"स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 5 )" के अवतरणों में अंतर

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
छो (Text replace - '[[category' to '[[Category')
छो (Text replace - "{{History}}" to "")
 
(३ सदस्यों द्वारा किये गये बीच के ११ अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति १: पंक्ति १:
 
{{menu}}
 
{{menu}}
{{History}}
+
{| style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #cedff2" cellspacing="5"
{|style="background-color:#F7F7EE;border:1px solid #cedff2" cellspacing="5"
 
 
|
 
|
'''.''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857]] '''.''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 2 )]] '''.''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 3 )]] '''.''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 4 )]] '''.''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 5 )]]  
+
[[स्वतंत्रता संग्राम 1857]] '''·''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 2 )]] '''·''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 3 )]] '''·''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 4 )]] '''·''' [[स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 5 )]]  
|
+
|}
|}<br/>
 
 
 
 
==फतेहपुरसीकरी में क्रान्तिकारी==
 
==फतेहपुरसीकरी में क्रान्तिकारी==
 
मूर का 25 अक्टूबर 1857 ई॰ का शेरर को पत्र
 
मूर का 25 अक्टूबर 1857 ई॰ का शेरर को पत्र
  
आज मुझे आपको अधिक नहीं लिखना सिवाय इस स्थानीय समाचार के कि कप्तान टेलर के अधीन मुजीब आ गये हैं । और विद्रोहियों के विरूद्ध जिन्होंने फतहपुरसीकरी को हथिया रखा है, हमारा अभियान मंगलवार दिनांक 27 अक्टूबर को आरम्भ होगा ।
+
आज मुझे आपको अधिक नहीं लिखना सिवाय इस स्थानीय समाचार के कि कप्तान टेलर के अधीन मुजीब आ गये हैं । और विद्रोहियों के विरुद्ध जिन्होंने फतहपुरसीकरी को हथिया रखा है, हमारा अभियान मंगलवार दिनांक 27 अक्टूबर को आरम्भ होगा ।
 +
{{tocright}}
 
==धौलपुर के विद्रोही==
 
==धौलपुर के विद्रोही==
 
आगरा फोर्ट से पूर्वोत्तर प्रान्त के चीफ कमिश्नर और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के एच. फ्रेजर का पत्र-
 
आगरा फोर्ट से पूर्वोत्तर प्रान्त के चीफ कमिश्नर और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के एच. फ्रेजर का पत्र-
पंक्ति ३४: पंक्ति ३२:
 
'''बादशाह का फरमान'''
 
'''बादशाह का फरमान'''
  
बिना हस्ताक्षर के बादशाह ने 11 अगस्त 1857 ई॰ को उन सभी हिन्दूओं और मुसलमानों के नाम एक आदेश जारी किया, जो धर्म का उत्थान चाहते थे ।  आप सभी को यह मालूम हो कि फलकुद्दीन शाह उनमें से एक है, जो मुहम्मद व धर्म के लिये अधर्मियों के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ने को कृतसंकल्प हैं । वित्त और सेना का निदेशक होने के नाते गाजियों और धनसंग्रह के लिये यह आदेश है । इससे ख़ुदा को दी हुई फ़ौजों का व्यय वहन किया जायगा जो देश के हर हिस्से से हर दिशा से शाही इमारत पर ईसाइयों के नाश के लिये आई और यहीं एकत्र है और जिसने हजारों ब्रिटिश सिपाहियों को और दूसरे अंग्रेजों को दोजख में भेज रखा है । आप स्वयं के ऊपर यह वजन है कि अपने फायदे को अच्छी तरह सोचों विचारों और शाही खजाने में उतना धन भेजो जो निर्धारित किया जाय । साथ ही अपने विश्वस्त प्रतिनिधियों को भी भेजो । इसके आलावा ऊपर लिखे फलकुद्दीन शाह को ईसाइयों के बध के लिये हर ऐसी इमदाद और फ़ौजी बल भी भेजो, जिसे वह माँगे । जो धर्म और ईमान के लिये हमारे हाथ मजबूत करेंगे, उनको सम्मान दिया जायगा और जो ईसाइयों के साथ विश्वास में रहेंगे वे जिन्दगी और मिल्कियत से हाथ धो बैठेंगे ।
+
बिना हस्ताक्षर के बादशाह ने 11 अगस्त 1857 ई॰ को उन सभी हिन्दुओं और मुसलमानों के नाम एक आदेश जारी किया, जो धर्म का उत्थान चाहते थे ।  आप सभी को यह मालूम हो कि फलकुद्दीन शाह उनमें से एक है, जो मुहम्मद व धर्म के लिये अधर्मियों के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध लड़ने को कृतसंकल्प हैं । वित्त और सेना का निदेशक होने के नाते गाजियों और धनसंग्रह के लिये यह आदेश है । इससे ख़ुदा को दी हुई फ़ौजों का व्यय वहन किया जायगा जो देश के हर हिस्से से हर दिशा से शाही इमारत पर ईसाइयों के नाश के लिये आई और यहीं एकत्र है और जिसने हज़ारों ब्रिटिश सिपाहियों को और दूसरे अंगेज़ों को दोजख में भेज रखा है । आप स्वयं के ऊपर यह वज़न है कि अपने फायदे को अच्छी तरह सोचों विचारों और शाही खजाने में उतना धन भेजो जो निर्धारित किया जाय । साथ ही अपने विश्वस्त प्रतिनिधियों को भी भेजो । इसके आलावा ऊपर लिखे फलकुद्दीन शाह को ईसाइयों के बध के लिये हर ऐसी इमदाद और फ़ौजी बल भी भेजो, जिसे वह माँगे । जो धर्म और ईमान के लिये हमारे हाथ मजबूत करेंगे, उनको सम्मान दिया जायगा और जो ईसाइयों के साथ विश्वास में रहेंगे वे जिन्दगी और मिल्कियत से हाथ धो बैठेंगे ।
  
