वल्लभाचार्य

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वल्लभाचार्य

भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधारस्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता श्रीवल्लभाचार्यजी का प्रादुर्भाव ईः सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्रीलक्ष्मणभट्टजी की पत्नी इलम्मागारूके गर्भ से काशी के समीप हुआ । उन्हें वैश्वानरावतार [अग्नि का अवतार] कहा गया है। वे वेदशास्त्र में पारंगत थे। श्रीरूद्रसंप्रदाय के श्रीविल्वमंगलाचार्यजी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षरगोपालमन्त्र की दीक्षा दी गई । त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्रतीर्थ से प्राप्त हुई। विवाह पंडित श्रीदेव भट्टजी की कन्या- महालक्ष्मी से हुआ, और यथासमय दो पुत्र हुए- श्री गोपीनाथ व श्रीविट्ठलनाथ। इनकी म्रत्यु 1531 में हुई ।