हनुमान बजरंग बाण

ब्रज डिस्कवरी, एक मुक्त ज्ञानकोष से
Asha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित १३:०९, २२ नवम्बर २००९ का अवतरण (नया पृष्ठ: {{menu}}<br /> ==बजरंग बाण== '''।। दोहा ।।''' निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें ...)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ


बजरंग बाण

।। दोहा ।।


निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।br />

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।br />

जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।br />

जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।br />

जैसे कूदि सुन्धु वहि पारा । सुरसा बद पैठि विस्तारा ।।br />

आगे जाई लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।br />

जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।br />

बाग उजारी सिन्धु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।br />

अक्षय कुमार मारि संहारा । लूम लपेट लंक को जारा ।।br />

लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर मे भई ।।br />

अब विलम्ब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु उन अन्तर्यामी ।।br />

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुर होय दुख हरहु निपाता ।।br />

जै गिरिधर जै जै सुखसागर । सुर समूह समरथ भटनागर ।।br />

जय हनु हनु हनुमंत हठीले । बैरिहि मारु बज्र की कीले ।।br />

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो । महाराज प्रभु दास उबारो ।।br />

ऊँ कार हुंकार महाप्रभु धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।br />

ऊँ हीं हीं हनुमन्त कपीसा । ऊँ हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।।br />

सत्य होहु हरि शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु जाय के ।।br />

जय जय जय हनुमन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।br />

पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।।br />

वन उपवन, मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।।br />

पांय परों कर जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।।br />

जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।br />

बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रति पालक ।।br />

भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बेताल काल मारी मर ।।br />

इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की । राखु नाथ मरजाद नाम की ।।br />

जनकसुता हरि दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।।br />

जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ।।br />

चरण शरण कर जोरि मनावौ । यहि अवसर अब केहि गौहरावौं ।।br />

उठु उठु उठु चलु राम दुहाई । पांय परों कर जोरि मनाई ।।br />

ऊं चं चं चं चपल चलंता । ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता ।।br />

ऊँ हं हं हांक देत कपि चंचल । ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल ।।br />

अपने जन को तुरत उबारो । सुमिरत होय आनन्द हमारो ।।br />

यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहो फिर कौन उबारै ।।br />

पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षा करैं प्राम की ।।br />

यह बजरंग बाण जो जापै । ताते भूत प्रेत सब कांपै ।।br />

धूप देय अरु जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ।।br />

।। दोहा ।।

प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।br />

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ।।br />