"यमुना के घाट" के अवतरणों में अंतर

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तत्राथ मुञ्चते प्राणान् मम् लोकं स गच्छति ।।
 
तत्राथ मुञ्चते प्राणान् मम् लोकं स गच्छति ।।
 
                             (आदिवाराह पुराण)
 
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(5) अस्ति क्षेत्रं परं गुह्म तिन्दुकं नाम क्रमत: ।  
 
(5) अस्ति क्षेत्रं परं गुह्म तिन्दुकं नाम क्रमत: ।  
 
   तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! मम लोके महीयते ।।
 
   तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! मम लोके महीयते ।।
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१०:०४, ७ जुलाई २००९ का अवतरण

यमुना के घाट / Ghats of Yamuna

मथुरा में श्रीयमुना अर्द्धचन्द्राकार होकर बह रही हैं । बीचोंबीच में विश्राम घाट, अवस्थित है । उसके दक्षिण भाग में क्रमानुसार अविमुक्त तीर्थ, गुह्म तीर्थ, प्रयाग तीर्थ, कनखल तीर्थ, तिन्दुक तीर्थ, सूर्य तीर्थ, बट स्वामी तीर्थ, ध्रुव तीर्थ, बोधितीर्थ, ऋषि तीर्थ, मोक्षतीर्थ, कोटि तीर्थ– ये बारह घाट तथा उत्तर में नवतीर्थ, (असी तीर्थ) संजमन तीर्थ, धारापत्तन तीर्थ, नागतीर्थ, धण्टा–भरणक तीर्थ, ब्रह्म तीर्थ, सोमतीर्थ, सरस्वती –पतन तीर्थ, चक्रतीर्थ, दसाश्वमेध तीर्थ, विहनराज तीर्थ, कोटि तीर्थ– ये बारह घाट अवस्थित हैं । भारत के सारे प्रधान–प्रधान तीर्थ एवं स्वयं–तीर्थराज प्रयाग यमुना के घाटों पर श्रीयमुना महारानी की छत्र–छाया में भगवान् श्रीकृष्णकी आराधना करते हैं । चातुर्मास्य काल में ये तीर्थसमूह विशेष रूप से यहाँ आराधना करते हैं ।

  1. अविमुक्ततीर्थ– यहाँ पर स्वयं काशी विश्वनाथ महादेव भगवद् आराधना करते हैं। इस तीर्थ में स्नान करनेवाले या प्राण त्याग करने वाले सहज ही संसार रूप आवागमन से मुक्त होकर भगवत् धाम को प्राप्त करते हैं ।
  2. गुह्म तीर्थ– यहाँ स्नान करने पर संसार के आवागमन से मुक्त होकर भगवत् लोक की प्राप्ति होती हैं ।
  3. प्रयाग तीर्थ– यहाँ तीर्थराज प्रयाग भगवद् आराधना करते हैं । यहीं पर प्रयाग के वेणीमाधव नित्य अवस्थित रहते हैं । यहाँ स्नान करने वाले अग्निष्टोम आदि का फल प्राप्त कर वैकुण्ठ धाम को प्राप्त होते हैं ।
  4. कनखल– इस तीर्थ में महादेव– पार्वती श्रीहरि की आराधना में सदैव तत्पर रहते हैं । जिस प्रकार महादेव शंकर ने दक्ष प्रजापति के ऊपर कृपा कर उसे संसार सागर से मुक्त कर दिया था, उसी प्रकार इस तीर्थ में स्नान करने से ब्रह्मलोक प्राप्त होता है ।
  5. तिन्दुक– यह भी गुह्म तीर्थ है । यहाँ स्नान करने पर भगवद् धाम की प्राप्ति होती है । पास ही में दण्डी घाट है जहाँ श्रीचैतन्य महाप्रभु ने स्नान किया था और अपने नृत्य एवं संकीर्तन से सभी को मुग्ध कर दिया था ।

आजकल इसे बंगाली घाट भी कहते हैं ।

# अविमुक्ते: नर: स्नातो मुक्तिं प्राप्नोत्यसशंयम् ।

तत्राथ मुञ्चते प्राणान् मम् लोकं स गच्छति ।।

                            (आदिवाराह पुराण)

(2) अस्ति चान्यतरं गुह्मं सर्वसंसारमोक्षणम् । तस्मिन्स्नातो नरो देवि ! मम लोके महीयते ।।

                          (आदिवाराह पुराण)

(3) प्रयागनामतीर्थं तु देवानामपि दुर्ल्लभम् । तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! अग्निष्टोमफलं लभेत ।।

                              (आदि पुराण)