 
'''सूची'''
 
'''सूची'''
  
छतारी  का सरदार सात तोपें और पचास हजार रूपये । पड़ावा का सरदार दस हजार रूपये । धर्मपुर का सरदार पाँच हजार रूपये । दानपुर का पाँच हजार रूपये । पहसू का पाँच हजार रूपये । सादाबाद का पाँच हजार रूपये । दतावली को दो हजार रूपये । बेगमपुर का सरदार दस हजार रूपये । बदायूँ का दस हजार रूपये । जारऊ का पाँच हजार रूपये । मथुरा के व्यापारी पचास हजार रूपये देंगे । बल्लभगढ़ का राजा एक लाख रूपये दे और भरतपुर का राजा पाँच लाख रूपये दे । इस तरह कुल बारह लाख पैंतालीस हजार रूपये हुए ।
+
छतारी  का सरदार सात तोपें और पचास हज़ार रुपये । पड़ावा का सरदार दस हज़ार रुपये । धर्मपुर का सरदार पाँच हज़ार रुपये । दानपुर का पाँच हज़ार रुपये । पहसू का पाँच हज़ार रुपये । सादाबाद का पाँच हज़ार रुपये । दतावली को दो हज़ार रुपये । बेगमपुर का सरदार दस हज़ार रुपये । बदायूँ का दस हज़ार रुपये । जारऊ का पाँच हज़ार रुपये । मथुरा के व्यापारी पचास हज़ार रुपये देंगे । बल्लभगढ़ का राजा एक लाख रुपये दे और भरतपुर का राजा पाँच लाख रुपये दे । इस तरह कुल बारह लाख पैंतालीस हज़ार रुपये हुए ।
  
 
<table width="100%">
 
<table width="100%">
पंक्ति १८८: पंक्ति १८६:
 
पिछले तीन दिनों में भगोड़ों की एक भीड़ मथुरा की ओर चल पड़ी है । इसमें जेलों से भागे भयंकर हत्यारे, कई रेजीमेंटों के विद्रोही, कट्टर धर्मान्ध और हर तरफ के कुकर्मी सम्मिलित हैं । यहाँ पर वे जमुना पर नावों का पुल बनाने में जुटे हुए हैं, जिससे कि इन्दौर और होल्कर के विद्रोहियों के साथ सम्पर्क स्थापित हो सके, जो मेरे पिछले पत्रानुसार [[धौलपुर]] में रूके हुए घटना क्रम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । अब यह स्पष्ट है कि वे सब संयुक्त हो जायगे । दिल्ली की विद्रोही सेना के दस्ते जमुना के दाहिने किनारे अलीगढ़ को चल पड़े थे । वे भी आ लगेगें । इससे पहले कि भगोड़ों के समूह जमुना पार करके आगे बढ़ें, हमारी योजना है कि उनको खदेड़ने और बीस तोपें, पचास हाथी और दूसरी सरकारी सम्पत्ति छीनने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी । इस अपरिहार्य और निश्चित अभियान के लिये यूरोपियन कम्पनियाँ, तोपखाना और मिलीशिया मेजर माँटगोमरी के कमांड में सादाबाद को चल पड़े हैं । सादाबाद आगरा और मथुरा के मध्य में एक शिखर है ।
 
पिछले तीन दिनों में भगोड़ों की एक भीड़ मथुरा की ओर चल पड़ी है । इसमें जेलों से भागे भयंकर हत्यारे, कई रेजीमेंटों के विद्रोही, कट्टर धर्मान्ध और हर तरफ के कुकर्मी सम्मिलित हैं । यहाँ पर वे जमुना पर नावों का पुल बनाने में जुटे हुए हैं, जिससे कि इन्दौर और होल्कर के विद्रोहियों के साथ सम्पर्क स्थापित हो सके, जो मेरे पिछले पत्रानुसार [[धौलपुर]] में रूके हुए घटना क्रम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । अब यह स्पष्ट है कि वे सब संयुक्त हो जायगे । दिल्ली की विद्रोही सेना के दस्ते जमुना के दाहिने किनारे अलीगढ़ को चल पड़े थे । वे भी आ लगेगें । इससे पहले कि भगोड़ों के समूह जमुना पार करके आगे बढ़ें, हमारी योजना है कि उनको खदेड़ने और बीस तोपें, पचास हाथी और दूसरी सरकारी सम्पत्ति छीनने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी । इस अपरिहार्य और निश्चित अभियान के लिये यूरोपियन कम्पनियाँ, तोपखाना और मिलीशिया मेजर माँटगोमरी के कमांड में सादाबाद को चल पड़े हैं । सादाबाद आगरा और मथुरा के मध्य में एक शिखर है ।
 
