"स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 5 )" के अवतरणों में अंतर

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20 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला0 शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन  हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री लक्ष्मण प्रसाद नागर, डा0 गंगोली, डा0 मुन्नालाल, द्वारिकाप्रसाद भरतिया, डा0 राजस्वरूप सरीन, नारायणदास बी.ए. (वृन्दावन), गो. छबीले लाल(वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । दिल्ली, आगरा और अलीगढ के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे ।  
 
20 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला0 शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन  हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री लक्ष्मण प्रसाद नागर, डा0 गंगोली, डा0 मुन्नालाल, द्वारिकाप्रसाद भरतिया, डा0 राजस्वरूप सरीन, नारायणदास बी.ए. (वृन्दावन), गो. छबीले लाल(वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । दिल्ली, आगरा और अलीगढ के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे ।  
==मथुरा 1921 से==
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==मथुरा 1921 तक==
 
जनवरी सन् 1922 तक असहयोग आन्दोलन का बडा जोर रहा । अनेक जुलूस और गिरफ्तारियों का तांता लग गया । 17 नवम्बर सन् 1921 को मथुरा में पूर्ण हडताल हुई । गोवर्धन में हडताल के पर्चे बांटते हुए मौलाना यासीन बेग को गिरफ्तार कर लिया गया । वृन्दावन के श्री बाल गोविन्द (उप-सम्पादक ‘प्रेम’), श्री पुरूषोत्तम लाल, हरीकृष्ण भी उन्ही दिनों गिरफ्तार हुए और जेल का दण्ड मिला । 16 दिसम्बर सन् 1921 को 5 स्वयंसेवक सर्वश्री केदारनाथ भार्गव, राजदयाल शर्मा, रामचंद्र सिंघल, भजन लाल एवं बाबूसिंह की गिरफ्तारी हुई । 17 दिसम्बर को सर्वश्री रामशरण जौहरी, नन्दलाल शर्मा, गोपाल प्रसाद चौबे, रामचन्द्र सूरदास मौलवी अब्दुल लतीफ गिरफ्तार हुए । 18 दिसम्बर को 11 स्वयंसेवक –सर्वश्री राजेन्द्रनाथ भार्गव, मौलाना इनाम इलाही, बाबूलाल, मौलाना अब्दुल वाहिद, अब्दुल शकूर, छंगा, शिवनाराण दत्त, ताराचन्द, मास्टर अम्बा प्रसाद, रामरतन लाल अवस्थी, शरतकुमार मुखर्जी आदि मथुरा में गिरफ्तसा हुए । दूसरे दिन 21 स्वयंसेवको का मुकदमा हुआ । पं. दुर्गादत्त जी की अदालत ने इन्हें 3-3 मास की जेल का दण्ड दिया । 19 दिसम्बर को मथुरा के सर्वश्री देवीचरण, गोपीनाथ, मौलाना अलादीन, पन्नालाल, ठाकुर टीकमसिंह एवं नत्थीसिंह (सरोठ), ला. द्वारकाप्रसाद (फरह) मथुरा में गिरफ्तार हुए । 20 दिसम्बर को 19 स्वयंसेवक सर्वश्री राधावल्लभ भार्गव, मुरलधर, ठाकुर इन्द्रजीत, प्रसादीलाल, ला. ब्रज भूषण स्वरूप, गोरखनाथ, बनवारी लाल, अकबर, कुल्लो, नत्थन कसाई गिरफ्तार हुए । 21 दिसम्बर को 8 स्वयंसेवक-सर्वश्री केशवराम टण्डन (मथुरा), सौख के गोकुल चन्द, रामचन्द्र एवं सोहनलाल और मथुरा के किशोरी प्रसाद, श्रीनाथ एवं मौलाना मुहम्मद हुसेन की गिरफ्तारी हुई । 22 दिसम्बर को 13 स्वयंसेवक- डा. मुन्नालाल, कुन्दन लाल शर्मा, बैकुण्ठनाथ भार्गव , रामप्रसाद हुलासी हज्जाम, छंगा कसाई, ठाकुर मदन, मूलचन्द तमोली, गोवर्धन के सर्वश्री रामचन्द्र,रामगोपाल सिंह, गोस्वामी अवनि कुमार एवं ब्रज किशोर शर्मा मथुरा में गिरफ्तार हुए । 23 दिंसम्बर को मौलाना अब्दुल गनी के नेतृत्व में 40 खिलाफत के स्वयंसेवको का जुलूस निकाला । इनमें 28 को गिरफ्तार किया गया । इन्हीं दिनों अनेक जुलूस निकले । बच्चों तक ने जुलूस निकाले थे । 19 और 20 दिसम्बर की गिरफ्तारियों के मुकदमों की निर्णय जेल में ही हुआ । सब देशभक्तों को 2 मास से 4 मास तक का जेल दण्ड दिया गया । सन् 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान तत्कालीन प्रसिद्व जोशीले वक्ता श्री राधाकृष्ण भार्गव को 108 दफा के अन्तर्गत 1 वर्ष कारावास का दण्ड मिला था । वृन्दावन के गोस्वामी छबीले लाल को खुर्जा के भाषण के अपराध में 124 दफा के अन्तर्गत 1॥वर्ष जेल की सजा मिली थी । श्री मदनमोहन चतुर्वेदी (मथुरा) 8 अप्रैल सन् 1921 में गोरखपुर के भाषण के आधार पर 11 मई 1921 को मथुरा में गिरफ्तार हुए और दण्डित हुए । यह बात ध्यान देने योग्य है कि सन् 1921 के आन्दोलन में मथुरा के 100 से अधिक लोग जेल गये जिनमें चौथाई मुसलमान थे । इसी आंदोलन में श्री सूरजभान दलाल की मृत्यु हुई जिनको मथुरा की जनता आज भी आदर के साथ स्मरण करती है । संक्षेप में सन् 1921 के असहयोग आंदोलन में मथुरा जिले का प्रशंसनीय योगदान रहा ।  
 