(4) तथा कनखलं तीर्थं गुह्म तीर्थं परं मम । स्नानमात्रेण तत्रापि नाकपृष्ठे स मोदते ।।

                           (आदि पुराण)

(5) अस्ति क्षेत्रं परं गुह्म तिन्दुकं नाम क्रमत: ।

  तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! मम लोके महीयते ।।
                               (आदिवाराह पुराण)| 


(6) सूर्य तीर्थ– विरोचन के पुत्र महाराज बलि ने यहाँ सूर्यदेव की आराधना कर मनोवाच्छित फल की प्राप्ति की थी क्योंकि सूर्यदेव अपनी द्वादश कलाओं के साथ यहाँ अपने आराध्यदेव श्रीकृष्ण की आराधना में तत्पर रहते हैं । यहाँ रविवार, संक्रान्ति, सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के योग में स्नान करने से राजसूर्य यज्ञ का फल प्राप्त होता है । तथा मुक्ति होने पर भगवद् धाम की प्राप्ति होती है । पास ही में बलि महाराज का टीला है । जहाँ श्रीमन्दिर में बलि महाराज और उनके आराध्य श्रीवामनदेव का दर्शन है । (7) बटस्वामीतीर्थ– यहाँ भी सूर्यदेव भगवान् नारायण की आराधना करते हैं । सूर्यदेव ही एक नाम बटस्वामी भी है । रविवार के दिन इस तीर्थ में श्रद्धापूर्वक स्नान करने से मनुष्य आरोग्य एवं ऐश्वर्य लाभकर अन्त में परम गति को प्राप्त करता है । (8) ध्रुव तीर्थ– अपनी सौतेली माँ के वाक्यबाण से बिद्ध होने पर अपनी माता सुनीति के निर्देशानुसार पञ्चवर्षीय बालक ध्रुव देवर्षि नारद से यहीं यमुना तट पर मिला था । देवर्षि नारद के आदेशानुसार ध्रुव ने इसी घाट पर स्नान किया तथा देवर्षि नारद से द्वादशाक्षर मन्त्र प्राप्त किया । पुन: यहीं से मधुवन के गंभीर निर्जन एवं उच्च भूमिपर कठोर रूप से भगवदाराधनाकर भगवद्दर्शन प्राप्त किया था । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य ध्रुवलोक में पूजित होते हैं । यहाँ (1) तत: परं सूर्यतीर्थं सर्वपापविमोचनम् । विरोचनेन बलिना सूर्य्यस्त्वाराधित: पुरा ।। आदित्येऽहनि संक्रान्तौ ग्रहणे चन्द्रसूर्य्ययो: । तस्मिन् स्नातो नरो देवि ! राजसूयफलं लभेत् ।।

                          (आदिवराह पुराण) 

(2) तत: पर वटस्वामी तीर्थानां तीर्थमुत्तमम् । वटस्वामीति विख्यातो यत्र देवो दिवाकर: ।। तत्तीर्थं चैव यो भक्त्या रविवारे निषेवते । प्राप्नोत्यारोग्यमैश्वर्य्यमन्ते च गतिमुत्तमाम् ।।

                  (सौर पुराण) 

श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न होते है। । गया में पिण्ड दान करने का फल भी उसे यहाँ प्राप्त हो जाता है । यहाँ प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय के बहुत से महात्मा गुरूपरम्परा की धारा में रहते आये हैं । प्राचीन निम्बादित्य सम्प्रदाय का ब्रजमण्डल में यही एक स्थान बचा हुआ है । (9) ऋषितीर्थ– यहाँ बद्रीधामवाले नर–नारायण ऋषि भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना में तत्पर रहते हैं । यह ध्रुव तीर्थ के दक्षिण में स्थित हैं । यहाँ स्नान करने पर मनुष्य भवगत् लोक को प्राप्त होता है । (10) मोक्ष तीर्थ– दक्षिण भारत के मदुराई तीर्थ, कन्याकुमारी आदि सारे तीर्थ मथुरा पुरी में इस घाट पर भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं । इस मोक्ष तीर्थ में स्नान करने से सहज ही विष्णु के चरणों की सेवारूप मोक्ष की प्राप्ति होती हैं । (11) कोटितीर्थ– यहाँ कोटि–कोटि देववृन्द भगवद् आराधना करने की अभिलाषा करते हैं । इन देवताओं के लिए भी यह दुर्लभ स्थान है । यहाँ स्नान करने से भगवद्लोक की प्राप्ति होती है । (12) बोधितीर्थ– यहाँ भगवान् बुद्ध जीवों के स्वरूप धर्म भगवद् भक्ति का बोध कराते हैं, इसलिए इसका नाम बोधितीर्थ है । कहा जाता है कि रावण ने गुप्त रूप से यहाँ तपस्या की थी । वह त्रेतायुग में एक निर्विशेष ब्रह्मज्ञानी ऋषि था । उसने स्वरचित लंकातार–सूत्र नामक ग्रन्थ में अपने निर्विशेष (1) यत्र ध्रुवेन स्न्तपृमिच्छया परमं तप: । तत्रैत्र स्नानमात्रेण ध्रुवलोके महीयते ।। ध्रुवतीर्थं च वसुधे ! य: श्राद्धं कुरूते नर: । पितृन सन्तारयेत् सर्वान् पितृपक्षे विशेषत: ।।

