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*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- श्रीमद्भागवत गीता'''  
 
*यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । '''- श्रीमद्भागवत गीता'''  
 
*इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। '''-विनोबा भावे'''
 
*इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। '''-विनोबा भावे'''
*जीवन का कार्यक्रम है रचनात्मक, विनाशात्मक नहीं;<br /> मनुष्य का कर्तव्य है अनुराग, विराग नहीं।<br />'''-भगवतीचरण वर्मा'''        [[सूक्ति और विचार|.... और पढ़ें]]  
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*जीवन का कार्यक्रम है रचनात्मक, विनाशात्मक नहीं;<br /> मनुष्य का कर्तव्य है अनुराग, विराग नहीं।<br />'''-भगवतीचरण वर्मा'''         
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*ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।<br>- '''हजारीप्रसाद द्विवेदी'''
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*शब्द खतरनाक वस्तु हैं । सर्वाधिक खतरे की बात तो यह है कि वे हमसे यह कल्पना करा लेते हैं कि हम बातों को समझते हैं जबकि वास्तव में हम नहीं समझते ।<br> - '''चक्रवती राजगोपालाचार्य''' [[सूक्ति और विचार|.... और पढ़ें]]  
 
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०६:५३, २३ फ़रवरी २०१० का अवतरण

सूक्ति और विचार

कृष्ण अर्जुन को ज्ञान देते हुए
  • जब तक जीना, तब तक सीखना - अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
    -स्वामी विवेकानन्द
  • यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता
  • इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। -विनोबा भावे
  • जीवन का कार्यक्रम है रचनात्मक, विनाशात्मक नहीं;
    मनुष्य का कर्तव्य है अनुराग, विराग नहीं।
    -भगवतीचरण वर्मा
  • ईमानदारी और बुद्धिमानी के साथ किया हुआ काम कभी व्यर्थ नहीं जाता ।
    - हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • शब्द खतरनाक वस्तु हैं । सर्वाधिक खतरे की बात तो यह है कि वे हमसे यह कल्पना करा लेते हैं कि हम बातों को समझते हैं जबकि वास्तव में हम नहीं समझते ।
    - चक्रवती राजगोपालाचार्य .... और पढ़ें