यज्ञ

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यज्ञ

  • यज्ञ पांच प्रकार के माने जाते हैं:
  1. लोक,
  2. क्रिया,
  3. सनातन गृह,
  4. पंचभूत तथा
  5. मनुष्य।

यज्ञ के अंग

  • यज्ञ के चारों अंग हैं:
  1. स्नान,
  2. दान,
  3. होम और
  4. जप

यज्ञ के प्रकार

अश्वमेध यज्ञ

अश्वमेध मुख्यत: राजनीतिक यज्ञ था और इसे वही सम्राट कर सकता था, जिसका अधिपत्य अन्य सभी नरेश मानते थे। आपस्तम्ब: में लिखा है:<balloon title="राजा सार्वभौम: अश्वमेधेन यजेत्। नाप्यसार्वभौम:" style="color:blue">*</balloon> सार्वभौम राजा अश्वमेध करे असार्वभौम कदापि नहीं। यह यज्ञ उसकी विस्तृत विजयों, सम्पूर्ण अभिलाषाओं की पूर्ति एवं शक्ति तथा साम्राज्य की वृद्धि का द्योतक होता था।

राजसूय यज्ञ

ऐतरेय ब्राह्मण<balloon title="(ऐतरेय ब्राह्मण 8॰20)" style="color:blue">*</balloon> इस यज्ञ के करने वाले महाराजों की सूची प्रस्तुत करता है, जिन्होंने अपने राज्यारोहण के पश्चात पृथ्वी को जीता एवं इस यज्ञ को किया। इस प्रकार यह यज्ञ सम्राट का प्रमुख कर्तव्य समझा जाने लगा। जनता इसमें भाग लेने लगी एवं इसका पक्ष धार्मिक की अपेक्षा अधिक सामाजिक होता गया।

पौराणिक महत्व

वैदिक यज्ञों में अश्वमेध यज्ञ का महत्वपूर्ण स्थान है। यह महाक्रतुओं में से एक है।

  • ॠग्वेद में इससे सम्बन्धित दो मन्त्र हैं।
  • शतपथ ब्राह्मण<balloon title="शतपथ ब्राह्मण 13॰1-5)" style="color:blue">*</balloon> में इसका विशद वर्णन प्राप्त होता है।
  • तैत्तिरीय ब्राह्मण<balloon title="तैत्तिरीय ब्राह्मण 3॰8-1" style="color:blue">*</balloon>,
  • कात्यायनीय श्रोतसूत्र<balloon title="कात्यायनीय श्रोतसूत्र 20" style="color:blue">*</balloon>,
  • आपस्तम्ब:<balloon title="आपस्तम्ब 20" style="color:blue">*</balloon>,
  • आश्वलायन<balloon title="आश्वलायन 10॰6" style="color:blue">*</balloon>,
  • शंखायन<balloon title="शंखायन 16" style="color:blue">*</balloon> तथा दूसरे समान ग्रन्थों में इसका वर्णन प्राप्त होता है।
  • महाभारत<balloon title="(महाभारत 10॰71॰14)" style="color:blue">*</balloon> में महाराज युधिष्ठिर द्वारा कौरवौं पर विजय प्राप्त करने के पश्चात पाप मोचनार्थ किये गये अश्वमेध यज्ञ का विशद वर्णन है।