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− | संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं -- पहला- सिन्धु नदी का नाम, जो लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती है, और दूसरा- कोई भी नदी या | + | संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं -- पहला- सिन्धु नदी का नाम, जो लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती है, और दूसरा- कोई भी नदी या जलराशि। |
− | हिन्द [[आर्य]] भाषाऑ की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में लगभग हमेशा बदल जाती है (ऐसा भाषाविदों का मानना है) । इसलिये [[सप्त सिन्धु]] अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हप्त | + | हिन्द [[आर्य]] भाषाऑ की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में लगभग हमेशा बदल जाती है (ऐसा भाषाविदों का मानना है)। इसलिये [[सप्त सिन्धु]] अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हप्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया।<balloon title="अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18" style="color:blue">*</balloon> |
− | सिंधु पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी है, [[तिब्बत]] के [[मानसरोवर]] के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा सिन्धु नदी का उद्गम स्थल | + | सिंधु पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी है, [[तिब्बत]] के [[मानसरोवर]] के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा सिन्धु नदी का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और [[कश्मीर]] के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर [[अरब सागर]] में मिलती है। |
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− | *सिंधु नदी हिमालय की पश्चिमी श्रेणियों से निकल कर कराची के निकट समुद्र में गिरती है। इस नदी की महिमा | + | *सिंधु नदी [[हिमालय]] की पश्चिमी श्रेणियों से निकल कर कराची के निकट समुद्र में गिरती है। इस नदी की महिमा [[ॠग्वेद]] में अनेक स्थानों पर वर्णित है- |
− | 'त्वंसिधो कुभया गोमतीं क्रुमुमेहत्न्वा सरथं याभिरीयसे' | + | 'त्वंसिधो कुभया गोमतीं क्रुमुमेहत्न्वा सरथं याभिरीयसे'<balloon title="ऋग्वेद10,75,6" style="color:blue">*</balloon> |
− | *ऋग्वेद < | + | *ऋग्वेद<balloon title="ऋग्0 10,75,4" style="color:blue">*</balloon> में सिंधु में अन्य नदियों के मिलने की समानता बछड़े से मिलने के लिए आतुर गायों से की गई है-- |
'अभित्वा सिंधो शिशुभिन्नमातरों वाश्रा अर्षन्ति पयसेव धेनव:' | 'अभित्वा सिंधो शिशुभिन्नमातरों वाश्रा अर्षन्ति पयसेव धेनव:' | ||
− | सिंधु के नाद को आकाश तक पहुंचता हुआ कहा गया है। जिस प्रकार मेघों से पृथ्वी पर घोर निनाद के साथ वर्षा होती है उसी प्रकार सिंधु दहाड़ते हुए वृषभ की तरह अपने चमकदार जल को उछालती हुई आगे बढ़ती चली जाती है- | + | सिंधु के नाद को आकाश तक पहुंचता हुआ कहा गया है। जिस प्रकार मेघों से [[पृथ्वी]] पर घोर निनाद के साथ वर्षा होती है उसी प्रकार सिंधु दहाड़ते हुए वृषभ की तरह अपने चमकदार जल को उछालती हुई आगे बढ़ती चली जाती है- |
'दिवि स्वनो यततेभूग्यो पर्यनन्तं शुष्ममुदियर्तिभानुना। | 'दिवि स्वनो यततेभूग्यो पर्यनन्तं शुष्ममुदियर्तिभानुना। | ||
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− | *सिंधु शब्द से प्राचीन फारसी का हिंदू शब्द बना है क्योंकि यह नदी भारत की पश्चिमी सीमा पर बहती थी और इस सीमा के उस पार से आने वाली जातियों के लिए सिंधु नदी को पार करने का अर्थ भारत में प्रवेश करना था। | + | *सिंधु शब्द से प्राचीन फारसी का हिंदू शब्द बना है क्योंकि यह नदी भारत की पश्चिमी सीमा पर बहती थी और इस सीमा के उस पार से आने वाली जातियों के लिए सिंधु नदी को पार करने का अर्थ भारत में प्रवेश करना था। यूनानियों ने इसी आधार पर सिंध को इंडस और भारत को इंडिया नाम दिया था। अवेस्ता में हिंदू शब्द भारतवर्ष के लिए ही प्रयुक्त हुआ है <balloon title=" मेकडानेल्ड-ए हिस्ट्री आव संस्कृत लिटरेचर, पृ0 141" style="color:blue">*</balloon> |