जनवरी सन् 1922 तक असहयोग आन्दोलन का बडा जोर रहा । अनेक जुलूस और गिरफ्तारियों का तांता लग गया । 17 नवम्बर सन् 1921 को मथुरा में पूर्ण हडताल हुई । गोवर्धन में हडताल के पर्चे बांटते हुए मौलाना यासीन बेग को गिरफ्तार कर लिया गया । वृन्दावन के श्री बाल गोविन्द (उप-सम्पादक ‘प्रेम’), श्री पुरूषोत्तम लाल, हरीकृष्ण भी उन्ही दिनों गिरफ्तार हुए और जेल का दण्ड मिला । 16 दिसम्बर सन् 1921 को 5 स्वयंसेवक सर्वश्री केदारनाथ भार्गव, राजदयाल शर्मा, रामचंद्र सिंघल, भजन लाल एवं बाबूसिंह की गिरफ्तारी हुई । 17 दिसम्बर को सर्वश्री रामशरण जौहरी, नन्दलाल शर्मा, गोपाल प्रसाद चौबे, रामचन्द्र सूरदास मौलवी अब्दुल लतीफ गिरफ्तार हुए । 18 दिसम्बर को 11 स्वयंसेवक –सर्वश्री राजेन्द्रनाथ भार्गव, मौलाना इनाम इलाही, बाबूलाल, मौलाना अब्दुल वाहिद, अब्दुल शकूर, छंगा, शिवनाराण दत्त, ताराचन्द, मास्टर अम्बा प्रसाद, रामरतन लाल अवस्थी, शरतकुमार मुखर्जी आदि मथुरा में गिरफ्तसा हुए । दूसरे दिन 21 स्वयंसेवको का मुकदमा हुआ । पं. दुर्गादत्त जी की अदालत ने इन्हें 3-3 मास की जेल का दण्ड दिया । 19 दिसम्बर को मथुरा के सर्वश्री देवीचरण, गोपीनाथ, मौलाना अलादीन, पन्नालाल, ठाकुर टीकमसिंह एवं नत्थीसिंह (सरोठ), ला. द्वारकाप्रसाद (फरह) मथुरा में गिरफ्तार हुए । 20 दिसम्बर को 19 स्वयंसेवक सर्वश्री राधावल्लभ भार्गव, मुरलधर, ठाकुर इन्द्रजीत, प्रसादीलाल, ला. ब्रज भूषण स्वरूप, गोरखनाथ, बनवारी लाल, अकबर, कुल्लो, नत्थन कसाई गिरफ्तार हुए । 21 दिसम्बर को 8 स्वयंसेवक-सर्वश्री केशवराम टण्डन (मथुरा), सौख के गोकुल चन्द, रामचन्द्र एवं सोहनलाल और मथुरा के किशोरी प्रसाद, श्रीनाथ एवं मौलाना मुहम्मद हुसेन की गिरफ्तारी हुई । 22 दिसम्बर को 13 स्वयंसेवक- डा. मुन्नालाल, कुन्दन लाल शर्मा, बैकुण्ठनाथ भार्गव , रामप्रसाद हुलासी हज्जाम, छंगा कसाई, ठाकुर मदन, मूलचन्द तमोली, गोवर्धन के सर्वश्री रामचन्द्र,रामगोपाल सिंह, गोस्वामी अवनि कुमार एवं ब्रज किशोर शर्मा मथुरा में गिरफ्तार हुए । 23 दिंसम्बर को मौलाना अब्दुल गनी के नेतृत्व में 40 खिलाफत के स्वयंसेवको का जुलूस निकाला । इनमें 28 को गिरफ्तार किया गया । इन्हीं दिनों अनेक जुलूस निकले । बच्चों तक ने जुलूस निकाले थे । 19 और 20 दिसम्बर की गिरफ्तारियों के मुकदमों की निर्णय जेल में ही हुआ । सब देशभक्तों को 2 मास से 4 मास तक का जेल दण्ड दिया गया । सन् 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान तत्कालीन प्रसिद्व जोशीले वक्ता श्री राधाकृष्ण भार्गव को 108 दफा के अन्तर्गत 1 वर्ष कारावास का दण्ड मिला था । वृन्दावन के गोस्वामी छबीले लाल को खुर्जा के भाषण के अपराध में 124 दफा के अन्तर्गत 1॥वर्ष जेल की सजा मिली थी । श्री मदनमोहन चतुर्वेदी (मथुरा) 8 अप्रैल सन् 1921 में गोरखपुर के भाषण के आधार पर 11 मई 1921 को मथुरा में गिरफ्तार हुए और दण्डित हुए । यह बात ध्यान देने योग्य है कि सन् 1921 के आन्दोलन में मथुरा के 100 से अधिक लोग जेल गये जिनमें चौथाई मुसलमान थे । इसी आंदोलन में श्री सूरजभान दलाल की मृत्यु हुई जिनको मथुरा की जनता आज भी आदर के साथ स्मरण करती है । संक्षेप में सन् 1921 के असहयोग आंदोलन में मथुरा जिले का प्रशंसनीय योगदान रहा ।  
 
