही रसखान, बसों ब्रज गोकुल गाँव की ग्वारन।''' इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो ब्रजको अद्भुत बनाते हैं। ब्रज के संतों ने और ब्रजवासियों ने तो कभी मोक्ष की कामना भी नहीं की क्योंकि ब्रज में इह लीला के समाप्त होने पर ब्रजवासी, ब्रज में ही वृक्ष का रूप धारण करता है अर्थात [[ब्रजवासी]] मृत्यु के पश्चात स्वर्गवासी न होकर ब्रजवासी ही रहता है और यह क्रम अनन्त काल से चल रहा है। ऐसी मान्यता है ब्रज की ।  
 
'''मथुरा की बेटी गोकुल की गाय। करम फूटै तौ अनत जाय।''' मथुरा (ब्रज-क्षेत्र) की बेटियों का विवाह ब्रज में ही होने की परम्परा थी और [[गोकुल]] की गायों गोकुल से बाहर भेजने की परम्परा नहीं थी । चूँकि कि पुत्री को 'दुहिता' कहा गया है अर्थात गाय दुहने और गऊ सेवा करने वाली। इसलिए बेटी गऊ की सेवा से वंचित हो जाती है और गायों की सेवा ब्रज जैसी होना बाहर कठिन है। वृद्ध होने पर गायों को कटवा भी दिया जाता था, जो ब्रज में संभव नहीं था। '''ब्रजहिं छोड़ बैकुंठउ न जइहों'''। ब्रज को छोड़ कर स्वर्ग के आनंद भोगने का मन भी नहीं होता। '''मानुस हों तो वही रसखान, बसों ब्रज गोकुल गाँव की ग्वारन।''' इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो ब्रजको अद्भुत बनाते हैं। ब्रज के संतों ने और ब्रजवासियों ने तो कभी मोक्ष की कामना भी नहीं की क्योंकि ब्रज में इह लीला के समाप्त होने पर ब्रजवासी, ब्रज में ही वृक्ष का रूप धारण करता है अर्थात [[ब्रजवासी]] मृत्यु के पश्चात स्वर्गवासी न होकर ब्रजवासी ही रहता है और यह क्रम अनन्त काल से चल रहा है। ऐसी मान्यता है ब्रज की ।  
  
 
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[[Image:Govind-dev-temple-6.jpg|center|80px|गोविन्द देव जी का मंदिर]]
 
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[[ब्रज]] '''&#124;''' [[मथुरा एक झलक]] '''&#124;''' [[वृन्दावन]] '''&#124;''' [[गोवर्धन]] '''&#124;''' [[बरसाना]] '''&#124;''' [[महावन]] '''&#124;''' [[गोकुल]] '''&#124;''' [[बलदेव मन्दिर|बलदेव]] '''&#124;''' [[कृष्ण जन्मभूमि]] '''&#124;''' [[द्वारिकाधीश मन्दिर]] '''&#124;''' [[यमुना]] '''&#124;''' [[बांके बिहारी मन्दिर]] '''&#124;''' [[इस्कॉन मन्दिर]] '''&#124;''' [[रंग नाथ जी का मन्दिर]] '''&#124;''' [[गोविन्द देव जी का मंदिर]]
 
  
| style="background-color:#FFFCF9;border:1px solid #FFD2A6;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#FFEFDF;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''इतिहास...कुछ लेख'''</span></div>
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[[कनिष्क]]
 
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[[फ़ाह्यान]]
 
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[[अक्षौहिणी]]
 
[[अक्षौहिणी]]
 
[[कृष्ण संदर्भ]]
 
[[कृष्ण संदर्भ]]
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[[क्लीसोबोरा]]
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[[आर्य]]
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[[क्षत्रप]]
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[[कृष्ण]]
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[[यमुना के घाट]]
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[[आर्यावर्त]]
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[[उद्धव]]
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[[अस्त्र शस्त्र]]
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[[वृष्णि संघ]]
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संसार में एक कृष्ण ही हुआ<br />
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जिसने दर्शन को गीत बनाया <br />
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-डा॰ राम मनोहर लोहिया
 
