http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&feed=atom&action=historyश्रीलात आचार्य - अवतरण इतिहास2024-03-29T11:54:34Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.35.6http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&diff=57341&oldid=prevAshwani Bhatia: Text replace - 'हजार' to 'हज़ार'2010-05-11T07:26:03Z<p>Text replace - 'हजार' to 'हज़ार'</p>
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<td colspan="2" style="background-color: #fff; color: #202122; text-align: center;">०७:२६, ११ मई २०१० का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno" id="mw-diff-left-l4" >पंक्ति ४:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति ४:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थविर [[भदन्त आचार्य]] के बाद काल की दृष्टि से दूसरे आचार्य श्रीलात प्रतीत होते हैं। ग्रन्थों में उनके श्रीलात, श्रीलाभ, श्रीलब्ध, श्रीरत आदि अनेक नाम उपलब्ध होते हैं। इनमें से उनका कौन नाम वास्तविक हैं, इसका निश्चय करना कठिन है। भोट-अनुवाद के अनुसार श्रीलात नाम ठीक प्रतीत होता है। 'अभिधर्म कोश भाष्य' में अनेक जगह यही नाम प्रयुक्त हुआ है। स्थविर श्रीलात से सम्बद्ध उनके जीवनवृत्त का व्यवस्थित और पर्याप्त विवरण कहीं उपलब्ध नहीं होता। बौद्ध धर्म के इतिहास ग्रन्थों में और [[हुएन-सांग|ह्रेनसांग]] की भारत यात्रा के विवरण में प्रसंगवश उनके नाम का उल्लेख हुआ है। अभिधर्म कोश भाष्य और उसकी टीकाओं में सिद्धान्तों के खण्डन या मण्डन के अवसरों पर श्रीलात या श्रीलाभ के सिद्धान्तों के उद्धरण दिखलाई पड़ते हैं। इसी तरह माध्यमिक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों मे आचार्य के नाम का उल्लेख किया है। इन सब आधारों पर स्थविर श्रीलात का जीवन वृत्तान्त संक्षेप में निम्नलिखित है:</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थविर [[भदन्त आचार्य]] के बाद काल की दृष्टि से दूसरे आचार्य श्रीलात प्रतीत होते हैं। ग्रन्थों में उनके श्रीलात, श्रीलाभ, श्रीलब्ध, श्रीरत आदि अनेक नाम उपलब्ध होते हैं। इनमें से उनका कौन नाम वास्तविक हैं, इसका निश्चय करना कठिन है। भोट-अनुवाद के अनुसार श्रीलात नाम ठीक प्रतीत होता है। 'अभिधर्म कोश भाष्य' में अनेक जगह यही नाम प्रयुक्त हुआ है। स्थविर श्रीलात से सम्बद्ध उनके जीवनवृत्त का व्यवस्थित और पर्याप्त विवरण कहीं उपलब्ध नहीं होता। बौद्ध धर्म के इतिहास ग्रन्थों में और [[हुएन-सांग|ह्रेनसांग]] की भारत यात्रा के विवरण में प्रसंगवश उनके नाम का उल्लेख हुआ है। अभिधर्म कोश भाष्य और उसकी टीकाओं में सिद्धान्तों के खण्डन या मण्डन के अवसरों पर श्रीलात या श्रीलाभ के सिद्धान्तों के उद्धरण दिखलाई पड़ते हैं। इसी तरह माध्यमिक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों मे आचार्य के नाम का उल्लेख किया है। इन सब आधारों पर स्थविर श्रीलात का जीवन वृत्तान्त संक्षेप में निम्नलिखित है:</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*आचार्य श्रीलात कश्मीर के निवासी थे। सम्भवत: [[तक्षशिला]] में आचार्य पद पर प्रतिष्ठत थे। इनके शिष्य परिवार में बहुसंख्यक श्रामणेर और भिक्षु विद्यमान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इससे विपरीत चीनी यात्री ह्रेनसांग इनका निवास स्थान [[अयोध्या]] बतलाते