"सरस्वती" के अवतरणों में अंतर

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सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी । तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हराभरा था । उस समय यमुना, सतलुज व घग्गर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं । बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं । हिमालय की पहाड़ियों में प्राचीन काल से हीभूगर्भीय गतिविधियाँ चलती रही हैं ।
 
सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी । तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हराभरा था । उस समय यमुना, सतलुज व घग्गर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं । बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं । हिमालय की पहाड़ियों में प्राचीन काल से हीभूगर्भीय गतिविधियाँ चलती रही हैं ।
 
संभवतः ऐसी ही किसी हलचल के कारण सरस्वती का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हुआ और वह मार्ग बदलकर बहने लगी । बदले मार्ग पर इसे हिमालय से जल नहीं मिला और यह वर्षा जल से बहने वाली नदी बनकर रह गई । धीरे धीरे राजस्थान क्षेत्र में मौसम गर्म होता गया और वर्षा जल भी न मिलने के कारण सरस्वती नदी सूखकर विलुप्त हो गई ।
 
संभवतः ऐसी ही किसी हलचल के कारण सरस्वती का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हुआ और वह मार्ग बदलकर बहने लगी । बदले मार्ग पर इसे हिमालय से जल नहीं मिला और यह वर्षा जल से बहने वाली नदी बनकर रह गई । धीरे धीरे राजस्थान क्षेत्र में मौसम गर्म होता गया और वर्षा जल भी न मिलने के कारण सरस्वती नदी सूखकर विलुप्त हो गई ।
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के एस वल्दिया की पुस्तक 'सरस्वती, द रिवर दैट डिसेपीयर्ड' और बी पी राधाकृष्णा व एस एस मेढ़ा की पुस्तक 'वैदिक सरस्वती' में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी ।
 
के एस वल्दिया की पुस्तक 'सरस्वती, द रिवर दैट डिसेपीयर्ड' और बी पी राधाकृष्णा व एस एस मेढ़ा की पुस्तक 'वैदिक सरस्वती' में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी ।

०५:१६, १२ मई २००९ का अवतरण

सरस्वती नदी

कई भू-विज्ञानी मानते हैं, और ऋग्वेद में भी कहा गया है, कि हज़ारों साल पहले सतलुज (जो सिन्धु नदी की सहायक नदी है) और यमुना (जो गंगा की सहायक नदी है) के बीच एक विशाल नदी थी जो हिमालय से लेकर अरब सागर तक बहती थी । आज ये भूगर्भी बदलाव के कारण सूख गयी है । ऋग्वेद में, वैदिक काल में इस नदी सरस्वती को 'नदीतमा' की उपाधि दी गयी है । उस सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी, गंगा नहीं । सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी । तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हराभरा था । उस समय यमुना, सतलुज व घग्गर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं । बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं । हिमालय की पहाड़ियों में प्राचीन काल से हीभूगर्भीय गतिविधियाँ चलती रही हैं । संभवतः ऐसी ही किसी हलचल के कारण सरस्वती का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हुआ और वह मार्ग बदलकर बहने लगी । बदले मार्ग पर इसे हिमालय से जल नहीं मिला और यह वर्षा जल से बहने वाली नदी बनकर रह गई । धीरे धीरे राजस्थान क्षेत्र में मौसम गर्म होता गया और वर्षा जल भी न मिलने के कारण सरस्वती नदी सूखकर विलुप्त हो गई ।

के एस वल्दिया की पुस्तक 'सरस्वती, द रिवर दैट डिसेपीयर्ड' और बी पी राधाकृष्णा व एस एस मेढ़ा की पुस्तक 'वैदिक सरस्वती' में कहा गया है कि मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, राजस्थान के रास्ते कच्छ पहुंचती थी ।