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− | स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुध्द से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था । सम्राट [[अशोक]] ने भी स्तंम्भ बनवाये थे । साँची का पता सन् 1818 ई. में जनरल टायलर ने लगाया था । विश्वप्रसिद्ध [[बौद्ध]] स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से 4 मील की दूरी पर 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर है । प्रज्ञातिष्य महानायक थैर्यन के अनुसार यहाँ के बड़े स्तूप में स्वयं भगवान [[बुद्ध]] के तथा छोटे स्तूपों में भगवान- बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत ( सारिपुत्र ) तथा महामौद्गलायन समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं के धातु रखे हैं । राजा तथा श्रद्धालु-जनता के सहयोग से यह निर्माण-कार्य हुआ । | + | स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुध्द से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था । सम्राट [[अशोक]] ने भी स्तंम्भ बनवाये थे । [[साँची]] का पता सन् 1818 ई. में जनरल टायलर ने लगाया था । विश्वप्रसिद्ध [[बौद्ध]] स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से 4 मील की दूरी पर 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर है । प्रज्ञातिष्य महानायक थैर्यन के अनुसार यहाँ के बड़े स्तूप में स्वयं भगवान [[बुद्ध]] के तथा छोटे स्तूपों में भगवान- बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत ( सारिपुत्र ) तथा महामौद्गलायन समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं के धातु रखे हैं । राजा तथा श्रद्धालु-जनता के सहयोग से यह निर्माण-कार्य हुआ । |
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स्तूप / Stup
स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुध्द से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था । सम्राट अशोक ने भी स्तंम्भ बनवाये थे । साँची का पता सन् 1818 ई. में जनरल टायलर ने लगाया था । विश्वप्रसिद्ध बौद्ध स्तूपों के लिए जाना जाने वाला साँची, विदिशा से 4 मील की दूरी पर 300 फीट ऊँची पहाड़ी पर है । प्रज्ञातिष्य महानायक थैर्यन के अनुसार यहाँ के बड़े स्तूप में स्वयं भगवान बुद्ध के तथा छोटे स्तूपों में भगवान- बुद्ध के प्रिय शिष्य सारिपुत ( सारिपुत्र ) तथा महामौद्गलायन समेत कई अन्य बौद्ध भिक्षुओं के धातु रखे हैं । राजा तथा श्रद्धालु-जनता के सहयोग से यह निर्माण-कार्य हुआ ।