हैं। उस समय अयोध्या प्रसिद्ध विद्या केन्द्र था। हो सकता है कि श्रीलात जैसे प्रसिद्ध विद्वान वहाँ भी आये हों और निवास किया हो। यह असंगत भी नहीं है, क्योंकि [[गान्धार]] देश में जन्मे आचार्य असंग और वसुबन्धु का भी विद्या क्षेत्र [[अयोध्या]] ही रहा है। अयोध्या उस समय बौद्ध और अबौद्ध सभी प्रकार के विद्वानों की समवाय-स्थली थी। ह्नेनसांग अपने यात्रा विवरण में आगे लिखते हैं कि अयोध्या से कुछ दूरी पर सम्राट [[अशोक]] द्वारा निर्मित एक संघाराम है, उसमें लगभग 200 फुट ऊँचा एक स्तूप है। उस स्तूप के समीप एक दूसरा भी भग्न (खण्डहर के रूप में) संघाराम है, जिसमें बैठकर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के अनुरूप एक 'विभाषाशास्त्र' की रचना की थी। इस वृत्तान्त से बुद्ध शासन से सम्बद्ध श्रीलात के कार्यों की सूचना मिलती है। अन्य ग्रन्थों में उनके जन्मस्थान की चर्चा नहीं मिलती, किन्तु अयोध्या या मध्यप्रदेश का सर्वत्र चारिका करने वाले बौद्ध भिक्षु का विद्या क्षेत्र अयोध्या होना आश्चर्यकर नहीं है। </div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*आचार्य श्रीलात कश्मीर के निवासी थे। सम्भवत: [[तक्षशिला]] में आचार्य पद पर प्रतिष्ठत थे। इनके शिष्य परिवार में बहुसंख्यक श्रामणेर और भिक्षु विद्यमान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इससे विपरीत चीनी यात्री ह्रेनसांग इनका निवास स्थान [[अयोध्या]] बतलाते हैं। उस समय अयोध्या प्रसिद्ध विद्या केन्द्र था। हो सकता है कि श्रीलात जैसे प्रसिद्ध विद्वान वहाँ भी आये हों और निवास किया हो। यह असंगत भी नहीं है, क्योंकि [[गान्धार]] देश में जन्मे आचार्य असंग और वसुबन्धु का भी विद्या क्षेत्र [[अयोध्या]] ही रहा है। अयोध्या उस समय बौद्ध और अबौद्ध सभी प्रकार के विद्वानों की समवाय-स्थली थी। ह्नेनसांग अपने यात्रा विवरण में आगे लिखते हैं कि अयोध्या से कुछ दूरी पर सम्राट [[अशोक]] द्वारा निर्मित एक संघाराम है, उसमें लगभग 200 फुट ऊँचा एक स्तूप है। उस स्तूप के समीप एक दूसरा भी भग्न (खण्डहर के रूप में) संघाराम है, जिसमें बैठकर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के अनुरूप एक 'विभाषाशास्त्र' की रचना की थी। इस वृत्तान्त से बुद्ध शासन से सम्बद्ध श्रीलात के कार्यों की सूचना मिलती है। अन्य ग्रन्थों में उनके जन्मस्थान की चर्चा नहीं मिलती, किन्तु अयोध्या या मध्यप्रदेश का सर्वत्र चारिका करने वाले बौद्ध भिक्षु का विद्या क्षेत्र अयोध्या होना आश्चर्यकर नहीं है। </div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*स्थविर भदन्त और श्रीलात के काल में अधिक अन्तर नहीं है। भदन्त के कुछ ही वर्षों बाद आचार्य श्रीलात का समय निर्धारित किया जा सकता है। कनिष्क के निधन के बाद उनका पुत्र सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसी समय [[नागार्जुन बौद्धाचार्य]] के गुरु विद्वन्मूर्धन्य सरहपाद, सरोरुवज्र अथवा राहुलभद्र भी विद्यमान थे। उसी समय [[वाराणसी]] में वैभाषिक आचार्य बुद्धदेव भी <del class="diffchange diffchange-inline">हजारों </del>भिक्षुओं के साथ विराजमान थे। ये सभी आचार्य समकालिक हैं। यह वह समय था, जब सौत्रान्तिक चिन्तन पराकष्ठा को प्राप्त था। </div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*स्थविर भदन्त और श्रीलात के काल में अधिक अन्तर नहीं है। भदन्त के कुछ ही