कृष्णदास

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कृष्णदास

कृष्णदास जन्म से शूद्र होते हुए भी वल्लभाचार्य के कृपा-पात्र थे और मंदिर के प्रधान हो गए थे । ‘चौरासी वैष्णवों की वार्ता’ के अनुसार एक बार गोसाईं विट्ठलनाथजी से किसी बात पर अप्रसन्न होकर इन्होंने उनकी ड्योढ़ी बंद कर दी । इस पर गोसाईं के कृपापात्र महाराज बीरबल ने इन्हें कैद कर लिया । पीछे गोसाईं जी इस बात से बड़े दुखी हुए और उनको कारागार से मुक्त कराके प्रधान के पद पर फिर ज्यों का त्यों प्रतिष्ठित कर दिया । इन्होंने भी और सब कृष्ण भक्तों के समान राधाकृष्ण के प्रेम को लेकर श्रृंगार रस के ही पद गाए हैं । ‘जुगलमान चरित’ नामक इनका एक छोटा सा ग्रंथ मिलता है । इसके अतिरिक्त इनके बनाए दो ग्रंथ और कहे जाते हैं- भ्रमरगीत और प्रेमतत्व निरूपण । इनका कविताकाल सन् 1550 के आसपास माना जाता है ।


कृतियाँ

  1. जुगलमान चरित
  2. भ्रमरगीत
  3. प्रेमतत्व निरूपण