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| style="background-color:#FDFDFF;border:1px solid #B0B0FF;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #E6E6FF;;"><span style="color: rgb(153, 0, 0);">'''…लेख, नज़रिया, कथा, कविता'''</span></div>  
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| style="background-color:#FDFDFF;border:1px solid #B0B0FF;padding:5px;" valign="top" | <div style="background-color: #E6E6FF;;"><span style="color: rgb(153, 0, 0);">'''…लेख, नज़रिया, कथा, कविता'''</span></div>  
 
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[[चित्र:Vishram-Ghat-11.jpg|100px|center|[[यम द्वितीया]], [[यमुना]] स्नान, [[मथुरा]]]]
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[[Image:Vishram-Ghat-11.jpg|center|100px|यम द्वितिया स्नान]]  
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[[रश्मिरथी तृतीय सर्ग]] '''&#124; '''[[कच देवयानी]] '''&#124;''' [[समुद्र मंथन]] '''&#124;''' [[गंगावतरण]] '''&#124;''' [[सावित्री सत्यवान]] '''&#124;''' [[ययाति]] '''&#124;''' [[शर्मिष्ठा]]  
 
[[रश्मिरथी तृतीय सर्ग]] '''&#124; '''[[कच देवयानी]] '''&#124;''' [[समुद्र मंथन]] '''&#124;''' [[गंगावतरण]] '''&#124;''' [[सावित्री सत्यवान]] '''&#124;''' [[ययाति]] '''&#124;''' [[शर्मिष्ठा]]  
  
| style="background-color:#F8FEEB;border:1px solid #DBFA9C;padding:10px;" | <div style="background-color: #EAFDC4">'''साहित्य और दर्शन'''</div>  
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| style="background-color:#F8FEEB;border:1px solid #DBFA9C;padding:5px;" | <div style="background-color: #EAFDC4">'''दर्शन और कला…कुछ लेख'''</div>  
 
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[[चित्र:Kambojika-2.jpg|center|100px|महाराज्ञी कम्बोजिका]]
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[[वेद|वेद]] '''&#124;''' [[उपनिषद|उपनिषद]] '''&#124;''' [[रामायण|रामायण]] '''&#124;''' [[महाभारत|महाभारत]] '''&#124;''' [[गीता|गीता]] '''&#124;''' [[पुराण|पुराण]] '''&#124;''' [[कथा साहित्य|कथा साहित्य]] '''&#124;''' [[पुस्तकें|अन्य पुस्तकें]] '''&#124;''' [[मूर्ति कला|ब्रज की मूर्ति कला]]  
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[[Image:Kambojika-2.jpg|center|100px|महाराज्ञी कम्बोजिका]]  
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[[चाणक्य]]
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[[छान्दोग्य उपनिषद]]
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[[पतंजलि]]  
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[[चौंसठ कलाएँ]]
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[[नृत्य-नाट्य कला]]
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[[तानसेन]]
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[[बैजूबावरा]]
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[[हरिदास]]
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| style="background-color:#FFF2FF;border:1px solid #FF95FF;padding:10px;" | <div style="background-color: #FFD7FF">'''…इतिहास, कला, हम-ब्रजवासी'''</div>  
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| style="background-color:#FFF2FF;border:1px solid #FF95FF;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #FFD7FF">'''पौराणिक पात्र और ॠषि-मुनि'''</div>  
 
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[[चित्र:Raskhan-1.jpg|80px|center|रसखान समाधि]]
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[[पाण्डु]] 
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[[धृतराष्ट्र]]
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[[परीक्षित]]
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[[सुमित्रा]] 
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[[शिशुपाल]]
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[[वेदव्यास]]
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[[विदुर]]
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[[शबरी]] 
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[[रावण]] 
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[[मेघनाद]] 
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[[बालि]]
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[[युधिष्ठिर]]
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[[मारीच]]
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[[अश्वत्थामा]]
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[[कर्ण]]
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[[गांधारी]]
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[[जयद्रथ]]
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[[संजय]]
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[[शिखंडी]]
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[[अभिमन्यु]]
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[[एकलव्य]]
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[[घटोत्कच]]
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[[जरासंध]]
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[[कैकेयी]]
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[[जनक]]
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[[अगस्त्य]]
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[[अत्रि]]
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[[कश्यप]]
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[[कात्यायन]]
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[[नारद]]
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[[भारद्वाज]]
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[[याज्ञवल्क्य]]
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[[वसिष्ठ]]
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[[वाल्मीकि]]
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[[विश्वामित्र]]
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[[व्यास]]
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[[शुक्राचार्य]]
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[[सत्यकाम]]
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| style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #FFBBBB">'''साहित्य…कुछ लेख'''</div>
 