----
 
----
मथुरा ज़िले ने स्वातन्त्र्य संग्रामों में अपने गौरवशाली इतिहास के अनुरूप ही योगदान दिया है । मथुरा मराठा एवं जाट शक्तियों के पराभव के उपरान्त अंग्रेजी दासता में आया । सन् 1857 में विदेशी सत्ता के विरूद्व यहाँ के देशभक्तों ने अपनी वीरता, शौर्य और देशभक्ति का परिचय दिया । सन् 1857 की क्रान्ति मथुरा ज़िले में 16 मई को प्रारम्भ हुई जबकि क्रान्तिकारियों ने 'अंग्रेज वल्टर्न' को मार कर ख़ज़ाना लूटा । मथुरा ज़िले में कई स्थानों पर क्रान्ति की चिनगारियाँ जल उठी थीं । जाटों, यादवों, ठाकुरों और गूजरों ने इस स्वातन्त्रय-युद्व में सक्रिय भाग लिया । क्रान्ति की लहरें वतर्मान छाता तहसील के अन्तर्गत मझोई, रामपुर (कोसी), बसई, हुसेनी, जटवारी आदि गांवों में फैली थीं । दोतना के मुसलमानों, अजीजपुर के जाटों और मझोई और रामपुर के गूजरों का इसमें भाग लेना सराहनीय था । बाद को गूजरों के गाँव छीनकर हाथरस के राजा गोविन्द सिंह को दे दिये गये थे । इस क्रान्ति में छाता के क्रान्तिकारी जमींदारों ने छाता सराय पर भी अधिकार कर लिया था । सहार में भी क्रान्ति की चिनगारियाँ उठीं । अड़ींग में क्रान्तिकारियों ने यहाँ के ख़ज़ाने पर अधिकार करने की चेष्टा की थी लेकिन सफलता न मिल सकी । मांट तहसील के अन्तर्गत नानकपुर गांव के उमराव बहादुर नामक जमींदार ने दिल्ली के मोर्चे पर विदेशियों से लडते हुए वीरगति प्राप्त की थी । विदेशी शासकों ने इस देशभक्त के बाद में 18 गांव ज़ब्त कर लिये थे । ये गांव मथुरा के एक सेठ को उनके जीवन काल तक के लिए माफ़ी पर दे दिये गये थे ।  
+
मथुरा ज़िले ने स्वातन्त्र्य संग्रामों में अपने गौरवशाली इतिहास के अनुरूप ही योगदान दिया है । मथुरा मराठा एवं जाट शक्तियों के पराभव के उपरान्त अंग्रेजी दासता में आया । सन् 1857 में विदेशी सत्ता के विरूद्व यहाँ के देशभक्तों ने अपनी वीरता, शौर्य और देशभक्ति का परिचय दिया । सन् 1857 की क्रान्ति मथुरा ज़िले में 16 मई को प्रारम्भ हुई जबकि क्रान्तिकारियों ने 'अंग्रेज़ वल्टर्न' को मार कर ख़ज़ाना लूटा । मथुरा ज़िले में कई स्थानों पर क्रान्ति की चिनगारियाँ जल उठी थीं । जाटों, यादवों, ठाकुरों और गूजरों ने इस स्वातन्त्रय-युद्व में सक्रिय भाग लिया । क्रान्ति की लहरें वतर्मान छाता तहसील के अन्तर्गत मझोई, रामपुर (कोसी), बसई, हुसेनी, जटवारी आदि गांवों में फैली थीं । दोतना के मुसलमानों, अजीजपुर के जाटों और मझोई और रामपुर के गूजरों का इसमें भाग लेना सराहनीय था । बाद को गूजरों के गाँव छीनकर हाथरस के राजा गोविन्द सिंह को दे दिये गये थे । इस क्रान्ति में छाता के क्रान्तिकारी जमींदारों ने छाता सराय पर भी अधिकार कर लिया था । सहार में भी क्रान्ति की चिनगारियाँ उठीं । अड़ींग में क्रान्तिकारियों ने यहाँ के ख़ज़ाने पर अधिकार करने की चेष्टा की थी लेकिन सफलता न मिल सकी । मांट तहसील के अन्तर्गत नानकपुर गांव के उमराव बहादुर नामक जमींदार ने दिल्ली के मोर्चे पर विदेशियों से लडते हुए वीरगति प्राप्त की थी । विदेशी शासकों ने इस देशभक्त के बाद में 18 गांव ज़ब्त कर लिये थे । ये गांव मथुरा के एक सेठ को उनके जीवन काल तक के लिए माफ़ी पर दे दिये गये थे ।  
 