वर्षों बाद आचार्य श्रीलात का समय निर्धारित किया जा सकता है। कनिष्क के निधन के बाद उनका पुत्र सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसी समय [[नागार्जुन बौद्धाचार्य]] के गुरु विद्वन्मूर्धन्य सरहपाद, सरोरुवज्र अथवा राहुलभद्र भी विद्यमान थे। उसी समय [[वाराणसी]] में वैभाषिक आचार्य बुद्धदेव भी <ins class="diffchange diffchange-inline">हज़ारों </ins>भिक्षुओं के साथ विराजमान थे। ये सभी आचार्य समकालिक हैं। यह वह समय था, जब सौत्रान्तिक चिन्तन पराकष्ठा को प्राप्त था। </div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*इस तरह आचार्य श्रीलात का समय हम बुद्धाब्द चतुर्थ शतक के अन्तिम भाग अथवा ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी में या इसके आसपास निश्चित कर सकते हैं, क्योंकि सम्राट कनिष्क के अवसान के समय इनके अस्तित्व का साक्ष्य उपलब्ध है। यही आचार्य नागार्जुन के जीवन का आदिम काल भी है। </div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*इस तरह आचार्य श्रीलात का समय हम बुद्धाब्द चतुर्थ शतक के अन्तिम भाग अथवा ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी में या इसके आसपास निश्चित कर सकते हैं, क्योंकि सम्राट कनिष्क के अवसान के समय इनके अस्तित्व का साक्ष्य उपलब्ध है। यही आचार्य नागार्जुन के जीवन का आदिम काल भी है। </div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
</table>Ashwani Bhatiahttp://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&diff=56039&oldid=prevAshwani Bhatia: Text replace - 'बौध्द' to 'बौद्ध'2010-04-20T15:11:40Z<p>Text replace - 'बौध्द' to 'बौद्ध'</p>
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<td colspan="2" style="background-color: #fff; color: #202122; text-align: center;">← पुराना अवतरण</td>
<td colspan="2" style="background-color: #fff; color: #202122; text-align: center;">१५:११, २० अप्रैल २०१० का अवतरण</td>
</tr><tr><td colspan="2" class="diff-lineno" id="mw-diff-left-l1" >पंक्ति १:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति १:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{Menu}}</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{Menu}}</div></td></tr>
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<tr><td colspan="2" class="diff-lineno" id="mw-diff-left-l16" >पंक्ति १६:</td>
<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति १६:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
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<td colspan="2" class="diff-lineno">पंक्ति १:</td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{Menu}}</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{Menu}}</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{बौध्द दर्शन}}</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>{{बौध्द दर्शन}}</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'>−</td><td style="color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #ffe49c; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>==श्रीलात==</div></td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>==श्रीलात <ins class="diffchange diffchange-inline">/ Shrilaat</ins>==</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थविर [[भदन्त आचार्य]] के बाद काल की दृष्टि से दूसरे आचार्य श्रीलात प्रतीत होते हैं। ग्रन्थों में उनके श्रीलात, श्रीलाभ, श्रीलब्ध, श्रीरत आदि अनेक नाम उपलब्ध होते हैं। इनमें से उनका कौन नाम वास्तविक हैं, इसका निश्चय करना कठिन है। भोट-अनुवाद के अनुसार श्रीलात नाम ठीक प्रतीत होता है। 