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[[स्वतंत्रता सेनानी सूची]] '''&#124;''' [[सनातन गोस्वामी]] '''&#124;''' [[गोकुल सिंह]] '''&#124;''' [[सूरदास]] '''&#124;''' [[रसखान]]
 
  
| style="border:1px solid #FFA6A6;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #FFBBBB">'''वीथिका (गैलरी)'''</div>
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[[Image:Raskhan-2.jpg|center|100px|रसखान के दोहे]]
 
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[[चित्र:Kusum-sarovar-01.jpg|center|80px|कुसुम सरोवर]]
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<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;">
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[[अमीर ख़ुसरो]]
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[[ब्रजभाषा]]
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[[अंगुत्तरनिकाय]]
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[[अश्वघोष]]
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[[कालिदास]]
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[[बिहारी]]
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[[हितहरिवंश]]
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[[विडियो|विडियो]] '''&#124; '''[[मथुरा चित्र वीथिका]] '''&#124;''' [[संग्रहालय मथुरा]] '''&#124;''' [[जैन संग्रहालय मथुरा]]
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<span style="color: rgb(102, 102, 0);">
 
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गोरी सोवे सेज पर<br />
 +
मुख पर डारे केस।<br />
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चल ख़ुसरो घर आपने<br />
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सांझ भई चहुं देस।।<br />
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-अमीर ख़ुसरो
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| style="background-color:#FEFCE9;border:1px solid #FBE773;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #FDF2B5">'''…पर्व, उत्सव, त्यौहार'''</div>  
 
| style="background-color:#FEFCE9;border:1px solid #FBE773;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #FDF2B5">'''…पर्व, उत्सव, त्यौहार'''</div>  
 
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[[Image:Kansa-Fair-2.jpg|center|90px|कंस मेला]]
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[[Image:Kansa-Fair-2.jpg|center|100px|कंस मेला]]  
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[[विहार पंचमी]] '''&#124;''' [[आर्य समाज|आर्य समाज सम्मेलन]] '''&#124;''' [[कंस मेला]] '''&#124;''' [[देवोत्थान एकादशी]] '''&#124;''' [[अक्षय नवमी]] '''&#124;''' [[गोपाष्टमी]] '''&#124;''' [[गोवर्धन पूजा]] '''&#124;''' [[होली बरसाना विडियो 1|लठा मार-होली बरसाना के विडियो]] '''&#124;''' [[होली बल्देव विडियो 1|बल्देव होली के विडियो]] '''&#124;''' [[रथ यात्रा वृन्दावन|रथ-यात्रा के विडियो]]  
 
[[विहार पंचमी]] '''&#124;''' [[आर्य समाज|आर्य समाज सम्मेलन]] '''&#124;''' [[कंस मेला]] '''&#124;''' [[देवोत्थान एकादशी]] '''&#124;''' [[अक्षय नवमी]] '''&#124;''' [[गोपाष्टमी]] '''&#124;''' [[गोवर्धन पूजा]] '''&#124;''' [[होली बरसाना विडियो 1|लठा मार-होली बरसाना के विडियो]] '''&#124;''' [[होली बल्देव विडियो 1|बल्देव होली के विडियो]] '''&#124;''' [[रथ यात्रा वृन्दावन|रथ-यात्रा के विडियो]]  
  
| style="border:1px solid #B7D9FF;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color: #E8F3FF"><span style="color: rgb(153, 51, 102);">'''...तथ्य-आस्था-मिथक'''</span></div>  
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| style="background-color:#FCFDFE;border:1px solid #BBC6E1;padding:10px;" valign="top" | <div style="background-color:#D3D8EB;"><span style="color: rgb(153, 51, 0);">'''पौराणिक स्थान'''</span></div>  
 
