सत्यकाम जाबाल

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:११, २२ दिसम्बर २००९ का अवतरण (नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> ==सत्यकाम जाबाल / Satyakam Jabal== *समृद्धिशाली परिवारों में प...)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ


सत्यकाम जाबाल / Satyakam Jabal

  • समृद्धिशाली परिवारों में परिचारिका के कार्य से जीविकानिर्वाह करने वाली एक स्त्री थी जिसका नाम था जबाला।
  • उसे यौवन वयस में एक पुत्र हुआ जिसका नाम सत्यकाम था।
  • यथा समय शिक्षा प्राप्त करने के लिए जब वह गुरुकुल गया तो महर्षि गौतम ने उसका गोत्र पूछा। वह अपनी माँ से अपना गोत्र जानना चाहा। माँ ने कहा- 'तुम गुरु से कहना मेरी माँ का नाम सत्काम जबाला है और तुम्हारा नाम सत्यकाम है। अतः, तुम गुरु से कहना कि मै सत्काम जाबाल हूँ। जाओ।'
  • गुरु के पास आकर सत्यकाम ने अपनी माँ के कथनानुसार अपने को सत्यकाम जाबाल बतलाया और स्पष्ट शब्दों में कहा कि माँ को पिता का नाम स्मरण नहीं है। मै भी कहा कि वत्स! ब्राह्मण ही ऐसा सत्यवादी हो सकता है। जाओ! समिधा ले आओ। मे तुम्हें उपनीत करूँगा। उपनय संस्कार के अनन्तर गुरु ने सत्यकाम को चार सौ कृशकाय गायें दीं और कहा कि इन्हें लेकर जाओ। गोचारण करते-करते जब इनकी संख्या एक हजार हो जाय तब उनके साथ गुरुकुल वापस आ जाना।
  • जंगल में गोचारण करते हुए जब कालक्रम से उसके पास गायों की संख्या एक हजार हो गयी तब एक दिन उस गोयूथ में विद्यमान वृषभ ने सत्यकाम से कहा के वत्स! अब हमारी संख्या एक हजार हो गयी है। अतः अब हमेंज गुरुकुल वापस ले चलो। मै तुम्हें ब्रह्मबोध के एक चरण की शिक्षा प्रदान करता हूँ। सत्यकाम उनके साथ गुरुकुल चल पड़ा। मार्ग में अध्वरवेद से कलान्त होकर जब-जब वह विश्राम किया करता था तब क्रमशः तीन स्थानों पर अग्नि, हंस और एक अन्य जलचर पक्षी ने उसे ब्रह्मबोध के अवशिष्ट तीन चरणों का उपदेश दिया। इस प्रकार, पूर्ण ब्रह्मज्ञान की दिप्ति से विभास्वर होकर सत्यकाम जब एक हजार गायों के साथ गुरुकुल वापस आया तो गुरु ने उससे पूछा कि वत्स! तुम ब्रह्मज्ञान से दीप्त दिखलायी देते हो। कहो! किसने तुम्हें ब्रह्म का उपदेश प्रदान किया है? इस पर सत्यकाम ने सारा वृतान्त कहकर उनसे निवेदन किया कि गुरुमुख से अधिगत विद्या ही फलवती होती है। अतः आप मुझे ब्रह्मविद्या का उपदेश दीजिए। सत्यकाम के विनयपूर्ण से महर्षि गौतम ने उसे पुनः सांगोपांग ब्रह्मविद्या का उपदेश प्रदान किया।
  • इस आख्यान में तत्कालीन सामाजिक स्थिति के परिपाश्र्व में दासीवृति के द्वारा जीवन-यापन करने वाली जबाला की आत्मवृत-विषयक स्पष्टोक्ति, ॠजु-स्वभाव एवं निश्र्छलता का परिचय प्राप्त होता है। माता के कथानुसार निस्संकोच एवं अकुण्ठ भाव से अपने मातृलुक गोत्र का उल्लेख करने वाले सत्यकाम के चरित्र में सत्यवादिता को हम आश्चर्यजनक रूप में प्रतिष्ठित पाते है। गो-सहस्त्र के साथ गुरुकुल लौटने के क्रम में सत्यकाम को वृषभ, अग्नि, हंस एवं जलचर पक्षी के द्वारा रहस्यभूत ब्रह्मज्ञान की देशना के वृतान्त में प्राणि-पात्रप्रधान कथाबन्ध का परवर्त्ती स्वरूप उन्मेषोन्मुख उपलब्ध होता है, जो अनिर्भ्रान्त भाव से इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि तत्कालीन लोकमानस में पशु-पक्षी एवं अचेतन प्राकृतिक तत्त्व द्वारा मनुष्य की वाणी का व्यवहार किया जाना सन्देहातीत रूप में स्वीकृत हो चुका था। परन्तु, परवर्त्ती तर्कचेतना-वशम्वद भाष्यकारों ने इस आख्यान में चर्चित पात्रों पर देवतात्त्व का अध्यारोप कर दिया है। तदनुसार, वृषभ प्रभुति क्रमशः वायु, आदित्य एवं प्राणशक्ति के प्रतिरूप के रूप में व्याख्यात हुए हैं।