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गीता अध्याय-11 श्लोक-50 / Gita Chapter-11 Verse-50
प्रसंग-
इस प्रकार चतुर्भुज रूप का दर्शन करने के लिये <balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> को आज्ञा देकर भगवान् ने क्या किया, अब <balloon link="index.php?title=संजय " title="संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">संजय</balloon> <balloon link="index.php?title=धृतराष्ट्र" title="धृतराष्ट्र पाण्डु के बड़े भाई थे । गाँधारी इनकी पत्नी थी और कौरव इनके पुत्र । पाण्डु के बाद हस्तिनापुर के राजा बने ।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">धृतराष्ट्र</balloon> से वही कहते हैं-
संजय उवाच
इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा
स्वकं रूपं दर्शयामास भूय: ।
आश्वासयामास च भीतमेनं
भूत्वा पुन: सौम्यवपुर्महात्मा ।।50।।
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संजय बोले-
वासुदेव भगवान् ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखलाया और फिर महात्मा <balloon link="index.php?title=कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">श्रीकृष्ण</balloon> ने सौम्यमूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया ।।50।।
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Sanjaya said-
Having spoked this to Arjuna, Bhagavan Vasudeva again showed to him in the same way his own four-armed form; and then, assuming a gentle form, the high-souled sri krsna consoled the frightened Arjuna. (50)
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वासुदेव: = वासुदेव भगवान् ने; इति = इस प्रकार; उक्त्वा = कहकर; तथा = वैसे ही; स्वकम् = अपने; रूपम् = चतुर्भुजरूप को; दर्शयामास = दिखाया; सौम्यवपु: = सौम्यमूर्ति; भूत्वा = होकर; आश्वासयामास = धीरज दिया
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