==सन् 1921 के बाद==
 
==सन् 1921 के बाद==
 
सन् 1922 में पं. मोतीलाल नेहरू के सभापतित्व में धूमधाम से प्रान्तीय सम्मेलन मथुरा में हुआ था । सन् 1923 में स्वराज्य पार्टी के टिकट पर वृन्दावन में कांग्रेसी उम्मीदवार बी.ए. केन्द्रीय असेम्बली के चुनाव में विजयी रहे । सन् 1923 के नागपुर के सत्याग्रह में मथुरा जिले के अनेक देशभक्तों ने भाग लिया । इस सम्बंध में सर्वश्री तारासिंह (महोली), हुकुम सिंह(कारब) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । सन् 1923 में बा. गंगा प्रसाद भार्गव,लक्ष्मण प्रसाद वकील, हकीम ब्रजलाल वर्मन, बाबू रामनाथ आदि के सहयोग से ‘ब्रजवासी’नामक पत्र निकालना प्रारम्भ किया और यह वर्षो जिले का प्रमुख राष्द्रीय पत्र रहा । सन् 1927-28 में मथुरा जिले में साइमन कमीशन के बहिष्कार सम्बंधी हडताल और जुलूसों का आयोजन हुआ । मथुरा का विशाल जूलूस अभूतपूर्व था । धीरे-धीरे देश का वातावरण विक्षुब्ध होता गया । देश के अन्य भागों की तरह मथुरा में नवजवान सभा, नवयुवक संघ की स्थापना हुई । ‘युवक संघ’के प्रमुख कार्यकर्ता सर्वश्री अक्षय कुमार कर्ण, चिंतामणि शुक्ल, माखनलाल, हजारीलाल, सुरेन्द्रसिंह राघव, शरणगोपाल, गोपालदास सौदागर, बल्लभदास अजमेरा, विनोद भास्कर, सरदार रणवीर सिंह आदि थे । ‘नवजवान भारत सभा’की गतिविधियों में सर्वश्री रामशरणदास जौहरी, गोपाल प्रसाद चतुर्वेदी, रामजीदास गुप्त, शिवशंकर उपाध्याय आदि का नाम उल्लेखनीय रहेगा । वृन्दावन में इसके प्रमुख कार्यकर्ता श्री गणेशीलाल पांडे और अरूण चक्रवर्ती थे । सन् 1921 में सुप्रसिद्व देशभक्त महिलारत्न श्रीमती मनोरमा देवी ने सूर्यघाट के पास यमुना किनारे ‘राष्द्रीय महिला आश्रम’की स्थापना की थी । इसके सदस्यों ने स्वतंत्रता में सक्रिय भाग लिया और जेल यात्राएँ की । तत्कालीन उत्तर प्रदेशीय कांग्रेस कमेटी के सभापति पं. जवाहरलाल नेहरू जुलाई 1921 में गांधी जी के आने के पूर्व मथुरा में भी पदार्पण किया । नवम्बर सन् 1921 में खादी प्रचार के सन्दर्भ में महात्मा गांधी ने मथुरा ने मथुरा में पदार्पण किया । बापू की ठहरने की व्यवस्था आधुनिक बडे डाकखाने की ऊपरी मंजिल में सडक की ओर वाले कमरे में की गयी थी । गांधी जी ने इस दौरे में वृन्दावन, कोसी,गोवर्धन, राया, सादाबाद, गोकुल, महावन में भी पदार्पण कर जनता को दर्शनों का सौभाग्य प्रदान किया था । सन् 1921 में ही मथुरा जिला फिर यू. पी. प्रान्तीय कांग्रेस कमेट से सम्बन्धित हो गया ।
 
सन् 1922 में पं. मोतीलाल नेहरू के सभापतित्व में धूमधाम से प्रान्तीय सम्मेलन मथुरा में हुआ था । सन् 1923 में स्वराज्य पार्टी के टिकट पर वृन्दावन में कांग्रेसी उम्मीदवार बी.ए. केन्द्रीय असेम्बली के चुनाव में विजयी रहे । सन् 1923 के नागपुर के सत्याग्रह में मथुरा जिले के अनेक देशभक्तों ने भाग लिया । इस सम्बंध में सर्वश्री तारासिंह (महोली), हुकुम सिंह(कारब) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । सन् 1923 में बा. गंगा प्रसाद भार्गव,लक्ष्मण प्रसाद वकील, हकीम ब्रजलाल वर्मन, बाबू रामनाथ आदि के सहयोग से ‘ब्रजवासी’नामक पत्र निकालना प्रारम्भ किया और यह वर्षो जिले का प्रमुख राष्द्रीय पत्र रहा । सन् 1927-28 में मथुरा जिले में साइमन कमीशन के बहिष्कार सम्बंधी हडताल और जुलूसों का आयोजन हुआ । मथुरा का विशाल जूलूस अभूतपूर्व था । धीरे-धीरे देश का वातावरण विक्षुब्ध होता गया । देश के अन्य भागों की तरह मथुरा में नवजवान सभा, नवयुवक संघ की स्थापना हुई । ‘युवक संघ’के प्रमुख कार्यकर्ता सर्वश्री अक्षय कुमार कर्ण, चिंतामणि शुक्ल, माखनलाल, हजारीलाल, सुरेन्द्रसिंह राघव, शरणगोपाल, गोपालदास सौदागर, बल्लभदास अजमेरा, विनोद भास्कर, सरदार रणवीर सिंह आदि थे । ‘नवजवान भारत सभा’की गतिविधियों में सर्वश्री रामशरणदास जौहरी, गोपाल प्रसाद चतुर्वेदी, रामजीदास गुप्त, शिवशंकर उपाध्याय आदि का नाम उल्लेखनीय रहेगा । वृन्दावन में इसके प्रमुख कार्यकर्ता श्री गणेशीलाल पांडे और अरूण चक्रवर्ती थे । सन् 1921 में सुप्रसिद्व देशभक्त महिलारत्न श्रीमती मनोरमा देवी ने सूर्यघाट के पास यमुना किनारे ‘राष्द्रीय महिला आश्रम’की स्थापना की थी । इसके सदस्यों ने स्वतंत्रता में सक्रिय भाग लिया और जेल यात्राएँ की । तत्कालीन उत्तर प्रदेशीय कांग्रेस कमेटी के सभापति पं. जवाहरलाल नेहरू जुलाई 1921 में गांधी जी के आने के पूर्व मथुरा में भी पदार्पण किया । नवम्बर सन् 1921 में खादी प्रचार के सन्दर्भ में महात्मा गांधी ने मथुरा ने मथुरा में पदार्पण किया । बापू की ठहरने की व्यवस्था आधुनिक बडे डाकखाने की ऊपरी मंजिल में सडक की ओर वाले कमरे में की गयी थी । गांधी जी ने इस दौरे में वृन्दावन, कोसी,गोवर्धन, राया, सादाबाद, गोकुल, महावन में भी पदार्पण कर जनता को दर्शनों का सौभाग्य प्रदान किया था । सन् 1921 में ही मथुरा जिला फिर यू. पी. प्रान्तीय कांग्रेस कमेट से सम्बन्धित हो गया ।