− | *ऋग्वेद में सप्तसिंधव: का उल्लेख है जिसे अवस्ता में हप्तहिंदू कहा गया है। यह सिंधु तथा उसकी पंजाब की छ: अन्य सहायक नदियों (वितस्ता, असिक्नी, परूष्णी, विपाशा, शुतुद्रि, तथा सरस्वती) का संयुक्त नाम है। सप्तसिंधु नाम रोमन सम्राट् आगस्टस के समकालीन रोमनों को भी ज्ञात था जैसा कि महाकवि वर्जिल के < | + | *ऋग्वेद में सप्तसिंधव: का उल्लेख है जिसे अवस्ता में हप्तहिंदू कहा गया है। यह सिंधु तथा उसकी पंजाब की छ: अन्य सहायक नदियों (वितस्ता, असिक्नी, परूष्णी, विपाशा, शुतुद्रि, तथा सरस्वती) का संयुक्त नाम है। सप्तसिंधु नाम रोमन सम्राट् आगस्टस के समकालीन रोमनों को भी ज्ञात था जैसा कि महाकवि वर्जिल के<balloon title=" Aeneid, 9,30" style="color:blue">*</balloon> उल्लेख से स्पष्ट है- |
Ceu septum surgens, sedates omnibus altus per tacitum-Ganges. | Ceu septum surgens, sedates omnibus altus per tacitum-Ganges. | ||
− | *सिंधु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों-कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। | + | *सिंधु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों-कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। सिंधु नदी की महानता के कारण उत्तरवैदिक काल में समुद्र का नाम भी सिंधु ही पड़ गया था। आज भी सिंधु नदी के प्रदेश के निवासी इस नदी को 'सिंध का समुद्र' कहते हैं। <balloon title=" मेकडानेल्ड, पृ0 143" style="color:blue">*</balloon> |
− | *वाल्मीकि रामायण <ref>वाल्मीकि रामायण | + | *वाल्मीकि [[रामायण]]<ref>[[वाल्मीकि रामायण]] [[बाल काण्ड वा॰ रा॰|बालकाण्ड]] 43,133</ref> में सिंधु को महा नदी की संज्ञा दी गई है, |
'सुचक्षुशचैव सीता च, सिंधुश्चैव महानदी, तिस्त्रश्चैता दिशं जग्मु: प्रतीचीं सु दिशं शुभा:' | 'सुचक्षुशचैव सीता च, सिंधुश्चैव महानदी, तिस्त्रश्चैता दिशं जग्मु: प्रतीचीं सु दिशं शुभा:' | ||
− | इस प्रसंग में सिंधु की सुचक्षु (=वंक्षु) तथा सीता (=तरिम) के साथ गंगा की पश्चिमी धारा माना गया है। महाभारत<ref>महाभारत भीष्म 9,14 </ref> में सिंधु का, गंगा और सरस्वती के साथ उल्लेख है, | + | इस प्रसंग में सिंधु की सुचक्षु (=वंक्षु) तथा सीता (=तरिम) के साथ [[गंगा]] की पश्चिमी धारा माना गया है। [[महाभारत]]<ref>महाभारत [[भीष्म]] 9,14 </ref> में सिंधु का, गंगा और [[सरस्वती नदी|सरस्वती]] के साथ उल्लेख है, |
'नदी पिवन्ति विपुलां गंगा सिंधु सरस्वतीम् गोदावरी नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्' | 'नदी पिवन्ति विपुलां गंगा सिंधु सरस्वतीम् गोदावरी नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्' | ||
− | सिंधु नदी के तटवर्ती ग्रामणीयों को नकुल ने अपनी पश्चिमी दिशा की दिग्विजय यात्रा में जीता था, | + | सिंधु नदी के तटवर्ती ग्रामणीयों को [[नकुल]] ने अपनी पश्चिमी दिशा की दिग्विजय यात्रा में जीता था, |
− | 'गणानुत्सवसंकेतान् व्यजयत् | + | 'गणानुत्सवसंकेतान् व्यजयत् पुरुषर्षभ: संधुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया महाबला:'<balloon title="महाभारत सभा0 32,9 " style="color:blue">*</balloon> |
− | ग्रामणीय या ग्रामणीय लोग वर्तमान यूसुफजाइयों आदि कबीलों के | + | ग्रामणीय या ग्रामणीय लोग वर्तमान यूसुफजाइयों आदि कबीलों के पूर्वपुरुष थे। उत्सेधजीवी ग्रामीणीयों (उत्सेधजीवी=लुटेरा¬) को पूगग्रामणीय भी कहा जाता था। ये कबीले अपने सरदारों के नाम से ही अभिहित किए जाते थे, जैसा कि पाणिनि के उल्लेख से स्पष्ट है 'स एषां ग्रामणी:'। [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]]<ref>[[गीता|श्रीमद् भागवत]] 5,19,18</ref> में शायद सिंधु को सप्तवती कहा गया है, क्योंकि सिंधु सात नदियों की संयुक्त धारा के रूप में समुद्र में गिरती है। |