----
 
----
क्रान्ति के दिनों में नौहझील के क़िले पर क्रान्तिकारियों ने आक्रमण किया था । इसमें उमराव बहादुर और खूबा ने प्रमुख भाग लिया था । खूबा ने नौह झील के तहसीलदार सुखबासीलाल को मारने का उघोग किया था । इसी अपराध में ये पकड़े गये थे । जेल में ही इनकी मृत्यु हुई । इस किले पर नौहवारी के जाटों ने पडोसी गांवों, मुसमिना और पारसौली के लोगों के साथ आक्रमण किया था । नौह झील का विदेशी राज्य पक्षपाती लम्बरदार गौस मुहम्मद मारा गया था । नोहवारी के क्रान्तिकारियों में, भावसिंह प्रमुख थे । हमजापुर के दो वीर भाई श्री रामधीर सिंह और श्री हरदेव सिंह ने भी अपनी देशभक्ति का उदात्त परिचय दिया था । ये लोग 5-6 हज़ार क्रांति कारियों को लेकर अलीगढ़ ओर बढ़े थे । सुरीर में लक्ष्मण लम्बरदार और ग्यारह दूसरे लोगों को क्रान्ति में भाग लेने के अपराध में पकड़ा गया था ।  
+
क्रान्ति के दिनों में नौहझील के क़िले पर क्रान्तिकारियों ने आक्रमण किया था । इसमें उमराव बहादुर और खूबा ने प्रमुख भाग लिया था । खूबा ने नौह झील के तहसीलदार सुखबासीलाल को मारने का उघोग किया था । इसी अपराध में ये पकड़े गये थे । जेल में ही इनकी मृत्यु हुई । इस किले पर नौहवारी के जाटों ने पड़ोसी गांवों, मुसमिना और पारसौली के लोगों के साथ आक्रमण किया था । नौह झील का विदेशी राज्य पक्षपाती लम्बरदार गौस मुहम्मद मारा गया था । नोहवारी के क्रान्तिकारियों में, भावसिंह प्रमुख थे । हमजापुर के दो वीर भाई श्री रामधीर सिंह और श्री हरदेव सिंह ने भी अपनी देशभक्ति का उदात्त परिचय दिया था । ये लोग 5-6 हज़ार क्रांति कारियों को लेकर अलीगढ़ ओर बढ़े थे । सुरीर में लक्ष्मण लम्बरदार और ग्यारह दूसरे लोगों को क्रान्ति में भाग लेने के अपराध में पकड़ा गया था ।  
  
 
''''सादाबाद'''' क्षेत्र में विदेशी शासन को नष्ट करने का सबसे अधिक प्रयत्न कुरसंडा के श्री देवकरण और श्री जालिम ने किया था । इन्होने इस क्षेत्र के जाटों का नेतृत्व कर सादाबाद पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण में सात  देशभक्त मारे गये थे । हाथरस के ठाकुर सामन्त सिंह ने सादाबाद की रक्षा में विदेशी शासन का साथ दिया था इसी देशद्रोह के पुरस्कार स्वरूप विदेशी सरकार ने एक गांव उन्हें दिया था । दूसरी ओर देशभक्त देवकरण और जालिम  को फाँसी पर झूलना पडा। तहसील मथुरा के परखम, वेरी और फ़रह आदि गांवों ने भी इस क्रान्ति में भाग लिया । वेरीगांव के राजपूत ज़मींदारों की ज़मीदारी छीन कर बाद में दूसरों को दे दी गयी थी । चौमुहां गांव ने इस क्रान्ति में अग्रिम भाग लिया । यही कारण था । कि विदेशी शासकों ने इस गांव में आग लगवा दी थी और यहाँ के लोगों को फाँसी पर लटका दिया था । सिहोरा गांव के जाटों ने भी इस क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया था । इन्होंने विदेशी राज्य पक्षपाती खुशीराम तहसील के चपरासी को मार डाला था । फोंडर गांव के निवासियों का भी इसमें योगदान प्रशंसनीय था  मांट तहसील के अन्तर्गत अरूआ नामक गांव के अधा नामक जमींदार को विदेशी सत्ता पक्षपाती होने के कारण मार डाला गया । राया भी क्रान्तिकारियों का प्रमुख केन्द्र था । क्रान्तिकारियों ने देवीसिंह को यहाँ का राजा बना दिया था । लेकिन वह बहुत दिन राजा नहीं रह सके । विदेशी शासकों द्वारा इन्हें बाद में फाँसी दे दी गयी थी।
 
''''सादाबाद'''' क्षेत्र में विदेशी शासन को नष्ट करने का सबसे अधिक प्रयत्न कुरसंडा के श्री देवकरण और श्री जालिम ने किया था । इन्होने इस क्षेत्र के जाटों का नेतृत्व कर सादाबाद पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण में सात  देशभक्त मारे गये थे । हाथरस के ठाकुर सामन्त सिंह ने सादाबाद की रक्षा में विदेशी शासन का साथ दिया था इसी देशद्रोह के पुरस्कार स्वरूप विदेशी सरकार ने एक गांव उन्हें दिया था । दूसरी ओर देशभक्त देवकरण और जालिम  को फाँसी पर झूलना पडा। तहसील मथुरा के परखम, वेरी और फ़रह आदि गांवों ने भी इस क्रान्ति में भाग लिया । वेरीगांव के राजपूत ज़मींदारों की ज़मीदारी छीन कर बाद में दूसरों को दे दी गयी थी । चौमुहां गांव ने इस क्रान्ति में अग्रिम भाग लिया । यही कारण था । कि विदेशी शासकों ने इस गांव में आग लगवा दी थी और यहाँ के लोगों को फाँसी पर लटका दिया था । सिहोरा गांव के जाटों ने भी इस क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया था । इन्होंने विदेशी राज्य पक्षपाती खुशीराम तहसील के चपरासी को मार डाला था । फोंडर गांव के निवासियों का भी इसमें योगदान प्रशंसनीय था  मांट तहसील के अन्तर्गत अरूआ नामक गांव के अधा नामक जमींदार को विदेशी सत्ता पक्षपाती होने के कारण मार डाला गया । राया भी क्रान्तिकारियों का प्रमुख केन्द्र था । क्रान्तिकारियों ने देवीसिंह को यहाँ का राजा बना दिया था । लेकिन वह बहुत दिन राजा नहीं रह सके । विदेशी शासकों द्वारा इन्हें बाद में फाँसी दे दी गयी थी।
 