१०:२०, २७ मई २००९ का अवतरण

फतेहपुरसीकरी में क्रान्तिकारी

मूर का 25 अक्टूबर 1857 ई0 का शेरर को पत्र

आज मुझे आपको अधिक नहीं लिखना सिवाय इस स्थानीय समाचार के कि कप्तान टेलर के अधीन मुजीब आ गये हैं । और विद्रोहियों के विरूद्ध जिन्होंने फतहपुरसीकरी को हथिया रखा है, हमारा अभियान मंगलवार दिनांक 27 अक्टूबर को आरम्भ होगा ।

धौलपुर के विद्रोही

आगरा फोर्ट से पूर्वोत्तर प्रान्त के चीफ कमिश्नर और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के एच. फ्रेजर का पत्र-

आगरा फोर्ट, 31 अक्टूबर 1857 ई0 ।

27 अक्टूबर

कैप्टेन टेलर के सैवर्स, जिसका बड़ा भाग अनुशासनहीन है, यहाँ 25 अक्टूबर को आ लगे हैं और कर्नल कॉटन के मजबूत कमांड में एक मजबूत टुकड़ी कम्पनी फतहपुरसीकरी में एकत्र बताये गये विद्रोहियों को तितर बितर करने को भेज दी गई है । वहाँ से वह फरह को ओर फिर मथुरा को और तत्पश्चात अलीगढ़ रोड पर सादाबाद को कूच करेगा । किन्तु उसे आगरा से मामूली दूरी पर ही रखा जायगा जब तक कि कोई विद्रोही गंगा पार करें । उस स्थिति में मैं उसे अलीगढ गैरीजन के साथ संयुक्त होने को कहूँगा ताकि किसी भी दुश्मन से निबटा जा सके । क्योंकि उसके पास जो छै तोपें हैं, उनसे मैं किसी दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम की शंका नहीं करता । गवालियर विद्रोही सिन्ध नदी को स्योंदा पर पारकर चुके बताये जाते हैं जो कालपीरूट पर हैं । किन्तु वे पुन: जमुना को पार करने का साहस करेगे, इसमें मुझे बहुत शक है ।

फतेहपुरसीकरी में मुठभेड़

मूर से सेक्रट्री गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को तार समाचार-

29 अक्टूबर 1857 ई0 ।

फतेहपुरसीकरी में हमारा अभियान सफल होने से अधिक संख्यक विद्रोही भाग खड़े हुए हैं । किन्तु कुछ विद्रोही ऊँची इमारत पर अधिकार किये हुए हैं और निराशा में घनघोर मुकाबला कर रहे हैं । सत्रह मारे गये हैं । हमारी ओर से भी कुछ घायल हुए हैं । लेफ्टिनेंट ग्लब के दोनों पैर घायल हुए हैं । शॉवर्स के दस्ते सोनाह पर मेवातियों को दंडित करके बल्लभगढ़ की ओर कूच करेंगे । दोपा जिले में विद्रोही अभी नहीं कुचला जा सका है । शेष पूर्वोत्तर शान्त है ।

विद्रोहियों की सजा

15 जनवरी सन् 1857 ई0 । कोर्ट मार्शल से 62 को(4 गोलियों से उड़ा दिये गये और 2 को जेल की सजा दी गई ।) और स्पेशल कमिश्नर ने 16 को सजा दी इनमें 42 मुसलमान, 36 हिन्दू, सत्रह विद्रोही थे । छै मुसलमान और सात हिन्दू कुल 13, 5 जुलाई के दंगों में शामिल थे । 26 मुसलमान और 22 हिन्दू कुल 48 पर विश्वासघात के मुकदमे चलाये गये ।

बादशाह का फरमान

बिना हस्ताक्षर के बादशाह ने 11 अगस्त 1857 ई0 को उन सभी हिन्दूओं और मुसलमानों के नाम एक आदेश जारी किया, जो धर्म का उत्थान चाहते थे । आप सभी को यह मालूम हो कि फलकुद्दीन शाह उनमें से एक है, जो मुहम्मद व धर्म के लिये अधर्मियों के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ने को कृतसंकल्प हैं । वित्त और सेना का निदेशक होने के नाते गाजियों और धनसंग्रह के लिये यह आदेश है । इससे खुदा को दी हुई फौजों का व्यय वहन किया जायगा जो देश के हर हिस्से से हर दिशा से शाही इमारत पर ईसाइयों के नाश के लिये आई और यहीं एकत्र है और जिसने हजारों ब्रिटिश सिपाहियों को और दूसरे अंग्रेजों को दोजख में भेज रखा है । आप स्वयं के ऊपर यह वजन है कि अपने फायदे को अच्छी तरह सोचों विचारों और शाही खजाने में उतना धन भेजो जो निर्धारित किया जाय । साथ ही अपने विश्वस्त प्रतिनिधियों को भी भेजो । इसके आलावा ऊपर लिखे फलकुद्दीन शाह को ईसाइयों के बध के लिये हर ऐसी इमदाद और फौजी बल भी भेजो, जिसे वह माँगे । जो धर्म और ईमान के लिये हमारे हाथ मजबूत करेंगे, उनको सम्मान दिया जायगा और जो ईसाइयों के साथ विश्वास में रहेंगे वे जिन्दगी और मिल्कियत से हाथ धो बैठेंगे ।

सूची

छतारी का सरदार सात तोपें और पचास हजार रूपये । पड़ावा का सरदार दस हजार रूपये । धर्मपुर का सरदार पाँच हजार रूपये । दानपुर का पाँच हजार रूपये । पहसू का पाँच हजार रूपये । सादाबाद का पाँच हजार रूपये । दतावली को दो हजार रूपये । बेगमपुर का सरदार दस हजार रूपये । बदायूँ का दस हजार रूपये । जारऊ का पाँच हजार रूपये । मथुरा के व्यापारी पचास हजार रूपये देंगे । बल्लभगढ़ का राजा एक लाख रूपये दे और भरतपुर का राजा पाँच लाख रूपये दे । इस तरह कुल बारह लाख पैंतालीस हजार रूपये हुए । सूची