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− | महारौली स्थित लौहस्तंभ पर चंद्र के अभिलेख में सिंधु के सप्तमुखीं का उल्लेख | + | महारौली स्थित लौहस्तंभ पर चंद्र के अभिलेख में सिंधु के सप्तमुखीं का उल्लेख है। [[रघुवंश]]<balloon title="रघुवंश 4,67" style="color:blue">*</balloon> में [[कालिदास]] ने रघु की दिग्विजय के प्रसंग में सिंधु तीर पर सेना के घोड़ों के विश्राम करते समय भूमि पर लोटने के कारण अनेक कंधों से संलग्न केसरलवों के विकीर्ण हो जाने का मनोहर वर्णन किया है, |
'विनीताध्वश्रमास्तस्य सिंधुतीरविचेष्टनै: दुधुवुर्वाजिन: स्कंधांल्लग्नकुंकुमकेसरान्' | 'विनीताध्वश्रमास्तस्य सिंधुतीरविचेष्टनै: दुधुवुर्वाजिन: स्कंधांल्लग्नकुंकुमकेसरान्' | ||
इस वर्णन से यह सूचित होता है कि कालिदास के समय में केसर सिंधु नदी का दक्षिणी समुद्र तट है। | इस वर्णन से यह सूचित होता है कि कालिदास के समय में केसर सिंधु नदी का दक्षिणी समुद्र तट है। | ||
− | *जैनग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिंधु नदी को चुल्लहिमवान् के एक विशाल सरोवर के पश्चिम की ओर से निस्सृत माना है और | + | *जैनग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिंधु नदी को चुल्लहिमवान् के एक विशाल सरोवर के पश्चिम की ओर से निस्सृत माना है और गंगा को पूर्व की ओर से। |
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१३:०९, २ नवम्बर २०१३ के समय का अवतरण
सिन्धु नदी / Sindhu River
संस्कृत में सिन्धु शब्द के दो मुख्य अर्थ हैं -- पहला- सिन्धु नदी का नाम, जो लद्दाख़ और पाकिस्तान से बहती है, और दूसरा- कोई भी नदी या जलराशि। हिन्द आर्य भाषाऑ की 'स' ध्वनि ईरानी भाषाओं की 'ह' ध्वनि में लगभग हमेशा बदल जाती है (ऐसा भाषाविदों का मानना है)। इसलिये सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हप्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया।<balloon title="अवेस्ता: वेन्दीदाद, फ़र्गर्द 1.18" style="color:blue">*</balloon> सिंधु पाकिस्तान की सबसे बड़ी नदी है, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा सिन्धु नदी का उद्गम स्थल है। इस नदी की लंबाई प्रायः 2880 किलोमीटर है। यहाँ से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है।
- सिंधु नदी हिमालय की पश्चिमी श्रेणियों से निकल कर कराची के निकट समुद्र में गिरती है। इस नदी की महिमा ॠग्वेद में अनेक स्थानों पर वर्णित है-
'त्वंसिधो कुभया गोमतीं क्रुमुमेहत्न्वा सरथं याभिरीयसे'<balloon title="ऋग्वेद10,75,6" style="color:blue">*</balloon>
- ऋग्वेद<balloon title="ऋग्0 10,75,4" style="color:blue">*</balloon> में सिंधु में अन्य नदियों के मिलने की समानता बछड़े से मिलने के लिए आतुर गायों से की गई है--
'अभित्वा सिंधो शिशुभिन्नमातरों वाश्रा अर्षन्ति पयसेव धेनव:'
सिंधु के नाद को आकाश तक पहुंचता हुआ कहा गया है। जिस प्रकार मेघों से पृथ्वी पर घोर निनाद के साथ वर्षा होती है उसी प्रकार सिंधु दहाड़ते हुए वृषभ की तरह अपने चमकदार जल को उछालती हुई आगे बढ़ती चली जाती है-
'दिवि स्वनो यततेभूग्यो पर्यनन्तं शुष्ममुदियर्तिभानुना।
अभ्रादिव प्रस्तनयन्ति वृष्टय: सिंधुर्यदेति वृषभो न रोरूवत्'<balloon title=" ऋग्0 10,75,3" style="color:blue">*</balloon>
- सिंधु शब्द से प्राचीन फारसी का हिंदू शब्द बना है क्योंकि यह नदी भारत की पश्चिमी सीमा पर बहती थी और इस सीमा के उस पार से आने वाली जातियों के लिए सिंधु नदी को पार करने का अर्थ भारत में प्रवेश करना था। यूनानियों ने इसी आधार पर सिंध को इंडस और भारत को इंडिया नाम दिया था। अवेस्ता में हिंदू शब्द भारतवर्ष के लिए ही प्रयुक्त हुआ है <balloon title=" मेकडानेल्ड-ए हिस्ट्री आव संस्कृत लिटरेचर, पृ0 141" style="color:blue">*</balloon>
- ऋग्वेद में सप्तसिंधव: का उल्लेख है जिसे अवस्ता में हप्तहिंदू कहा गया है। यह सिंधु तथा उसकी पंजाब की छ: अन्य सहायक नदियों (वितस्ता, असिक्नी, परूष्णी, विपाशा, शुतुद्रि, तथा सरस्वती) का संयुक्त नाम है। सप्तसिंधु नाम रोमन सम्राट् आगस्टस के समकालीन रोमनों को भी ज्ञात था जैसा कि महाकवि वर्जिल के<balloon title=" Aeneid, 9,30" style="color:blue">*</balloon> उल्लेख से स्पष्ट है-
Ceu septum surgens, sedates omnibus altus per tacitum-Ganges.