                (आदि वराह पुराण)

(2) दक्षिणे ध्रुवतीर्थस्य ऋषितीर्थं प्रकीर्तितम ।

 तत्र स्नातो नरो देवि! मम लोक महीयते ।।

(3) दक्षिणे ऋषितीर्थस्य मोक्षतीर्थ वसुन्धरे ।

  स्नानमात्रेण वसुधे ! मोक्षं प्राप्नोति मानव: ।।

(4) तत्रैव कोटितीर्थ तु देवानामपि दुर्ल्लभम् । तत्र स्नानेन दानेन मम लोके महीयते ।। (5) तत्रैत्र बोधितीर्थन्तु पितृणामपि दुर्ल्लभम् ।

पिण्डं दत्वा तु वसुधे ! पितृलोकं स गच्छति ।।

ब्रह्मज्ञान अथवा बौद्धवाद का परिचय दिया है । नि:शक्तिक और ब्रह्मवादी होने के कारण यह सर्वशक्तिमान भगवान् श्रीरामचन्द्र जी से उनकी शक्ति श्रीसीतादेवी का हरण करना चाहता था, किन्तु श्रीरामचन्द्रजी ने उस निर्विशेष ब्रह्मवादी का वंश सहित बध कर दिया । यहाँ स्नान करने से पितृ-पुरूषों का सहज ही उद्धार हो जाता है और वे स्वयं पितृ लोकों को गमन कर सकते हैं । सौभाग्यवान जीव यहाँ यमुना में स्नान कर भगवद् धाम को प्राप्त होते हैं । विश्राम घाट के दक्षिण में भी बारह घाट हैं । ये घाट इस प्रकार हैं– विश्राम घाट के निकट प्रसिद्ध असिकुण्ड है, जहाँ स्नान करने से मनुष्यों के कायिक मानसिक और वाचिक सारे पाप दूर हो जाते हैं । (1) नवतीर्थ– असिकुण्ड के उत्तर में नवतीर्थ है । यहाँ स्नान करने से भक्ति की नवनवायमान रूप में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है । इससे बढ़कर तीर्थ न हुआ है, और न होगा । (2) संयमन तीर्थ– इसका वर्त्तमान नाम स्वामी घाट है । किसी–किसी का कहना है कि महाराज वसुदेव ने नवजात शिशु कृष्ण को गोदी में लेकर यहीं से यमुना पार की थी । यहाँ स्नान करने पर भगवद् धाम की प्राप्ति होती है ।

(3) धारापतन तीर्थ– यहाँ स्नान करने पर मनुष्य सब प्रकार के सुखों को भोग करता हुआ सहजही स्वर्ग को प्राप्त कर लेता है तथा यहाँ प्राण त्याग करने पर भगवद् धाम को गमन करता है । 