==क्रान्ति का शमन==
 
==क्रान्ति का शमन==
 
12 जून सन् 1857 में ज़िलेभर में मार्शल ला घोषित किया गया । राया के राजा देवी सिंह का दमन करने के उपरान्त 20 जून को ब्रिटिश फ़ौज मथुरा लौट आयी । दो दिन बाद सादाबाद के क्रान्तिकारियों का दमन किया गया । नवम्बर मास में थार्नहिल, कर्नल काटन को फ़ौज ने कोसी तक पहुँचकर गूजरों को आतंकित किया । छाता की सराय के एक भाग को तोडकर उस पर अग्रेजों ने अधिकार कर लिया था । बाइस देशभक्तों को इस सराय में गोली से भून दिया था । ज़िलेभर में क्रान्तिकारी गिन-गिनकर पकडे गये और उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया गया । अड़ींग के अनेक ठाकुरों को फांसी पर लटका दिया गया । मथुरा नगर में भी अनेक को फाँसी दे दी गयी थी । सन् 1958 की जुलाई तक अन्त में सारे ब्रज अथवा मथुरा ज़िलेमें शान्ति स्थापित की गयी । इस प्रकार भारत को विदेशी पंजे से मुक्त करने के लिए आयोजित प्रथम स्वतंत्रता युद्व का अन्त हुआ । अग्रेजी दासता के विरूद्व जब राष्द्र में अनेक विभूतियों के द्वारा राष्द्रीयता की लहर उठी तो उससे मथुरा ज़िला भी प्रभावित हुआ । इस ज़िले ने अपनी प्राचीन गौरवशाली परम्परा के अनुसार मातृभूमि की स्वतन्त्रता में प्रशंसनीय योगदान दिया ।  
 
12 जून सन् 1857 में ज़िलेभर में मार्शल ला घोषित किया गया । राया के राजा देवी सिंह का दमन करने के उपरान्त 20 जून को ब्रिटिश फ़ौज मथुरा लौट आयी । दो दिन बाद सादाबाद के क्रान्तिकारियों का दमन किया गया । नवम्बर मास में थार्नहिल, कर्नल काटन को फ़ौज ने कोसी तक पहुँचकर गूजरों को आतंकित किया । छाता की सराय के एक भाग को तोडकर उस पर अग्रेजों ने अधिकार कर लिया था । बाइस देशभक्तों को इस सराय में गोली से भून दिया था । ज़िलेभर में क्रान्तिकारी गिन-गिनकर पकडे गये और उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया गया । अड़ींग के अनेक ठाकुरों को फांसी पर लटका दिया गया । मथुरा नगर में भी अनेक को फाँसी दे दी गयी थी । सन् 1958 की जुलाई तक अन्त में सारे ब्रज अथवा मथुरा ज़िलेमें शान्ति स्थापित की गयी । इस प्रकार भारत को विदेशी पंजे से मुक्त करने के लिए आयोजित प्रथम स्वतंत्रता युद्व का अन्त हुआ । अग्रेजी दासता के विरूद्व जब राष्द्र में अनेक विभूतियों के द्वारा राष्द्रीयता की लहर उठी तो उससे मथुरा ज़िला भी प्रभावित हुआ । इस ज़िले ने अपनी प्राचीन गौरवशाली परम्परा के अनुसार मातृभूमि की स्वतन्त्रता में प्रशंसनीय योगदान दिया ।  
 +
==सम्बंधित लिंक==
 +
{{History3}}
  
 
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम]]
 
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम]]

१०:१६, २७ अक्टूबर २०११ के समय का अवतरण

स्वतंत्रता संग्राम 1857 · स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 2 ) · स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 3 ) · स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 4 ) · स्वतंत्रता संग्राम 1857-( 5 )

फतेहपुरसीकरी में क्रान्तिकारी

मूर का 25 अक्टूबर 1857 ई॰ का शेरर को पत्र

आज मुझे आपको अधिक नहीं लिखना सिवाय इस स्थानीय समाचार के कि कप्तान टेलर के अधीन मुजीब आ गये हैं । और विद्रोहियों के विरुद्ध जिन्होंने फतहपुरसीकरी को हथिया रखा है, हमारा अभियान मंगलवार दिनांक 27 अक्टूबर को आरम्भ होगा ।

धौलपुर के विद्रोही

आगरा फोर्ट से पूर्वोत्तर प्रान्त के चीफ कमिश्नर और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के एच. फ्रेजर का पत्र-

आगरा फोर्ट, 31 अक्टूबर 1857 ई॰ ।

27 अक्टूबर

कैप्टेन टेलर के सैवर्स, जिसका बड़ा भाग अनुशासनहीन है, यहाँ 25 अक्टूबर को आ लगे हैं और कर्नल कॉटन के मजबूत कमांड में एक मजबूत टुकड़ी कम्पनी फतहपुरसीकरी में एकत्र बताये गये विद्रोहियों को तितर बितर करने को भेज दी गई है । वहाँ से वह फ़रह को ओर फिर मथुरा को और तत्पश्चात अलीगढ़ रोड पर सादाबाद को कूच करेगा । किन्तु उसे आगरा से मामूली दूरी पर ही रखा जायगा जब तक कि कोई विद्रोही गंगा पार करें । उस स्थिति में मैं उसे अलीगढ गैरीजन के साथ संयुक्त होने को कहूँगा ताकि किसी भी दुश्मन से निबटा जा सके । क्योंकि उसके पास जो छै तोपें हैं, उनसे मैं किसी दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम की शंका नहीं करता । गवालियर विद्रोही सिन्ध नदी को स्योंदा पर पारकर चुके बताये जाते हैं जो कालपीरूट पर हैं । किन्तु वे पुन: जमुना को पार करने का साहस करेगे, इसमें मुझे बहुत शक है ।

