"राधादामोदर जी मन्दिर" के अवतरणों में अंतर

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राधा दामोदर मंदिर में [[गौड़ीय संप्रदाय]] का ही नहीं अपितु अन्य संप्रदायों के भक्तों और अनुयाईयों का आस्था का केंद्र रहा है। इसी मंदिर को [[इस्कॉन मन्दिर]] के संस्थापक प्रभुपाद महाराज ने अपने [[वृंदावन]] प्रवास के दौरान सर्वप्रथम आराधना का केंद्र बनाया था।
 
राधा दामोदर मंदिर में [[गौड़ीय संप्रदाय]] का ही नहीं अपितु अन्य संप्रदायों के भक्तों और अनुयाईयों का आस्था का केंद्र रहा है। इसी मंदिर को [[इस्कॉन मन्दिर]] के संस्थापक प्रभुपाद महाराज ने अपने [[वृंदावन]] प्रवास के दौरान सर्वप्रथम आराधना का केंद्र बनाया था।
 
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नगर के सेवाकुंज और लोई बाजार क्षेत्र में स्थित राधा दामोदर मंदिर की स्थापना [[रूप गोस्वामी]] के शिष्य [[जीव गोस्वामी]] ने संवत 1599 माघ शुक्ला दशमी तिथि को की थी। इसी मंदिर में छह गोस्वामियों (रूपगोस्वामी, सनातन गोस्वामी, भक्त रघुनाथ, जीव, गोपाल भट्ट, रघुनाथ दास) ने अपनी साधना स्थली बनाया। इस मंदिर के संबंध में कहावत है कि गौड़ीय संप्रदाय के संत [[सनातन गोस्वामी]] इस मंदिर में निवास के दौरान प्रतिदिन श्री गिरिराज जी की परिक्रमा करने यहां से [[गोवर्धन]] जाते थे। जब वे काफी वृद्ध हो गए तो एक दिन गिरिराज जी की परिक्रमा करने नहीं जा सके। तब भगवान श्री [[कृष्ण]] ने एक बालक के रूप में आकर उन्हें एक डेढ़ हाथ लम्बी वट पत्राकार श्याम रंग की गिरिराज शिला दी। उस पर भगवान के चरण चिन्ह एवं गाय के खुर का निशान अंकित था। बालक रूप भगवान ने सनातन गोस्वामी से कहा कि बाबा अब तुम बहुत वृद्ध हो गए हो। तुमको गिरिराजजी की परिक्रमा करने के नियम को पूरा करने में काफी तकलीफ हो रही है। इस शिला की परिक्रमा करके अपने नियम को पूरा कर लिया करो। बालरूप भगवान की आज्ञा मानकर सनातन गोस्वामी ने इसी शिला की परिक्रमा करे अपना नियम प्रतिदिन पूरा करने लगे। सनातन गोस्वामी द्वारा इस शिला की परिक्रमा लगाने के कारण यहां आने वाला हर श्रद्धालु शिला की परिक्रमा करके अपने आप को धन्य महसूस करता है। [[कार्तिक मास]] में नियम सेवा के दिनों में हजारों नर-नारी श्रीराधा दामोदर तथा गिरिराजजी की शिला की चार परिक्रमा लगाकर के अति आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। वर्तमान काल में इस मंदिर में श्रीवृंदावन चंद्र तथा दो युगल श्री विग्रह भी यहां सेवित है। इस्काँन संस्था की स्थापना से पूर्व जब स्वामी प्रभुपाद महाराज पश्चिमी बंगाल से यहां आए तो उन्होंने इसकी मंदिर को अपनी साधना का प्रमुख केंद्र बनाया। यहीं से उन्होंने पूरे विश्व में श्रीकृष्ण भक्ति का संदेश पहुंचाया और इस्काँन संस्था की स्थापना की।     
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नगर के सेवाकुंज और लोई बाजार क्षेत्र में स्थित राधा दामोदर मंदिर की स्थापना [[रूप गोस्वामी]] के शिष्य [[जीव गोस्वामी]] ने संवत 1599 माघ शुक्ला दशमी तिथि को की थी। इसी मंदिर में छह गोस्वामियों (रूपगोस्वामी, सनातन गोस्वामी, भक्त रघुनाथ, जीव, गोपाल भट्ट, रघुनाथ दास) ने अपनी साधना स्थली बनाया। इस मंदिर के संबंध में कहावत है कि गौड़ीय संप्रदाय के संत [[सनातन गोस्वामी]] इस मंदिर में निवास के दौरान प्रतिदिन श्री गिरिराज जी की परिक्रमा करने यहां से [[गोवर्धन]] जाते थे। जब वे काफी वृद्ध हो गए तो एक दिन गिरिराज जी की परिक्रमा करने नहीं जा सके। तब भगवान श्री [[कृष्ण]] ने एक बालक के रूप में आकर उन्हें एक डेढ़ हाथ लम्बी वट पत्राकार श्याम रंग की गिरिराज शिला दी। उस पर भगवान के चरण चिन्ह एवं गाय के खुर का निशान अंकित था। बालक रूप भगवान ने सनातन गोस्वामी से कहा कि बाबा अब तुम बहुत वृद्ध हो गए हो। तुमको गिरिराजजी की परिक्रमा करने के नियम को पूरा करने में काफी तक़लीफ़ हो रही है। इस शिला की परिक्रमा करके अपने नियम को पूरा कर लिया करो। बालरूप भगवान की आज्ञा मानकर सनातन गोस्वामी ने इसी शिला की परिक्रमा करे अपना नियम प्रतिदिन पूरा करने लगे। सनातन गोस्वामी द्वारा इस शिला की परिक्रमा लगाने के कारण यहां आने वाला हर श्रद्धालु शिला की परिक्रमा करके अपने आप को धन्य महसूस करता है। [[कार्तिक मास]] में नियम सेवा के दिनों में हजारों नर-नारी श्रीराधा दामोदर तथा गिरिराजजी की शिला की चार परिक्रमा लगाकर के अति आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। वर्तमान काल में इस मंदिर में श्रीवृंदावन चंद्र तथा दो युगल श्री विग्रह भी यहां सेवित है। इस्काँन संस्था की स्थापना से पूर्व जब स्वामी प्रभुपाद महाराज पश्चिमी बंगाल से यहां आए तो उन्होंने इसकी मंदिर को अपनी साधना का प्रमुख केंद्र बनाया। यहीं से उन्होंने पूरे विश्व में श्रीकृष्ण भक्ति का संदेश पहुंचाया और इस्काँन संस्था की स्थापना की।     
  