- सिंधु की पश्चिम की ओर की सहायक नदियों-कुभा सुवास्तु, कुमु और गोमती का उल्लेख भी ऋग्वेद में है। सिंधु नदी की महानता के कारण उत्तरवैदिक काल में समुद्र का नाम भी सिंधु ही पड़ गया था। आज भी सिंधु नदी के प्रदेश के निवासी इस नदी को 'सिंध का समुद्र' कहते हैं। <balloon title=" मेकडानेल्ड, पृ0 143" style="color:blue">*</balloon>
- वाल्मीकि रामायण[१] में सिंधु को महा नदी की संज्ञा दी गई है,
'सुचक्षुशचैव सीता च, सिंधुश्चैव महानदी, तिस्त्रश्चैता दिशं जग्मु: प्रतीचीं सु दिशं शुभा:'
इस प्रसंग में सिंधु की सुचक्षु (=वंक्षु) तथा सीता (=तरिम) के साथ गंगा की पश्चिमी धारा माना गया है। महाभारत[२] में सिंधु का, गंगा और सरस्वती के साथ उल्लेख है,
'नदी पिवन्ति विपुलां गंगा सिंधु सरस्वतीम् गोदावरी नर्मदां च बाहुदां च महानदीम्'
सिंधु नदी के तटवर्ती ग्रामणीयों को नकुल ने अपनी पश्चिमी दिशा की दिग्विजय यात्रा में जीता था,
'गणानुत्सवसंकेतान् व्यजयत् पुरुषर्षभ: संधुकूलाश्रिता ये च ग्रामणीया महाबला:'<balloon title="महाभारत सभा0 32,9 " style="color:blue">*</balloon> ग्रामणीय या ग्रामणीय लोग वर्तमान यूसुफजाइयों आदि कबीलों के पूर्वपुरुष थे। उत्सेधजीवी ग्रामीणीयों (उत्सेधजीवी=लुटेरा¬) को पूगग्रामणीय भी कहा जाता था। ये कबीले अपने सरदारों के नाम से ही अभिहित किए जाते थे, जैसा कि पाणिनि के उल्लेख से स्पष्ट है 'स एषां ग्रामणी:'। श्रीमद्भागवत[३] में शायद सिंधु को सप्तवती कहा गया है, क्योंकि सिंधु सात नदियों की संयुक्त धारा के रूप में समुद्र में गिरती है।
महारौली स्थित लौहस्तंभ पर चंद्र के अभिलेख में सिंधु के सप्तमुखीं का उल्लेख है। रघुवंश<balloon title="रघुवंश 4,67" style="color:blue">*</balloon> में कालिदास ने रघु की दिग्विजय के प्रसंग में सिंधु तीर पर सेना के घोड़ों के विश्राम करते समय भूमि पर लोटने के कारण अनेक कंधों से संलग्न केसरलवों के विकीर्ण हो जाने का मनोहर वर्णन किया है,
'विनीताध्वश्रमास्तस्य सिंधुतीरविचेष्टनै: दुधुवुर्वाजिन: स्कंधांल्लग्नकुंकुमकेसरान्'
इस वर्णन से यह सूचित होता है कि कालिदास के समय में केसर सिंधु नदी का दक्षिणी समुद्र तट है।
- जैनग्रंथ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में सिंधु नदी को चुल्लहिमवान् के एक विशाल सरोवर के पश्चिम की ओर से निस्सृत माना है और गंगा को पूर्व की ओर से।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड 43,133
- ↑ महाभारत भीष्म 9,14
- ↑ श्रीमद् भागवत 5,19,18
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