(4) नागतीर्थ– यह उत्तम से उत्तम तीर्थ है । यहाँ स्नान करने से पुनरागमन नहीं होता है । भगवान् शेष या अनन्त देव धाम की रक्षा के लिए यहाँ सब समय विराजमान रहते हैं । श्रीवसुदेव महाराज नवजात शिशु कृष्ण को लेकर वर्षा में भीगते हुए जब यमुना को पार कर रहे (1) उत्तरे त्वसिकुण्डाञ्च तीर्थन्तु नवसंश्रकम् । नवतीर्थात् परं तीर्थ न भूतं न भविष्यति ।। (2) तत: संयमनं नाम तीर्थं त्रैलोक्यविश्रुतम् । तत्र स्नातो नरो देवि ! मम लोकं स गच्छति ।। (3) धारासम्पातने स्नात्वा नाकपृष्ठे स मोदते । अथात्र मुज्चते प्राणान् मम लोकं स गच्छति ।। थे, तब यहीं अनन्त देव ने अपने अनन्त फणों को छत्र बनाकर वृष्टि से उनकी रक्षा की थी । (5) घण्टाभरणक तीर्थ– यहाँ स्नान करने से मनुष्य सब प्रकार के पापों से मुक्त होकर सूर्यलोक में गमन करता है । (6) ब्रह्मतीर्थ– यमुना के इस घाट पर अवस्थित होकर लोक पितामह ब्रह्माजी भगवद् आराधना करते हैं । यहाँ स्नान, आचमन, यमुनाजल पान और निवास करने से मनुष्य ब्रह्माजी के माध्यम से विष्णुलोक को प्राप्त करता है । ब्रह्मा के नाम से इसका नाम ब्रह्मतीर्थ पड़ा है । (7) सोमतीर्थ–सोमतीर्थ का दूसरा नाम गौ घाट है । यहाँ यमुना के पवित्र जल से अभिषेक करने पर सारे मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं । (8) सरस्वती पतनतीर्थ– सरस्वती नदी इसी स्थान पर यमुना में मिलती थी । सरस्वती नदी का दूसरा नाम श्रीकृष्णगंगा होने के कारण इसे कृष्णगंगा घाट भी कहते है। । समीप ही दाहिनी ओर गौ घाट या सोमतीर्थ है । इस घाट का सम्बन्ध श्री कृष्ण–द्वैपायन वेदव्यास से है । यहीं पास ही यमुना के एक द्वीप में महर्षि पाराशर और मत्स्यगन्धा सरस्वती से व्यास का जन्म हुआ था । कहा जाता है । कि देवर्षि नारद के उपदेशों के श्रवणकर भक्तियोग के द्वारा पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण की ब्रज, मथुरा और द्वारका की सारी लीलाओं का दर्शनकर यहीं पर श्रीव्यासदेव ने परमहंस संहिता श्रीमद्भागवत की रचना की

1.	अत: परं नागतीर्थं तीर्थानामुत्तमोत्तमम्।

यत्र स्नात्वा दिवं यान्ति ये मृतास्तेऽपुनर्भवा:।। 2. घण्टाभरणकं तीर्थं सर्व्वपापप्रमोचनम्। यस्मिन स्नातो नरो देवि! सूर्य्यलोके महीयते (आदि वाराह पुराण) 3. तीर्थानामुत्तमं तीर्थ ब्रह्मलोकेऽतिविश्रुतम्। तत्र स्नात्वा च पीत्वा च नियतो नियतासन:। ब्रह्मणा समनुज्ञतो विष्णुलोकं स गच्छति।। (आदि वाराह पुराण) 4. सोमतीर्थं तु वसुधे! पवित्रे यमुनाम्भसि। तत्रभिषेकं कुर्वीत सर्वकर्मप्रतिष्ठित: । मोदते सोमलोके तु इदमेव न संशय:।। (आदि वाराह पुराण) थी। ठीक ही है, इस मधुरातिमधुर ब्रजधाम में आराधना किये बिना श्रीकृष्ण की मधुरातिमधुर लीलाओं का दर्शन एवं वर्णन कैसे सम्भव हो सकता है। बहुत से विद्वत् सारग्राही भक्तों का ऐसा ही अभिमत है। यहाँ स्नान करने पर मनुष्य सब प्रकार से पापों से मुक्त होकर भगवद् प्रेम प्राप्त करते हैं। निम्न जाति के व्यक्ति भी यहाँ स्नान करने पर परमहंस जाति अर्थात् परम भक्त हो जाते हैं।

9-चक्रतीर्थ− मथुरा मण्डल में यमुनातट पर स्थित यह तीर्थ सर्वत्र विख्यात है। निकट ही महाराज अम्बरीष का टीला है, जहाँ महाराज अम्बरीष यमुना के किनारे निवासकर शुद्धभक्ति के अंगों के द्वारा भगवद् आराधना करते थे। द्वादशी पारण के समय राजा अम्बरीष के प्रति महर्षि दुर्वासा के व्यवहार से असन्तुष्ट होकर विष्णुचक्र के इनका पीछा किया। दुर्वासा एक वर्ष तक विश्व ब्रह्मण्ड में सर्वत्र यहाँ तक कि ब्रह्मलोक, शिवलोक एवं वैकुण्ड लोक में गये, परन्तु चक्र ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। अन्त में भगवान् विष्णु के परामर्श से भक्त अम्बरीष के निकट लौटने पर उनकी प्रार्थना से चक्र यहीं रूक गया। इस प्रकार ऋषि के प्राणों की रक्षा हुई। यहाँ स्नान करने से ब्रह्महत्या आदि पापों से भी मुक्ति हो जाती है। तथा स्नान करने वाला सुदर्शन चक्र की कृपा से भगवद् दर्शन प्राप्त कर कृतार्थ हो जाता है।