  

०९:५०, २१ दिसम्बर २००९ का अवतरण


राधा दामोदर मंदिर / Radha Damodar Temple

राधादामोदर मंदिर, वृंदावन
Radha Damodar Temple, Vrindavan

राधा दामोदर मंदिर में गौड़ीय संप्रदाय का ही नहीं अपितु अन्य संप्रदायों के भक्तों और अनुयाईयों का आस्था का केंद्र रहा है। इसी मंदिर को इस्कॉन मन्दिर के संस्थापक प्रभुपाद महाराज ने अपने वृंदावन प्रवास के दौरान सर्वप्रथम आराधना का केंद्र बनाया था।


नगर के सेवाकुंज और लोई बाजार क्षेत्र में स्थित राधा दामोदर मंदिर की स्थापना रूप गोस्वामी के शिष्य जीव गोस्वामी ने संवत 1599 माघ शुक्ला दशमी तिथि को की थी। इसी मंदिर में छह गोस्वामियों (रूपगोस्वामी, सनातन गोस्वामी, भक्त रघुनाथ, जीव, गोपाल भट्ट, रघुनाथ दास) ने अपनी साधना स्थली बनाया। इस मंदिर के संबंध में कहावत है कि गौड़ीय संप्रदाय के संत सनातन गोस्वामी इस मंदिर में निवास के दौरान प्रतिदिन श्री गिरिराज जी की परिक्रमा करने यहां से गोवर्धन जाते थे। जब वे काफी वृद्ध हो गए तो एक दिन गिरिराज जी की परिक्रमा करने नहीं जा सके। तब भगवान श्री कृष्ण ने एक बालक के रूप में आकर उन्हें एक डेढ़ हाथ लम्बी वट पत्राकार श्याम रंग की गिरिराज शिला दी। उस पर भगवान के चरण चिन्ह एवं गाय के खुर का निशान अंकित था। बालक रूप भगवान ने सनातन गोस्वामी से कहा कि बाबा अब तुम बहुत वृद्ध हो गए हो। तुमको गिरिराजजी की परिक्रमा करने के नियम को पूरा करने में काफी तक़लीफ़ हो रही है। इस शिला की परिक्रमा करके अपने नियम को पूरा कर लिया करो। बालरूप भगवान की आज्ञा मानकर सनातन गोस्वामी ने इसी शिला की परिक्रमा करे अपना नियम प्रतिदिन पूरा करने लगे। सनातन गोस्वामी द्वारा इस शिला की परिक्रमा लगाने के कारण यहां आने वाला हर श्रद्धालु शिला की परिक्रमा करके अपने आप को धन्य महसूस करता है। कार्तिक मास में नियम सेवा के दिनों में हजारों नर-नारी श्रीराधा दामोदर तथा गिरिराजजी की शिला की चार परिक्रमा लगाकर के अति आनंद लाभ प्राप्त करते हैं। वर्तमान काल में इस मंदिर में श्रीवृंदावन चंद्र तथा दो युगल श्री विग्रह भी यहां सेवित है। इस्काँन संस्था की स्थापना से पूर्व जब स्वामी प्रभुपाद महाराज पश्चिमी बंगाल से यहां आए तो उन्होंने इसकी मंदिर को अपनी साधना का प्रमुख केंद्र बनाया। यहीं से उन्होंने पूरे विश्व में श्रीकृष्ण भक्ति का संदेश पहुंचाया और इस्काँन संस्था की स्थापना की।


साँचा:Vrindavan temple