वायु देव

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वायु / वात / vayu dev

वैदिक देवताओं को तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है;

  1. पार्थिव ,
  2. वायवीय एवं
  3. आकाशीय । इनमें वायवीय देवों में वायु प्रधान देवता है । इसका एक पर्याय वात भी है । वायु , वात दोनों ही भौतिक तत्त्व एवं दैवी व्यक्त्तित्व के बोधक हैं किंतु वायु से विशेष कर देवता एवं वात से आँधी का बोध होता है । ॠग्वेद में केवल एक ही पूर्ण सूक्त वायु की स्तुति में है (1॰139) तथा वात के लिये दो हैं (10.168,186.) ।वायु का प्रसिद्ध विरुद ‘नियुत्वान्’ है जिससे इसके सदा चलते रहने का बोध होता है । वायु मन्द के सिवा तीन प्रकार का होता है: (1) धूल-पत्ते उड़ाता हुआ (2) वर्षाकर एवं (3) वर्षा के साथ चलने वाला झंझावात । तीनों प्रकार वात के हैं जबकि वायु का स्वरूप बड़ा ही कोमल वर्णित है । प्रात: कालीन समीर (वायु)