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[[काम्यवन|कामवन]] ग्राम से दो फर्लांग दूर दक्षिण–पश्चिम कोण में प्रसिद्ध विमलकुण्ड स्थित है । कुण्ड के चारों ओर क्रमश:  
 
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#श्री गोपालजी विराजमान हैं ।
 
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*[[धर्म कुण्ड]]
 
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[[गर्ग संहिता]] के अनुसार प्राचीनकाल में सिन्धु देश की चम्पकनगरी में विमल नामक के  एक प्रतापी राजा थे । उनकी छह हजार रानियों में से किसी को कोई सन्तान नहीं थी । श्री[[याज्ञवल्क्य]] ऋषि की कृपा से उन रानियों के गर्भ से बहुत सी सुन्दर कन्याओं ने जन्म ग्रहण किया । वे सभी कन्याएँ पूर्व जन्म में जनकपुर की वे स्त्रियाँ थीं जो श्री[[राम]]चन्द्रजी को पति रूप से प्राप्त करने की इच्छा रखती थीं । राजा विमल के घर जन्म ग्रहण करने पर जब वे विवाह के योग्य हुई, तब महर्षि याज्ञवल्क्य की सम्मति से राजा विमल ने अपनी कन्याओं के लिए सुयोग्य वर श्री[[कृष्ण]] को ढूँढने के लिए अपना दूत [[मथुरा|मथुरापुरी]] में भेजा । सौभाग्य से मार्ग में उस दूत की भेंट श्री[[भीष्म|भीष्म पितामह]] से हुई । श्री भीष्म पितामह ने उस दूत को श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए श्री[[वृन्दावन]] भेजा । श्रीकृष्ण उस समय वृन्दावन में विराजमान थे । राजदूत ने वृन्दावन पहुँचकर श्रीकृष्ण को राजा विमल का निमन्त्रण–पत्र दिया, जिसमें श्रीकृष्ण को चम्पक नगरी में आकर राजकन्याओं का पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की गई थी । श्रीकृष्ण, महाराज विमल का निमन्त्रण पाकर चम्पक नगरी पहुँचे और राजकन्याओं को अपने साथ [[ब्रजमंडल]] के इस कमनीय कामवन में ले आये । उन्होंने उन कन्याओं की संख्या के अनुरूप रूप धारणकर उन्हें अंगीकार किया । उनके साथ रास आदि विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ कीं । उन कुमारियों की चिरकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई । उनके आनन्दाश्रु से प्रपूरित यह कुण्ड विमल कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस विमल कुण्ड में स्नान करने से लौकिक, अलौकिक एवं अप्राकृत सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती हैं । हृदय निर्मल होता है तथा उसमें ब्रज भक्ति का संचार होता है ।
 
[[गर्ग संहिता]] के अनुसार प्राचीनकाल में सिन्धु देश की चम्पकनगरी में विमल नामक के  एक प्रतापी राजा थे । उनकी छह हजार रानियों में से किसी को कोई सन्तान नहीं थी । श्री[[याज्ञवल्क्य]] ऋषि की कृपा से उन रानियों के गर्भ से बहुत सी सुन्दर कन्याओं ने जन्म ग्रहण किया । वे सभी कन्याएँ पूर्व जन्म में जनकपुर की वे स्त्रियाँ थीं जो श्री[[राम]]चन्द्रजी को पति रूप से प्राप्त करने की इच्छा रखती थीं । राजा विमल के घर जन्म ग्रहण करने पर जब वे विवाह के योग्य हुई, तब महर्षि याज्ञवल्क्य की सम्मति से राजा विमल ने अपनी कन्याओं के लिए सुयोग्य वर श्री[[कृष्ण]] को ढूँढने के लिए अपना दूत [[मथुरा|मथुरापुरी]] में भेजा । सौभाग्य से मार्ग में उस दूत की भेंट श्री[[भीष्म|भीष्म पितामह]] से हुई । श्री भीष्म पितामह ने उस दूत को श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए श्री[[वृन्दावन]] भेजा । श्रीकृष्ण उस समय वृन्दावन में विराजमान थे । राजदूत ने वृन्दावन पहुँचकर श्रीकृष्ण को राजा विमल का निमन्त्रण–पत्र दिया, जिसमें श्रीकृष्ण को चम्पक नगरी में आकर राजकन्याओं का पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की गई थी । श्रीकृष्ण, महाराज विमल का निमन्त्रण पाकर चम्पक नगरी पहुँचे और राजकन्याओं को अपने साथ [[ब्रजमंडल]] के इस कमनीय कामवन में ले आये । उन्होंने उन कन्याओं की संख्या के अनुरूप रूप धारणकर उन्हें अंगीकार किया । उनके साथ रास आदि विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ कीं । उन कुमारियों की चिरकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई । उनके आनन्दाश्रु से प्रपूरित यह कुण्ड विमल कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस विमल कुण्ड में स्नान करने से लौकिक, अलौकिक एवं अप्राकृत सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती हैं । हृदय निर्मल होता है तथा उसमें ब्रज भक्ति का संचार होता है ।
  