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[[Image:Krishn-title.jpg|center|100px|कृष्ण]]
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[[Image:Keshi-Ghat-1.jpg|center|100px|केशी घाट]]  
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[[अक्षौहिणी]] '''&#124;''' [[क्षत्रप]] '''&#124;''' [[कृष्ण]] '''&#124;''' [[यमुना के घाट]] '''&#124;''' [[अमीर ख़ुसरो]] '''&#124;''' [[ब्रजभाषा]] '''&#124;''' [[कृष्ण जन्मभूमि]] '''&#124;''' [[राधाकुण्ड]] '''&#124;''' [[कालिदास]] '''&#124;''' [[बलदेव मन्दिर]] '''&#124;''' [[तक्षशिला]] '''&#124;''' [[महाजनपद]] '''&#124;''' [[आर्यावर्त]] '''&#124;''' [[उद्धव]] '''&#124;''' [[क्लीसोबोरा]] '''&#124;''' [[छान्दोग्य उपनिषद]]  
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[[वाराणसी]]
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[[प्रयाग]]
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[[महाजनपद]]
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[[तक्षशिला]]
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[[द्वारका]]
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[[साकेत]]
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[[सारनाथ]]
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[[इन्द्रप्रस्थ]]
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[[मधुवन]]
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[[बहुलावन]]
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[[विदिशा]]
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[[पाटलिपुत्र]]
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[[कुशीनगर]]
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[[हरिद्वार]]
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१४:४०, ९ जनवरी २०१० का अवतरण

कुल पृष्ठों की संख्या ७,९४२

कुल लेखों की संख्या ३,०५०

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…हमारी-आपकी

  • इसमें आपकी भी पूरी भागीदारी रहेगी ।
  • यदि आपके पास ब्रज से संबंधित कोई महत्वपूर्ण फ़ोटो, लेख, किताब, तथ्य, संस्मरण, सांस्कृतिक विडियो क्लिप आदि है, तो आप ब्रज डिस्कवरी में जुड़वा सकते हैं ।
  • ब्रज संस्कृति का जन्म और विकास का केन्द्र यमुना नदी है । बढ़ते प्रदूषण के कारण यदि यमुना सूख गयी तो ब्रज संस्कृति पर इसका क्या असर होगा वह हम सरस्वती, सिन्धु नदी और नील नदी के पास विकसित हुईं सभ्यताओं पतन के उदाहरण से समझ सकते हैं ।
  • भूमंडलीकरण के दौर में हम-आप और हमारा ब्रज क्षेत्र, प्रगति के रास्ते पर अपना गौरव बनाये रखे यही प्रयास है...
…भौगोलिक स्थिति

ब्रज भाषा, रीति रिवाज़, पहनावा और ऐतिहासिक तथ्य इस सीमा का सहज आधार है।

  • मथुरा-वृन्दावन ब्रज के केन्द्र हैं।
  • मथुरा-वृन्दावन की भौगोलिक स्थिति इस प्रकार है- एशिया > भारत > उत्तर प्रदेश > मथुरा

- उत्तर- 27° 41' - पूर्व -77° 41'

  • मार्ग स्थिति - राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -2

दिल्ली-आगरा मार्ग पर दिल्ली से 146 किलो मीटर

सूक्ति और विचार

कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हुए
  • यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता
  • इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। -विनोबा भावे
  • संसार में एक कृष्ण ही हुआ जिसने दर्शन को गीत बनाया -डा॰ राम मनोहर लोहिया
ब्रज शब्द से अभिप्राय