10. दशाश्वमेध तीर्थ− यमुना के इस पवित्र घाट पर ब्रह्माजी ने दश अश्वमेध यज्ञ किये थे। यह स्थान देवर्षि नारद, चतु:सन आदि ऋषियों के द्वारा सदा–सर्वदा पूजित है । यहाँ स्नान करने से मनुष्य को भगवद् धाम की प्राप्ति होती है । (11) विघ्नराज तीर्थ– यहाँ स्नान करने पर मनुष्य सब प्रकार के विघ्नों से मुक्त हो जाता है । विघ्न विनाशक यहाँ सर्वदा निवास कर भगवद् (1) सरस्वत्याञ्च पतनं सर्वपापहरं शुभम् । तत्र स्नात्वा नरो देवि ! अवर्णोऽपि यतिर्भवेत ।।

                       (आदि वराह पुराण) 

(2) चक्रतीर्थं तु विख्यातं माथुरे मम मण्डले । यस्तत्र कुरूते स्नानं त्रिरात्रोपोषितो नर: । स्नानमात्रेण मनुजो मुख्यते ब्रह्महत्यया ।। (3) दशास्वमेधमृषिभि: पूजितं सर्वदा पुरा । तत्र ये स्नान्ति मनुजास्तेषां स्वर्गो न दुर्ल्लभ: ।। आराधना करते हैं । यहाँ स्नान करने से विशेष रूप से भगवान् नृसिंहदेव की कृपा से भक्ति से सारे विघ्न दूर हो जाते हैं । तथा भगवद् धाम की प्राप्ति होती है । (12) कोटितीर्थ– यहाँ स्नान करने से मनुष्य कोटि–कोटि गोदान का फल प्राप्त करता है । पास ही में गोकर्ण तीर्थ है । प्रसिद्ध गोकर्ण ने अपने भाई धुंधुकारी को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उसका प्रेमयोनि से उद्धार किया था । उन्हीं गोकर्ण की भगवद् आराधना का यह स्थल है । मथुरा परिक्रमा में दर्शनीय स्थान उपरोक्त वर्णित चौब्बीस घाटों के अतिरिक्त मथुरा की पञ्चकोसी परिक्रमा के अन्तर्गत निम्नलिखित दर्शनीय स्थान हैं– विश्रामघाट से परिक्रमा आरम्भ करने पर सर्वप्रथम पीपलेश्वर महादेव का दर्शन होता है – पीपलेश्वर महादेव– मथुरा के चार क्षेत्रपालों में से एक हैं । ये मथुरापुरी के पूर्व दिशा में विश्राम घाट के निकट स्थित हैं तथा मथुरा क्षेत्र की सदा रक्षा करते हैं । तदनन्तर वेणी माधव, रामेश्वर, दाऊजी, मदनमोहन, तन्दुकतीर्थ, सूर्यघाट, ध्रुव टीला का दर्शन कर सप्तऋषि टीले पर अत्रि, मरीचि, क्रतु, अग्डीरा, गौतम, वशिष्ठ, पुलस्त्य का दिव्य दर्शन है । ये सप्तऋषि मथुरा धाम में इसी स्थान पर रहकर भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना करते हैं । बलि महाराज का टीला– यहाँ बलि महाराज और वामनदेव जी का दर्शन है । बलि महाराज ने यहाँ भगवान वामनदेव की आराधना की थी । अक्रूरभवन– कुछ आगे बढ़ने पर अक्रूरजी का भवन है, अक्रूरजी कृष्ण बलदेव को मथुरा में अपने इसी वासस्थल पर लाना चाहते थे, किन्तु कृष्ण और बलदेव कंस को मारने के पश्चात् वहाँ आने का वचन देकर अपने पिता श्रीनन्दबाबा के पास मथुरा की सीमा पर ठहर गये थे । (1) तीर्थं तु विघ्नराजस्य पुण्यं पापहरं शुभम् ।

तत्र स्नातं तु मनुजं विघ्नराजो न पीडयेत् । ।

(2) तत: परं कोटितीर्थं परमं शुभम् । तत्रैव स्नानमात्रेण गवां कोटिफलं लभेत ।। (3) ततो गोकर्ण तीर्थाख्यं तीर्थं भुवनविश्रुतम् । विद्यते विश्वनाथस्य विष्णोरत्यन्तवल्लभम् ।।

                           (सभी–आदि वराह पुराण)