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| ==गीता अध्याय-17 श्लोक-21 / Gita Chapter-17 Verse-21== | | ==गीता अध्याय-17 श्लोक-21 / Gita Chapter-17 Verse-21== |
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− | A gift which is bestowed in a grudging spirit and with the object of getting a service in return or in the hope of obtaining a reward, is called Rajasika. (21) | + | A gift which is bestowed in a grudging spirit and with the object of getting a service in return or in the hope of obtaining a reward, is called Rajas.(21) |
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− | तु = और ; परिक्किष्टम् = क्केशपूर्वक ; च = तथा ; प्रत्युपकारार्थम् = प्रत्युपकार के प्रयोजन से ; वा = अथवा ; फलम् = फलको ; यत् = जो दान ; उद्दिश्य = उद्देश्य रखकर ; पुन: = फिर ; दीयते = दिया जात है ; तत् = वह ; दानम् = दान ; राजसम् = राजस ; स्मृतम् = कहा गया है | + | तु = और ; परिक्किष्टम् = क्लेशपूर्वक ; च = तथा ; प्रत्युपकारार्थम् = प्रत्युपकार के प्रयोजन से ; वा = अथवा ; फलम् = फलको ; यत् = जो दान ; उद्दिश्य = उद्देश्य रखकर ; पुन: = फिर ; दीयते = दिया जात है ; तत् = वह ; दानम् = दान ; राजसम् = राजस ; स्मृतम् = कहा गया है |
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१३:०३, २४ नवम्बर २००९ का अवतरण
गीता अध्याय-17 श्लोक-21 / Gita Chapter-17 Verse-21
प्रसंग-
अब राजस दान के लक्षण बतलाते हैं-
यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुन:।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम् ।।21।।
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किंन्तु जो दान क्लेशपूर्वक तथा प्रत्युपकार प्रयोजन से अथवा फल को दृष्टि में रखकर फिर दिया जाता है, वह दान राजस कहा गया है ।।21।।
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A gift which is bestowed in a grudging spirit and with the object of getting a service in return or in the hope of obtaining a reward, is called Rajas.(21)
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तु = और ; परिक्किष्टम् = क्लेशपूर्वक ; च = तथा ; प्रत्युपकारार्थम् = प्रत्युपकार के प्रयोजन से ; वा = अथवा ; फलम् = फलको ; यत् = जो दान ; उद्दिश्य = उद्देश्य रखकर ; पुन: = फिर ; दीयते = दिया जात है ; तत् = वह ; दानम् = दान ; राजसम् = राजस ; स्मृतम् = कहा गया है
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