क्रान्तिकारियों का कूँच

पिछले तीन दिनों में भगोड़ों की एक भीड़ मथुरा की ओर चल पड़ी है । इसमें जेलों से भागे भयंकर हत्यारे, कई रेजीमेंटों के विद्रोही, कट्टर धर्मान्ध और हर तरफ के कुकर्मी सम्मिलित हैं । यहाँ पर वे जमुना पर नावों का पुल बनाने में जुटे हुए हैं, जिससे कि इन्दौर और होल्कर के विद्रोहियों के साथ सम्पर्क स्थापित हो सके, जो मेरे पिछले पत्रानुसार धौलपुर में रूके हुए घटना क्रम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । अब यह स्पष्ट है कि वे सब संयुक्त हो जायगे । दिल्ली की विद्रोही सेना के दस्ते जमुना के दाहिने किनारे अलीगढ़ को चल पड़े थे । वे भी आ लगेगें । इससे पहले कि भगोड़ों के समूह जमुना पार करके आगे बढ़ें, हमारी योजना है कि उनको खदेड़ने और बीस तोपें, पचास हाथी और दूसरी सरकारी सम्पत्ति छीनने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी । इस अपरिहार्य और निश्चित अभियान के लिये यूरोपियन कम्पनियाँ, तोपखाना और मिलीशिया मेजर माँटगोमरी के कमांड में सादाबाद को चल पड़े हैं । सादाबाद आगरा और मथुरा के मध्य में एक शिखर है ।


मथुरा ज़िले ने स्वातन्त्र्य संग्रामों में अपने गौरवशाली इतिहास के अनुरूप ही योगदान दिया है । मथुरा मराठा एवं जाट शक्तियों के पराभव के उपरान्त अंग्रेजी दासता में आया । सन् 1857 में विदेशी सत्ता के विरूद्व यहाँ के देशभक्तों ने अपनी वीरता, शौर्य और देशभक्ति का परिचय दिया । सन् 1857 की क्रान्ति मथुरा ज़िले में 16 मई को प्रारम्भ हुई जबकि क्रान्तिकारियों ने 'अंग्रेज वल्टर्न' को मार कर ख़ज़ाना लूटा । मथुरा ज़िले में कई स्थानों पर क्रान्ति की चिनगारियाँ जल उठी थीं । जाटों, यादवों, ठाकुरों और गूजरों ने इस स्वातन्त्रय-युद्व में सक्रिय भाग लिया । क्रान्ति की लहरें वतर्मान छाता तहसील के अन्तर्गत मझोई, रामपुर (कोसी), बसई, हुसेनी, जटवारी आदि गांवों में फैली थीं । दोतना के मुसलमानों, अजीजपुर के जाटों और मझोई और रामपुर के गूजरों का इसमें भाग लेना सराहनीय था । बाद को गूजरों के गाँव छीनकर हाथरस के राजा गोविन्द सिंह को दे दिये गये थे । इस क्रान्ति में छाता के क्रान्तिकारी जमींदारों ने छाता सराय पर भी अधिकार कर लिया था । सहार में भी क्रान्ति की चिनगारियाँ उठीं । अड़ींग में क्रान्तिकारियों ने यहाँ के ख़ज़ाने पर अधिकार करने की चेष्टा की थी लेकिन सफलता न मिल सकी । मांट तहसील के अन्तर्गत नानकपुर गांव के उमराव बहादुर नामक जमींदार ने दिल्ली के मोर्चे पर विदेशियों से लडते हुए वीरगति प्राप्त की थी । विदेशी शासकों ने इस देशभक्त के बाद में 18 गांव ज़ब्त कर लिये थे । ये गांव मथुरा के एक सेठ को उनके जीवन काल तक के लिए माफ़ी पर दे दिये गये थे ।


क्रान्ति के दिनों में नौहझील के क़िले पर क्रान्तिकारियों ने आक्रमण किया था । इसमें उमराव बहादुर और खूबा ने प्रमुख भाग लिया था । खूबा ने नौह झील के तहसीलदार सुखबासीलाल को मारने का उघोग किया था । इसी अपराध में ये पकड़े गये थे । जेल में ही इनकी मृत्यु हुई । इस किले पर नौहवारी के जाटों ने पडोसी गांवों, मुसमिना और पारसौली के लोगों के साथ आक्रमण किया था । नौह झील का विदेशी राज्य पक्षपाती लम्बरदार गौस मुहम्मद मारा गया था । नोहवारी के क्रान्तिकारियों में, भावसिंह प्रमुख थे । हमजापुर के दो वीर भाई श्री रामधीर सिंह और श्री हरदेव सिंह ने भी अपनी देशभक्ति का उदात्त परिचय दिया था । ये लोग 5-6 हज़ार क्रांति कारियों को लेकर अलीगढ़ ओर बढ़े थे । सुरीर में लक्ष्मण लम्बरदार और ग्यारह दूसरे लोगों को क्रान्ति में भाग लेने के अपराध में पकड़ा गया था ।

'सादाबाद' क्षेत्र में विदेशी शासन को नष्ट करने का सबसे अधिक प्रयत्न कुरसंडा के श्री देवकरण और श्री जालिम ने किया था । इन्होने इस क्षेत्र के जाटों का नेतृत्व कर सादाबाद पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण में सात देशभक्त मारे गये थे । हाथरस के ठाकुर सामन्त सिंह ने सादाबाद की रक्षा में विदेशी शासन का साथ दिया था इसी देशद्रोह के पुरस्कार स्वरूप विदेशी सरकार ने एक गांव उन्हें दिया था । दूसरी ओर देशभक्त देवकरण और जालिम को फाँसी पर झूलना पडा। तहसील मथुरा के परखम, वेरी और फरह आदि गांवों ने भी इस क्रान्ति में भाग लिया । वेरीगांव के राजपूत ज़मींदारों की ज़मीदारी छीन कर बाद में दूसरों को दे दी गयी थी । चौमुहां गांव ने इस क्रान्ति में अग्रिम भाग लिया । यही कारण था । कि विदेशी शासकों ने इस गांव में आग लगवा दी थी और यहाँ के लोगों को फाँसी पर लटका दिया था । सिहोरा गांव के जाटों ने भी इस क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया था । इन्होंने विदेशी राज्य पक्षपाती खुशीराम तहसील के चपरासी को मार डाला था । फोंडर गांव के निवासियों का भी इसमें योगदान प्रशंसनीय था मांट तहसील के अन्तर्गत अरूआ नामक गांव के अधा नामक जमींदार को विदेशी सत्ता पक्षपाती होने के कारण मार डाला गया । राया भी क्रान्तिकारियों का प्रमुख केन्द्र था । क्रान्तिकारियों ने देवीसिंह को यहाँ का राजा बना दिया था । लेकिन वह बहुत दिन राजा नहीं रह सके । विदेशी शासकों द्वारा इन्हें बाद में फाँसी दे दी गयी थी।

