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[[चित्र:God-Vishnu.jpg|thumb|200px|[[विष्णु|भगवान विष्णु]]<br /> God Vishnu]]
 
पुराणों की रचना [[वैदिक काल]] के काफ़ी बाद की है,ये [[स्मृति]] विभाग में रखे जाते हैं। पुराणों में सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक का विशद विवरण दिया गया है । पुराणों को मनुष्य के भूत, भविष्य, वर्तमान का दर्पण  भी कहा जा सकता है । इस दर्पण में मनुष्य अपने प्रत्येक युग का चेहरा देख सकता है। इस दर्पण में अपने अतीत को देखकर वह अपना वर्तमान संवार सकता है और भविष्य को उज्जवल बना सकता है । अतीत में जो हुआ, वर्तमान में जो हो रहा है और भविष्य में जो होगा, यही कहते हैं पुराण। इनमें हिन्दू देवी-देवताओं का और पौराणिक मिथकों का बहुत अच्छा वर्णन है। इनकी भाषा सरल और कथा कहानी की तरह है। पुराणों, को वेदों और उपनिषदों जैसी प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं है। 
 
  
==पुराण महिमा==
 
पुराण शब्द ‘पुरा’ एवं ‘अण’ शब्दों की संधि से बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ -‘पुराना’ अथवा ‘प्राचीन’ होता है । ‘पुरा’ शब्द का अर्थ है - अनागत एवं अतीत । [[चित्र:Puran-1.png|200px|thumb|left]] ‘अण’ शब्द का अर्थ होता है -कहना या बतलाना अर्थात् जो पुरातन अथवा अतीत के तथ्यों, सिद्धांतों, शिक्षाओं, नीतियों, नियमों और घटनाओं का  विवरण प्रस्तुत करे ।  माना जाता है कि सृष्टि के रचनाकर्ता ब्रह्माजी ने सर्वप्रथम जिस प्राचीनतम धर्मग्रंथ की रचना की, उसे पुराण के नाम से जाना जाता है । हिन्दू सनातन धर्म में, पुराण सृष्टि के प्रारम्भ से माने गये हैं, इसलिए इन्हें सृष्टि का प्राचीनतम ग्रंथ माना लिया जाता है किन्तु ये बहुत बाद की रचना है। सूर्य के प्रकाश की भाँति पुराण को ज्ञान का स्रोत माना जाता है । जैसे सूर्य अपनी किरणों से अंधकार हटाकर  उजाला कर देता है, उसी प्रकार पुराण अपनी ज्ञानरूपी किरणों से मानव के मन का अंधकार दूर करके से सत्य के प्रकाश का ज्ञान देते हैं। सनातनकाल से ही जगत पुराणों की शिक्षाओं और नीतियों पर ही आधारित है।
 
==विषयवस्तु==
 
प्राचीनकाल से पुराण देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों - सभी का मार्गदर्शन करते रहे हैं । पुराण  मनुष्य को धर्म एवं नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा  देते हैं । पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं ।  पुराण वस्तुतः वेदों का विस्तार हैं । वेद बहुत ही जटिल तथा शुष्क भाषा-शैली में लिखे गए हैं । [[वेदव्यास]] जी ने पुराणों की रचना और पुनर्रचना की । कहा जाता है, ‘‘पूर्णात पुराण। ’’ जिसका अर्थ है, जो वेदों का पूरक हो, अर्थात् पुराण ( जो वेदों की टीका हैं ) । वेदों की जटिल भाषा में कही गई बातों को पुराणों में सरल भाषा में समझाया गया हैं । पुराण-साहित्य में अवतारवाद को प्रतिष्ठित किया गया है । निर्गुण निराकार की सत्ता को मानते हुए सगुण साकार की उपासना करना इन ग्रंथों का विषय है । पुराणों में अलग-अलग देवी-देवताओं को केन्द्र में रखकर पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म और कर्म-अकर्म की कहानियाँ हैं । प्रेम, भक्ति, त्याग, सेवा, सहनशीलता ऐसे मानवीय गुण हैं, जिनके अभाव में उन्नत समाज की कल्पना नहीं की जा सकती । पुराणों में देवी-देवताओं के अनेक स्वरूपों को लेकर एक विस्तृत विवरण मिलता है । पुराणों में सत्य को प्रतिष्ठित में दुष्कर्म का विस्तृत चित्रण पुराणकारों ने किया है । पुराणकारों ने देवताओं की दुष्प्रवृत्तियों का व्यापक विवरण किया है लेकिन मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही है ।
 