फतेहपुरसीकरी में मुठभेड़

मूर से सेक्रट्री गवर्नमेंट ऑफ इंडिया को तार समाचार-

29 अक्टूबर 1857 ई॰ ।

फतेहपुरसीकरी में हमारा अभियान सफल होने से अधिक संख्यक विद्रोही भाग खड़े हुए हैं । किन्तु कुछ विद्रोही ऊँची इमारत पर अधिकार किये हुए हैं और निराशा में घनघोर मुक़ाबला कर रहे हैं । सत्रह मारे गये हैं । हमारी ओर से भी कुछ घायल हुए हैं । लेफ्टिनेंट ग्लब के दोनों पैर घायल हुए हैं । शॉवर्स के दस्ते सोनाह पर मेवातियों को दंडित करके बल्लभगढ़ की ओर कूच करेंगे । दोपा ज़िले में विद्रोही अभी नहीं कुचला जा सका है । शेष पूर्वोत्तर शान्त है ।

विद्रोहियों की सजा

15 जनवरी सन् 1857 ई॰ । कोर्ट मार्शल से 62 को(4 गोलियों से उड़ा दिये गये और 2 को जेल की सजा दी गई ।) और स्पेशल कमिश्नर ने 16 को सजा दी इनमें 42 मुसलमान, 36 हिन्दू, सत्रह विद्रोही थे । छै मुसलमान और सात हिन्दू कुल 13, 5 जुलाई के दंगों में शामिल थे । 26 मुसलमान और 22 हिन्दू कुल 48 पर विश्वासघात के मुकदमे चलाये गये ।

बादशाह का फरमान

बिना हस्ताक्षर के बादशाह ने 11 अगस्त 1857 ई॰ को उन सभी हिन्दुओं और मुसलमानों के नाम एक आदेश जारी किया, जो धर्म का उत्थान चाहते थे । आप सभी को यह मालूम हो कि फलकुद्दीन शाह उनमें से एक है, जो मुहम्मद व धर्म के लिये अधर्मियों के ख़िलाफ़ धर्मयुद्ध लड़ने को कृतसंकल्प हैं । वित्त और सेना का निदेशक होने के नाते गाजियों और धनसंग्रह के लिये यह आदेश है । इससे ख़ुदा को दी हुई फ़ौजों का व्यय वहन किया जायगा जो देश के हर हिस्से से हर दिशा से शाही इमारत पर ईसाइयों के नाश के लिये आई और यहीं एकत्र है और जिसने हज़ारों ब्रिटिश सिपाहियों को और दूसरे अंगेज़ों को दोजख में भेज रखा है । आप स्वयं के ऊपर यह वज़न है कि अपने फायदे को अच्छी तरह सोचों विचारों और शाही खजाने में उतना धन भेजो जो निर्धारित किया जाय । साथ ही अपने विश्वस्त प्रतिनिधियों को भी भेजो । इसके आलावा ऊपर लिखे फलकुद्दीन शाह को ईसाइयों के बध के लिये हर ऐसी इमदाद और फ़ौजी बल भी भेजो, जिसे वह माँगे । जो धर्म और ईमान के लिये हमारे हाथ मजबूत करेंगे, उनको सम्मान दिया जायगा और जो ईसाइयों के साथ विश्वास में रहेंगे वे जिन्दगी और मिल्कियत से हाथ धो बैठेंगे ।

सूची

छतारी का सरदार सात तोपें और पचास हज़ार रुपये । पड़ावा का सरदार दस हज़ार रुपये । धर्मपुर का सरदार पाँच हज़ार रुपये । दानपुर का पाँच हज़ार रुपये । पहसू का पाँच हज़ार रुपये । सादाबाद का पाँच हज़ार रुपये । दतावली को दो हज़ार रुपये । बेगमपुर का सरदार दस हज़ार रुपये । बदायूँ का दस हज़ार रुपये । जारऊ का पाँच हज़ार रुपये । मथुरा के व्यापारी पचास हज़ार रुपये देंगे । बल्लभगढ़ का राजा एक लाख रुपये दे और भरतपुर का राजा पाँच लाख रुपये दे । इस तरह कुल बारह लाख पैंतालीस हज़ार रुपये हुए ।

