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सूक्ति और विचार
- यह मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग करता है, वह उस-उस को ही प्राप्त होता हैं; क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहा है । - श्रीमद्भागवत गीता
- इतिहास याने अनादिकाल से अब तक का सारा जीवन । पुराण याने अनादि काल से अब तक टिका हुआ अनुभव का अमर अंश। -विनोबा भावे
- जीवन का कार्यक्रम है रचनात्मक, विनाशात्मक नहीं;
मनुष्य का कर्तव्य है अनुराग, विराग नहीं। -भगवतीचरण वर्मा
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