==पुराणों की संख्या==
 
[[चित्र:Narada-Muni.jpg|thumb|[[नारद मुनि]]<br /> Narad Muni|left]]
 
18 विख्यात पुराण हैं :
 
<center>
 
{| class="brajtable" style="width:40%; text-align:center"
 
|-
 
! विष्णु पुराण
 
! ब्रह्मा पुराण
 
! शिव पुराण
 
|-
 
| [[विष्णु पुराण]]
 
| [[ब्रह्म पुराण]]
 
| [[शिव पुराण]]
 
|-
 
| [[भागवत पुराण]]
 
| [[ब्रह्माण्ड पुराण]]
 
| [[लिङ्ग पुराण]]
 
|-
 
| [[नारद पुराण]]
 
| [[ब्रह्म वैवर्त पुराण]]
 
| [[स्कन्द पुराण]]
 
|-
 
| [[गरुड़ पुराण]]
 
| [[मार्कण्डेय पुराण]]
 
| [[अग्नि पुराण]]
 
 
|-
 
| [[पद्म पुराण]]
 
| [[भविष्य पुराण]]
 
| [[मत्स्य पुराण]]
 
|-
 
| [[वराह पुराण]]
 
| [[वामन पुराण]]
 
| [[कूर्म पुराण]]
 
|}
 
</center>
 
[[चित्र:Agni-Deva.jpg|[[अग्निदेव]]<br /> Agni Deva|thumb]]
 
'''यह सूची विष्णु पुराण पर आधारित है। मत्स्य पुराण की सूची में शिव पुराण के स्थान पर [[वायु पुराण]] है।'''
 
==पुराणों में श्लोक संख्या==
 
[[चित्र:Kurma-Avatar.jpg|thumb|[[कूर्म अवतार]]<br /> Kurma Avatar|left]]
 
[[चित्र:Varaha-Avatar.jpg|thumb|[[वराह अवतार]] <br />Varaha Avatar|left]]
 
 
[[चित्र:Matsya-Avatar.jpg|thumb|[[मत्स्य अवतार]]<br /> Matsya Avatar]]
 
संसार की रचना करते समय ब्रह्मा ने एक ही पुराण की रचना की थी । जिसमें एक अरब श्लोक थे । यह पुराण बहुत ही विशाल और कठिन था । पुराणों का ज्ञान और उपदेश देवताओं के अलावा साधारण जनों को भी  सरल ढंग से मिले ये सोचकर महर्षि वेद व्यास ने पुराण को अठारह भागों में बाँट दिया था । इन पुराणों में  श्लोकों की  संख्या चार लाख है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचे गये अठारह पुराणों और उनके  श्लोकों की संख्या इस प्रकार है :
 
[[चित्र:Vamana.jpg|thumb|[[वामन अवतार]]<br />Vamana Avtar]]
 
[[चित्र:Garuda.jpg|[[गरुड़]]<br /> Garuda|thumb]]
 
<center>
 
{| class="brajtable" width="30%" style="text-align:center"
 
<caption>
 
'''सुखसागर के अनुसार'''
 
</caption>
 
|-
 
!पुराण
 
!श्लोकों की संख्या
 
|-
 
|ब्रह्मपुराण
 
|दस हज़ार
 
|-
 
|पद्मपुराण
 
|पचपन हज़ार
 
|-
 
|विष्णुपुराण
 
|तेइस हज़ार
 
|-
 
|शिवपुराण
 
|चौबीस हज़ार
 
|-
 
|श्रीमद्भावतपुराण
 
|अठारह हज़ार
 
|-
 
|नारदपुराण
 
|पच्चीस हज़ार
 
|-
 
|मार्कण्डेयपुराण
 
|नौ हज़ार
 
|-
 
|अग्निपुराण
 
|पन्द्रह हज़ार
 
|-
 
|भविष्यपुराण
 
|चौदह हज़ार पाँच सौ
 
|-
 
|ब्रह्मवैवर्तपुराण
 
|अठारह हज़ार
 
|-
 
|लिंगपुराण
 
|ग्यारह हज़ार
 
|-
 
|वाराहपुराण
 
|चौबीस हज़ार
 
|-
 
|स्कन्धपुराण
 
|इक्यासी हज़ार एक सौ
 
|-
 
|कूर्मपुराण
 
|सत्रह हज़ार
 
|-
 
|मत्सयपुराण
 
|चौदह हज़ार
 
|-
 
|गरुड़पुराण
 
|उन्नीस हज़ार
 
|-
 
|ब्रह्माण्डपुराण
 
|बारह हज़ार
 
|-
 
|मनपुराण
 
|दस हज़ार
 
|}
 
</center>
 
 
==पुराणों की संख्या अठारह क्यों ?==
 
*अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, सृष्टि, पराकायप्रवेश, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहारकरणसामर्थ्य, भावना, अमरता, सर्वन्याय - ये  अट्ठारह सिद्धियाँ मानी जाती हैं ।
 
*सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पाँच महाभूत ( [[पृथ्वी]], [[जल]], वायु, [[अग्नि]] और आकाश ), पाँच ज्ञानेद्री ( कान, त्वचा, चक्षु, नासिका और जिह्वा ) और पाँच कर्मेंद्री (वाक, पाणि, पाद, पायु  और उपस्थ ) ये अठारह तत्व वर्णित हैं ।
 
*छः [[वेदांग]], चार [[वेद]], मीमांसा, न्यायशास्त्र, [[पुराण]], धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, [[आयुर्वेद]], धनुर्वेद और गंधर्व वेद ये अठारह प्रकार की विद्याएँ मानी जाती हैं ।
 
*एक संवत्सर, पाँच ऋतुएँ और बारह महीने - ये सब मिलकर काल के अठारह भेदों को बताते हैं ।
 
*श्रीमद् भागवत [[गीता]] के अध्यायों की संख्या भी अठारह है ।
 
*श्रीमद् भागवत में कुल श्लोकों की संख्या अठारह हज़ार है ।
 
*श्री[[राधा]], [[कात्यायनी]], [[काली]], [[तारा (देवी स्वरूप)|तारा]], [[कूष्मांडा]],  [[लक्ष्मी]], [[सरस्वती देवी|सरस्वती]], [[गायत्री]], [[छिन्नमस्ता]], [[षोडशी]], [[त्रिपुरभैरवी]], [[धूमावती]], [[बगलामुखी]], [[मातंगी]],  [[पार्वती]], [[सिद्धिदात्री]], [[भगवती]], [[जगदम्बा]] के ये अठारह स्वरूप माने जाते हैं ।
 
*श्री[[विष्णु]], [[शिव]], [[ब्रह्मा]], [[इन्द्र]] आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती [[दुर्गा]] अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं ।
 
<center>
 
<gallery>
 
चित्र:ardhnarishwar.jpg|अर्धनारीश्वर<br /> Ardhnarishwar
 
चित्र:Kali-shiv.jpg|[[काली|भगवती श्री काली]]<br /> Kali Devi
 
चित्र:Lakshmi.jpg|[[लक्ष्मी|लक्ष्मी देवी]] <br />Lakshmi Devi
 
चित्र:Saraswati-Devi.jpg|[[सरस्वती देवी|भगवती सरस्वती]]<br /> Saraswati Devi
 
चित्र:gayatri-devi.jpg|[[गायत्री|गायत्री देवी]]<br />Gayatri Devi
 
चित्र:Durga-Devi.jpg|[[दुर्गा|दुर्गा देवी]]<br />Durga Devi
 
चित्र:Brahma-Kund-Vrindavan-3.jpg|[[ब्रह्मा]]<br /> Brahma
 
चित्र:Radha-Krishna-Janmbhumi-Mathura-1.jpg|[[राधा]]-[[कृष्ण]], [[कृष्ण जन्मभूमि]]<br />Radha-Krishna, Krishna's Birth Place
 
</gallery>
 
</center>
 
 
==उप पुराण==
 
[[चित्र:Narsingh-Bhagwan.jpg|[[नृसिंह अवतार]]<br /> Narsingh Avatar|thumb]]
 
महर्षि [[वेदव्यास]] ने अठारह पुराणों के अतिरिक्त कुछ उप पुराणों की भी रचना की है। उपपुराणों को पुराणों का ही साररूप कहा जा सकता है ।  उपपुराण इस प्रकार हैं:
 
#सनत्कुमार पुराण                         
 
#कपिल पुराण                             
 
#साम्ब पुराण                         
 
#आदित्य पुराण                       
 
#नृसिंह पुराण
 
#उशनः पुराण
 
#नंदी पुराण
 
#माहेश्वर पुराण
 
#दुर्वासा पुराण
 
#वरुण पुराण
 
#सौर पुराण
 
#भागवत पुराण
 
#मनु पुराण
 
#कालिकापुराण
 
#पराशर पुराण
 
#वसिष्ठ पुराण
 
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०६:०७, २८ सितम्बर २०१० के समय का अवतरण