क्रान्ति का शमन

12 जून सन् 1857 में ज़िलेभर में मार्शल ला घोषित किया गया । राया के राजा देवी सिंह का दमन करने के उपरान्त 20 जून को ब्रिटिश फौज मथुरा लौट आयी । दो दिन बाद सादाबाद के क्रान्तिकारियों का दमन किया गया । नवम्बर मास में थार्नहिल, कर्नल काटन को फौज ने कोसी तक पहुँचकर गूजरों को आतंकित किया । छाता की सराय के एक भाग को तोडकर उस पर अग्रेजों ने अधिकार कर लिया था । बाइस देशभक्तों को इस सराय में गोली से भून दिया था । ज़िलेभर में क्रान्तिकारी गिन-गिनकर पकडे गये और उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया गया । अडीग के अनेक ठाकुरों को फांसी पर लटका दिया गया । मथुरा नगर में भी अनेक को फाँसी दे दी गयी थी । सन् 1958 की जुलाई तक अन्त में सारे ब्रज अथवा मथुरा ज़िलेमें शान्ति स्थापित की गयी । इस प्रकार भारत को विदेशी पंजे से मुक्त करने के लिए आयोजित प्रथम स्वतंत्रता युद्व का अन्त हुआ । अग्रेजी दासता के विरूद्व जब राष्द्र में अनेक विभूतियों के द्वारा राष्द्रीयता की लहर उठी तो उससे मथुरा जिला भी प्रभावित हुआ । इस ज़िले ने अपनी प्राचीन गौरवशाली परम्परा के अनुसार मातृभूमि की स्वतन्त्रता में प्रशंसनीय योगदान दिया ।

असहयोग आन्दोलन

सितम्बर सन् 1920 में कलकत्ता कांग्रेस ने अपने विशेष अधिवेशन में महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का सहज स्वागत किया । गांधी जी के आह्रान पर मथुरा जिला अपना योगदान देने को प्रस्तुत हो गया । उन दिनों चूंकि कांग्रेज-संगठन की दृष्टि से मथुरा जिला दिल्ली प्रान्त में सम्मिलित था अतएव दिल्ली से समय-समय पर कांग्रेस नेताओं का आगमन होता था । गांधीजी के असहयोग कार्यक्रम के अनुसार सरकारी उपाधियों का त्याग, नौकरियों का त्याग, अंग्रेजी अदालतों एवं शिक्षण संस्थाओं में त्याग का भी क्रियान्वयन हुआ । सन् 1921 के प्रारम्भ होने पर असहयोग आंदोलन में तेजी आने लगी तथा मथुरा जिले के गांवों एवं कस्बों में भी इसकी लहर फैलने लगी । अडीग, गोवर्धन, वृन्दावन एवं कोसी आदि स्थानों में भी राष्द्रीय हलचल प्रारम्भ हो गयी । गोवर्धन में राष्द्रीय चेतना को बढाने में सर्वश्री कृष्णबल्लभ शर्मा, ब्रजकिशोर, रामचन्द्र भट्ट एवं अपंग बाबू आदि प्रमुख थे । वृदावन में सर्वश्री गोस्वामी छबीले लाल, नारायण बी.ए., पुरूषोत्तम लाल, मूलचन्द सर्राफ आदि ने प्रमुख भाग लिया । असहयोग आन्दोलन तीव्र करने के लिए 9 अगस्त सन् 1921 को लाला लाजपत राय के सभापतित्व में वृन्दावन की मिर्जापुर वाली धर्मशाला में एक विशाल सभा हुई थी । इसमें हजारों की संख्या में जनता उपस्थित थी । गां0 छबीले लाल ने अभिनन्दन पत्र पढा था । सर्वश्री भगवानदास केला, आनन्दी लाल चतुर्वेदी, हमीद, ब्रजलाल वर्मन ने इस अवसर पर व्याख्यान दिये थे । वृन्दावन के गुरूकुल और प्रेम महाविधालय में भी उनका पदार्पण हुआ था । दूसरे दिन मथुरा के अग्रवाल विधालय में उनका आगमन हुआ । पुरानी कोतवाली (गांधी पार्क) में एक विशाल सभा में उनका भाषण हुआ । इस अवसर पर लाला गोवर्धनदास(लाहौर) का भी स्वदेशी पर भाषण हुआ । मथुरा के श्री द्वारिका प्रसाद भरतिया ने इस अवसर पर लाला लाजपतराय को समाज की ओर से अभिनन्दन पत्र भी दिया था ।