छावनी का नाम दिल्ली पहुँचने की तारीख 1857ई॰  घुड़सवार पैदल तोपें औरअन्य
1. मेरठ   11 मई   3ट्रुप तीसरी घुड़सवार रेजी- मेंट 11वीं व 20वी दो नेटिव इनफेंट्री  कुछ नहीं
2. दिल्ली 7  11 मई   शून्य                                                                          38वीं, 54वीं  व 74वीं 3रेजी-  मेंटें एन0 आई॰            
6तोप, हौर्स लाइट फील्ड बैटरी
3. झाँसी  जून 14 400 सवार-चौथी कैलेवरी हरियाना बटालियन शून्य
4. मथुरा जून 5 200 सवार-चौथी कैलेवरी 44वीं व 67वीं कम्पनी शून्य
5. लखनऊ जून 20  500 सवार 550 पैदल शून्य
6. नसीराबाद जून 19 500 सवार 15वीं व 30वी रेजीमेंट 6 तोप,हौर्स आर्टिलरी
7. जालंधर जून 22 280 लाइट कैवेलरी छटी 3,36 और 61वीं रेजीमेंट 1 तोप, नाभा राजा  की हौर्स आर्टिलरी
8. फीरोजपुर जून 24 शून्य 300 पैदल 45  व 57वीं रेजीमेंट   शून्य
9. बरेली जुलाई 1  8 रेजीमेंट 4 रेजीमेंटें,78, 88,28,29,68वीं   6 तोपें,35 हाथी,700 टट्टू, ऊँट बग्गी, पालकी
10. झाँसी  जुलाई 6व 25 14वीं कैवेलरी 1 रेजीमेंट 12वी इनफेंट्री  3 तोपें, 2  फील्ड वैटरी,हाथी
11. ग्वालियर जून 2 ग्वालियर 400 सवार रेजीमेंट कुछ नहीं  कुछ नहीं 
12. नीमच जुलाई 31 बंगाल कैवेलरी की 1 रेजीमेंट 4 रेजीमेंट इनफेंट्री  9 तोपें, हौर्सआर्टिलरी 500हाथी
13.बनारस                   अगस्त 6  200 सवार   300 पैदल सिख रेजीमेंट शून्य
14. अलीगढ़  जून 12 शून्य नवीं नेटिव इनफेंट्री शून्य
15. आगरा जून 14  शून्य 2 रेजीमेंट नेटिव इनफेंट्री शून्य
16. रोहतक  जून 14 शून्य 60 वीं इनफेंट्री रेजीमेंट शून्य
17. झज्झर मई 8 300 सवार शून्य शून्य
18.नये शाही ट्रुप  जून 13 400 सवार शून्य शून्य
19. टोंक के ।गाजी अगस्त 6  30 सवार 1470पैदल शून्य

क्रान्तिकारियों का कूँच

पिछले तीन दिनों में भगोड़ों की एक भीड़ मथुरा की ओर चल पड़ी है । इसमें जेलों से भागे भयंकर हत्यारे, कई रेजीमेंटों के विद्रोही, कट्टर धर्मान्ध और हर तरफ के कुकर्मी सम्मिलित हैं । यहाँ पर वे जमुना पर नावों का पुल बनाने में जुटे हुए हैं, जिससे कि इन्दौर और होल्कर के विद्रोहियों के साथ सम्पर्क स्थापित हो सके, जो मेरे पिछले पत्रानुसार धौलपुर में रूके हुए घटना क्रम की प्रतीक्षा कर रहे हैं । अब यह स्पष्ट है कि वे सब संयुक्त हो जायगे । दिल्ली की विद्रोही सेना के दस्ते जमुना के दाहिने किनारे अलीगढ़ को चल पड़े थे । वे भी आ लगेगें । इससे पहले कि भगोड़ों के समूह जमुना पार करके आगे बढ़ें, हमारी योजना है कि उनको खदेड़ने और बीस तोपें, पचास हाथी और दूसरी सरकारी सम्पत्ति छीनने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होगी । इस अपरिहार्य और निश्चित अभियान के लिये यूरोपियन कम्पनियाँ, तोपखाना और मिलीशिया मेजर माँटगोमरी के कमांड में सादाबाद को चल पड़े हैं । सादाबाद आगरा और मथुरा के मध्य में एक शिखर है ।


मथुरा ज़िले ने स्वातन्त्र्य संग्रामों में अपने गौरवशाली इतिहास के अनुरूप ही योगदान दिया है । मथुरा मराठा एवं जाट शक्तियों के पराभव के उपरान्त अंग्रेजी दासता में आया । सन् 1857 में विदेशी सत्ता के विरूद्व यहाँ के देशभक्तों ने अपनी वीरता, शौर्य और देशभक्ति का परिचय दिया । सन् 1857 की क्रान्ति मथुरा ज़िले में 16 मई को प्रारम्भ हुई जबकि क्रान्तिकारियों ने 'अंग्रेज़ वल्टर्न' को मार कर ख़ज़ाना लूटा । मथुरा ज़िले में कई स्थानों पर क्रान्ति की चिनगारियाँ जल उठी थीं । जाटों, यादवों, ठाकुरों और गूजरों ने इस स्वातन्त्रय-युद्व में सक्रिय भाग लिया । क्रान्ति की लहरें वतर्मान छाता तहसील के अन्तर्गत मझोई, रामपुर (कोसी), बसई, हुसेनी, जटवारी आदि गांवों में फैली थीं । दोतना के मुसलमानों, अजीजपुर के जाटों और मझोई और रामपुर के गूजरों का इसमें भाग लेना सराहनीय था । बाद को गूजरों के गाँव छीनकर हाथरस के राजा गोविन्द सिंह को दे दिये गये थे । इस क्रान्ति में छाता के क्रान्तिकारी जमींदारों ने छाता सराय पर भी अधिकार कर लिया था । सहार में भी क्रान्ति की चिनगारियाँ उठीं । अड़ींग में क्रान्तिकारियों ने यहाँ के ख़ज़ाने पर अधिकार करने की चेष्टा की थी लेकिन सफलता न मिल सकी । मांट तहसील के अन्तर्गत नानकपुर गांव के उमराव बहादुर नामक जमींदार ने दिल्ली के मोर्चे पर विदेशियों से लडते हुए वीरगति प्राप्त की थी । विदेशी शासकों ने इस देशभक्त के बाद में 18 गांव ज़ब्त कर लिये थे । ये गांव मथुरा के एक सेठ को उनके जीवन काल तक के लिए माफ़ी पर दे दिये गये थे ।


