रोहिणी नक्षत्र

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रोहिणी नक्षत्र / Rohini Nakshatra

रोहिणी नक्षत्र आकाश मंडल में चौथा नक्षत्र है। यह वृषभ राशि में चारों चरणों में रहता है। उसके चारों चरणों में बनने वाले नाम ओ, वा, वी, व है।

अर्थ - लाल
देव - प्रजापति

  • राशि स्वामी शुक्र है और नक्षत्र स्वामी चंद्रमा है।
  • रोहिणी चंद्रमा की सुंदर पत्नी का नाम है।
  • रोहिणी नक्षत्र को वृष राशि का मस्तक कहा गया है।
  • इस नक्षत्र में तारों की संख्या पाँच है।
  • भूसा गाड़ी जैसी आकृति का यह नक्षत्र फरवरी के मध्य भाग में मध्याकाश में पश्चिम दिशा की तरफ रात को 6 से 9 बजे के बीच दिखाई देता है।
  • यह कृत्तिका नक्षत्र के पूर्व में दक्षिण भाग में दिखता है।
  • नक्षत्रों के क्रम में चौथे स्थान पर आने वाला नक्षत्र वृष राशि के 10 डिग्री-0'-1 से 23 डिग्री - 20'-0 के मध्य में स्थित है।
  • किसी भी वर्ष की 26 मई से 8 जून तक के 14 दिनों में इस नक्षत्र से सूर्य गुजरता है। इस प्रकार रोहिणी के प्रत्येक चरण में सूर्य लगभग साढ़े तीन दिन रहता है।
  • इस नक्षत्र का स्वामी शुक्र है।
  • इस नक्षत्र का योग- सौभाग्य, जाति- स्त्री, स्वभाव से शुभ, वर्ण- शूद्र है और उसकी विंशोतरी दशा का स्वामी ग्रह चंद्र है।
  • रोहिणी नक्षत्र किसी भी स्थान के मध्यवर्ती प्रदेश को संकेत करता है। इस कारण किसी भी स्थल के मध्य भाग के प्रदेश में बनने वाली घटनाओं या कारणों के लिए रोहिणी में होने वाले ग्रहाचार को देखा जाना चाहिए।
  • रोहिणी नक्षत्र में घी, दूध, रत्न का दान करने का नियम है।
  • रोहिणी नक्षत्र का देवता चंद्र को माना जाता है।
  • जामुन के वृक्ष को रोहिणी नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति जामुन के वृक्ष की पूजा करते है।
  • इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर में जामुन के वृक्ष को लगाते है।

पौराणिक

पुराण कथा के अनुसार रोहिणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर, तेजस्वी, सुंदर वस्त्र धारण करने वाली पत्नी है। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है। चंद्र के साथ एकाकार होकर छुप भी जाती है। रोहिणी के देवता ब्रह्मा जी हैं। रोहिणी जातक सुंदर, शुभ्र, पति प्रेम, संपादन करने वाले, तेजस्वी, संवेदनशील, संवेदनाओं से जीते जा सकने वाले, सम्मोहक तथा सदा ही प्रगतिशील होते हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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