ब्रज शब्द से अभिप्राय सामान्यत: मथुरा ज़िला और उसके आस-पास का क्षेत्र समझा जाता है। वैदिक साहित्य में ब्रज शब्द का प्रयोग प्राय: पशुओं के समूह, उनके चारागाह (चरने के स्थान) या उनके बाडे़ के अर्थ में है। रामायण, महाभारत और समकालीन संस्कृत साहित्य में सामान्यत: यही अर्थ 'ब्रज' का संदर्भ है। 'स्थान' के अर्थ में ब्रज शब्द का उपयोग पुराणों में गाहे-बगाहे आया है, विद्वान मानते हैं कि यह गोकुल के लिये प्रयुक्त है। 'ब्रज' शब्द का चलन भक्ति आंदोलन के दौरान पूरे चरम पर पहुँच गया। चौदहवीं शताब्दी की कृष्ण भक्ति की व्यापक लहर ने ब्रज शब्द की पवित्रता को जन-जन में पूर्ण रूप से प्रचारित कर दिया । सूर, मीरां (मीरा), तुलसीदास, रसखान के भजन तो जैसे आज भी ब्रज के वातावरण में गूंजते रहते हैं।

कृष्ण भक्ति में ऐसा क्या है जिसने मीरां (मीरा) से राज-पाट छुड़वा दिया और सूर की रचनाओं की गहराई को जानकर विश्व भर में इस विषय पर ही शोध होता रहा कि सूर वास्तव में दृष्टिहीन थे भी या नहीं। संगीत विशेषज्ञ मानते हैं कि ब्रज में सोलह हज़ार राग रागनिंयों का निर्माण हुआ था। जिन्हें कृष्ण की रानियाँ भी कहा जाता है । ब्रज में ही स्वामी हरिदास का जीवन, 'एक ही वस्त्र और एक मिट्टी का करवा' नियम पालन में बीता और इनका गायन सुनने के लिए राजा महाराजा भी कुटिया के द्वार पर आसन जमाए घन्टों बैठे रहते थे। बैजूबावरा, तानसेन, नायक बख़्शू (ध्रुपद-धमार) जैसे अमर संगीतकारों ने संगीत की सेवा ब्रज में रहकर ही की थी। अष्टछाप कवियों के अलावा बिहारी, अमीर ख़ुसरो, भूषण, घनानन्द आदि ब्रज भाषा के कवि, साहित्य में अमर हैं। ब्रज भाषा के साहित्यिक प्रयोग के उदाहरण महाराष्ट्र में तेरहवीं शती में मिलते हैं। बाद में उन्नीसवीं शती तक गुजरात, असम, मणिपुर, केरल तक भी साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ। ब्रज भाषा के प्रयोग के बिना शास्त्रीय गायन की कल्पना करना भी असंभव है। आज भी फ़िल्मों के गीतों में मधुरता लाने के लिए ब्रज भाषा का ही प्रयोग होता है।

ब्रज की मान्यता

मथुरा की बेटी गोकुल की गाय। करम फूटै तौ अनत जाय। मथुरा (ब्रज-क्षेत्र) की बेटियों का विवाह ब्रज में ही होने की परम्परा थी और गोकुल की गायों गोकुल से बाहर भेजने की परम्परा नहीं थी । चूँकि कि पुत्री को 'दुहिता' कहा गया है अर्थात गाय दुहने और गऊ सेवा करने वाली। इसलिए बेटी गऊ की सेवा से वंचित हो जाती है और गायों की सेवा ब्रज जैसी होना बाहर कठिन है। वृद्ध होने पर गायों को कटवा भी दिया जाता था, जो ब्रज में संभव नहीं था। ब्रजहिं छोड़ बैकुंठउ न जइहों। ब्रज को छोड़ कर स्वर्ग के आनंद भोगने का मन भी नहीं होता। मानुस हों तो वही रसखान, बसों ब्रज गोकुल गाँव की ग्वारन। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हैं जो ब्रजको अद्भुत बनाते हैं। ब्रज के संतों ने और ब्रजवासियों ने तो कभी मोक्ष की कामना भी नहीं की क्योंकि ब्रज में इह लीला के समाप्त होने पर ब्रजवासी, ब्रज में ही वृक्ष का रूप धारण करता है अर्थात ब्रजवासी मृत्यु के पश्चात स्वर्गवासी न होकर ब्रजवासी ही रहता है और यह क्रम अनन्त काल से चल रहा है। ऐसी मान्यता है ब्रज की ।

