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==शान्तनु कुण्ड / Shantanu Kund==
 
==शान्तनु कुण्ड / Shantanu Kund==
 
यह स्थान महाराज शान्तनु की तपस्या–स्थली है । इसका वर्तमान नाम सतोहा है । [[मथुरा]] से लगभग तीन मील की दूरी पर [[गोवर्धन]] राजमार्ग यह स्थित है । महाराज शान्तन ने पुत्र कामना से यहाँ पर भगवद आराधना की थी । प्रसिद्ध [[भीष्म]] पितामह इनके पुत्र थे । भीष्म पितामह की माता का नाम  [[गंगा]] था । किन्तु गंगाजी विशेष कारण से महाराज शान्तनु को छोड़कर चली गई थी । महाराज शान्तनु मथुरा के सामने [[यमुना]] के उस पार एक धीवर के घर चपला, लावण्यवती (उर्वशी की कन्या सत्यवती) मत्स्यगन्धा या मत्स्योदरी को देखकर उससे विवाह करने के इच्छुक हो गये किन्तु धीवर, महाराज को अपनी पोष्य कन्या को देने के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ उसने कहा– मेरी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा । । मेरी इस शर्त को स्वीकार करने पर ही आप मेरी इस कन्या को ग्रहण कर सकते हैं । महाराज शान्तनु ने युवराज [[भीष्म|देवव्रत]] के कारण विवाह करना अस्वीकार कर दिया । किन्तु मन ही मन दु:खी रहने लगे । कुमार देवव्रत को यह बात मालूम होने पर वे धीवर के घर पहुँचे और उसके सामने प्रतिज्ञा की कि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा और मत्स्योदरी के गर्भ से उत्पन्न बालक तुम्हारा दोहता ही राजा होगा । ऐसी प्रतिज्ञा कर उस धीवर–कन्या से महाराज शान्तनु का विवाह करवाया । इससे प्रतीत होता है । कि महाराज की राजधानी [[हस्तिनापुर]] होने पर भी शान्तनु कुण्ड में भी उनका एक निवास स्थल था । यहाँ शान्तनु कुण्ड है, जहाँ संतान की कामना करने वाली स्त्रियाँ इस कुण्ड में स्नान करती हैं तथा मन्दिर के पीछे गोबर का सतिया बनाकर पूजा करती हैं । शान्तनु कुण्ड के बीच में ऊँचे टीले पर शान्तनु के आराध्य श्रीशान्तनु बिहारी जी का मन्दिर है ।
 
यह स्थान महाराज शान्तनु की तपस्या–स्थली है । इसका वर्तमान नाम सतोहा है । [[मथुरा]] से लगभग तीन मील की दूरी पर [[गोवर्धन]] राजमार्ग यह स्थित है । महाराज शान्तन ने पुत्र कामना से यहाँ पर भगवद आराधना की थी । प्रसिद्ध [[भीष्म]] पितामह इनके पुत्र थे । भीष्म पितामह की माता का नाम  [[गंगा]] था । किन्तु गंगाजी विशेष कारण से महाराज शान्तनु को छोड़कर चली गई थी । महाराज शान्तनु मथुरा के सामने [[यमुना]] के उस पार एक धीवर के घर चपला, लावण्यवती (उर्वशी की कन्या सत्यवती) मत्स्यगन्धा या मत्स्योदरी को देखकर उससे विवाह करने के इच्छुक हो गये किन्तु धीवर, महाराज को अपनी पोष्य कन्या को देने के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ उसने कहा– मेरी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा । । मेरी इस शर्त को स्वीकार करने पर ही आप मेरी इस कन्या को ग्रहण कर सकते हैं । महाराज शान्तनु ने युवराज [[भीष्म|देवव्रत]] के कारण विवाह करना अस्वीकार कर दिया । किन्तु मन ही मन दु:खी रहने लगे । कुमार देवव्रत को यह बात मालूम होने पर वे धीवर के घर पहुँचे और उसके सामने प्रतिज्ञा की कि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा और मत्स्योदरी के गर्भ से उत्पन्न बालक तुम्हारा दोहता ही राजा होगा । ऐसी प्रतिज्ञा कर उस धीवर–कन्या से महाराज शान्तनु का विवाह करवाया । इससे प्रतीत होता है । कि महाराज की राजधानी [[हस्तिनापुर]] होने पर भी शान्तनु कुण्ड में भी उनका एक निवास स्थल था । यहाँ शान्तनु कुण्ड है, जहाँ संतान की कामना करने वाली स्त्रियाँ इस कुण्ड में स्नान करती हैं तथा मन्दिर के पीछे गोबर का सतिया बनाकर पूजा करती हैं । शान्तनु कुण्ड के बीच में ऊँचे टीले पर शान्तनु के आराध्य श्रीशान्तनु बिहारी जी का मन्दिर है ।

१०:५०, ५ जनवरी २०१० का अवतरण

शान्तनु कुण्ड / Shantanu Kund

यह स्थान महाराज शान्तनु की तपस्या–स्थली है । इसका वर्तमान नाम सतोहा है । मथुरा से लगभग तीन मील की दूरी पर गोवर्धन राजमार्ग यह स्थित है । महाराज शान्तन ने पुत्र कामना से यहाँ पर भगवद आराधना की थी । प्रसिद्ध भीष्म पितामह इनके पुत्र थे । भीष्म पितामह की माता का नाम गंगा था । किन्तु गंगाजी विशेष कारण से महाराज शान्तनु को छोड़कर चली गई थी । महाराज शान्तनु मथुरा के सामने यमुना के उस पार एक धीवर के घर चपला, लावण्यवती (उर्वशी की कन्या सत्यवती) मत्स्यगन्धा या मत्स्योदरी को देखकर उससे विवाह करने के इच्छुक हो गये किन्तु धीवर, महाराज को अपनी पोष्य कन्या को देने के लिए प्रस्तुत नहीं हुआ उसने कहा– मेरी कन्या से उत्पन्न पुत्र ही आपके राज्य का अधिकारी होगा । । मेरी इस शर्त को स्वीकार करने पर ही आप मेरी इस कन्या को ग्रहण कर सकते हैं । महाराज शान्तनु ने युवराज देवव्रत के कारण विवाह करना अस्वीकार कर दिया । किन्तु मन ही मन दु:खी रहने लगे । कुमार देवव्रत को यह बात मालूम होने पर वे धीवर के घर पहुँचे और उसके सामने प्रतिज्ञा की कि मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूँगा और मत्स्योदरी के गर्भ से उत्पन्न बालक तुम्हारा दोहता ही राजा होगा । ऐसी प्रतिज्ञा कर उस धीवर–कन्या से महाराज शान्तनु का विवाह करवाया । इससे प्रतीत होता है । कि महाराज की राजधानी हस्तिनापुर होने पर भी शान्तनु कुण्ड में भी उनका एक निवास स्थल था । यहाँ शान्तनु कुण्ड है, जहाँ संतान की कामना करने वाली स्त्रियाँ इस कुण्ड में स्नान करती हैं तथा मन्दिर के पीछे गोबर का सतिया बनाकर पूजा करती हैं । शान्तनु कुण्ड के बीच में ऊँचे टीले पर शान्तनु के आराध्य श्रीशान्तनु बिहारी जी का मन्दिर है ।