'अभिधर्म कोश भाष्य' में अनेक जगह यही नाम प्रयुक्त हुआ है। स्थविर श्रीलात से सम्बद्ध उनके जीवनवृत्त का व्यवस्थित और पर्याप्त विवरण कहीं उपलब्ध नहीं होता। बौद्ध धर्म के इतिहास ग्रन्थों में और [[हुएन-सांग|ह्रेनसांग]] की भारत यात्रा के विवरण में प्रसंगवश उनके नाम का उल्लेख हुआ है। अभिधर्म कोश भाष्य और उसकी टीकाओं में सिद्धान्तों के खण्डन या मण्डन के अवसरों पर श्रीलात या श्रीलाभ के सिद्धान्तों के उद्धरण दिखलाई पड़ते हैं। इसी तरह माध्यमिक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों मे आचार्य के नाम का उल्लेख किया है। इन सब आधारों पर स्थविर श्रीलात का जीवन वृत्तान्त संक्षेप में निम्नलिखित है:</div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थविर [[भदन्त आचार्य]] के बाद काल की दृष्टि से दूसरे आचार्य श्रीलात प्रतीत होते हैं। ग्रन्थों में उनके श्रीलात, श्रीलाभ, श्रीलब्ध, श्रीरत आदि अनेक नाम उपलब्ध होते हैं। इनमें से उनका कौन नाम वास्तविक हैं, इसका निश्चय करना कठिन है। भोट-अनुवाद के अनुसार श्रीलात नाम ठीक प्रतीत होता है। 'अभिधर्म कोश भाष्य' में अनेक जगह यही नाम प्रयुक्त हुआ है। स्थविर श्रीलात से सम्बद्ध उनके जीवनवृत्त का व्यवस्थित और पर्याप्त विवरण कहीं उपलब्ध नहीं होता। बौद्ध धर्म के इतिहास ग्रन्थों में और [[हुएन-सांग|ह्रेनसांग]] की भारत यात्रा के विवरण में प्रसंगवश उनके नाम का उल्लेख हुआ है। अभिधर्म कोश भाष्य और उसकी टीकाओं में सिद्धान्तों के खण्डन या मण्डन के अवसरों पर श्रीलात या श्रीलाभ के सिद्धान्तों के उद्धरण दिखलाई पड़ते हैं। इसी तरह माध्यमिक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों मे आचार्य के नाम का उल्लेख किया है। इन सब आधारों पर स्थविर श्रीलात का जीवन वृत्तान्त संक्षेप में निम्नलिखित है:</div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*आचार्य श्रीलात कश्मीर के निवासी थे। सम्भवत: [[तक्षशिला]] में आचार्य पद पर प्रतिष्ठत थे। इनके शिष्य परिवार में बहुसंख्यक श्रामणेर और भिक्षु विद्यमान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इससे विपरीत चीनी यात्री ह्रेनसांग इनका निवास स्थान [[अयोध्या]] बतलाते हैं। उस समय अयोध्या प्रसिद्ध विद्या केन्द्र था। हो सकता है कि श्रीलात जैसे प्रसिद्ध विद्वान वहाँ भी आये हों और निवास किया हो। यह असंगत भी नहीं है, क्योंकि [[गान्धार]] देश में जन्मे आचार्य असंग और वसुबन्धु का भी विद्या क्षेत्र [[अयोध्या]] ही रहा है। अयोध्या उस समय बौद्ध और अबौद्ध सभी प्रकार के विद्वानों की समवाय-स्थली थी। ह्नेनसांग अपने यात्रा विवरण में आगे लिखते हैं कि अयोध्या से कुछ दूरी पर सम्राट [[अशोक]] द्वारा निर्मित एक संघाराम है, उसमें लगभग 200 फुट ऊँचा एक स्तूप है। उस स्तूप के समीप एक दूसरा भी भग्न (खण्डहर के रूप में) संघाराम है, जिसमें बैठकर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के