०७:३२, १९ मार्च २०१० का अवतरण

विमल कुण्ड / Vimal Kund

विमल कुण्ड, काम्यवन
Vimal Kund, Kamyavan

कामवन ग्राम से दो फर्लांग दूर दक्षिण–पश्चिम कोण में प्रसिद्ध विमलकुण्ड स्थित है । कुण्ड के चारों ओर क्रमश:

  1. दाऊजी,
  2. सूर्यदेव,
  3. श्रीनीलकंठेश्वर महादेव,
  4. श्रीगोवर्धननाथ,
  5. श्री मदनमोहन एवं काम्यवन विहारी,
  6. श्री विमल विहारी,
  7. विमला देवी,
  8. श्री मुरलीमनोहर,
  9. भगवती गंगा और
  10. श्री गोपालजी विराजमान हैं ।

प्रसंग

विमल कुण्ड, काम्यवन
Vimal Kund, Kamyavan

गर्ग संहिता के अनुसार प्राचीनकाल में सिन्धु देश की चम्पकनगरी में विमल नामक के एक प्रतापी राजा थे । उनकी छह हजार रानियों में से किसी को कोई सन्तान नहीं थी । श्रीयाज्ञवल्क्य ऋषि की कृपा से उन रानियों के गर्भ से बहुत सी सुन्दर कन्याओं ने जन्म ग्रहण किया । वे सभी कन्याएँ पूर्व जन्म में जनकपुर की वे स्त्रियाँ थीं जो श्रीरामचन्द्रजी को पति रूप से प्राप्त करने की इच्छा रखती थीं । राजा विमल के घर जन्म ग्रहण करने पर जब वे विवाह के योग्य हुई, तब महर्षि याज्ञवल्क्य की सम्मति से राजा विमल ने अपनी कन्याओं के लिए सुयोग्य वर श्रीकृष्ण को ढूँढने के लिए अपना दूत मथुरापुरी में भेजा । सौभाग्य से मार्ग में उस दूत की भेंट श्रीभीष्म पितामह से हुई । श्री भीष्म पितामह ने उस दूत को श्रीकृष्ण का दर्शन करने के लिए श्रीवृन्दावन भेजा । श्रीकृष्ण उस समय वृन्दावन में विराजमान थे । राजदूत ने वृन्दावन पहुँचकर श्रीकृष्ण को राजा विमल का निमन्त्रण–पत्र दिया, जिसमें श्रीकृष्ण को चम्पक नगरी में आकर राजकन्याओं का पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की गई थी । श्रीकृष्ण, महाराज विमल का निमन्त्रण पाकर चम्पक नगरी पहुँचे और राजकन्याओं को अपने साथ ब्रजमंडल के इस कमनीय कामवन में ले आये । उन्होंने उन कन्याओं की संख्या के अनुरूप रूप धारणकर उन्हें अंगीकार किया । उनके साथ रास आदि विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ कीं । उन कुमारियों की चिरकालीन अभिलाषा पूर्ण हुई । उनके आनन्दाश्रु से प्रपूरित यह कुण्ड विमल कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस विमल कुण्ड में स्नान करने से लौकिक, अलौकिक एवं अप्राकृत सभी प्रकार की कामनाएँ पूर्ण होती हैं । हृदय निर्मल होता है तथा उसमें ब्रज भक्ति का संचार होता है ।

द्वितीय प्रसंग

जनश्रुति के अनुसार चातुर्मास्य काल में विश्व के सारे तीर्थ ब्रज में आगमन करते हैं । एक बार चातुर्मास्य काल में तीर्थराज पुष्कर ब्रज में नहीं आये । श्रीकृष्ण ने योगमाया का स्मरण किया । स्मरण करते ही पृथ्वी तल से एक जल का प्रबल प्रवाह निकला । आश्चर्य की बात उस पवित्र जल के प्रवाह से परम सुन्दर एक किशोरी प्रकट हुई । श्रीकृष्ण ने उस सुन्दरी के साथ जल–प्रवाह में विविध प्रकार से जलविहार किया । उस किशोरी ने अपनी विशुद्ध प्रेममयी सेवाओं और सौन्दर्य से परम रसिक श्रीकृष्ण को परितृप्त कर दिया । श्रीकृष्ण ने परितृप्त होकर उस किशोरी को वरदान दिया कि आज से तुम विमला देवी के नाम से विख्यात होगी । यह कुण्ड तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा । इसमें स्नान करने से तीर्थराज पुष्कर में स्नान करने की अपेक्षा सात गुणा अधिक पुण्यफल प्राप्त होगा । तब से यह कुण्ड विमला कुण्ड के नाम से विख्यात हुआ । इस कुण्ड के किनारे श्रीकृष्ण की भक्ति प्राप्त करने के लिए बड़े–बड़े ऋषि–महर्षियों ने वास किया है । महर्षि दुर्वासा और पाण्डवों का निवास यहाँ प्रसिद्ध ही है । प्रत्येक ब्रजमण्डल परिक्रमा–मण्डली अथवा परिक्रमा करने वाले यात्री यहाँ निवास करते हैं तथा यहीं से काम्यवन की परिक्रमा आरम्भ करते हैं ।

वीथिका

अन्य लिंक

साँचा:कुण्ड