रसखान

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रसखान

हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्वपूर्ण स्थान है । 'रसखान' को रस की खान कहा जाता है । इनके काव्य में भक्ति, श्रृगांर रस दोनों प्रधानता से मिलते हैं । रसखान कृष्ण भक्त हैं और प्रभु के सगुण और निर्गुण निराकार रूप के प्रति श्रृध्दालु हैं । रसखान के सगुण कृष्ण लीलाएं करते हैं । यथा - बाललीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला आदि । उन्होंने अपने काव्य की सीमित परिधी में इन असीमित लीलाओं का बहुत सूक्ष्म वर्णन किया है । भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जिन मुस्लिम हरिभक्तों के लिये कहा था, " इन मुसलमान हरिजनन पर कोटिन हिन्दू वारिए " उनमें " रसखान" का नाम सर्वोपरि है । सैय्यद इब्राहीम " रसखान" का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन् 1533 से 1558 के बीच कभी हुआ होगा । अकबर का राज्यकाल 1556-1605 है, ये लगभग अकबर के समकालीन हैं । जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार दिल्ली के समीप है । कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' उत्तरप्रदेश के हरदोई ज़िले में है । मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं । रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में भी किया ।

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन ।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन ।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन ।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन ।।

बाल्य वर्णन

धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी ।
खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी ।।
वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी ।
काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी ।।