अनुरूप एक 'विभाषाशास्त्र' की रचना की थी। इस वृत्तान्त से बुद्ध शासन से सम्बद्ध श्रीलात के कार्यों की सूचना मिलती है। अन्य ग्रन्थों में उनके जन्मस्थान की चर्चा नहीं मिलती, किन्तु अयोध्या या मध्यप्रदेश का सर्वत्र चारिका करने वाले बौद्ध भिक्षु का विद्या क्षेत्र अयोध्या होना आश्चर्यकर नहीं है। </div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f8f9fa; color: #202122; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #eaecf0; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>*आचार्य श्रीलात कश्मीर के निवासी थे। सम्भवत: [[तक्षशिला]] में आचार्य पद पर प्रतिष्ठत थे। इनके शिष्य परिवार में बहुसंख्यक श्रामणेर और भिक्षु विद्यमान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इससे विपरीत चीनी यात्री ह्रेनसांग इनका निवास स्थान [[अयोध्या]] बतलाते हैं। उस समय अयोध्या प्रसिद्ध विद्या केन्द्र था। हो सकता है कि श्रीलात जैसे प्रसिद्ध विद्वान वहाँ भी आये हों और निवास किया हो। यह असंगत भी नहीं है, क्योंकि [[गान्धार]] देश में जन्मे आचार्य असंग और वसुबन्धु का भी विद्या क्षेत्र [[अयोध्या]] ही रहा है। अयोध्या उस समय बौद्ध और अबौद्ध सभी प्रकार के विद्वानों की समवाय-स्थली थी। ह्नेनसांग अपने यात्रा विवरण में आगे लिखते हैं कि अयोध्या से कुछ दूरी पर सम्राट [[अशोक]] द्वारा निर्मित एक संघाराम है, उसमें लगभग 200 फुट ऊँचा एक स्तूप है। उस स्तूप के समीप एक दूसरा भी भग्न (खण्डहर के रूप में) संघाराम है, जिसमें बैठकर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के अनुरूप एक 'विभाषाशास्त्र' की रचना की थी। इस वृत्तान्त से बुद्ध शासन से सम्बद्ध श्रीलात के कार्यों की सूचना मिलती है। अन्य ग्रन्थों में उनके जन्मस्थान की चर्चा नहीं मिलती, किन्तु अयोध्या या मध्यप्रदेश का सर्वत्र चारिका करने वाले बौद्ध भिक्षु का विद्या क्षेत्र अयोध्या होना आश्चर्यकर नहीं है। </div></td></tr>
</table>आशाhttp://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%A4_%E0%A4%86%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF&diff=41199&oldid=prevआशा: नया पन्ना: {{Menu}} {{बौध्द दर्शन}} ==श्रीलात== सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थवि...2010-02-10T10:56:18Z<p>नया पन्ना: {{Menu}} {{बौध्द दर्शन}} ==श्रीलात== सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थवि...</p>
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{{बौध्द दर्शन}}<br />
==श्रीलात==<br />
सौत्रान्तिक आचार्य परम्परा में स्थविर [[भदन्त आचार्य]] के बाद काल की दृष्टि से दूसरे आचार्य श्रीलात प्रतीत होते हैं। ग्रन्थों में उनके श्रीलात, श्रीलाभ, श्रीलब्ध, श्रीरत आदि अनेक नाम उपलब्ध होते हैं। इनमें से उनका कौन नाम वास्तविक हैं, इसका निश्चय करना कठिन है। भोट-अनुवाद के अनुसार श्रीलात नाम ठीक प्रतीत होता है। 'अभिधर्म कोश भाष्य' में अनेक जगह यही नाम प्रयुक्त हुआ है। स्थविर श्रीलात से सम्बद्ध उनके जीवनवृत्त का व्यवस्थित और पर्याप्त विवरण कहीं उपलब्ध नहीं होता। बौद्ध धर्म के इतिहास ग्रन्थों में और [[हुएन-सांग|ह्रेनसांग]] की भारत यात्रा के विवरण में प्रसंगवश उनके नाम का उल्लेख हुआ है। अभिधर्म कोश भाष्य और उसकी टीकाओं में सिद्धान्तों के खण्डन या मण्डन के अवसरों पर श्रीलात या श्रीलाभ के सिद्धान्तों के उद्धरण दिखलाई पड़ते हैं। इसी तरह माध्यमिक आचार्यों ने अपने ग्रन्थों मे आचार्य के नाम का उल्लेख किया है। इन सब आधारों पर स्थविर श्रीलात का जीवन वृत्तान्त संक्षेप में निम्नलिखित है:<br />