इतिहास...कुछ लेख

बुद्ध
<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;">

कनिष्क फ़ाह्यान हुएन-सांग गोकुल सिंह हेमू मेगेस्थनीज महमूद ग़ज़नवी अहमदशाह अब्दाली राबाटक लेख सूरजमल अक्षौहिणी कृष्ण संदर्भ क्लीसोबोरा आर्य </sort2>

...तथ्य-आस्था-मिथक

कृष्ण

<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;"> क्षत्रप कृष्ण यमुना के घाट आर्यावर्त उद्धव अस्त्र शस्त्र वृष्णि संघ </sort2>


संसार में एक कृष्ण ही हुआ
जिसने दर्शन को गीत बनाया
-डा॰ राम मनोहर लोहिया

…लेख, नज़रिया, कथा, कविता

यम द्वितिया स्नान

रश्मिरथी तृतीय सर्ग | कच देवयानी | समुद्र मंथन | गंगावतरण | सावित्री सत्यवान | ययाति | शर्मिष्ठा

दर्शन और कला…कुछ लेख

महाराज्ञी कम्बोजिका

<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;"> चाणक्य छान्दोग्य उपनिषद पतंजलि चौंसठ कलाएँ नृत्य-नाट्य कला तानसेन बैजूबावरा हरिदास </sort2>

पौराणिक पात्र और ॠषि-मुनि

<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;"> पाण्डु धृतराष्ट्र परीक्षित सुमित्रा शिशुपाल वेदव्यास विदुर शबरी रावण मेघनाद बालि युधिष्ठिर मारीच अश्वत्थामा कर्ण गांधारी जयद्रथ संजय शिखंडी अभिमन्यु एकलव्य घटोत्कच जरासंध कैकेयी जनक अगस्त्य अत्रि कश्यप कात्यायन नारद भारद्वाज याज्ञवल्क्य वसिष्ठ वाल्मीकि विश्वामित्र व्यास शुक्राचार्य सत्यकाम सप्तर्षि </sort2>

साहित्य…कुछ लेख

रसखान के दोहे

<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;"> अमीर ख़ुसरो ब्रजभाषा अंगुत्तरनिकाय अश्वघोष कालिदास बिहारी हितहरिवंश </sort2>


गोरी सोवे सेज पर
मुख पर डारे केस।
चल ख़ुसरो घर आपने
सांझ भई चहुं देस।।
-अमीर ख़ुसरो

…पर्व, उत्सव, त्यौहार

कंस मेला

विहार पंचमी | आर्य समाज सम्मेलन | कंस मेला | देवोत्थान एकादशी | अक्षय नवमी | गोपाष्टमी | गोवर्धन पूजा | लठा मार-होली बरसाना के विडियो | बल्देव होली के विडियो | रथ-यात्रा के विडियो

पौराणिक स्थान

केशी घाट

<sort2 type="inline" separator="&sp;|&sp;"> वाराणसी प्रयाग महाजनपद तक्षशिला द्वारका साकेत सारनाथ माहिष्मती इन्द्रप्रस्थ मधुवन बहुलावन विदिशा पाटलिपुत्र कुशीनगर हरिद्वार चित्रकूट </sort2>

…प्रजातांत्रिक व्यवस्था

  • आश्चर्यजनक है कि कृष्ण के समय से पहले ही मथुरा में एक प्रकार की प्रजातांत्रिक व्यवस्था थी।
  • अंधक और वृष्णि, दो संघ परोक्ष मतदान प्रक्रिया से अपना मुखिया चुनते थे।
  • उग्रसेन अंधक संघ के मुखिया थे, जिनका पुत्र कंस एक निरंकुश शासक बनना चाहता था।
  • अक्रूर ने कृष्ण से कंस का वध करवा कर प्रजातंत्र की रक्षा करवाई।
  • वृष्णि संघ के होने के कारण द्वारका के राजा, कृष्ण बने।
  • दूसरे उदाहरण में बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार बुद्ध ने मथुरा आगमन पर अपने शिष्य आनन्द से मथुरा के संबंध में कहा है कि "यह आदि राज्य है, जिसने अपने लिए राजा (महासम्मत) चुना था।"
…इतिहास क्रम

शुभ यात्रा...

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