क्रान्ति के दिनों में नौहझील के क़िले पर क्रान्तिकारियों ने आक्रमण किया था । इसमें उमराव बहादुर और खूबा ने प्रमुख भाग लिया था । खूबा ने नौह झील के तहसीलदार सुखबासीलाल को मारने का उघोग किया था । इसी अपराध में ये पकड़े गये थे । जेल में ही इनकी मृत्यु हुई । इस किले पर नौहवारी के जाटों ने पड़ोसी गांवों, मुसमिना और पारसौली के लोगों के साथ आक्रमण किया था । नौह झील का विदेशी राज्य पक्षपाती लम्बरदार गौस मुहम्मद मारा गया था । नोहवारी के क्रान्तिकारियों में, भावसिंह प्रमुख थे । हमजापुर के दो वीर भाई श्री रामधीर सिंह और श्री हरदेव सिंह ने भी अपनी देशभक्ति का उदात्त परिचय दिया था । ये लोग 5-6 हज़ार क्रांति कारियों को लेकर अलीगढ़ ओर बढ़े थे । सुरीर में लक्ष्मण लम्बरदार और ग्यारह दूसरे लोगों को क्रान्ति में भाग लेने के अपराध में पकड़ा गया था ।

'सादाबाद' क्षेत्र में विदेशी शासन को नष्ट करने का सबसे अधिक प्रयत्न कुरसंडा के श्री देवकरण और श्री जालिम ने किया था । इन्होने इस क्षेत्र के जाटों का नेतृत्व कर सादाबाद पर आक्रमण किया था । इस आक्रमण में सात देशभक्त मारे गये थे । हाथरस के ठाकुर सामन्त सिंह ने सादाबाद की रक्षा में विदेशी शासन का साथ दिया था इसी देशद्रोह के पुरस्कार स्वरूप विदेशी सरकार ने एक गांव उन्हें दिया था । दूसरी ओर देशभक्त देवकरण और जालिम को फाँसी पर झूलना पडा। तहसील मथुरा के परखम, वेरी और फ़रह आदि गांवों ने भी इस क्रान्ति में भाग लिया । वेरीगांव के राजपूत ज़मींदारों की ज़मीदारी छीन कर बाद में दूसरों को दे दी गयी थी । चौमुहां गांव ने इस क्रान्ति में अग्रिम भाग लिया । यही कारण था । कि विदेशी शासकों ने इस गांव में आग लगवा दी थी और यहाँ के लोगों को फाँसी पर लटका दिया था । सिहोरा गांव के जाटों ने भी इस क्रान्ति में सक्रिय भाग लिया था । इन्होंने विदेशी राज्य पक्षपाती खुशीराम तहसील के चपरासी को मार डाला था । फोंडर गांव के निवासियों का भी इसमें योगदान प्रशंसनीय था मांट तहसील के अन्तर्गत अरूआ नामक गांव के अधा नामक जमींदार को विदेशी सत्ता पक्षपाती होने के कारण मार डाला गया । राया भी क्रान्तिकारियों का प्रमुख केन्द्र था । क्रान्तिकारियों ने देवीसिंह को यहाँ का राजा बना दिया था । लेकिन वह बहुत दिन राजा नहीं रह सके । विदेशी शासकों द्वारा इन्हें बाद में फाँसी दे दी गयी थी।

क्रान्ति का शमन

12 जून सन् 1857 में ज़िलेभर में मार्शल ला घोषित किया गया । राया के राजा देवी सिंह का दमन करने के उपरान्त 20 जून को ब्रिटिश फ़ौज मथुरा लौट आयी । दो दिन बाद सादाबाद के क्रान्तिकारियों का दमन किया गया । नवम्बर मास में थार्नहिल, कर्नल काटन को फ़ौज ने कोसी तक पहुँचकर गूजरों को आतंकित किया । छाता की सराय के एक भाग को तोडकर उस पर अग्रेजों ने अधिकार कर लिया था । बाइस देशभक्तों को इस सराय में गोली से भून दिया था । ज़िलेभर में क्रान्तिकारी गिन-गिनकर पकडे गये और उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया गया । अड़ींग के अनेक ठाकुरों को फांसी पर लटका दिया गया । मथुरा नगर में भी अनेक को फाँसी दे दी गयी थी । सन् 1958 की जुलाई तक अन्त में सारे ब्रज अथवा मथुरा ज़िलेमें शान्ति स्थापित की गयी । इस प्रकार भारत को विदेशी पंजे से मुक्त करने के लिए आयोजित प्रथम स्वतंत्रता युद्व का अन्त हुआ । अग्रेजी दासता के विरूद्व जब राष्द्र में अनेक विभूतियों के द्वारा राष्द्रीयता की लहर उठी तो उससे मथुरा ज़िला भी प्रभावित हुआ । इस ज़िले ने अपनी प्राचीन गौरवशाली परम्परा के अनुसार मातृभूमि की स्वतन्त्रता में प्रशंसनीय योगदान दिया ।

सम्बंधित लिंक