गीता 17:2

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गीता अध्याय-17 श्लोक-2 / Gita Chapter-17 Verse-2

प्रसंग-


<balloon link="index.php?title=अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> के प्रश्न को सुनकर भगवान् अब अगले दो श्लोकों में उसका संक्षेप से उत्तर देते हैं-


श्रीभगवानुवाच
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा ।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां श्रृणु ।।2।।



श्रीभगवान् बोले-


मनुष्यों की वह शास्त्रीय संस्कारों से रहित केवल स्वभाव से उत्पन्न श्रद्धा सात्विकी और राजसी तथा तामसी- ऐसे तीनो प्रकार की ही होती है । उसको तू मुझसे सुन ।।2।।

Shri Bhagavan said-


According to the modes of nature acquired by the embodied soul, one's faith can be of three kinds-goodness, passion or ignorance. Now hear about these.(2)


देहिनाम् = मनुष्यों की ; सा = वह (बिना शास्त्रीय संस्कारों के केवल) ; स्वभावजा = स्वभाव से उत्पन्न हुई ; श्रद्धा = श्रद्धा ; सात्त्विकी = सात्त्विकी ; = च = और ; राजसी =राजसी ; च = तथा ; तामसी = तामसी ; इति = ऐसे ; त्रिविधा = तीनों प्रकार की ; एव = ही; भवति =होती है ; ताम् = उसको (तूं) ; (मत्त:) = मेरे से श्रृणु = सुन



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

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