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*[[राधादामोदर जी मन्दिर|श्रीराधादामोदर मन्दिर]] के पास ही श्रीश्यामसुन्दर जी का मन्दिर स्थित है।  
 
*[[राधादामोदर जी मन्दिर|श्रीराधादामोदर मन्दिर]] के पास ही श्रीश्यामसुन्दर जी का मन्दिर स्थित है।  
 
*गौड़ीय वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण द्वारा प्रतिष्ठित एवं सेवित श्रीराधा श्यामसुन्दर विग्रह के दर्शन अत्यन्त सुन्दर हैं।   
 
*गौड़ीय वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण द्वारा प्रतिष्ठित एवं सेवित श्रीराधा श्यामसुन्दर विग्रह के दर्शन अत्यन्त सुन्दर हैं।   
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*अध्ययन करते समय श्रीराधादामोदर का अगाध पाण्डित्य तथा साथ ही भक्तिमय जीवन का दर्शनकर उनके शिष्य हो गये।   
 
*अध्ययन करते समय श्रीराधादामोदर का अगाध पाण्डित्य तथा साथ ही भक्तिमय जीवन का दर्शनकर उनके शिष्य हो गये।   
 
*तत्पश्चात [[वृन्दावन]] में प्रसिद्ध गौड़ीय रसिकाचार्य श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निकट श्रीमद्भागवत एवं अन्यान्य गोस्वामी-ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निर्देश से [[जयपुर]] में पधारे।  
 
*तत्पश्चात [[वृन्दावन]] में प्रसिद्ध गौड़ीय रसिकाचार्य श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निकट श्रीमद्भागवत एवं अन्यान्य गोस्वामी-ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निर्देश से [[जयपुर]] में पधारे।  
*वहाँ 'गलता' नामक प्रसिद्ध स्थान में श्री-सम्प्रदाय तथा अन्यान्य विपक्ष के विद्वानों को पराजित कर श्रीविजयगोपाल विग्रह की स्थापना की।   
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*वहाँ 'ग़लता' नामक प्रसिद्ध स्थान में श्री-सम्प्रदाय तथा अन्यान्य विपक्ष के विद्वानों को पराजित कर श्रीविजयगोपाल विग्रह की स्थापना की।   
 
*साथ ही उन्होंने अत्रस्थ विद्वानों की प्रतीति के लिए ब्रह्मसूत्र के श्रीगोविन्दभाष्य की रचना की तथा जयपुर के प्रसिद्ध गोविन्द-मन्दिर में श्रीगोविन्ददेव के साथ श्री[[राधा]]जी की भी पुन: प्रतिष्ठा की।   
 
*साथ ही उन्होंने अत्रस्थ विद्वानों की प्रतीति के लिए ब्रह्मसूत्र के श्रीगोविन्दभाष्य की रचना की तथा जयपुर के प्रसिद्ध गोविन्द-मन्दिर में श्रीगोविन्ददेव के साथ श्री[[राधा]]जी की भी पुन: प्रतिष्ठा की।   
 
*उनके द्वारा रचित गोविन्दभाष्य, षट्सन्दर्भ की टीका, सिद्धान्तरत्नम्, वेदान्तस्यामन्तक, प्रमेयरत्नावली, सिद्धान्तदर्पण आदि ग्रन्थावली ने श्रीगौड़ीय-वैष्णव-साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि की है।  
 
*उनके द्वारा रचित गोविन्दभाष्य, षट्सन्दर्भ की टीका, सिद्धान्तरत्नम्, वेदान्तस्यामन्तक, प्रमेयरत्नावली, सिद्धान्तदर्पण आदि ग्रन्थावली ने श्रीगौड़ीय-वैष्णव-साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि की है।  
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श्री श्यामसुन्दर / Shri Shyamsunder Temple

  • श्रीराधादामोदर मन्दिर के पास ही श्रीश्यामसुन्दर जी का मन्दिर स्थित है।
  • गौड़ीय वेदान्ताचार्य श्रील बलदेव विद्याभूषण द्वारा प्रतिष्ठित एवं सेवित श्रीराधा श्यामसुन्दर विग्रह के दर्शन अत्यन्त सुन्दर हैं।
  • मन्दिर के प्रवेश द्वार के सामने श्रीश्यामानन्द प्रभु की समाधि का दर्शन है।
  • श्रीबलदेव विद्याभूषण प्रभु उड़ीसा के अन्तर्गत प्रसिद्ध रेमुना के निकटवर्ती किसी गाँव में जन्मे थे।
  • चिलका हृद के तट पर किसी विद्वत गाँव में इन्होंने व्याकरण, अलंकार और न्याय शास्त्र का अध्ययन किया।
  • तत्पश्चात वेद अध्ययन के लिए मैसूर गये।
  • उसी समय उड़ुपी में उन्होंने वेदान्त के मध्व-भाष्य के साथ-साथ शंकर-भाष्य, श्री-भाष्य, पारिजात-भाष्य एवं अन्यान्य वेदान्त के भाष्यों का गहन अध्ययन किया।
  • कुछ दिन पश्चात श्रीधाम जगन्नाथ पुरी में श्रीरसिकानन्द प्रभु के शिष्य श्रीराधादामोदर के समीप षट्सन्दर्भ का अध्ययन किया।
  • अध्ययन करते समय श्रीराधादामोदर का अगाध पाण्डित्य तथा साथ ही भक्तिमय जीवन का दर्शनकर उनके शिष्य हो गये।
  • तत्पश्चात वृन्दावन में प्रसिद्ध गौड़ीय रसिकाचार्य श्रीविश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निकट श्रीमद्भागवत एवं अन्यान्य गोस्वामी-ग्रन्थों का अध्ययन किया तथा श्रील विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर के निर्देश से जयपुर में पधारे।
  • वहाँ 'ग़लता' नामक प्रसिद्ध स्थान में श्री-सम्प्रदाय तथा अन्यान्य विपक्ष के विद्वानों को पराजित कर श्रीविजयगोपाल विग्रह की स्थापना की।
  • साथ ही उन्होंने अत्रस्थ विद्वानों की प्रतीति के लिए ब्रह्मसूत्र के श्रीगोविन्दभाष्य की रचना की तथा जयपुर के प्रसिद्ध गोविन्द-मन्दिर में श्रीगोविन्ददेव के साथ श्रीराधाजी की भी पुन: प्रतिष्ठा की।
  • उनके द्वारा रचित गोविन्दभाष्य, षट्सन्दर्भ की टीका, सिद्धान्तरत्नम्, वेदान्तस्यामन्तक, प्रमेयरत्नावली, सिद्धान्तदर्पण आदि ग्रन्थावली ने श्रीगौड़ीय-वैष्णव-साहित्य के भण्डार की श्रीवृद्धि की है।




सम्बंधित लिंक

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