शर्मिष्ठा

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शर्मिष्ठा

राजा ययाति की राजधानी अमरावती थी । शुक्राचार्य की बेटी देवयानी को ब्याहने के बाद ययाति ने उसे अपने महल के अन्त:पुर में प्रतिष्ठित किया । शर्मिष्ठा तथा दासियों के लिए देवयानी की राय से अशोक वाटिका में स्थान बनवाया और अन्न-वस्त्र की व्यवस्था की । कुछ समय बाद देवयानी को गर्भ रहा और एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ । एक दिन ययाति अशोक वाटिका के पास पहुँच गये और वहां शर्मिष्ठा को देख कर ठिठक गए । ययाति को अकेला देख शर्मिष्ठा भी उनके निकट आयी और बोली , हे राजन् ! जैसे चन्द्रमा , इन्द्र , विष्णु , यम और वरुण के महल में कोई स्त्री सुरक्षित रह सकती है , वैसे ही मैं आपके यहां सुरक्षित हूं। यहां मेरी ओर कौन दृष्टि डाल सकता है ? आप मेरा रूप , कुल और शील जानते हैं। यह मेरे ऋतु का समय है। मैं आपसे उसकी सफलता के लिए प्रार्थना करती हूं। आप मुझे ऋतुदान दीजिए। ययाति ने शर्मिष्ठा का निवेदन स्वीकार किया और अशोक वाटिका में ही उसकी इच्छा पूरी की । लेकिन ययाति ने यह संबंध बनाए रखा और उसके साहचर्य का सुख भोगते रहे । अंत:पुर में रह रही देवयानी से उन्हें दो पुत्र हुए - यदु और तुर्वसु , और शर्मिष्ठा के साहचर्य से तीन पुत्र हुए - दुह्य , अवु और पुरू । इस प्रकार ययाति का समय आनंदपूर्वक बीतने लगा। एक दिन देवयानी भी विहार के लिए ययाति के साथ अशोक वाटिका में गई । उसने देखा कि तीन सुन्दर कुमार खेल रहे हैं । उसने पूछा , आर्यपुत्र ! ये सुन्दर कुमार किसके हैं ? इनका सौन्दर्य तो आप जैसा ही मालूम पड़ता है। फिर देवयानी ने उन बच्चों से पूछा , तुम लोगों के नाम क्या हैं ? किस वंश के हो ? तुम्हारे मां - बाप कौन हैं ? बच्चों ने अपनी तोतली भाषा में कहा , हमारी मां हैं शर्मिष्ठा और राजा की ओर संकेत किया, ये हमारे पिता हैं । ऐसा कह वे प्रेम से ययाति के पास दौड़ गए। देवयानी सारा रहस्य समझ गई। उसने शर्मिष्ठा से कहा , शर्मिष्ठे ! मेरी दासी हो कर भी मेरा अप्रिय करने में तू डरी नहीं ? शर्मिष्ठा ने कहा , हे मधुरहासिनी ! मैंने राजर्षि के साथ जो समागम किया है , वह धर्म और न्याय के अनुसार है । फिर मैं क्यों डरूं ? जब तुम्हारी दासी बन कर मुझे उन्हीं के आश्रय में रहना था , तो तुम्हारे साथ ही मैंने भी उन्हें अपना पति मान लिया। इसके बाद देवयानी ने शर्मिष्ठा को कुछ नहीं कहा । वह पलटी और ययाति की शिकायत अपने पिता शुक्राचार्य से की । शुक्राचार्य ने भी शर्मिष्ठा को कुछ नहीं कहा , पर नाराज हो ययाति का यौवन छीन लिया।