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* गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता। गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है।<br /> -'''लक्ष्मीनारायण मिश्र''' (गरुड़ध्वज, पृ0 79) | * गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता। गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है।<br /> -'''लक्ष्मीनारायण मिश्र''' (गरुड़ध्वज, पृ0 79) | ||
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+ | * चापलूसी करके स्वर्ग प्राप्त करने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ नर्क में रहना।<br />- चौधरी दिगम्बर सिंह | ||
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०१:१५, २ फ़रवरी २०१० का अवतरण
सूक्ति और विचार
- जीवन अविकल कर्म है, न बुझने वाली पिपासा है। जीवन हलचल है, परिवर्तन है; और हलचल तथा परिवर्तन में सुख और शान्ति का कोई स्थान नहीं।
-भगवती चरण वर्मा (चित्रलेखा, पृ0 24)
- उदारता और स्वाधीनता मिल कर ही जीवनतत्व है।
-अमृतलाल नागर (मानस का हंस, पृ0 367)
- सत्य, आस्था और लगन जीवन-सिद्धि के मूल हैं।
-अमृतलाल नागर (अमृत और विष, पृ0 437)
- गंगा तुमरी साँच बड़ाई।
एक सगर-सुत-हित जग आई तारयौ॥
नाम लेत जल पिअत एक तुम तारत कुल अकुलाई।
'हरीचन्द्र' याही तें तो सिव राखी सीस चढ़ाई॥
-भारतेन्दु हरिश्चंद्र (कृष्ण-चरित्र, 37)
- गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता। गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है।
-लक्ष्मीनारायण मिश्र (गरुड़ध्वज, पृ0 79)
- चापलूसी करके स्वर्ग प्राप्त करने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ नर्क में रहना।
- चौधरी दिगम्बर सिंह