मथुरा राम-बारात केस

4 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा के तमोलियों ने एक भव्य रामलीला की बारात निकालने की योजना बनायी थी । तत्कालीन राष्द्रीयता की लहर ने इसको भी राष्द्रीय रंग से रंग दिया था अतएव विदेशी शासन ने इसके अधिकारियों का दमन करने का निश्चय किया । 19 अक्टूबर और इसके उपरान्त इसी सम्बंध में सर्वश्री ब्रजगोपाल भाटिया, द्वारकानाथ भार्गव, रामनाथ मुख्त्यार, ला0 रामनारायण नारायण बेकर, मुंशी नारायण प्रसाद, देवीचरण, रामचन्द्र सूरदास, मुकन्दलाल, श्री निवास, ला0 कृष्ण गोपाल, ला0 प्रभुदयाल, राधाकांत भार्गव, सूरजभान दलाल, ला0 छिदामल, शंकर तमोली, मनोहरी तमोली, ला0 कद्दूमल सर्राफ, रणछोरलाल शर्मा, ज्योति स्वरूप, गोपालदास, ठाकुरदास, बद्री प्रसाद, पं0 मूलचन्द, ला0 चिरंजीलाल बजाज, पन्नालाल बेदई, परसादी तमोली, ला0 पन्नालाल, नन्दकुमार शर्मा, फूलखाँ रंगरेज, जदुनाथ मेहता, मुरलीधर आदि गिरफ्तार हुए थे । हकीम ब्रजलाल वर्मन और मा0 रामसिंह के भी वारण्ट थे लेकिन बाहर रहने के कारण गिरफ्तार न हो सके । कुल मिलाकर 43 देशभक्त गिरफ्तार हुए थे । यह केस 2 नवम्बर सन् 1921 से प्रारम्भ होकर 3 मार्च सन् 1922 को तत्कालीन डिप्टी मजिस्द्रेट श्री द्वारिकानाथ साहू द्वारा छाता में फैसला देने के साथ समाप्त हुआ । 13 अभियुक्तों को मुकदमे के प्रारम्भ में ही छोड दिया गया था । मुकदमे के दौरान 8 अभियुक्तों पर फर्द जुर्म नहीं लगा । अन्त में केवल 20 पर मुकदमा चलाया गया । इसमें कई को छोड दिया गया । केवल सर्वश्री हकीम ब्रजलाल वर्मन, मास्टर रामसिंह, मनोहरी तमोली, राधाकांत भार्गव, मुकुन्दलाल वर्मन, श्री निवास, काशीनाथ, पन्नालाल वेदई, मौलाना यासीन खाँ आदि दण्डित हुए और जेल गये ।


20 अक्टूबर सन् 1921 को मथुरा में दिल्ली सूवे की एक राजनीतिक कांफ्रेंस पंजाबी पेच(चौकी बागबहादुर के पास) स्थान पर हुई थी । दिल्ली के असफअली बैरिस्टर और ला0 शंकरलाल बेकर का भी इस अवसर पर आगमन हुआ था । इस कान्फ्रेंस को सफल बनाने में सर्वश्री लक्ष्मण प्रसाद नागर, डा0 गंगोली, डा0 मुन्नालाल, द्वारिकाप्रसाद भरतिया, डा0 राजस्वरूप सरीन, नारायणदास बी.ए. (वृन्दावन), गो. छबीले लाल(वृन्दावन) आदि ने अथक परिश्रम किया था । 7 नवम्बर सन् 1921 को महात्मा गांधी का 3॥बजे मथुरा में आगमन हुआ और एक विशाल सभा हुई । उनके साथ में मौलाना आजाद, पं. मोतीलाल नेहरू, डा. अन्सारी, श्री मुहम्मद लकई, डा. बाबूराम, डा.लक्ष्मीदत्त आदि का भी आगमन हुआ था । गांधी जी के अतिरिक्त पं. मोतीलाल नेहरू ने भी भाषण दिया था । सरकारी विरोध होते हुए भी यह सभा सफल हुई । दिल्ली, आगरा और अलीगढ के 150 स्वयंसेवक और मथुरा के 125 स्वयंसेवक इसमें सम्मिलित हुए थे ।

मथुरा 1921 तक

जनवरी सन् 1922 तक असहयोग आन्दोलन का बडा जोर रहा । अनेक जुलूस और गिरफ्तारियों का तांता लग गया । 17 नवम्बर सन् 1921 को मथुरा में पूर्ण हडताल हुई । गोवर्धन में हडताल के पर्चे बांटते हुए मौलाना यासीन बेग को गिरफ्तार कर लिया गया । वृन्दावन के श्री बाल गोविन्द (उप-सम्पादक ‘प्रेम’), श्री पुरूषोत्तम लाल, हरीकृष्ण भी उन्ही दिनों गिरफ्तार हुए और जेल का दण्ड मिला । 16 दिसम्बर सन् 1921 को 5 स्वयंसेवक सर्वश्री केदारनाथ भार्गव, राजदयाल शर्मा, रामचंद्र सिंघल, भजन लाल एवं बाबूसिंह की गिरफ्तारी हुई । 17 दिसम्बर को सर्वश्री रामशरण जौहरी, नन्दलाल शर्मा, गोपाल प्रसाद चौबे, रामचन्द्र सूरदास मौलवी अब्दुल लतीफ गिरफ्तार हुए । 18 दिसम्बर को 11 स्वयंसेवक –सर्वश्री राजेन्द्रनाथ भार्गव, मौलाना इनाम इलाही, बाबूलाल, मौलाना अब्दुल वाहिद, अब्दुल शकूर, छंगा, शिवनाराण दत्त, ताराचन्द, मास्टर अम्बा प्रसाद, रामरतन लाल अवस्थी, शरतकुमार मुखर्जी आदि मथुरा में गिरफ्तसा हुए । दूसरे दिन 21 स्वयंसेवको का मुकदमा हुआ । पं. दुर्गादत्त जी की अदालत ने इन्हें 3-3 मास की जेल का दण्ड दिया । 19 दिसम्बर को मथुरा के सर्वश्री देवीचरण, गोपीनाथ, मौलाना अलादीन, पन्नालाल, ठाकुर टीकमसिंह एवं नत्थीसिंह (सरोठ), ला. द्वारकाप्रसाद (फरह) मथुरा में गिरफ्तार हुए । 20 दिसम्बर को 19 स्वयंसेवक सर्वश्री राधावल्लभ भार्गव, मुरलधर, ठाकुर इन्द्रजीत, प्रसादीलाल, ला. ब्रज भूषण स्वरूप, गोरखनाथ, बनवारी लाल, अकबर, कुल्लो, नत्थन कसाई गिरफ्तार हुए । 21 दिसम्बर को 8 स्वयंसेवक-सर्वश्री केशवराम टण्डन (मथुरा), सौख के गोकुल चन्द, रामचन्द्र एवं सोहनलाल और मथुरा के किशोरी प्रसाद, श्रीनाथ एवं मौलाना मुहम्मद हुसेन की गिरफ्तारी हुई । 22 दिसम्बर को 13 स्वयंसेवक- डा. मुन्नालाल, कुन्दन लाल शर्मा, बैकुण्ठनाथ भार्गव , रामप्रसाद हुलासी हज्जाम, छंगा कसाई, ठाकुर मदन, मूलचन्द तमोली, गोवर्धन के सर्वश्री रामचन्द्र,रामगोपाल सिंह, गोस्वामी अवनि कुमार एवं ब्रज किशोर शर्मा मथुरा में गिरफ्तार हुए । 23 दिंसम्बर को मौलाना अब्दुल गनी के नेतृत्व में 40 खिलाफत के स्वयंसेवको का जुलूस निकाला । इनमें 28 को गिरफ्तार किया गया । इन्हीं दिनों अनेक जुलूस निकले । बच्चों तक ने जुलूस निकाले थे । 19 और 20 दिसम्बर की गिरफ्तारियों के मुकदमों की निर्णय जेल में ही हुआ । सब देशभक्तों को 2 मास से 4 मास तक का जेल दण्ड दिया गया । सन् 1921 के असहयोग आंदोलन के दौरान तत्कालीन प्रसिद्व जोशीले वक्ता श्री राधाकृष्ण भार्गव को 108 दफा के अन्तर्गत 1 वर्ष कारावास का दण्ड मिला था । वृन्दावन के गोस्वामी छबीले लाल को खुर्जा के भाषण के अपराध में 124 दफा के अन्तर्गत 1॥वर्ष जेल की सजा मिली थी । श्री मदनमोहन चतुर्वेदी (मथुरा) 8 अप्रैल सन् 1921 में गोरखपुर के भाषण के आधार पर 11 मई 1921 को मथुरा में गिरफ्तार हुए और दण्डित हुए । यह बात ध्यान देने योग्य है कि सन् 1921 के आन्दोलन में मथुरा के 100 से अधिक लोग जेल गये जिनमें चौथाई मुसलमान थे । इसी आंदोलन में श्री सूरजभान दलाल की मृत्यु हुई जिनको मथुरा की जनता आज भी आदर के साथ स्मरण करती है । संक्षेप में सन् 1921 के असहयोग आंदोलन में मथुरा जिले का प्रशंसनीय योगदान रहा ।

