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०४:४१, ५ मार्च २०१० का अवतरण

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श्री लालाबाबू का मन्दिर / Temple Of Lalababu

श्री लालाबाबू पूर्वी बंगाल के एक प्रसिद्ध वैभव सम्पन्न जमींदार थे। ये अपने राजभवन से कुछ दूर एक नदी के दूसरे सुरम्य तट पर टहलने के लिए जाते थे। एक दिन सन्ध्या के समय जब वे नदी के दूसरे तट पर टहल रहे थे तो उन्हें एक माँझी (मल्लाह) की उक्ति सुनाई पड़ी,'अरे भाई ! दिन गेलो पार चल।' अर्थात दिन पार हो गया उस पार चलो। माँझी की बात सुनते ही ये विचार में मग्न हो गये। नौका से नदी पार कर घर लौटे। दूसरे दिन वहीं टहलते समय एक धोबी ने अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहा, 'दिन गेलो वासनाय आगुन दाऊ।' (धोबी लोग कपड़े धोने के लिए केले के वृक्षादि जलाकर एक प्रकार का क्षार-सा बनाया करते थे, जिसे बंगला भाषा में वासना कहा जाता है) लालाबाबू ने उसके इस वाक्य का अर्थ यह ग्रहण किया कि दिन बीत गया, जीवन के दिन निकल गये। अपनी काम वासना में शीघ्र आग लगा दो। श्रीलालाबाबू के जीवन पर उपरोक्त माँझी और धोबी के वाक्यों का गहरा प्रभाव पड़ा। वे अपना सारा वैभव, परिवार इत्यादि सब कुछ परित्याग कर वृन्दावन में चले आये तथा यहाँ भजन करने लगे। इन भक्त लालाबाबू ने ही 1810 ई॰ में श्रीकृष्णचन्द्र नामक इस विग्रह की स्थापना की थी। पत्थर का यह मन्दिर बहुत ही भव्य और दर्शन योग्य है।



साँचा:Vrindavan temple