होली

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होली / Holi

फाल्गुन के माह रंगभरनी एकादशी से सभी मन्दिरों में फाग उत्सव प्रारम्भ होते हैं जो दौज तक चलते हैं । दौज को बल्देव (दाऊजी) में हुरंगा होता है । बरसाना, नन्दगांव, जाव, बठैन, जतीपुरा, आन्यौर आदि में भी होली खेली जाती है । यह ब्रज विशेष त्यौहार है यों तो पुराणों के अनुसार इसका सम्बन्ध पुराणकथाओं से है और ब्रज में भी होली इसी दिन जलाई जाती है । इसमें यज्ञ रूप में नवीन अन्न की बालें भूनी जाती है । प्रह्लाद की कथा की प्रेरणा इससे मिलती हैं । होली दहन के दिन कोसी के निकट फालैन गांव में प्रह्लाद कुण्ड के पास भक्त प्रह्लाद का मेला लगता है । यहां तेज चलती हुई होली में से नंगे बदन और नंगे पांव पण्डा निकलता है ।


श्रीकृष्ण राधा और गोपियों–ग्वालों के बीच की होली के रूप में गुलाल, रंग केसर की पिचकारी से खूब खेलते हैं । होली का आरम्भ फाल्गुन शुक्ल 9 बरसाना से होता है । वहां की लठामार होली जग प्रसिद्ध है । दसवीं को ऐसी ही होली नन्दगांव में होती है । इसी के साथ पूरे ब्रज में होली की धूम मचती है । धूलेंड़ी को प्राय: होली पूर्ण हो जाती है, इसके बाद हुरंगे चलते हैं, जिनमें महिलायें रंगों के साथ लाठियों, कोड़ों आदि से पुरूषों को घेरती हैं । यह सब धार्मिक वातावरण होता है ।
साँचा:पर्व और त्यौहार