सन् 1921 के बाद

सन् 1922 में पं. मोतीलाल नेहरू के सभापतित्व में धूमधाम से प्रान्तीय सम्मेलन मथुरा में हुआ था । सन् 1923 में स्वराज्य पार्टी के टिकट पर वृन्दावन में कांग्रेसी उम्मीदवार बी.ए. केन्द्रीय असेम्बली के चुनाव में विजयी रहे । सन् 1923 के नागपुर के सत्याग्रह में मथुरा जिले के अनेक देशभक्तों ने भाग लिया । इस सम्बंध में सर्वश्री तारासिंह (महोली), हुकुम सिंह(कारब) विशेष रूप से उल्लेखनीय है । सन् 1923 में बा. गंगा प्रसाद भार्गव,लक्ष्मण प्रसाद वकील, हकीम ब्रजलाल वर्मन, बाबू रामनाथ आदि के सहयोग से ‘ब्रजवासी’नामक पत्र निकालना प्रारम्भ किया और यह वर्षो जिले का प्रमुख राष्द्रीय पत्र रहा । सन् 1927-28 में मथुरा जिले में साइमन कमीशन के बहिष्कार सम्बंधी हडताल और जुलूसों का आयोजन हुआ । मथुरा का विशाल जूलूस अभूतपूर्व था । धीरे-धीरे देश का वातावरण विक्षुब्ध होता गया । देश के अन्य भागों की तरह मथुरा में नवजवान सभा, नवयुवक संघ की स्थापना हुई । ‘युवक संघ’के प्रमुख कार्यकर्ता सर्वश्री अक्षय कुमार कर्ण, चिंतामणि शुक्ल, माखनलाल, हजारीलाल, सुरेन्द्रसिंह राघव, शरणगोपाल, गोपालदास सौदागर, बल्लभदास अजमेरा, विनोद भास्कर, सरदार रणवीर सिंह आदि थे । ‘नवजवान भारत सभा’की गतिविधियों में सर्वश्री रामशरणदास जौहरी, गोपाल प्रसाद चतुर्वेदी, रामजीदास गुप्त, शिवशंकर उपाध्याय आदि का नाम उल्लेखनीय रहेगा । वृन्दावन में इसके प्रमुख कार्यकर्ता श्री गणेशीलाल पांडे और अरूण चक्रवर्ती थे । सन् 1921 में सुप्रसिद्व देशभक्त महिलारत्न श्रीमती मनोरमा देवी ने सूर्यघाट के पास यमुना किनारे ‘राष्द्रीय महिला आश्रम’की स्थापना की थी । इसके सदस्यों ने स्वतंत्रता में सक्रिय भाग लिया और जेल यात्राएँ की । तत्कालीन उत्तर प्रदेशीय कांग्रेस कमेटी के सभापति पं. जवाहरलाल नेहरू जुलाई 1921 में गांधी जी के आने के पूर्व मथुरा में भी पदार्पण किया । नवम्बर सन् 1921 में खादी प्रचार के सन्दर्भ में महात्मा गांधी ने मथुरा ने मथुरा में पदार्पण किया । बापू की ठहरने की व्यवस्था आधुनिक बडे डाकखाने की ऊपरी मंजिल में सडक की ओर वाले कमरे में की गयी थी । गांधी जी ने इस दौरे में वृन्दावन, कोसी,गोवर्धन, राया, सादाबाद, गोकुल, महावन में भी पदार्पण कर जनता को दर्शनों का सौभाग्य प्रदान किया था । सन् 1921 में ही मथुरा जिला फिर यू. पी. प्रान्तीय कांग्रेस कमेट से सम्बन्धित हो गया ।