*आचार्य श्रीलात कश्मीर के निवासी थे। सम्भवत: [[तक्षशिला]] में आचार्य पद पर प्रतिष्ठत थे। इनके शिष्य परिवार में बहुसंख्यक श्रामणेर और भिक्षु विद्यमान थे। इन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की थी। इससे विपरीत चीनी यात्री ह्रेनसांग इनका निवास स्थान [[अयोध्या]] बतलाते हैं। उस समय अयोध्या प्रसिद्ध विद्या केन्द्र था। हो सकता है कि श्रीलात जैसे प्रसिद्ध विद्वान वहाँ भी आये हों और निवास किया हो। यह असंगत भी नहीं है, क्योंकि [[गान्धार]] देश में जन्मे आचार्य असंग और वसुबन्धु का भी विद्या क्षेत्र [[अयोध्या]] ही रहा है। अयोध्या उस समय बौद्ध और अबौद्ध सभी प्रकार के विद्वानों की समवाय-स्थली थी। ह्नेनसांग अपने यात्रा विवरण में आगे लिखते हैं कि अयोध्या से कुछ दूरी पर सम्राट [[अशोक]] द्वारा निर्मित एक संघाराम है, उसमें लगभग 200 फुट ऊँचा एक स्तूप है। उस स्तूप के समीप एक दूसरा भी भग्न (खण्डहर के रूप में) संघाराम है, जिसमें बैठकर श्रीलब्ध शास्त्री ने सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के अनुरूप एक 'विभाषाशास्त्र' की रचना की थी। इस वृत्तान्त से बुद्ध शासन से सम्बद्ध श्रीलात के कार्यों की सूचना मिलती है। अन्य ग्रन्थों में उनके जन्मस्थान की चर्चा नहीं मिलती, किन्तु अयोध्या या मध्यप्रदेश का सर्वत्र चारिका करने वाले बौद्ध भिक्षु का विद्या क्षेत्र अयोध्या होना आश्चर्यकर नहीं है। <br />
*स्थविर भदन्त और श्रीलात के काल में अधिक अन्तर नहीं है। भदन्त के कुछ ही वर्षों बाद आचार्य श्रीलात का समय निर्धारित किया जा सकता है। कनिष्क के निधन के बाद उनका पुत्र सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। उसी समय [[नागार्जुन बौद्धाचार्य]] के गुरु विद्वन्मूर्धन्य सरहपाद, सरोरुवज्र अथवा राहुलभद्र भी विद्यमान थे। उसी समय [[वाराणसी]] में वैभाषिक आचार्य बुद्धदेव भी हजारों भिक्षुओं के साथ विराजमान थे। ये सभी आचार्य समकालिक हैं। यह वह समय था, जब सौत्रान्तिक चिन्तन पराकष्ठा को प्राप्त था। <br />
*इस तरह आचार्य श्रीलात का समय हम बुद्धाब्द चतुर्थ शतक के अन्तिम भाग अथवा ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी में या इसके आसपास निश्चित कर सकते हैं, क्योंकि सम्राट कनिष्क के अवसान के समय इनके अस्तित्व का साक्ष्य उपलब्ध है। यही आचार्य नागार्जुन के जीवन का आदिम काल भी है। <br />
<br />
'''कृतियाँ''' <br />
<br />
*आचार्य श्रीलात ने सौत्रान्तिक सम्मत विभाषा शास्त्र की रचना की थी। <br />
*इनके अतिरिक्त भी उनकी रचनाएं सम्भावित हैं, किन्तु यह मात्र कल्पना ही है। <br />
*इस समय विभाषा शास्त्र नहीं उपलब्ध है। <br />
*आचार्य के कुछ विशिष्ट सिद्धान्त तथा दार्शनिक विशेषताएं 'अभिधर्म कोश भाष्य' और उसकी यशोमित्रकृत 'स्फुटार्था टीका' में उद्धरण के रूप में मिलते हैं किन्तु इतने मात्र से उनके सम्पूर्ण दर्शन का आकलन सम्भव नहीं है। <br />
<br />
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[[Category:कोश]]<br />
[[Category:बौध्द_दर्शन]]<br />
[[Category:बुद्ध]]<br />
[[Category:बौद्ध]]<br />
__INDEX__</div>आशा